नसीर अहमद गनी कोई आम छात्र नहीं हैं. 19 साल के इस इंजीनियरिंग छात्र की अपनी नए दौर की लूनर बग्गी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्रों के आकर्षण का केंद्र बन गई है. गनी और उसके दोस्तों ने फगवाड़ा की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) में इस बग्गी का डिजाइन और निर्माण किया है. यह रोवर वाहन चांद की सतह का अध्ययन करने में इस्तेमाल हो सकता है. इसे फरवरी में दिल्ली ऑटो प्रदर्शनी में विश्वविद्यालय के छात्रों के बनाए 15 अन्य वाहनों के साथ प्रदर्शित किया गया था. एलपीयू के डायरेक्टर अमन मित्तल ने बताया, ‘‘इस साल हमने अपना फोकस इन्फ्रास्ट्रक्चर की बजाए इंडस्ट्री और शैक्षिक संपर्क पर लगाया. इन नौजवानों को अगर सही मौके मिलें तो ये बहुत कुछ करके दिखा सकते हैं.’’
एलपीयू की तरह भारत में कई नए कॉलेजों का इतिहास भले ही समृद्ध न हो या उनके पुराने छात्रों की संख्या विशाल न हो, फिर भी वे शिह्ना की बेहतर बुनियादी व्यवस्था और छात्रों के लिए बेहतर मौकों के जरिए उस कमी की भरपाई कर देते हैं. फिर चाहे सोनीपत के जिंदल लॉ स्कूल के छात्र ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित प्राइस मीडिया लॉ मूट कोर्ट पुरस्कार जीता हो या जयपुर के महात्मा गांधी राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान के छात्र ने हार्वर्ड पब्लिक स्कूल ऑफ हेल्थ से इस वर्ष तंजानिया में वैश्विक मातृ स्वास्थ्य सम्मेलन में शोध पत्र पेश करने के लिए पूरी स्कॉलरशिप पाई हो. अधिकतर प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान आज उन कॉलेजों और संस्थानों के हाथों में जा रहे हैं जो अभी चार या पांच साल पहले अस्तित्व में आए हैं. बिट्स पिलानी के डायरेक्टर जी. रघुराम बताते हैं, ‘‘हमें इस सोच से निकलना होगा कि सिर्फ कुछ जाने-माने सरकारी विश्वविद्यालयों में ही अच्छी शिक्षा मिलती है. आज कई नए संस्थानों में उनसे बेहतर न सही उतनी ही अच्छी शिक्षा मिल रही है.’’
नोएडा में गलगोटियाज यूनिवर्सिटी की भी यही राय है. पांच साल पहले बनी इस यूनिवर्सिटी के कुलपति सुनील गलगोटिया कहते हैं, ‘‘हमें ध्यान रखना चाहिए कि 70 फीसदी छात्र निजी कॉलेजों में पढ़ते हैं. हमारे देश में अधिकतर लोग सरकारी संस्थाओं में नहीं पढ़ते-सीखते.’’ यूनिवर्सिटी को इस साल फरवरी में ग्लोबल संपर्कों और शैक्षिक उत्कृष्टता के लिए नरेंद्र मोदी के हाथों आइसीटी बिजनेस पुरस्कार प्राप्त हुआ. सुनील गलगोटिया ने बताया, ‘‘हमारे इंस्टीट्यूट, स्टाफ और छात्रों को विभिन्न आयोजनों में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के हाथों इनाम मिले हैं. इससे साबित होता है कि क्वालिटी का उम्र से कोई संबंध नहीं है.’’
बहुत-से लोग सोचते हैं कि नए कॉलेजों के छात्रों को पुराने कॉलेजों की तुलना में फायदा इसलिए मिल रहा है कि उन्हें विदेशी विश्वविद्यालयों और कॉर्पोरेट घरानों से संपर्क का अधिक मौका मिल रहा है. नोएडा के जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के छात्रों को इन्फोसिस, विप्रो, एक्सेंचर और एनआइआइटी जैसी बड़ी आइटी कंपनियों में ट्रेनिंग मिलती है.
