नए दौर में तकनीक से तकदीर को बदला जा सकता है—अपनी भी और दूसरों की भी. इस बात को सच कर दिखाया है समर सिंगला और चिन्मय अग्रवाल ने. अगर आपको गाजियाबाद से नोएडा जाना हो तो ऑटो सबसे सुविधाजनक साधन है लेकिन सिंगला-अग्रवाल के जुगनू ऐप के आने से पहले यह काफी मुश्किल काम था. ऑटो वाले मनमाने पैसे मांगते थे पर जुगनू ऐप का इस्तेमाल करने से ऑटो मिनटों में हाजिर हो जाता है और तयशुदा किराए पर सफर करना मनमाफिक लगता है. अमूमन गाजियाबाद-नोएडा के बीच चलने वाले ऑटो ड्राइवर चेतराम जुगनू ऐप आधारित ऑटो सेवा से जुड़े हुए हैं. उनकी मानें तो अब सवारियों के लिए इंतजार नहीं करना होता. दिन भर में 20-25 सवारियां आसानी से मिल जाती हैं. ऑटो एग्रीगेटर सेवा जुगनू से जुड़े ड्राइवर जब सवारियां नहीं ढो रहे होते हैं तो उस वक्त रेस्तरां से घरों और दफ्तरों को खाना पहुंचाते हैं. और ऐसा जुगनू के सेवा विस्तार की वजह से संभव हो सका है.
जुगनू की कहानी नवंबर, 2014 में चंडीगढ़ से शुरू हुई. ऐप आधारित ऑटो सेवा जुगनू आइआइटी, दिल्ली के दो आला दिमागों, समर सिंगला और चिन्मय अग्रवाल की उपज है. इस स्टार्ट-अप की शुरुआत बड़े दिलचस्प तरीके से हुई. समर और चिन्मय आइआइटी दिल्ली के रोबोटिक्स क्लब में साथ पढ़ते थे. इन दोनों ने मिलकर फूड डिलिवरी ऐप क्लिक लैब्स बनाया था. पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज 2014 के अपने सालाना फेस्ट में क्लिक लैब्स को प्रायोजक बनाना चाहता था. चिन्मय ने यहां फेस्ट के छात्रों और शिक्षकों के लिए प्रयोग के तौर पर एक ऐप जारी किया, जिससे ऑटो रिक्शा बुलाया जा सकता था. पहले दिन इस ऐप को 90 सवारियां मिली थीं. दूसरे दिन से यह लोकप्रिय होता चला गया. फिर चंडीगढ़ में ऐप आधारित इस ऑटोरिक्शा सेवा की विधिवत शुरुआत हो गई. चिन्मय याद करते हैं, ''तीन-चार महीने के भीतर इसके जरिए 1,000 से ज्यादा बार सवारी की गई. हमें लगा कि इसमें अपार संभावनाएं हैं."
देश में करीब 50 लाख ऑटोरिक्शा हैं, जो रोजाना 46 करोड़ रु. का कारोबार करते हैं. यूरोप की प्रसिद्ध सीईआरएन लैब से जुड़े रहे समर बताते हैं, ''कंपनी के रिसर्च के मुताबिक, देश में इन ऑटो की क्षमता का महज 30 फीसदी ही इस्तेमाल हो पा रहा था. जुगनू ने इस दोहन क्षमता को 70 फीसदी तक पहुंचा दिया है." चिन्मय याद करते हैं, ''दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में ऑटोरिक्शा की मांग और आपूर्ति के बुनियादी सिद्धांत की समस्या थी. इस बात ने हमें मौका दिया. हमने तकनीक का सहारा लिया, ड्राइवरों और सवारियों के बीच सेतु का काम किया."
नए काम को लेकर दोनों के परिवारों ने भी बहुत समर्थन दिया. समर याद करते हैं कि उनके पापा ने इसी ऐप के जरिए खाने का ऑर्डर दिया था और वह उनके पास बहुत कम वक्त में पहुंच गया था. इससे समर को बहुत खुशी मिली थी. वे आगे के सफर का द्ब्रयौरा देते हैं, ''हम बड़े बाजार को पकडऩा चाहते थे इसलिए हमने ऐप को एंड्रायड और आइओएस दोनों प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया."
