वार्षिकांक अकसर हमें अतीत में झांकने और उससे मिले सबक सीखने का मौका भी देता है. इंडिया टुडे के बिहार-झारखंड संस्करण ने भी लंबा सफर तय कर लिया है. उसने पुरानी धारणाओं को टूटते और नए क्षितिजों को उभरते देखा है. परिवर्तन ही सनातन होता है. इसी आदर्श को ध्यान में रखते हुए इंडिया टुडे ने आपको बताया है कि इतने वर्षों में बिहार और झारखंड में कैसा बदलाव हुआ है. यह सच है कि दोनों राज्यों में कभी-कभी बहुत उथल-पुथल भरी और बेलगाम गतिविधियां देखी गई हैं, लेकिन दोनों राज्यों में समाज मंथन के दौर से गुजर रहा है. पुरानी परंपराएं टूट रही हैं और सत्ता के नए समीकरण पनप रहे हैं.
दोनों राज्यों में सामूहिक, दोस्ताना, खुले दिमाग वाले, उद्यमी, रचनात्मक, सृजनशील और कुछ कर दिखाने पर उतारू सफल लोगों की कमी नहीं रही है. हम हमेशा इन्हीं गुणों को अपनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं. देश के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी युवा बहुत उत्साहजनक और उल्लेखनीय भागीदारियां विकसित करने के लिए दम दिखा रहे हैं. आधुनिक शैक्षणिक और तकनीकी संस्थान खुल गए हैं और युवाओं को मौके भी मिल रहे हैं.
दूसरी ओर दोनों राज्यों ने राजनैतिक बदलाव भी देखा है. 1975 में जन्मे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिनती देश के सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में होती है. जबकि बिहार में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अक्तूबर में अपना 70वां जन्मदिन मनाएंगे और वे देश के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्रियों में से एक हैं. वे बिहार के पहले महादलित मुख्यमंत्री भी हैं. दोनों ने प्रशासनिक दृष्टि से मनचाही सफलता भले ही हासिल न की हो लेकिन गद्दी पर उनकी मौजूदगी बताती है कि दोनों राज्यों में राजनीति ने किस तरह करवट ली है.
पिछले वार्षिकांकों की तरह इंडिया टुडे के इस बार के वार्षिकांक में भी हम आपको कुछ सुपर अचीवर्स की गाथा बता रहे हैं. इन लोगों ने सफलता की राह में कई मुश्किलों का सामना किया है. आइएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत ने लोक प्रशासन में प्रधानमंत्री का उत्कृष्टता पुरस्कार पाया है. किसी अधिकारी की निष्ठा कैसी होनी चाहिए, वे इसके उदाहरण हैं. वहीं राजकुमारी देवी उर्फ किसान चाची के हौसले ने हजारों महिलाओं का जीवन हमेशा के लिए सुधार दिया. आनंद कुमार प्राइवेट स्कूल का खर्च नहीं उठा सकते थे और पैसे की कमी की वजह से कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढऩे नहीं जा सके थे. लेकिन आज वे सबसे सफल शिक्षकों में शुमार हैं. वे प्रतिभावान गरीब छात्रों को आइआइटी परीक्षा की तैयारी कराते हैं. बिंदेश्वर पाठक 275 करोड़ रु. के सुलभ इंटरनेशनल के प्रमुख हैं, जहां 60,000 सहयोगी सदस्य उनके साथ काम करते हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा है. ये सभी अलग-अलग उम्र के हैं. इनकी सामाजिक, शैक्षिक, वित्तीय और पेशेवर पृष्ठभूमि भी अलग-अलग है. ये अलग मिट्टी के मानुस हैं. अभावों से गुजरते हुए भी इन्होंने जिंदगी को शिकायतों का गान कर बिताने से इनकार कर दिया. अच्छी बात है कि ये अभी थके नहीं हैं और सबकी भलाई के लिए कुछ और पाने की जुगत में लगे हैं.
