अभी बुधवार की सुबह 8.45 बजे हैं. नई दिल्ली के हौज खास इलाके में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) के परिसर में जींस, टॉप और शर्ट पहने स्मार्ट विद्यार्थियों का एक झुंड पहुंच रहा है.
अभी उनकी कक्षा शुरू होने में करीब आधे घंटे की देरी है, इसलिए ये नौजवान लड़के-लड़कियां खुले में एंफीथिएटर की सीढिय़ों पर बैठे अपने नोट, आइडिया और समझ एक-दूसरे से साझा कर रहे हैं कि जो उन्हें एसाइनमेंट दिया गया है, उसे कैसे अपने खास अंदाज में कर सकते हैं. यही नजारा कंक्रीट और शीशे की खूबसूरत छोटी इमारतों वाले पूरे निफ्ट परिसर में चारों ओर दिखता है, यहां की आबोहवा में रचनात्मक ऊर्जा भरी हुई है.
केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के तहत स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के फैशन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के साथ तकनीकी साझेदारी में 1986 में स्थापित निफ्ट आज फैशन की पढ़ाई में शीर्ष पर है.
यह इंस्टीट्यूट ज्ञान, अकादमिक स्वतंत्रता और आलोचना की आजादी रचनात्मक विचारों की दिशा में काम करने का माहौल और देश-विदेश से फैशन डिजाइन पढऩे आने वाले छात्रों को यही शिक्षा देता है.
निफ्ट ने देश के विभिन्न शहरों में 15 परिसर स्थापित किए हैं, जो पूरी तरह पेशेवर ढंग से चलाए जाते हैं. इसके मूल परिसर दिल्ली में 10 पूर्णकालिक और आठ सांध्यकालीन पाठ्यक्रम चलते हैं.
इसके अलावा 2009 में एक ऐसा पाठ्यक्रम शुरू किया गया, जिससे पूर्व छात्र अपने डिप्लोमा को डिग्री में बदल सकें. यह अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट दोनों स्तरों पर उपलब्ध है.
निफ्ट से निकले कुछ छात्र आज फैशन उद्योग में शीर्ष पर हैं. जे.जे. वलाया और रितु बेरी से लेकर रोहित बल, मनीष अरोड़ा, राजेश प्रताप सिंह और सब्यसाची मुखर्जी तक कई नामचीन डिजाइनर इस संस्थान का नाम फैशन जगत में रोशन कर रहे हैं. परिसर निदेशक प्रोफेसर वंदना नारंग के मुताबिक, "निफ्ट दिल्ली बाकी परिसरों से अलग है.
यहां की फैकल्टी आला दर्जे की है और इसका इंडस्ट्री के अलावा वैश्विक जुड़ाव भी खास है. यहां फैशन की पढ़ाई को उस स्तर पर ले जाया गया है, जिससे कि वह बदलते दौर के साथ कदमताल कर सके.
यह कंटेट और कार्यविधि दोनों में तकनीक की मदद से आगे बढ़ रही है. क्लासरूम ग्लोबल हो गए हैं. संस्थान में फैकल्टी के सदस्य और छात्र मिल-जुलकर फैशन उद्योग की नई चुनौतियों पर काम कर रहे हैं.''
इंस्टीट्यूट एसेसरी डिजाइन, फैशन कम्युनिकेशन, निटवेअर डिजाइन, लेदर डिजाइन, सिले-सिलाए वस्त्र उत्पादन और टेक्सटाइल डिजाइन जैसे विषयों में चार साल की डिग्री देता है. इसके अलावा यहां डिजाइन, फैशन मैनेजमेंट और फैशन टेक्नोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट कोर्स भी हैं.
इस साल जुलाई से इंस्टीट्यूट एक नया पाठ्यक्रम भी शुरू करने जा रहा है. इसके तहत छात्रों को ग्रेजुएशन के बाद व्यावहारिक दुनिया की हर तरह की चुनौतियों का सामना करने के साथ ही जरूरी हुनर सिखाया जाएगा.
