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'किसान चाची' ने बदली बयार

खेती को अपना कर राजकुमारी देवी ने न सिर्फ खुद को बल्कि अन्य महिलाओं को भी किया सशक्त.

अपडेटेड 23 सितंबर , 2014
सरैया प्रखंड के पिपरा की गीता देवी लोकलाज की वजह से घर की चौखट लांघने से भी परहेज करती थीं. पर अब उनकी जिंदगी बिल्कुल बदल गई है. अपने इलाके की महिला किसान राजकुमारी देवी उर्फ किसान चाची की प्रेरणा से उन्होंने खेती को जीवन का आधार बनाया और अब वे न सिर्फ आर्थिक रूप से स्वावलंबी हैं बल्कि नींबू की खेती से इलाके में अपनी पहचान बना चुकी हैं. गीता नाम की महिला ने किसान चाची से ही खेती के गुर सीखे और उन्हीं के नक्शेकदम पर एक कुशल किसान बन गई हैं. उनकी बेटी प्रीति भी स्नातक करने के बाद खेती में उनका हाथ बंटा रही है. मां-बेटी दुधारू पशु रखकर दूध का व्यवसाय भी कर रही हैं.

मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड और आसपास के इलाके में गीता देवी जैसी कई महिलाएं हैं, जिन्हें किसान चाची की प्रेरणा ने नई जिंदगी दी है. गीता देवी की तरह ही रीता शाही भी सब्जी किसान के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी हैं. किसान चाची ने उन्हें भी सब्जी उगाने की प्रेरणा और प्रशिक्षण दिया था. रीता अपनी तीन बीघा जमीन में कई तरह की सब्जियां उगा रही हैं. पति अजीत शाही भी उनका हाथ बंटा रहे हैं. पुरुष प्रधान समाज में जहां महिलाओं का घर से बाहर निकलना बुरा माना जाता था, किसान चाची ने समाज की परवाह किए बगैर महिलाओं को खेती के जरिए आर्थिक तौर पर सशक्त बनाया है.

किसान चाची का जन्म एक शिक्षक के घर में हुआ था. मैट्रिक पास करने के बाद ही 1974 में उनकी शादी एक किसान परिवार में सरैया प्रखंड के अनंतपुर के अवधेश कुमार चौधरी से हो गई. 1990 में चौधरी के चार भाइयों में बंटवारा हुआ और उनके हिस्से मात्र ढाई बीघा जमीन आई. परिवार में तंबाकू की खेती की परंपरा थी. इसे तोड़ते हुए उन्होंने घर के पीछे की जमीन में फल और सब्जी उगाने के साथ फलों और सब्जियों से अचार-मुरब्बा सहित कई उत्पाद बनाना शुरू किया. इसमें उन्होंने आसपास की महिलाओं को भी सहयोगी बनाया. उनकी मेहनत से अप्रत्याशित परिवर्तन दिखने लगा. परिवार की आमदनी बढ़ गई.

उन्होंने साइकिल से घूम-घूमकर दूसरे गांवों की महिलाओं को भी खेती सिखाई. इससे उन्हें सम्मान और प्रसिद्धि मिलने लगी. उनके काम की सराहना देशभर में होने लगी. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उनकी बागवानी को देखने उनके घर गए. कई मेलों और समारोहों में वे सम्मानित हुईं. राज्य सरकार ने 2006 में उन्हें किसानश्री सम्मान दिया. तब से लोग उन्हें किसान चाची कहने लगे. सितंबर, 2013 में वे अहमदाबाद के शिल्प, लघु उद्योग मेले में अपने उत्पाद के साथ पहुंचीं तो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनसे मिले और उनकी प्रशंसा की. उनका वीडियो गुजरात सरकार ने अपनी वेबसाइट पर भी डाला.

किसान चाची 22-23 तरह के अचार और मुरब्बे बनाती हैं और महानगरों के मेलों में बेचती हैं. अपने उत्पाद को बाजारों में लाने के लिए भी उन्होंने कोशिशें शुरू की हैं. अभी वे डिब्बे में अपना उत्पाद रखकर सिर्फ कागज स्टिकर चिपका रही हैं. वे चाहती हैं कि मुजफ्फरपुर सहित अन्य बड़े बाजारों में उनके उत्पाद मिलें. इसमें उन्हें पूंजी की समस्या हो रही है. फिर भी वे प्रयास कर रही हैं. मुजफ्फरपुर शहर में अपना ठिकाना बनाने के लिए उन्होंने थोड़ी जमीन भी खरीद ली है. अपनी बेटियों सुप्रिया और सोनाली को वे एमसीए करवा चुकी हैं. उन्होंने स्वर्ण रोजगार जयंती योजना के तहत महिलाओं के 36 ग्रुप बनाए थे और उन्हें ट्रेनिंग दी. उस ग्रुप की सभी महिलाएं अब अपना रोजगार कर रही हैं. खेती, पशुपालन या मछली पालन करके ये महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हैं. इससे अन्य महिलाएं भी प्रेरित हो रही हैं.
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