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आमिर सुभानी: निष्पक्षता के पैरोकार

सुभानी की प्रेरणा उनके मनपसंद लेखक विक्टर फ्रेंकल की रचना मैंस सर्च फॉर मीनिंग है. 1946 की इस रचना में नाजी यातना शिविरों में कैद के दौरान विक्टर के संघर्ष की दिल दहलाने वाली लेकिन प्रेरणादायी दास्तान है.

अपडेटेड 23 सितंबर , 2013
जब 2007 में नीतीश कुमार सरकार ने जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान जेल गए लोगों के लिए पेंशन योजना शुरू की तो किसी ने नहीं सोचा था कि इसे सही मायने में लागू किया जा सकता है. 1974 के इसी संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने 1977 में इंदिरा गांधी की सरकार गिराई थी. योजना के अमल पर संदेह जताने की कई वजहें थीं. आंदोलन को खत्म हुए 30 साल से ज्यादा बीत चुके थे और पेंशन के बहुत से असली हकदार राज्य छोड़कर कहीं और जा चुके थे. खास यह कि असली दावेदारों की पहचान सिर्फ जेल रिकॉर्ड के आधार पर ही हो सकती थी और बहुत-सी जेलों से यह रिकॉर्ड गायब थे. इतना ही नहीं बहुत से ऐसे दावेदार थे जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं था लेकिन बिहार के बड़े नेताओं से करीबी जान-पहचान थी. ये नेता भी संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान जेल में रहे थे.

बिहार सरकार ने जैसे ही पेंशन के लिए आवेदन मांगे, आवेदनों की झड़ी लग गई. गृह सचिव की मेज पर कुल 50,000 आवेदनों का ढेर लग गया. इनकी तादाद बढ़ती जा रही थी और योजना को जल्दी लागू करने के लिए जनता का दबाव भी बहुत था. सुभानी का काम ऐसा हो गया था जैसे भूसे के ढेर में सुई ढूंढऩी हो. सुभानी अच्छी तरह जानते थे कि जयप्रकाश का संपूर्ण क्रांति आंदोलन आजाद भारत का सबसे अहम राजनैतिक आंदोलन था जिसने कम से कम हिंदी प्रदेशों में तो राजनीति का चेहरा बदल डाला. नीतीश कुमार और उनके पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी आपातकाल में जेल गए थे. नीतीश के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान भी इसी श्रेणी में आते हैं. उस दौरान जेल में बंद कुछ नेता अब बिहार में मंत्री हैं. यह बात दीगर है कि किसी बड़े नेता ने पेंशन के लिए आवेदन नहीं किया था.

सुभानी कहते हैं, “पेंशन सरकारी खजाने से दी जानी थी इसलिए हर दावेदारी के लिए पुख्ता सबूत जरूरी थे.” कुछ जेल रिकॉर्ड कटे-फटे और दीमक के खाए हुए थे जिन्हें पढ़ा नहीं जा सकता था. खगडिय़ा जैसी कुछ जेलों में तो पुराने रिकॉर्ड थे ही नहीं क्योंकि वे बाढ़ में बह गए थे.

स्टेटिस्टिक्स में टॉपर सुभानी अक्तूबर, 2009 में बिहार के प्रधान गृह सचिव बने और उन्होंने सिलसिलेवार ढंग से यह काम पूरा करने का बीड़ा उठाया. केंद्रीय विभागीय समिति ने 50,000 आवेदनों में से हरेक की जांच जेल निरीक्षक से कराई. उसके बाद 2,539 उपयुक्त पेंशनभोगी चुने गए. इतना ही नहीं सुभानी ने खुद हर दावेदारी की जांच की. इसके बाद हर योग्य दावेदार का नाम वेबसाइट पर डाला गया. पेंशन सीधे दावेदारों के बैंक खातों में जमा की गई. अब तक बिहार सरकार 34 करोड़ रु. बतौर पेंशन भुगतान कर चुकी है.

सही मायने में नेतृत्व का परिचय देते हुए सुभानी काम पूरा होने का श्रेय विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी राजीव वर्मा को देते हुए कहते हैं, “उनके बिना यह काम नहीं हो सकता था.” 1987 बैच के आइएएस अधिकारी, सुभानी हर वक्त काम में डूबे रहते हैं. रोजाना सुबह 9.30 बजे दफ्तर में हाजिर रहते हैं और देर शाम तक काम करते हैं. उनमें वरिष्ठ आइएएस अधिकारी जैसा कोई गुरूर नहीं है. रविवार को वे अपने बॉडीगाड्र्स के बिना बाजार में खरीदारी करते मिल जाते हैं. सुभानी की प्रेरणा उनके मनपसंद लेखक विक्टर फ्रेंकल की रचना मैन्स सर्च फॉर मीनिंग है.   
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