इसी तरह दिल्ली में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने पसाऊ यूनिवर्सिटी, यूकेसीए लॉ चेंबर्स दिल्ली, मैकगिल यूनिवर्सिटी, विधि और न्याय मंत्रालय, भारत और न्यूक्लियर लॉ एसोसिएशन ऑफ इंडिया के साथ शैक्षिक सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर कर रखे हैं. मथुरा में जीएलए यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर नारायण दास अग्रवाल कहते हैं, ‘‘लगातार उद्योगों के संपर्क में ट्रेनिंग और शिक्षा के अलग-अलग नजरिए मिलने से न सिर्फ छात्रों का विश्वास बढ़ता है बल्कि क्लास में जो कुछ सीखा है, वह कौशल भी निखरता है.’’
इंडिया टुडे-नीलसन बेस्ट कॉलेज सर्वे में आर्ट्स, साइंस, इंजीनियरिंग, कॉमर्स, लॉ और मेडिसिन में उभरते कॉलेजों की सूची में पिछले 20 साल में स्थापित और जल्द अपनी खास जगह बनाने वाले कॉलेजों की रैंकिंग की गई है. सभी विषयों में सिर्फ तीन कॉलेज पिछले साल के स्थान पर कायम हैं-पुणे का बालाजी लॉ कॉलेज लॉ में आठवें स्थान पर है, दिल्ली का वर्द्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज मेडिसिन में फिर पहले स्थान पर है और हैदराबाद का सरोजिनी नायडू कॉलेज साइंस में फिर पांचवें स्थान पर है.
इस साल टॉप 10 या टॉप 5 की सूची में 13 नए कॉलेजों ने कब्जा जमा लिया है. बाकी कॉलेजों की रैंकिंग में या तो बहुत उछाल या बहुत गिरावट आई है. दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी लॉ में सातवें से पहले स्थान पर आ गई है. दिल्ली का केशव महाविद्यालय आर्ट्स में पिछले साल तीसरे स्थान पर था, लेकिन इस बार नंबर एक पर है.
दिल्ली का महाराजा अग्रसेन कॉलेज विज्ञान में तीन स्थान ऊपर उठकर पहले नंबर पर आ गया है. हमारे देश में नए कॉलेज तेजी से फैल रहे हैं और लगातार नए-नए प्रयोग कर रहे हैं इसलिए उन्होंने अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करना शुरू कर दिया है.
एलपीयू की तरह भारत में कई नए कॉलेजों का इतिहास भले ही समृद्ध न हो या उनके पुराने छात्रों की संख्या विशाल न हो, फिर भी वे शिह्ना की बेहतर बुनियादी व्यवस्था और छात्रों के लिए बेहतर मौकों के जरिए उस कमी की भरपाई कर देते हैं. फिर चाहे सोनीपत के जिंदल लॉ स्कूल के छात्र ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रतिष्ठित प्राइस मीडिया लॉ मूट कोर्ट पुरस्कार जीता हो या जयपुर के महात्मा गांधी राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान के छात्र ने हार्वर्ड पब्लिक स्कूल ऑफ हेल्थ से इस वर्ष तंजानिया में वैश्विक मातृ स्वास्थ्य सम्मेलन में शोध पत्र पेश करने के लिए पूरी स्कॉलरशिप पाई हो. अधिकतर प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान आज उन कॉलेजों और संस्थानों के हाथों में जा रहे हैं जो अभी चार या पांच साल पहले अस्तित्व में आए हैं. बिट्स पिलानी के डायरेक्टर जी. रघुराम बताते हैं, ‘‘हमें इस सोच से निकलना होगा कि सिर्फ कुछ जाने-माने सरकारी विश्वविद्यालयों में ही अच्छी शिक्षा मिलती है. आज कई नए संस्थानों में उनसे बेहतर न सही उतनी ही अच्छी शिक्षा मिल रही है.’’
