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राजस्थान के सांस्कृतिक महोत्सवः जिंदादिली के जीते-जागते सबूत

पुष्कर मेले जैसे परंपरागत उत्सव की वैश्विक प्रसिद्धि है, तो डेजर्ट फेस्टिवल और जयपुर साहित्य सम्मेलन जैसे हालिया उत्सव भी कलाकारों-लेखकों को प्रतिष्ठित मंच दे रहे हैं.

अपडेटेड 4 मार्च , 2016

अगर किसी प्रदेश की जिंदादिली या सजीवता देखनी हो तो वहां के लोगों को उनके मेले या त्योहार मनाते हुए देखना चाहिए. राजस्थान के लिए भी यह बात उतनी ही सच है. यहां प्रकृति ने अगर इतने रंग नहीं बिखेरे हैं, तो लोगों ने अपने उत्साह से मेले-त्योहार मनाकर ऐसा रंग भर दिया है कि हर बार आपके सामने एक नई तस्वीर पेश होती है. देश-विदेश में घूमने के बाद मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि पुष्कर मेला, डेजर्ट फेस्टिवल और एलिफैंट फेस्टिवल तीन मेले ऐसे हैं जिन्हें बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय पर्यटक जानता है और यहां आने के लिए प्रेरित होता है.

1981 में पुष्कर मेले में मैं और मेरे सहयोगी कलाकार हिम्मत सिंह दिन के समय मेले का चक्कर लगाने गए और अचानक हमने एक टीले पर बहुत-से लोगों का जमघट देखा और तालियों तथा घुंघरुओं की आवाज सुनी. दरअसल, वहां कालबेलिया डांसर गुलाबो अपना संपेरा नृत्य पेश कर रही थीं. हम उनकी प्रस्तुति देखकर दंग रह गए. उस शाम उन्होंने मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी और फिर हमने न जाने कितने कार्यक्रम उनके साथ किए. इस साल उन्हें पद्मश्री देने की घोषणा हुई है. जाहिर है, गुलाबो जैसे मशहूर कलाकारों का आगाज पुष्कर जैसे मेले से ही हुआ है. पुष्कर को तीर्थराज कहते हैं और अगर सांस्कृतिक पर्यटन के नजरिए से देखें तो भी पुष्कर मेलों का राजा ही है. आज जब सांस्कृतिक रुझान हर क्षण बदल रहे हैं, पुष्कर में जीवन के चित्र केलाइडोस्कोप की तरह दिखते हैं. अब तो मेले के दो हिस्से हो गए हैं एक पशु मेला और दूसरा धार्मिक मेला. पुष्कर मेले का असर पूरे देश के पर्यटन पर होता है. उसकी तारीखों के पहले और बाद के कुछ दिनों में पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है. पर हमें ध्यान देना होगा कि क्या न करें जिससे उसकी तस्वीर बड़े शहरों में आए दिन ऐतिहासिक इमारतों के आगे लगने वाले मेलों जैसी न हो जाए और मेले की अपनी तस्वीर धुंधली पड़ जाए.

राजस्थान के मेलों की दो सूचियां हैं—एक परंपरागत हैं, दूसरी वे जिसमें नए रचे उत्सव और मेले आते हैं. पर्यटन के नजरिए से वही मेले आकर्षण बन सकते हैं जो मौसम के अनुकूल हों और जहां आसानी से पहुंचा जा सकता हो. परंपरागत मेलों में पुष्कर के अलावा नागौर का पशु मेला, जयपुर का तीज मेला, उदयपुर और जयपुर का गणगौर मेला, कोलायत और चंद्रभागा का पशु मेला और वेणेश्वर का आदिवासी मेला है. इन सब में गणगौर एक ऐसा त्योहार है जिस पर राजस्थान में कई जगह अलग-अलग तरह के मेले लगते हैं. अगर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो यह राजस्थान का श्राज्य पर्व्य बन सकता है. वहीं जयपुर जैसी दीवाली पूरे देश में और कहीं नहीं मनाई जाती. इसे आसानी से एक बड़ा आकर्षण बनाया जा सकता है. कुछ ज्यादा नहीं करना है क्योंकि उसमें शहर ही सब कुछ कर देता है! यहां की होली का आकर्षण भी लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है. यहां भी पिछले साल जब एक मशहूर होटल में हमने होलिका दहन का आयोजन किया तो विदेशियों ने भी इसका खूब आनंद लिया. वहीं पतंगबाजी यानी श्सकरात्य, दशहरा और छोटे मेले जैसे कि चाकसू पंरपरागत मेलों में हैं.

नए रचे गए मेलों में मैं सब से पहला नाम डेजर्ट फेस्टिवल का लूंगी क्योंकि इसका नाम मैंने ही रखा था. कोई नया मेला अगर परंपरा बन जाए और हमारी संगीत परंपरा को बनाए रखने में कामयाब हो जाए तो इससे बढिय़ा बात और क्या हो सकती है. यह लोक जीवन का ऐसा मेला है जिसने सबसे ज्यादा पर्यटक आकर्षित किए. यहां से अनजाने कलाकार मशहूर हो गए, लोगों को स्थानीय स्वाद और कहानियों का आनंद मिला, तो इसमें सरहद पर हिफाजत करने वाले ऊंट और उनका बैंड भी शामिल हुए. इस फेस्टिवल की कल्पना ऑस्ट्रिया में पढ़ाई के बाद जन्मी.

दूसरा बेहद कामयाब उत्सव था एलीफैंट फेस्टिवल. लेकिन डर है कि कहीं यह इतिहास के पन्नों में न सिमट जाए. होलिका दहन के दिन इस तीन घंटे के आयोजन ने हजारों की संक्चया में लोगों को आकर्षित किया. अभी कुछ दिन पहले भी एक प्रोफेसर ने इसकी तारीखें जाननी चाहीं थीं पर क्या बताएं? आयोजक एक नजर इंटरनेट पर डालें कि पिछले वर्षों में यह कितना बड़ा आकर्षण बन गया था. वे उससे प्रेरित हों, और आने वाली दिक्कतों को दूर कर के महावतों और हाथियों से जुड़ी इस परंपरा का उत्सव मनाएं! पिछले एक दशक में रचे गए मेलों में एक बड़ा नाम है 'जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल'. इसने खूब कामयाबी हासिल की है पर अब इसके आयोजन स्थल को ले कर हो रही समस्याओं का समाधान ढूंढने की पहल होनी चाहिए. इसे साहित्य का कुंभ कहा जा रहा है तो फिर इसके लिए अलग नगरी क्यों न बसाई जाए! या फिर इसके आयोजन को अलग-अलग जगहों पर क्यों न बांटा जाए!

(लेखिका पर्यटन सलाहकार हैं)

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