वडोदरा शहर का फाइन आर्ट्स से लंबा और गहरा रिश्ता रहा है. ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, राजा रवि वर्मा ने यहां के महाराजा के मेहमान के रूप में अपने दौरे के समय शाही लक्ष्मी विलास महल के लिए कई चित्र बनाए. इनमें रामायण और महाभारत के कई प्रसंग और पारिवारिक पोर्ट्रेट शामिल रहे हैं, जिनसे कला के शाही संरक्षण को और मजबूती मिली. गायकवाड़ शासकों ने प्रख्यात चित्रकारों से कलाकृतियां बनवाईं और दुनिया भर से हासिल अपने गहन कला संग्रह को दर्शाने के लिए संग्रहालय भी बनवाया. इसलिए इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि शहर की महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी की फाइन आर्ट्स फैकल्टी भारत में कला की ऐसी नर्सरी बन गई है, जहां से कई बेहतरीन आर्टिस्ट निकले हैं.

1949 में अपनी शुरुआत से ही फाइन आर्ट्स फैकल्टी (एफएफए) कला के ह्नेत्र में अंडरग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट कोर्स और रिसर्च सुविधाएं मुहैया कर रही है. इसके बाद पिछले कई दशकों में एफएफए भारतीय कला की नर्सरी के रूप में विकसित हुई है, जिसमें रचनात्मक कला की विभिन्न धाराओं के तमाम प्रतिभावान कलाकारों को निखारा गया है और नए प्रयोगों को प्रोत्साहित किया है. एफएफए के डीन शैलेंद्र कुशवाहा बताते हैं, ‘‘कला का सार्थक उद्देश्य होता है और यह जरूरी है कि किसी कलाकार को अधिकतम एक्सपोजर मुहैया कराया जाए और उसके पास प्रयोग करने तथा विजुअल कम्युनिकेशन मजबूत करने की गुंजाइश हो.’’ इसलिए छात्रों और फैकल्टी के सदस्यों को एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत यात्रा करने, दुनिया भर से मसलों और विचारों को आत्मसात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. एफएफए यूके स्थित लीसेस्टर की डी मोंटफोर्ट यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर एक्सचेंज प्रोग्राम चलाती है, इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (आइसीसीआर) की मदद से दुनिया भर के कलाकार इसके कैंपस में आते हैं और पुलिस के साथ मिलकर विज्ञापन अभियान या कैदियों के साथ काम करने जैसे कई कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं.

इसमें अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट स्तर पर मेनस्ट्रीम के चार कोर्स पेंटिंग, स्कल्प्चर, आर्ट हिस्ट्री और एप्लाएड आर्ट्स उपलब्ध हैं. म्युजियोलॉजी और ग्राफिक आर्ट्स में पीजी प्रोग्राम भी हैं. यह देखते हुए कि चिंतन उपाध्याय, विलास शिंदे, महेंद्र पंड्या, रेखा रोद्वित्तिया, टी.वी. संतोष और ज्योति भट्ट जैसे देश के कई नामी-गिरामी कलाकार एफएफए से ही पढ़े हैं, सबसे ज्यादा मांग स्कल्प्चर और पेंटिंग कोर्स की होती है. अकसर इसके पूर्व छात्र और देश भर से अन्य कलाकार संस्थान में व्याख्यान, प्रदर्शन और छात्रों के साथ वर्कशॉप के लिए आते हैं, जिससे छात्रों को कला जगत के चलन और नए विचारों की जानकारी हो सके. कुशवाहा कहते हैं, ‘‘कला बहुपक्षीय होती है और किसी कलाकार के लिए सृजनात्मकता और विचारों को अभिव्यक्ति करने के लिए विचारों का आदान-प्रदान बहुत जरूरी होता है.’’

अगले साल से एफएफए क्रेडिट आधारित विकल्प वाली व्यवस्था शुरू करेगी जिससे सभी स्ट्रीम के छात्र संस्थान के कोर्स में से किसी का चुनाव कर सकेंगे. इस तरह साइंस के छात्र भी कॉलेज में म्युजियोलॉजी या प्रिंटिंग की पढ़ाई कर सकेंगे. कई तरह के प्रोजेक्ट उन छात्रों के लिए प्रायोगिक तौर पर सीखने का आधार साबित होते हैं जो फैकल्टी के साथ विभिन्न इंस्टॉलेशन में आर्ट वर्क करते हैं. स्कल्प्चर के अध्यापक अकील अहमद बताते हैं, ‘‘किसी स्कल्प्चर को बनाने से आपको फिजिक्स और केमिस्ट्री के बुनियादी अनुप्रयोग भी समझ में आते हैं जैसे भार का वितरण, या कि केमिकल एक-दूसरे से कैसे प्रतिक्रिया करते हैं.’’ अकील कॉलेज में लगाने के लिए स्वामी विवेकानंद की कांस्य प्रतिमा बनाने के काम में लगे हैं.

वरिष्ठ और नवोदित आर्टिस्ट को एक साथ लाने के लिए एफएफए हर दो साल पर फाइन आर्ट्स फेयर का आयोजन करती है, जिसमें वरिष्ठ कलाकार एक महीने से ज्यादा समय तक रहकर छात्रों के साथ आर्ट वर्क तैयार करते हैं, जिनका विभिन्न तरह के दर्शक वर्गोंकृकला पारखियों, खरीदारों और कला प्रेमियों-के बीच प्रदर्शन किया जाता है. हालांकि, एफएफए का आकर्षण और बढ़ाने वाली चीज है वडोदरा में इसका होना जिसकी अकसर सांस्कृतिक केंद्र के रूप में तारीफ की जाती है और जिसे कला जगत के कई दिग्गज अपना घर बताते हैं. कुशवाहा कहते हैं, ‘‘वडोदरा में काफी बड़ा कला समुदाय है और हम अपने छात्रों को उनसे जुडऩे के लिए प्रोत्साहित करते हैं, आपके अपने कलात्मक व्यक्तित्व को तैयार करने का यह सबसे अच्छा तरीका है.’’