नोएडा में गलगोटियाज यूनिवर्सिटी की भी यही राय है. पांच साल पहले बनी इस यूनिवर्सिटी के कुलपति सुनील गलगोटिया कहते हैं, ‘‘हमें ध्यान रखना चाहिए कि 70 फीसदी छात्र निजी कॉलेजों में पढ़ते हैं. हमारे देश में अधिकतर लोग सरकारी संस्थाओं में नहीं पढ़ते-सीखते.’’ यूनिवर्सिटी को इस साल फरवरी में ग्लोबल संपर्कों और शैक्षिक उत्कृष्टता के लिए नरेंद्र मोदी के हाथों आइसीटी बिजनेस पुरस्कार प्राप्त हुआ. सुनील गलगोटिया ने बताया, ‘‘हमारे इंस्टीट्यूट, स्टाफ और छात्रों को विभिन्न आयोजनों में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के हाथों इनाम मिले हैं. इससे साबित होता है कि क्वालिटी का उम्र से कोई संबंध नहीं है.’’
बहुत-से लोग सोचते हैं कि नए कॉलेजों के छात्रों को पुराने कॉलेजों की तुलना में फायदा इसलिए मिल रहा है कि उन्हें विदेशी विश्वविद्यालयों और कॉर्पोरेट घरानों से संपर्क का अधिक मौका मिल रहा है. नोएडा के जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के छात्रों को इन्फोसिस, विप्रो, एक्सेंचर और एनआइआइटी जैसी बड़ी आइटी कंपनियों में ट्रेनिंग मिलती है.
इसी तरह दिल्ली में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने पसाऊ यूनिवर्सिटी, यूकेसीए लॉ चेंबर्स दिल्ली, मैकगिल यूनिवर्सिटी, विधि और न्याय मंत्रालय, भारत और न्यूक्लियर लॉ एसोसिएशन ऑफ इंडिया के साथ शैक्षिक सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर कर रखे हैं. मथुरा में जीएलए यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर नारायण दास अग्रवाल कहते हैं, ‘‘लगातार उद्योगों के संपर्क में ट्रेनिंग और शिक्षा के अलग-अलग नजरिए मिलने से न सिर्फ छात्रों का विश्वास बढ़ता है बल्कि क्लास में जो कुछ सीखा है, वह कौशल भी निखरता है.’’
इंडिया टुडे-नीलसन बेस्ट कॉलेज सर्वे में आर्ट्स, साइंस, इंजीनियरिंग, कॉमर्स, लॉ और मेडिसिन में उभरते कॉलेजों की सूची में पिछले 20 साल में स्थापित और जल्द अपनी खास जगह बनाने वाले कॉलेजों की रैंकिंग की गई है. सभी विषयों में सिर्फ तीन कॉलेज पिछले साल के स्थान पर कायम हैं-पुणे का बालाजी लॉ कॉलेज लॉ में आठवें स्थान पर है, दिल्ली का वर्द्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज मेडिसिन में फिर पहले स्थान पर है और हैदराबाद का सरोजिनी नायडू कॉलेज साइंस में फिर पांचवें स्थान पर है.
इस साल टॉप 10 या टॉप 5 की सूची में 13 नए कॉलेजों ने कब्जा जमा लिया है. बाकी कॉलेजों की रैंकिंग में या तो बहुत उछाल या बहुत गिरावट आई है. दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी लॉ में सातवें से पहले स्थान पर आ गई है. दिल्ली का केशव महाविद्यालय आर्ट्स में पिछले साल तीसरे स्थान पर था, लेकिन इस बार नंबर एक पर है.
दिल्ली का महाराजा अग्रसेन कॉलेज विज्ञान में तीन स्थान ऊपर उठकर पहले नंबर पर आ गया है. हमारे देश में नए कॉलेज तेजी से फैल रहे हैं और लगातार नए-नए प्रयोग कर रहे हैं इसलिए उन्होंने अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करना शुरू कर दिया है.

