वक्त के साथ बदलना सबके लिए जरूरी है. मैं ऐसे बहुत-से डॉक्टरों को जानता हूं जो अपने बंगले बेचकर अब मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों में जा रहे हैं. दरअसल, ऐसे ज्यादातर लोगों के बच्चे बाहर हैं और वे पति-पत्नी ही घर में बचे हैं. बंगलों के लिए चौकीदार अफोर्ड करना भी उन्हें खर्चीला लगता है. ऊपर बंद कॉलोनी में सुरक्षा का इंतजाम भी रहता है. '' मेरठ शहर पर सेना के लिए कॉफी टेबल बुक तैयार कर रहे पेशे से डॉक्टर अमित पाठक खुद को फ्रीलांस हिस्टोरियन कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं. उन्हें लगता है कि हाइराइज बिल्डिंग का मतलब यह नहीं है कि शहर में जगह की तंगी हो जाए, तभी इस विकल्प पर विचार किया जाता है.
उनकी बात में दम है. दिल्ली से मेरठ पहुंचने पर अगर आप शहर के अंदर जाने वाले रास्ते को छोड़कर बाइपास पकड़ें तो दोनों तरफ आप को बहुमंजिला इमारतों की झांकी नजर आएगी. बहुत-सी इमारतें बनकर तैयार होने की स्थिति में हैं तो कई इमारतों की नींव की ईंट रखी जा रही है. कारों में घूमने और तेज जिंदगी पसंद करने वालों को अब मेरठ शहर के भीतर का ट्रैफिक जाम और विलंबित लय में चलती जिंदगी की जगह शहर के बाहर बाइपास का फर्राटा पसंद आ रहा है. और यहां तेजी से उगती इमारतें इसकी सनद हैं. पुराने दिल्ली-मेरठ रोड पर भी काफी ऊंची इमारतें हैं. परतापुर के पास रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक का नौ मंजिला पाम ग्रीन आवासीय कॉम्प्लेक्स दूर से ही नजर आ जाता है. इसकी बगल में ही शॉप्रिक्स मॉल है.
पहले ये दोनों परिसर शहर के सबसे ऊंचे रिहाइशी और शॉपिंग कॉम्लेक्स थे. लेकिन हापुड़ बाइपास से कोई आधा किलोमीटर पर सुपरटेक ग्रीन विलेज बन रहा है. इस परिसर में बन रहे सबसे ऊंचे टावर की ऊंचाई 45 मीटर है. 25 एकड़ इलाके में 1,200 फ्लैट तैयार करने वाली इस योजना के बारे में कंपनी के सीनियर जनरल मैनेजर (प्रोजेक्ट्स) एस.के. धवन बताते हैं, ''इस परिसर में हाइराइज इमारतों के साथ ही इंडिपेंडेंट विला भी बनाए जा रहे हैं. योजना में बन रहे 11 टावरों में से पहला टावर बनकर तैयार है और लोग इस साल मार्च तक इसमें रहना शुरू कर सकते हैं. ''
दिल्ली से 50 किमी दूर बसे इस शहर में फ्लैट की कीमत 2,000 रु. प्रति वर्ग फुट के करीब है. इस तरह यहां पिछले पांच साल में फ्लैटों की कीमत में दोगुना इजाफा हुआ है. शहर में बन रही ऊंची इमारतों में इस बात का खास ख्याल रखा जा रहा है कि ये स्कूल-कॉलेज के पास हों. आगे चलकर बैंक और अस्पताल जैसी सुविधाएं भी इस तरह के परिसरों में आएंगी. हालांकि सही सीवरेज लाइन और पीने के पानी की पाइपलाइन अब भी इस तरह की इमारतों के लिए बड़ी चुनौती हैं. इतने बड़े पैमाने पर निर्माण करने के बावजूद ये दोनों बुनियादी जरूरतें बिल्डरों के एजेंडे में सबसे ऊपर नहीं दिखाई देतीं.
ज्यादातर कॉलोनियां बोरिंग का पानी उपलब्ध कराने की बात कर रही हैं, लेकिन गुडग़ांव और नोएडा के तजुर्बे से यह बात खुद-ब-खुद साफ है कि ऐसे में अंतत: लोगों को पीने का पानी खरीदकर ही पीना पड़ेगा. इन कॉलोनियों तक पाइपलाइन क्यों नहीं है, इस सवाल पर मेरठ के मेयर हरिकांत अहलूवालिया ने कहा, ''कॉलोनियों का नक्शा पास करने की जिम्मेदारी मेरठ विकास प्राधिकरण की है. इस बारे में बेहतर कोऑर्डिनेशन की जरूरत है और यह पहले ही पता कर लेना चाहिए कि निगम का पाइपलाइन बिछाने का प्लान किस तरह का है. ''
वैसे आप की नजर में मेरठ शहर में सबसे बड़ी चुनौती क्या है? इस सवाल पर मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने कहा, ''मेरठ पुराना शहर है. आबादी घनी है. पुराने शहर में साफ-सफाई सुनिश्चित करना और अतिक्रमण से निजात पाना पहली जरूरत और बड़ी चुनौती है. बेहतर होगा नई कालोनियों के निर्माण से पहले इन मुद्दों को ध्यान में रखा जाए. '' जाहिर है कि नीति नियंताओं का काम ही है दूरगामी परिणामों पर नजर रखना. लेकिन ऊंची इमारतों में मकान बुक कराने वालों की पहली प्राथमिकता है सही समय में ऐसे मकान में इनवेस्ट करना जिसकी कीमत तेजी से बढ़े. उनकी नजर इस बात पर है कि कौन-सी प्रॉपर्टी सोने से ज्यादा रिटर्न दे सकती है. वहीं रहने के लिए घर खरीदने वालों की प्राथमिकता बेहतर ट्रांसपोर्ट, साफ-सुथरी आबोहवा और सुरक्षा है. वे ऐसा घर चाहते हैं जहां उनका परिवार समा जाए और घर की कीमत उनकी जेब के हिसाब से हो. ऐसे में बाकी मुद्दों पर समझौता करना उनकी मजबूरी है.
दरअसल, मेरठ शहर की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह अब न सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रमुख शहर है बल्कि गाजियाबाद औैर नोएडा के बाद दिल्ली से करीब सबसे बड़ा शहर है. जिस तरह से यहां रैपिड रेल कॉरिडोर बनाने की बात आगे बढ़ी है, उससे आने वाले समय में दिल्ली से मेरठ की दूरी मुश्किल से पौने घंटे में पूरी की जा सकेगी.
वहीं इस बात की भी उम्मीद है कि कई और बाइपास बनने के बाद सड़क के रास्ते दिल्ली से मेरठ जाने में और भी कम समय लगेगा. खूबियों और खामियों से भरी ये इमारतें यहां एक के बाद एक सिर तानकर खड़ी होती जा रही हैं और 1857 की क्रांति का नेतृत्व करने वाला शहर अब ऊंची इमारतों की क्रांति की दहलीज पर है.