1949 में अपनी शुरुआत से ही फाइन आर्ट्स फैकल्टी (एफएफए) कला के ह्नेत्र में अंडरग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट कोर्स और रिसर्च सुविधाएं मुहैया कर रही है. इसके बाद पिछले कई दशकों में एफएफए भारतीय कला की नर्सरी के रूप में विकसित हुई है, जिसमें रचनात्मक कला की विभिन्न धाराओं के तमाम प्रतिभावान कलाकारों को निखारा गया है और नए प्रयोगों को प्रोत्साहित किया है. एफएफए के डीन शैलेंद्र कुशवाहा बताते हैं, ‘‘कला का सार्थक उद्देश्य होता है और यह जरूरी है कि किसी कलाकार को अधिकतम एक्सपोजर मुहैया कराया जाए और उसके पास प्रयोग करने तथा विजुअल कम्युनिकेशन मजबूत करने की गुंजाइश हो.’’ इसलिए छात्रों और फैकल्टी के सदस्यों को एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत यात्रा करने, दुनिया भर से मसलों और विचारों को आत्मसात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. एफएफए यूके स्थित लीसेस्टर की डी मोंटफोर्ट यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर एक्सचेंज प्रोग्राम चलाती है, इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (आइसीसीआर) की मदद से दुनिया भर के कलाकार इसके कैंपस में आते हैं और पुलिस के साथ मिलकर विज्ञापन अभियान या कैदियों के साथ काम करने जैसे कई कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं.

इसमें अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट स्तर पर मेनस्ट्रीम के चार कोर्स पेंटिंग, स्कल्प्चर, आर्ट हिस्ट्री और एप्लाएड आर्ट्स उपलब्ध हैं. म्युजियोलॉजी और ग्राफिक आर्ट्स में पीजी प्रोग्राम भी हैं. यह देखते हुए कि चिंतन उपाध्याय, विलास शिंदे, महेंद्र पंड्या, रेखा रोद्वित्तिया, टी.वी. संतोष और ज्योति भट्ट जैसे देश के कई नामी-गिरामी कलाकार एफएफए से ही पढ़े हैं, सबसे ज्यादा मांग स्कल्प्चर और पेंटिंग कोर्स की होती है. अकसर इसके पूर्व छात्र और देश भर से अन्य कलाकार संस्थान में व्याख्यान, प्रदर्शन और छात्रों के साथ वर्कशॉप के लिए आते हैं, जिससे छात्रों को कला जगत के चलन और नए विचारों की जानकारी हो सके. कुशवाहा कहते हैं, ‘‘कला बहुपक्षीय होती है और किसी कलाकार के लिए सृजनात्मकता और विचारों को अभिव्यक्ति करने के लिए विचारों का आदान-प्रदान बहुत जरूरी होता है.’’

अगले साल से एफएफए क्रेडिट आधारित विकल्प वाली व्यवस्था शुरू करेगी जिससे सभी स्ट्रीम के छात्र संस्थान के कोर्स में से किसी का चुनाव कर सकेंगे. इस तरह साइंस के छात्र भी कॉलेज में म्युजियोलॉजी या प्रिंटिंग की पढ़ाई कर सकेंगे. कई तरह के प्रोजेक्ट उन छात्रों के लिए प्रायोगिक तौर पर सीखने का आधार साबित होते हैं जो फैकल्टी के साथ विभिन्न इंस्टॉलेशन में आर्ट वर्क करते हैं. स्कल्प्चर के अध्यापक अकील अहमद बताते हैं, ‘‘किसी स्कल्प्चर को बनाने से आपको फिजिक्स और केमिस्ट्री के बुनियादी अनुप्रयोग भी समझ में आते हैं जैसे भार का वितरण, या कि केमिकल एक-दूसरे से कैसे प्रतिक्रिया करते हैं.’’ अकील कॉलेज में लगाने के लिए स्वामी विवेकानंद की कांस्य प्रतिमा बनाने के काम में लगे हैं.

वरिष्ठ और नवोदित आर्टिस्ट को एक साथ लाने के लिए एफएफए हर दो साल पर फाइन आर्ट्स फेयर का आयोजन करती है, जिसमें वरिष्ठ कलाकार एक महीने से ज्यादा समय तक रहकर छात्रों के साथ आर्ट वर्क तैयार करते हैं, जिनका विभिन्न तरह के दर्शक वर्गोंकृकला पारखियों, खरीदारों और कला प्रेमियों-के बीच प्रदर्शन किया जाता है. हालांकि, एफएफए का आकर्षण और बढ़ाने वाली चीज है वडोदरा में इसका होना जिसकी अकसर सांस्कृतिक केंद्र के रूप में तारीफ की जाती है और जिसे कला जगत के कई दिग्गज अपना घर बताते हैं. कुशवाहा कहते हैं, ‘‘वडोदरा में काफी बड़ा कला समुदाय है और हम अपने छात्रों को उनसे जुडऩे के लिए प्रोत्साहित करते हैं, आपके अपने कलात्मक व्यक्तित्व को तैयार करने का यह सबसे अच्छा तरीका है.’’

