वाराणसी में प्रवेश करने के चार मुख्य रास्ते हैं—लखनऊ रोड, इलाहाबाद रोड, गोरखपुर रोड और कोलकाता रोड. इनमें से किसी भी रास्ते से शहर में घुसते ही अपने बड़े-बड़े कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट की जानकारी देती रियल एस्टेट कंपनियों की विशालकाय होर्डिंग आपका इस्तकबाल करेंगी. ये होर्डिंग इस बात की ओर इशारा करते हैं कि मंदिरों और घाटों से सजी हुई धर्मनगरी अब ऊंची इमारतों में भी अपनी पहचान बनाने के लिए बेताब है.
पिछले पांच साल में वाराणसी के रिहाइशी इलाकों के ढांचे में आधारभूत बदलाव देखा जा रहा है. पुराने इलाके काफी संकरे, सटे हुए छोटे-छोटे मकानों वाले रहे हैं. लेकिन अब इन इलाकों में रहने वाले लोग अपने लिए नया आशियाना तलाशने लगे हैं. सघन आबादी वाले इलाकों में बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव रहा है और इन शिकायतों में लगातार इजाफा हो रहा है. यही कारण है कि चौक, लंका और घाटों के किनारे रहने वाले लोग अब रियल एस्टेट कंपनियों की हाउसिंग सोसाइटी और अपार्टमेंट में फ्लैट खरीद रहे हैं.
मकदूरगंज में अपने पुश्तैनी मकान में रह रहे और मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस से जुड़े एस.के. शाह ने दिसंबर में सेंट्रल जेल रोड पर बनी वाराणसी की सबसे ऊंची रिहाइशी बिल्डिंग वर्ना गार्डन में एक फ्लैट लिया है. शाह बताते हैं, ''वाराणसी में शुरू से ही रिहाइशी इलाकों में जगह की समस्या थी. इन इलाकों में छोटे से एरिया में बने ज्यादातर मकान तीन से चार मंजिल के हैं. पुराने मकानों में बुजुर्गों को ऊपर-नीचे जाने के लिए सीढिय़ों का ही सहारा है. ऐसे में लिफ्ट की उपलब्धता के कारण भी बहुत से लोग इन सोसाइटियों में रहना पसंद कर रहे हैं.”
वाराणसी में लगातार बढ़ती मांग को देखकर स्थानीय बिल्डरों ने विकास प्राधिकरण की अनुमति से ऊंची रिहाइशी इमारतों का निर्माण शुरू कर दिया है. कुछ साल पहले तक वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) ने शहर में बनने वाली हाइराइज इमारतों के लिए फ्लोर एरिया रेशो (एफएआर) 1.5 तय कर रखा था. इस वजह से उस समय चार से छह मंजिला इमारतें बनीं. वाराणसी के लंका, चौक, सिगरा, शास्त्री नगर, सिविल लाइंस जैसे इलाकों में करीब दो दर्जन हाउसिंग सोसाइटियों में 2,000 फ्लैट्स का निर्माण हुआ है.
पिछले 10 साल में वाराणसी में हाइराइज इमारतों में फ्लैट्स की मांग काफी तेजी से बढ़ी है. डिमांड बढऩे के कारण अब फ्लैट भी सस्ते नहीं रह गए हैं. फ्लैट के दामों में 100 से डेढ़ सौ फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है. 2007 में 1,000 वर्ग फुट में बने दो बेडरूम वाले फ्लैट की कीमत 12 से 18 लाख रु. के बीच थी, लेकिन अब वह 30 लाख रु. के पार हो गई है.
शहर के आर्किटेक्ट अनुराग कुशवाहा बताते हैं कि जब छोटे राज्यों की मांग ने तेजी पकड़ी तो लोगों को लगा कि अगर पूर्वांचल राज्य बनेगा तो वाराणसी ही उसकी राजधानी होगी. यही वजह थी कि वाराणसी के आसपास के जिलों और बिहार के सीमावर्ती जिलों से बहुत तेजी से पलायन कर लोग वाराणसी में आकर बसने लगे. अचानक बढ़ी जनसंख्या के दबाव ने फ्लैट्स की मांग में भी इजाफा किया.
इसी बीच पांच साल पहले वाराणसी विकास प्राधिकरण ने एफएआर को बढ़ाकर 1.5 से 2.5 कर दिया और 8 से 12 मंजिला इमारतों के निर्माण का रास्ता साफ हो गया. वाराणसी के सेंट्रल जेल रोड, लंका, सिगरा जैसे इलाकों में कई बड़ी इमारतें खड़ी हो रही हैं, इनमें सबसे ऊंची वर्ना गार्डन है. वाराणसी की एक बड़ी खासियत यह है कि यहां रियल एस्टेट के काम में अभी तक स्थानीय कंपनियों का ही बोलबाला है. सेंट्रल जेल रोड पर बनी हाइराइज हाउसिंग सोसाइटी वर्ना गार्डन के छह टावरों में कुल 390 फ्लैट हैं.
