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एस. एम. राजू: हरियाली का सरपरस्त

राजू ने जब मुजफ्फरपुर में पौधारोपण शुरू किया तो उनके बेटे को कैंसर था. राजू की पत्नी बेटे की देखभाल करती थीं और राजू पूरे उत्साह से अपने अभियान में लगे थे. बेटे की बीमारी ने समाजसेवा के उनके इरादे को और भी पुख्ता कर दिया.

अपडेटेड 23 सितंबर , 2013
अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं. ग्रामीण विकास विभाग में 1991 बैच के आइएएस अधिकारी एस.एम. राजू जब अतिरिक्त सचिव के पद पर थे, तो सोचा कि क्यों न महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना कानून (मनरेगा) को सड़क किनारे पौधारोपण कार्यक्रम से जोड़ा जाए. फरवरी, 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विकास यात्रा के दौरान उन्हें अपना यह विचार रखने का मौका मिल गया.

उस समय तक राजू ग्रामीण विकास विभाग में अपने तीन साल पूरे कर चुके थे. मई, 2009 में राजू को तिरहुत मंडल का कमिश्नर बना दिया गया. संयोग से जून में शिवहर का दौरा करते हुए मुख्यमंत्री ने राजू को देखा तो पूछ बैठे, “राजूजी आपकी योजना कैसी चल रही है.” यह सुनकर राजू हैरान रह गए. उन्हें बहुत खुशी हुई कि मुख्यमंत्री को उनका कार्यक्रम अभी तक याद था. वे कहते हैं, “यह मेरे लिए प्रोत्साहन की बात थी.” राजू ने नीतीश कुमार से कहा, “प्लीज आप मुझे सिर्फ तीन महीने का समय दीजिए. आपको इतने दिनों में हमारा काम साफ दिख जाएगा.”

एग्रीकल्चर में ग्रेजुएट राजू की योजना एकदम आसान थी—लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करना और मनरेगा के जरिए उन्हें रोजगार मुहैया कराना. इसे लागू करना आसान नहीं था. उनके सामने कई व्यावहारिक समस्याएं थीं, जैसे पौधे कहां से लाएं. पौधों की देखभाल कौन करेगा. तिरहुत डिविजन के कमिश्नर पद पर रहते हुए राजू ने अपने इन सवालों का जवाब भी खोज लिया. उन्होंने फैसला किया कि जो व्यक्ति पेड़ लगाएगा, उसे उस पेड़ पर मालिकाना हक मिलेगा. स्थानीय पंचायत के नेताओं ने भी उन्हें इस काम में भरपूर सहयोग दिया. राजू के प्रोत्साहन पर उन्होंने बिहार के अलावा झारखंड और पश्चिम बंगाल का सफर किया और वहां की सरकारी तथा निजी नर्सरियों से पौधे लेकर आए. राजू अपनी लगन और समर्पण की भावना की वजह से ही इस कठिन काम को अंजाम दे पाए.

उनकी कोशिश 30 अगस्त, 2009 को रंग लाई. उन्होंने उस दिन 7,000 गांवों में 3,00,000 से ज्यादा ग्रामीणों को जमा किया. उनके गांवों में पौधारोपण समारोह आयोजित कराए. एक दिन में राजू के इस कार्यक्रम के तहत 96,50,000 पौधे लगाए गए. मनरेगा के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को साल में कम-से-कम 100 दिन का रोजगार दिया जाता है. बिहार की आधी से ज्यादा जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है, इसके बावजूद इस मद में रखी गई सारी रकम कई वजहों से हमेशा खर्च नहीं हो पाती है. साथ ही जो लोग मनरेगा के तहत कोई काम करते हैं, वे शायद ही कभी उस काम को पूरा करते हैं.

राजू के पौधारोपण अभियान में इन दोनों बातों का समाधान हो गया है. इस अभियान से न सिर्फ  बिहार के पर्यावरण को फायदा पहुंचा है, बल्कि जरूरतमंदों को रोजगार भी मिला है. इस अभियान की खास बात यह भी है कि जो लोग पौधारोपण कर रहे हैं, उनके अंदर अपने पौधों के प्रति अधिकार की भावना भी बैठ गई है. राजू की अगली बड़ी चुनौती यह थी कि बड़ी संख्या में लगाए गए पौधों को नष्ट होने से कैसे बचाया जाए. इसके लिए उन्होंने गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की बूढ़ी, विकलांग, विधवा और दूसरी महिलाओं को चुना और उन्हें मनरेगा के तहत लाभार्थी बनाया. उन्हें साल में 100 दिन का रोजगार देकर पौधों की रक्षा का काम कराया. यहां टर्म पूरा होने के बाद राजू ने जरूरतमंद बाकी लोगों को भी इस काम के लिए चुना.

मुंगेर में लगभग तीन साल बिताने के बाद राजू की नियुक्ति सारण में हुई और फिर मुंगेर का डिवीजनल कमिश्नर बना दिया गया. उन्होंने इन दोनों जगहों पर भी इसी मॉडल को अपनाया. भारत सरकार ने भी उनके काम की प्रशंसा की है. सितंबर, 2012 में केंद्र सरकार ने बूढ़ों, विकलांगों और विधवाओं को मनरेगा के तहत काम देने की राजू की योजना को सराहा है और वह इस मॉडल को पूरे देश में लागू करना चाहती है. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों को ‘मुजफ्फरपुर मॉडल’ लागू करने की सलाह दी है.

मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी में राजू को सात राज्यों के अधिकारियों के सामने बोलने का मौका दिया गया. बिहार के दूसरे हिस्सों में भी राजू के मुजफ्फरपुर मॉडल को लागू किया जा रहा है और उसमें भारी सफलता भी मिल रही है.
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