इंस्टीट्यूट के रिसोर्स सेंटर में अंतरराष्ट्रीय स्तर की फैशन से संबंधित नवीनतम सूचनाओं का बेहतरीन संकलन मौजूद है.
इन वर्षों में निफ्ट के पाठ्यक्रमों का एक अहम पहलू यह है कि सभी अंतरराष्ट्रीय रुझानों पर गौर करने के साथ क्राफ्ट क्लस्टर इनिशिएटिव के जरिए स्वदेशी पारंपरिक कला को संरक्षित रखने की भी शिक्षा दी जाती है.
क्राफ्ट क्लस्टर इनिशिएटिव छात्रों को भारत की परंपराओं से रू-ब-रू कराता है. दरअसल, 2014-15 में कुल 265 छात्रों ने देश भर के विभिन्न स्थानों में मौजूद क्राफ्ट क्लस्टरों का दौरा किया और इस दौरान उन्होंने दक्ष हस्तकला शिल्पियों के साथ काम किया.
यह इनिशिएटिव छात्रों को अपनी आंखों से देखने और अनुभव करने का मौका देता है कि असल में कैसे काम होता है और कैसे वे इस अनुभव का इस्तेमाल अपनी रोजमर्रा की पढ़ाई में कर सकते हैं. यह निफ्ट की दूसरी मंजिल पर डिजाइन विभाग की कक्षाओं में भी जाहिर होता है.
इन्हीं कमरों में कढ़ाई, बुनाई, जुकी सिलाई मशीन, कपड़े काटने की मेज, और ड्राफ्टिंग की मेज तथा वर्कस्टेशन हैं. भरपूर रोशनी वाली इन्हीं खुली-खुली-सी कक्षाओं में भविष्य के डिजाइनर बेहद महीन बारीकियों से काम करते हुए अपने हाथ गंदे करते हैं. उन्हें पाठ्यक्रम के मुताबिक जो कुछ बनाने को कहा जाता है, उसे काटने, सिलने और दूसरी बारीकियां देने का काम करते हैं.
निफ्ट दिल्ली की फैशन डिजाइन सेंटर कोआर्डिनेटर नयनिका ठाकुर मेहता बताती हैं, "हर छात्र को काम करने के लिए एक मशीन दी जाती है और हम आश्वस्त करते हैं कि हर जरूरी सुविधा मुहैया हो. पैटर्न बनाना, ड्रेपिंग, सिलाई-कढ़ाई सब कुछ छात्र ही करते हैं और इन सभी पैमानों पर सख्ती से उनका आकलन किया जाता है.''
पढ़ाई का यही खास फोकस, अनुशासन और सहयोगी वातावरण इन भावी डिजाइनरों के लिए इंस्टीट्यूट को वाकई श्घर से बाहर दूसरे घर्य जैसा बना देता है.
किसी भी वक्त क्लासरूम, वर्क लैब या कैंटीन और हॉस्टल के कमरों में लगातार नए आइडिया पर खुलकर बहस करना कोई अपवाद नहीं बल्कि यहां की आम बात है.
निफ्ट दिल्ली की फैशन डिजाइन की फाइनल सेमेस्टर की छात्रा प्रमिला उत्तम कहती हैं, "इंस्टीट्यूट ने मुझमें बहुत कुछ बदल दिया है.
यहां मैंने छोटी से छोटी बात को भी एक अलग नजरिए से देखना सीखा. मसलन, जब मैं किसी ब्रांड की दुकान में जाती हूं तो किसी सिले वस्त्र को अपने तरीके से देखती हूं.
मैं उसे भीतर-बाहर दोनों तरफ से देखती हूं. मैं गौर करती हूं कि पॉकेट कैसे हैं, सिलाई कैसे हुई है. इससे मुझे उस परिधान की क्वालिटी का अंदाजा लग जाता है.''
