कई लोगों में तय समय के भीतर, तमाम दबावों के रहते लक्ष्य पूरा करने की जादुई क्षमता होती है. 2002 बैच के बिहार काडर के आइएएस अधिकारी संजय अग्रवाल ने एक नहीं कई बार इस बात को सिद्ध करके दिखाया है.
उन्होंने नक्सलवाद के गढ़ जहानाबाद को विकास का प्रतीक बनाया और पानी के संकट से जूझते नालंदा को खेती की जन्नत में तब्दील कर डाला, जहां खेती की कामयाबी की अनेक दास्तानें लिखी गई हैं. संजय ने अपनी योग्यता बार-बार साबित की है. इसीलिए इस युवा आइएएस अधिकारी को बिहार में बिजली का हाल सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. संजय को साउथ बिहार पॉवर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी लिमिटेड (एसबीपीडीसीएल) का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया है. संजय ने अपनी साख के मुताबिक बिहार में बिजली की उपलब्धता में बहुत हद तक सुधार कर दिया है और कोशिश जारी है.
नवंबर, 2005 में हुए नक्सली हमले के करीब एक साल बाद संजय अग्रवाल को जहानाबाद का जिला मजिस्ट्रेट बनाया गया. मध्य बिहार के इस जिले में दिनदहाड़े हुए इस हमले ने माओवादियों का वर्चस्व कायम कर दिया था. माओवादी जहानाबाद जेल से 375 कैदियों को छुड़ा ले गए और अपने दुश्मनों को मार गए.
जहानाबाद की बागडोर संभालने पर संजय के सामने उग्रवाद के इस गढ़ को विकास का आदर्श बनाने की चुनौती थी. सरकार ने संजय को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की और इस युवा अधिकारी ने बिहार सरकार के “आपकी सरकार, आपके द्वार” कार्यक्रम को सफल बनाने का बीड़ा उठाया. उन्होंने सुनिश्चित किया कि इससे गांव में जन स्वास्थ्य केंद्र से लेकर मध्य बिहार ग्रामीण विकास की शाखा, कंप्यूटर केंद्र, खेती की सामग्री रियायती दर पर उपलब्ध कराने और किसानों की उपज खरीदने की सुविधा के साथ-साथ पशु चिकित्सा केंद्र तक हर सुविधा का इंतजाम हो जाए.
संजय की दिन-रात की मेहनत और जमीनी स्तर पर विकास गतिविधियों पर पैनी नजर के नतीजतन जहानाबाद विकास से वंचित क्षेत्र नहीं रहा. संजय ने जहानाबाद जिले के लगभग हर गांव का दौरा किया और विकास माओवादी हिंसा से निबटने की रणनीति का प्रमुख अंग बन गया. उन्होंने माओवादियों को बंदूक से चुनौती देने की बजाए उनके प्रसार की वजह ही मिटा डाली. सशक्तीकरण से लेकर रोजगार तक हर सुविधा के साथ जिला प्रशासन लोगों के दरवाजे तक पहुंचा और आखिरकार मध्य बिहार से उग्रवाद का सफाया हो गया. सभी तरह की उग्र वामपंथी गतिविधियां दक्षिण में झारखंड के पहाड़ी जंगलों और उत्तर में नेपाल में सिमट कर रह गईं.
उसके बाद संजय अग्रवाल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा का जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया. संजय ने वह कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. नालंदा में हमेशा पानी से लबालब रहने वाली नदी न होने की वजह से पानी की कमी थी और हमेशा सूखा पड़ता था. चारों ओर जमीन से घिरे इस जिले के किसान बहुत पुरानी नहरों पर निर्भर थे जिन पर भी अवैध कब्जे हो चुके थे.
चार्टर्ड अकाउंटेंट से आइएएस बने संजय ने सीधे गांववालों से संपर्क किया और स्थानीय किसानों के साथ बैठकें कीं. फिर स्थानीय आबादी के समर्थन से नहरों की सफाई और उनमें पानी लाने के काम को मनरेगा से जोड़ दिया. इस सब का स्थानीय सामुदायिक नेताओं पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा. वे समझ गए कि यह सब उनके फायदे के लिए है और उन्होंने खुद ही अवैध कब्जे हटा लिए. नई सिंचाई प्रणाली विकसित करने में कई महीने लग जाते और पैसा भी बहुत खर्च होता. इसके बजाए संजय ने आहर, पेन, तालाब और पोखर जैसी पारंपरिक सिंचाई सुविधाओं की सफाई के लिए मनरेगा के पैसे का सोच-समझकर इस्तेमाल किया जिससे नालंदा में फसलें फिर लहलहाने लगीं.
नवंबर, 2011 में नालंदा के किसानों के खेत जबरदस्त पैदावार देने लगे. श्रीविधि खेती, ऑर्गेनिक खेती, सब्जियों की खेती और बाकी फसलों में विश्व रिकॉर्ड बने. पिछले साल संजय अग्रवाल को नालंदा में ग्रामीण विकास योजना को बेहतरीन ढंग से लागू करने के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार पाने के लिए चुना गया.
संजय अग्रवाल 1991 बैच के आइएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत को अपना आदर्श मानते हैं. संजय का कहना है, “प्रत्यय ने लोगों को यकीन दिलाया कि बिहार में काम हो सकता है. कटौंझ पुल 1988 से अधूरा पड़ा था, उसे 2006 में पूरा करके उन्होंने साबित कर दिया कि बिहार में काम पूरे किए जा सकते हैं. हम उन्हीं के दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं.” अपनी उपलब्धियों की बदौलत संजय खुद बिहार से एक और आदर्श बन गए हैं.