यहां हम दोनों राज्यों के तमाम सफल लोगों की सूची भले ही न दे पाए हैं लेकिन उत्कृष्टता के लिए उनकी अदम्य लालसा सुपर अचीवर्स की पहचान है. इनकी दास्तान सुनकर धड़कनें बढ़ जाती हैं पर आत्मा को चैन मिलता है. इन्होंने सवाल उठाए, लालसाओं को हवा दी और जवाब भी खोजे. अब हमें सबक सीखने हैं ताकि देश-दुनिया के साथ कदम मिला सकें. दोनों राज्य आगे बढ़ रहे हैं और आने वाला वक्त हमारा है बशर्ते हम पूरी तरह से तैयार रहें.
दोनों राज्यों में सामूहिक, दोस्ताना, खुले दिमाग वाले, उद्यमी, रचनात्मक, सृजनशील और कुछ कर दिखाने पर उतारू सफल लोगों की कमी नहीं रही है. हम हमेशा इन्हीं गुणों को अपनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं. देश के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी युवा बहुत उत्साहजनक और उल्लेखनीय भागीदारियां विकसित करने के लिए दम दिखा रहे हैं. आधुनिक शैक्षणिक और तकनीकी संस्थान खुल गए हैं और युवाओं को मौके भी मिल रहे हैं.
दूसरी ओर दोनों राज्यों ने राजनैतिक बदलाव भी देखा है. 1975 में जन्मे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिनती देश के सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में होती है. जबकि बिहार में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अक्तूबर में अपना 70वां जन्मदिन मनाएंगे और वे देश के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्रियों में से एक हैं. वे बिहार के पहले महादलित मुख्यमंत्री भी हैं. दोनों ने प्रशासनिक दृष्टि से मनचाही सफलता भले ही हासिल न की हो लेकिन गद्दी पर उनकी मौजूदगी बताती है कि दोनों राज्यों में राजनीति ने किस तरह करवट ली है.
पिछले वार्षिकांकों की तरह इंडिया टुडे के इस बार के वार्षिकांक में भी हम आपको कुछ सुपर अचीवर्स की गाथा बता रहे हैं. इन लोगों ने सफलता की राह में कई मुश्किलों का सामना किया है. आइएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत ने लोक प्रशासन में प्रधानमंत्री का उत्कृष्टता पुरस्कार पाया है. किसी अधिकारी की निष्ठा कैसी होनी चाहिए, वे इसके उदाहरण हैं. वहीं राजकुमारी देवी उर्फ किसान चाची के हौसले ने हजारों महिलाओं का जीवन हमेशा के लिए सुधार दिया. आनंद कुमार प्राइवेट स्कूल का खर्च नहीं उठा सकते थे और पैसे की कमी की वजह से कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढऩे नहीं जा सके थे. लेकिन आज वे सबसे सफल शिक्षकों में शुमार हैं. वे प्रतिभावान गरीब छात्रों को आइआइटी परीक्षा की तैयारी कराते हैं. बिंदेश्वर पाठक 275 करोड़ रु. के सुलभ इंटरनेशनल के प्रमुख हैं, जहां 60,000 सहयोगी सदस्य उनके साथ काम करते हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा है. ये सभी अलग-अलग उम्र के हैं. इनकी सामाजिक, शैक्षिक, वित्तीय और पेशेवर पृष्ठभूमि भी अलग-अलग है. ये अलग मिट्टी के मानुस हैं. अभावों से गुजरते हुए भी इन्होंने जिंदगी को शिकायतों का गान कर बिताने से इनकार कर दिया. अच्छी बात है कि ये अभी थके नहीं हैं और सबकी भलाई के लिए कुछ और पाने की जुगत में लगे हैं.
यहां हम दोनों राज्यों के तमाम सफल लोगों की सूची भले ही न दे पाए हैं लेकिन उत्कृष्टता के लिए उनकी अदम्य लालसा सुपर अचीवर्स की पहचान है. इनकी दास्तान सुनकर धड़कनें बढ़ जाती हैं पर आत्मा को चैन मिलता है. इन्होंने सवाल उठाए, लालसाओं को हवा दी और जवाब भी खोजे. अब हमें सबक सीखने हैं ताकि देश-दुनिया के साथ कदम मिला सकें. दोनों राज्य आगे बढ़ रहे हैं और आने वाला वक्त हमारा है बशर्ते हम पूरी तरह से तैयार रहें.