इसी तरह फैशन डिजाइन के फाइनल सेमेस्टर के एक और छात्र अर्णव विजयवर्गीय कहते हैं, "यहां पढ़ाई के दौरान हमारी समझ, नजरिया और रंग-ढंग सब कुछ बेहतर गया है.
हम एक व्यक्ति की तरह उभरे हैं, हमारी सोच बदली है, हमने सीखा है कि कैसे दूसरों की मदद की जा सकती है और उनसे कैसा ताल्लुक रखा जाए जो हमारे जैसे ही रचनात्मक और माहिर हैं.
हम अपने वरिष्ठ साथियों से ही नहीं, बल्कि अपने शिक्षकों से सहजता से बात कर पाते हैं. हमारे शिक्षक सिर्फ पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ाते, बल्कि जिंदगी जीने की बाकी बातें भी बताते हैं. ये हमारे लिए बहुत कीमती है.''
दरअसल, दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी में ही छात्र पहले सपने देखते और अभिव्यक्ति की आजादी का एहसास करते हैं, अपनी कल्पनाओं को पंख लगाते हैं और भविष्य की ऊंची उड़ान की तैयारी करते हैं.
यही वह जगह है जहां उनकी कामयाबी की पृष्ठभूमि तैयार होती है. जहां तक जॉब की बात है तो यहां पर कोर्स के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके विद्यार्थियों के लिए कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव चलती है, जिसमें नामचीन कंपनियां शिरकत करती हैं और निफ्ट के विद्यार्थियों को नौकरियों के मौके देती हैं.
इसके अलावा छात्र फ्रीलांस फैशन डिजाइनर के तौर पर भी काम करते हैं. मुख्य तौर पर निफ्ट के छात्रों को बड़े रिटेलर्स, ई-रिटेलर्स, टेक्सटाइल मिल्स, होम फर्निशिंग कंपनियों, परिधान निर्माता कंपनियों में जॉब के प्रचुर अवसर मिलते हैं. ठ्ठ
क्या है खास निफ्ट दिल्ली में?
2017 में दुनिया के 20 बेहतरीन फैशन इंस्टीट्यूट्स में शुमार एकमात्र भारतीय इंस्टीट्यूट
स्वदेशी लाइफस्टाइल और फर्नीचर ब्रांड आइकिया ने निफ्ट, दिल्ली के छात्रों के सहयोग से एक कलेक्शन "सवरतन'' बनाया.
इसे दुनिया भर में अगस्त 2016 में लॉन्च किया गया और दुनियाभर में यह खूब सराहा गया
फैशन शिक्षा में उभरते रुझान
"दशक भर पहले "फास्ट फैशन'' का ट्रेंड था. अब फोकस "स्लो फैशन'' और हस्तकला पर है.
स्लो फैशन में देर लगती है, मेहनत का काम होता है और ऐसा नहीं होता कि पहनो और फेंको, बल्कि उसे पहनो और सुरक्षित रखो के ढर्रे पर चलना होता है.''
"पहले फैशन शिक्षा को रोजगारपरक माना जाता था, जो पॉलीटेक्निक वगैरह में दी जाती है. लेकिन अब ऐसा नहीं है.''
दिल्ली में निफ्ट की कैंपस डायरेक्टर डॉ. वंदना नारंग कहती हैं. "पहले शिक्षक जो कहता था, छात्र उसे मान लेते थे. लेकिन अब छात्रों के पास मोबाइल और दूसरे साधनों से इतनी ज्यादा सूचनाएं उपलब्ध हैं कि शिक्षकों को बदलते दौर के रुझानों और जरूरतों के हिसाब से तैयार होकर आना पड़ता है. हमारी फैकल्टी अपने अनुभव और संवेदनशीलता के साथ क्लासरूम में पहुंचती है.''
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