उन्होंने नक्सलवाद के गढ़ जहानाबाद को विकास का प्रतीक बनाया और पानी के संकट से जूझते नालंदा को खेती की जन्नत में तब्दील कर डाला, जहां खेती की कामयाबी की अनेक दास्तानें लिखी गई हैं. संजय ने अपनी योग्यता बार-बार साबित की है. इसीलिए इस युवा आइएएस अधिकारी को बिहार में बिजली का हाल सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. संजय को साउथ बिहार पॉवर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी लिमिटेड (एसबीपीडीसीएल) का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया है. संजय ने अपनी साख के मुताबिक बिहार में बिजली की उपलब्धता में बहुत हद तक सुधार कर दिया है और कोशिश जारी है.
नवंबर, 2005 में हुए नक्सली हमले के करीब एक साल बाद संजय अग्रवाल को जहानाबाद का जिला मजिस्ट्रेट बनाया गया. मध्य बिहार के इस जिले में दिनदहाड़े हुए इस हमले ने माओवादियों का वर्चस्व कायम कर दिया था. माओवादी जहानाबाद जेल से 375 कैदियों को छुड़ा ले गए और अपने दुश्मनों को मार गए.
जहानाबाद की बागडोर संभालने पर संजय के सामने उग्रवाद के इस गढ़ को विकास का आदर्श बनाने की चुनौती थी. सरकार ने संजय को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की और इस युवा अधिकारी ने बिहार सरकार के “आपकी सरकार, आपके द्वार” कार्यक्रम को सफल बनाने का बीड़ा उठाया. उन्होंने सुनिश्चित किया कि इससे गांव में जन स्वास्थ्य केंद्र से लेकर मध्य बिहार ग्रामीण विकास की शाखा, कंप्यूटर केंद्र, खेती की सामग्री रियायती दर पर उपलब्ध कराने और किसानों की उपज खरीदने की सुविधा के साथ-साथ पशु चिकित्सा केंद्र तक हर सुविधा का इंतजाम हो जाए.
संजय की दिन-रात की मेहनत और जमीनी स्तर पर विकास गतिविधियों पर पैनी नजर के नतीजतन जहानाबाद विकास से वंचित क्षेत्र नहीं रहा. संजय ने जहानाबाद जिले के लगभग हर गांव का दौरा किया और विकास माओवादी हिंसा से निबटने की रणनीति का प्रमुख अंग बन गया. उन्होंने माओवादियों को बंदूक से चुनौती देने की बजाए उनके प्रसार की वजह ही मिटा डाली. सशक्तीकरण से लेकर रोजगार तक हर सुविधा के साथ जिला प्रशासन लोगों के दरवाजे तक पहुंचा और आखिरकार मध्य बिहार से उग्रवाद का सफाया हो गया. सभी तरह की उग्र वामपंथी गतिविधियां दक्षिण में झारखंड के पहाड़ी जंगलों और उत्तर में नेपाल में सिमट कर रह गईं.
उसके बाद संजय अग्रवाल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा का जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया. संजय ने वह कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. नालंदा में हमेशा पानी से लबालब रहने वाली नदी न होने की वजह से पानी की कमी थी और हमेशा सूखा पड़ता था. चारों ओर जमीन से घिरे इस जिले के किसान बहुत पुरानी नहरों पर निर्भर थे जिन पर भी अवैध कब्जे हो चुके थे.
चार्टर्ड अकाउंटेंट से आइएएस बने संजय ने सीधे गांववालों से संपर्क किया और स्थानीय किसानों के साथ बैठकें कीं. फिर स्थानीय आबादी के समर्थन से नहरों की सफाई और उनमें पानी लाने के काम को मनरेगा से जोड़ दिया. इस सब का स्थानीय सामुदायिक नेताओं पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा. वे समझ गए कि यह सब उनके फायदे के लिए है और उन्होंने खुद ही अवैध कब्जे हटा लिए. नई सिंचाई प्रणाली विकसित करने में कई महीने लग जाते और पैसा भी बहुत खर्च होता. इसके बजाए संजय ने आहर, पेन, तालाब और पोखर जैसी पारंपरिक सिंचाई सुविधाओं की सफाई के लिए मनरेगा के पैसे का सोच-समझकर इस्तेमाल किया जिससे नालंदा में फसलें फिर लहलहाने लगीं.
नवंबर, 2011 में नालंदा के किसानों के खेत जबरदस्त पैदावार देने लगे. श्रीविधि खेती, ऑर्गेनिक खेती, सब्जियों की खेती और बाकी फसलों में विश्व रिकॉर्ड बने. पिछले साल संजय अग्रवाल को नालंदा में ग्रामीण विकास योजना को बेहतरीन ढंग से लागू करने के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार पाने के लिए चुना गया.
संजय अग्रवाल 1991 बैच के आइएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत को अपना आदर्श मानते हैं. संजय का कहना है, “प्रत्यय ने लोगों को यकीन दिलाया कि बिहार में काम हो सकता है. कटौंझ पुल 1988 से अधूरा पड़ा था, उसे 2006 में पूरा करके उन्होंने साबित कर दिया कि बिहार में काम पूरे किए जा सकते हैं. हम उन्हीं के दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं.” अपनी उपलब्धियों की बदौलत संजय खुद बिहार से एक और आदर्श बन गए हैं.