निवेश के संबंध में चिन्मय का अपना आकलन रहा, ''शुरुआती दौर में चुनौतियां कम नहीं थीं. लेकिन फिर ऐसे निवेशक मिले जो कंपनी के विचार को जीवित रखना चाहते थे. जुगनू को पहली बार बाहरी पूंजी 2015 के अप्रैल महीने में हासिल हुई. उस पूंजी का इस्तेमाल देशभर में इसके विस्तार और तकनीक को अपग्रेड करने के लिए किया गया. तीन दौर की फंडिंग के बाद कंपनी ने अब तक 90 करोड़ रु. से ज्यादा का निवेश जुटा लिया है. इसके निवेशकों में किर्लोस्कर ग्रुप, विकास तनेजा (बीसीजी ग्रुप) जस्टिन वेल (इन्होंने फेसबुक और यान्डेक्स में भी निवेश किया है) राकेश माथुर (जंगली और वेबारू के सह-संस्थापक) पेटीएम और स्नोलेपर्ड वेंचर्स जैसी कंपनियां हैं.
आज जुगनू के ऐप से देश के 39 शहरों के 85,000 से अधिक ऑटोरिक्शा जुड़े हुए हैं. इनमें से करीब 15,000 साप्ताहिक रूप से सक्रिय होते हैं. इनके पास 43 लाख से ज्यादा सवारियां हैं, जिन्होंने अभी तक 1.5 करोड़ से ज्यादा बार सफर किया है. समर इसका श्रेय कंपनी के तकनीकी रूप से उन्नत होने को देते हैं. इसकी वजह से जुगनू ''बेहद स्थानीय बहुउद्देश्यीय" ऐप बन गया है, जिसका इस्तेमाल सामान्य सफर से लेकर ऑनलाइन खाने के ऑर्डर देने तक कहीं भी किया जा सकता है. चिन्मय और समर कहते हैं, ''हम उपभोक्ताओं की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करते हैं. बेरोकटोक संचालन के लिए सशक्त मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म की इन-हाउस तकनीक विकसित की गई. समय पर डिलिवरी की चुनौतियों के लिए हमने रूट ऑप्टिमाइजेशन, जियो-एनालिटिक्स और ऑटो-एलोकेशन जैसे फीचर भी ऐप में जोड़े."
जुगनू की उपयोगिता 10 फीसदी मासिक की दर से बढ़ रही है. इस स्तर पर इसको बेहतर माना जाना चाहिए. जुगनू के विस्तार की ही योजनाओं में एक सेवा ''फटाफट" भी है, जो ऑन-डिमांड कंसिडर सर्विस है. यह चैट पर आधारित इंटरफेस है जिसमें यूजर अपना अनुरोध भेज सकता है, पिक और ड्रॉप की डिटेल शेयर कर सकता है. इस सर्विस का इस्तेमाल हर तरह की डिलिवरी के लिए किया जा सकता है, चाहे बेकरी से केक या चॉकलेट मंगवानी हो या नया मोबाइल खरीदना हो या फिर घर में किसी प्लंबर या बिजली मिस्तरी को बुलाना हो—''फटाफट" हर सेवा के लिए उपलब्ध है.
जुगनू का बिजनेस मॉडल बेहद आसान है. कंपनी अपनी सेवा से जुड़े ऑटोवालों से 10 फीसदी का कमिशन वसूलती है. यानी हर राइड के साथ कंपनी का कमिशन बनता है. ऐसा ही सामान या ऑनलाइन ऑर्डर पहुंचाने पर भी होता है.
जुगनू के सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी ओला के पास देश के 80 शहरों में डेढ़ लाख ऑटो हैं. ओला और उबर को चुनौती देने के लिए जुगनू अब कैब भी उपलब्ध करा रहा है. चिन्मय बताते हैं, ''हमने प्रयोग के तौर पर गुडग़ांव में कैब सर्विस भी उपलब्ध कराई है. जब दूसरे कैब एग्रीगेटर कैब की हड़ताल झेल रहे थे तो हमें लगा, यही सही मौका है और तब हमने अपने सिस्टम में 1,000 कारें उपलब्ध कराईं. फिर भी हमारी मूल सेवा ऑटो एग्रीग्रेटर के तौर पर ही है."