इस बिल्डिंग की डिजाइन में भूकंपरोधी तकनीक का सहारा लिया गया है. इन टावरों में आग से बचाव के भी खास इंतजाम हैं. बिल्डिंग के निर्माण से जुड़े एक इंजीनियर बताते हैं कि सोसाइटी के हर ब्लॉक में आठवें तल पर फायर बालकनी का निर्माण किया गया है. इसके लिए पूरी बिल्डिंग में स्मोक डिटेक्टर भी लगाए गए हैं. आग लगने की सूचना मिलते ही बिल्डिंग में रहने वाले लोग फायर बालकनी में जमा हो जाएंगे, जहां से उन्हें नीचे उतार लिया जाएगा. इंजीनियर बताते हैं कि चूंकि वाराणसी के फायर डिपार्टमेंट के पास केवल आठ मंजिल तक ही पहुंचने के लिए सीढिय़ों का इंतजाम है, इसलिए आठवीं मंजिल पर ही फायर बालकनी बनाई गई है.
इसके अलावा सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी कैमरे और निजी सुरक्षा गार्ड भी मौजूद हैं. इसी सोसाइटी में रहने वाले हरविंदर सिंह आनंद कहते हैं, ''वाराणसी में शहर के बीचोबीच मकान बनाना असंभव हो गया है. एक तो इस इलाके के दाम आसमान छू रहे हैं और दूसरे जमीन भी उपलब्ध नहीं है. यही कारण है कि बहुमंजिला इमारतों का चलन बढ़ा है. यहां पर मेंटेनेंस, सुरक्षा और मकान से जुड़ा टैक्स जमा करने का भी कोई टेंशन नहीं है.”
वाराणसी के रिहाइशी इलाकों में ही नहीं, बल्कि कॉमर्शियल क्षेत्र में भी अब ऊंची इमारतें नजर आने लगी हैं. यहां शास्त्री नगर चौराहे से सिगरा चौराहा जाने पर बी.जी. टॉवर और अरिहंत कॉम्प्लेक्स दिखाई पड़ते हैं, जो वाराणसी की प्रमुख कॉमर्शियल इमारतें हैं. इसके अलावा भेलूपुर और महमूरगंज में भी एक दर्जन कॉमर्शियल इमारतें हैं, जिनकी ऊंचाई चार से छह मंजिल के बीच है.
वाराणसी की सबसे ऊंची आठ मंजिला कॉमर्शियल बिल्डिंग अरिहंत कॉम्प्लेक्स का निर्माण करने वाले एआरसी बिल्डर्स ऐंड डेवलपर्स के प्रमुख ऋषभ जैन का कहना है कि वाराणसी के मास्टर प्लान में 'ऑर्गेनाइज कॉमॢशयल एरिया’ को जगह न मिलने की वजह से निजी कंपनियां इस क्षेत्र में उतनी सक्रिय नहीं हैं, जितनी कि हाउसिंग के क्षेत्र में हैं. इसके बावजूद शहर के बीचोबीच ऑफिस एरिया की मांग लगातार बढऩे से कई इलाकों में मल्टीस्टोरी कॉमर्शियल बिल्डिंग का भी निर्माण हो रहा है. सिगरा, वीआइपी रोड, लंका-मल्दिया रोड जैसे प्रमुख इलाकों में छह से आठ मंजिला छह नई कॉमर्शियल बिल्डिंग बन रही हैं.
मांग बढऩे से व्यावसायिक जमीन के दाम पिछले दो साल में 3,000 से 5,000 रु. प्रति वर्ग फुट से 7,000 से 10,000 रु. प्रति वर्ग फुट तक पहुंच गए हैं. वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष वी.के. सिंह स्वीकार करते हैं कि वाराणसी में जगह की कमी के कारण बहुमंजिला इमारतों की मांग बढ़ी है. वे कहते हैं, ''प्राधिकरण ने शहर में घनी आबादी के बीच बहुमंजिला इमारतों के निर्माण की अनुमति नहीं दी है. अविकसित और अर्धविकसित इलाकों में मौजूद जमीन पर ही ऊंची रिहाइशी इमारतों का निर्माण किया जा सकेगा. इसके लिए प्राधिकरण हर संभव मदद उपलब्ध करा रहा है.”