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प्रत्यय अमृत: कुछ कर दिखाने वाले अधिकारी

राज्य की सड़कों की सूरत बदलने वाले अधिकारी प्रत्यय अमृत ने अब बिजली दुरूस्त करने की ठानी.

अपडेटेड 23 सितंबर , 2014
यह जुलाई माह का एक दिन था. गरम, उमस भरा और बेचैन करने वाला. जब हर कोई सुकून देने वाले वीक-एंड का इंतजार कर रहा था, तभी एक हादसा हो गया. राजधानी पटना में दीघा-एम्स की सड़क के निर्माण में लगी कंपनी की गड्ढ़ा खोदने वाली भीमकाय मशीन अर्थमूवर ने गलती से बिजली के मोटे-मोटे केबल तारों को क्षतिग्रस्त कर दिया. इन केबलों के जरिए 220/132/33 केवी के खगौल ग्रिड सब-स्टेशन से दीघा ग्रिड को बिजली पहुंचाई जाती है. बिजली की यह लाइन पश्चिमी पटना के 2,00,000 से ज्यादा उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करती है. केबलों के टूटने से पूरा पश्चिमी पटना अंधेरे में डूब गया.

लोगों को लग रहा था कि यह मुसीबत एक हफ्ते से पहले खत्म होने वाली नहीं है. पिछले अनुभवों को देखते हुए इससे भी ज्यादा समय लगने की उम्मीद की जा रही थी. 132 केवी का खगौल केबल 2 दिसंबर, 2013 और 30 मार्च, 2014 को दो बार टूट चुका था. दोनों ही बार केबल की मरम्मत करने में हफ्ते भर से ज्यादा समय लगा था. दोनों बार प्रभावित इलाकों में बिजली कटौती करनी पड़ी थी और बारी-बारी से आपूर्ति करनी पड़ी थी. उस समय इतनी ही बिजली मिल पा रही थी कि बिजली के उपकरण किसी तरह काम के लायक बने रह सकें. उपभोक्ता बिजली के सुख से वंचित रह गए थे.

लोगों को कहीं से उम्मीद की किरण नहीं दिख रही थी. लेकिन 1991 बैच के आइएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत को जिन्होंने एक माह पहले ही ऊर्जा सचिव का कार्यभार संभाला था, को पिछले रिकॉर्डों से कुछ भी लेना-देना नहीं था. उन्होंने विशेषज्ञों और आधुनिक केबलों को जोडऩे वाले उपकरणों का इंतजार करने की जगह कोई नया उपाय आजमाने का फैसला किया. वे इस कोशिश में कामयाब भी रहे और महज 36 घंटे के भीतर बिजली बहाल हो गई. उस वक्त तक मध्य प्रदेश के सतना से केबल विशेषज्ञ पहुंच भी नहीं पाए थे. उन्होंने यह सब कैसे किया. अपने इंजीनियरों के साथ सोच-विचार करने के बाद अमृत ने इंजीनियरों से कहा कि वे दीघा ग्रिड को बिजली की सप्लाई करने के लिए क्षतिग्रस्त केबल से एक अस्थायी लाइन स्थापित करें. दीघा ग्रिड से ही पश्चिमी पटना के ज्यादातर इलाके में बिजली पहुंचाई जाती है.

जमीन खोदने वाली मशीन अर्थमूवर ने केबल को क्षतिग्रस्त कर दिया था, लेकिन बारीकी से जांच करने पर पाया गया कि एक सर्किट के दो केबल और दूसरे सर्किट का एक केबल अब भी सही-सलामत था. अमृत ने इंजीनियरों से कहा कि वे इन्हीं तीन केबलों से एक वैकल्पिक सर्किट बनाएं और दीघा ग्रिड को दी जाने वाली बिजली बहाल करें. यह काफी मुश्किल और खतरनाक काम था. यह प्रयोग अगर असफल रहता तो स्थिति और भी बिगड़ सकती थी. लेकिन उनकी कोशिश काम कर गई. वहीं दूसरी ओर केबल मरम्मत के लिए सात दिन का जो अनुमान लगाया गया था, वह सही साबित हुआ. केबल की मरम्मत का काम पूरा होने के लिए आठ केबल-ज्वाइंट किट की जरूरत होती है, जिन्हें स्वीडन से मंगाना पड़ा और वे तीन दिन बाद ही पटना पहुंच पाए. केबल की मरम्मत करने में हफ्ते भर से ज्यादा समय लग गया. पर उपभोक्ताओं को मुसीबत नहीं झेलनी पड़ी, क्योंकि अमृत की कोशिशों से तैयार वैकल्पिक सर्किट से उन्हें बराबर बिजली मिलती रही.

नागरिक प्रशासन के लिए प्रधानमंत्री का एक्सलेंस अवार्ड पाने वाले अमृत की खासियत है कि उनसे जिस काम की अपेक्षा की जाती है, वे उसे पूरा कर दिखाते हैं. लेकिन वे यहीं थमने वाले शख्स नहीं हैं. वे अपेक्षाओं से भी आगे बढ़कर अपने काम को अंजाम देते हैं. अपनी लगन, निष्ठा और साहस के साथ वे इस बात की मिसाल हैं कि नौकरशाह को जनसेवा के प्रति कितना समर्पित होना चाहिए. बिहार में सड़कों की सूरत बदलने का श्रेय अमृत को ही दिया जाता है. यही वजह है कि उन्हें बिजली क्षेत्र में भी सफलता की कहानी लिखने की जिम्मेदारी दी गई है. इस कर्मठ अधिकारी के हाथ में बागडोर होने से लोग बिजली की स्थिति बेहतर होने की उम्मीद कर सकते हैं.
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