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सिगरेट के कारोबार में जाना चाहता था, पापा ने मना किया

मुंबई के दो भाइयों अर्दशीर और पिरोजशा गोदरेज ने 1897 में भारत के सबसे लोकप्रिय और कामयाब कारोबारों में से एक की नींव रखी थी. कभी भारत के सबसे सुरक्षित तालों के लिए पहचाना जाने वाला गोदरेज ब्रांड आज कंज्यूमर गुड्स, केमिकल्स, रियल एस्टेट और रिटेल कारोबार में भी मौजूद है.

अपडेटेड 20 जनवरी , 2013

मुंबई के दो भाइयों अर्दशीर और पिरोजशा गोदरेज ने 1897 में भारत के सबसे लोकप्रिय और कामयाब कारोबारों में से एक की नींव रखी थी. कभी भारत के सबसे सुरक्षित तालों के लिए पहचाना जाने वाला गोदरेज ब्रांड आज कंज्यूमर गुड्स, केमिकल्स, रियल एस्टेट और रिटेल कारोबार में भी मौजूद है. उदारीकरण के बाद के दौर में इस समूह में नई जान फूंकने का काम कंपनी के मालिक 70 वर्षीय आदि गोदरेज ने किया है. जाहिर है, भविष्य में इस समूह की कमान आदि अपने बच्चों को ही देंगे-जिनमें तान्या दुबाश, निसा गोदरेज और सबसे छोटे 31 वर्षीय पिरोजशा गोदरेज हैं. पिरोजशा फिलहाल गोदरेज प्रॉपर्टीज के सीईओ हैं. मुंबई के ऐतिहासिक फोर्ट इलाके में गोदरेज प्रॉपर्टीज के ऑफिस में पिता-पुत्र ने एक भव्य कॉन्फ्रेंस रूम में डिप्टी एडिटर धीरज नय्यर से खानदानी कारोबार के भविष्य, प्रतिस्पर्धा की अहमियत, कारोबार के चरित्र और भारत के भविष्य पर बात की. आदि और पिरोजशा का व्यक्तित्व एकदम अलग है. सूट और टाई में चौकस पिता बातूनी और बेबाक हैं जबकि आरामदेह कपड़ों में उनका बेटा शांत और सतर्क है. दोनों में कारोबार को लेकर लगाव और भारत के प्रति कटिबद्धता कूट-कूटकर भरी हुई है.

आप दोनों को खानदानी कारोबार विरासत में मिला. आपको लगता है कि लंबे समय तक भारत में खानदानी कारोबार टिक पाएंगे या ये ज्यादा प्रोफेशनल हो जाएंगे?
गोदरेज
दुनिया के अधिकतर कारोबार खानदानी ही हैं. ऐसे में इनका लंबे समय तक टिके रहना स्वाभाविक है. हम मानते हैं कि खानदानी कारोबार प्रोफेशनल भी हो सकते हैं. कुछ ऐसे कारोबार भी हैं जिन्हें कोई परिवार नहीं बल्कि शेयरधारक चलाते हैं, जैसे लार्सन ऐंड टुब्रो और आइटीसी.

पिरोजशा अर्थव्यवस्था के विकसित होने के साथ-साथ उद्योग जगत में खानदानी कारोबारों के प्रभाव का अनुपात घटता जाएगा और ऐसा भारत में भी होना है. किसी भी अर्थव्यवस्था के हिस्से के तौर पर खानदानी कारोबार निर्णायक भूमिका निभाते हैं, और भारत के संदर्भ में तो यह बात कुछ दूसरी आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले ज्यादा कारगर होगी क्योंकि यहां कारोबार को खानदानी दायरे में रखने और परिवार के ही आदमी के नियंत्रण में बने रहने जैसी चीजों को लेकर कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक एहसास लोगों के भीतर है.

आपका परिवार का नाम ही ब्रांड का नाम है. यह कितना अहम है?
गोदरेज
रोजाना करीब 50 करोड़ भारतीय हमारे प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं, तो जाहिर है ब्रांड तो अहम है ही. हम बुनियादी तौर पर उपभोक्ता केंद्रित कारोबार करते हैं. जब हम नए प्रोडक्ट लाते हैं तो उसमें यह हमारी मदद करता है और भरोसे का दावा पुष्ट करता है.adi godrej

पिरोजशा खानदानी नाम हो, गूगल हो या एपल, ब्रांडिंग तो निर्णायक होती ही है. आप ब्रांड वैल्यू के हिसाब से ही काम करते हैं.

आप जब कारोबार में आए, तो आपके बुजुर्गों ने कोई खास सलाह आपको दी?
गोदरेज
मैं जब कारोबार में आया उस वक्त इसे मेरे दादा चला रहे थे. वे ग्रुप के चेयरमैन थे; मेरे पिता और दो चाचा भी उसमें जुड़े थे. उन्होंने मुझे बताया कि कारोबार देश की जनता पर टिका होता है और मुझे उनका खयाल रखना चाहिए. मैंने अपने पिता को सुझाव दिया था कि हमें सिगरेट के कारोबार में जाना चाहिए. उन्होंने सिरे से इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सिगरेट लोगों के लिए घातक है.

पिरोजशा बेशक, फेहरिस्त लंबी है. एक बात मेरे पिता ने यह बताई कि तुम्हें सोमवार की सुबह भी शुक्रवार की शाम जितने जोश में रहना चाहिए. अपने काम को लेकर उत्साहित होना चाहिए, अपने काम को पूरे लगन से करना चाहिए.

भारतीय कारोबार का भविष्य विविध क्षेत्रों में मौजूद विशाल समूहों में छुपा है या आला कंपनियों में?
गोदरेज
भारतीय कारोबार इसलिए अलग-अलग क्षेत्रों में फैल सके क्योंकि उन दिनों बंद अर्थव्यवस्था के कारण प्रतिस्पर्धा नहीं थी. दूसरे, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऐक्ट और मोनोपॉलीज ऐंड रिस्ट्रिक्टिव ट्रेड प्रैक्टिसेज (एमआरटीपी) के कारण ग्रोथ की गुंजाइश कम थी. इसलिए लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में कारोबार का विस्तार किया. मुझे लगता है कि लोग अब मौजूदा सेगमेंट पर ही ध्यान लगाएंगे. हम अपने मौजूदा कारोबार को ही फैलाने के बारे में सोच रहे हैं. पिछले पांच साल में हमने कुछ क्षेत्रों से हाथ खींच लिया है.

पिरोजशा मैं रियल एस्टेट पर फोकस करना चाहूंगा. सामान्य रुझान यही होगा कि कंपनियां कुछ चुने हुए क्षेत्रों में कारोबार करेंगी और उन्हीं पर ध्यान देंगी.

भारतीय कारोबार को किससे टक्कर मिलेगी-भारतीय उद्योगों से, पश्चिमी एमएनसी या चीनी कंपनियों से?
गोदरेज
तीनों से. ज्यादा प्रतिस्पर्धा अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी है. मैं प्रतिस्पर्धा के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलने के पक्ष में हूं. मैं नहीं जानता कि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी या नहीं, पर प्रतिस्पर्धियों की संख्या जरूर बढ़ जाएगी.

पिरोजशा हर उद्योग और सेक्टर अलग है. मसलन, रियल एस्टेट में, निकट भविष्य में अधिकतर प्रतिस्पर्धा भारतीय कंपनियों से ही आएगी. यही बात एफएमसीजी या कृषि कारोबार करने वाली कंपनियों पर लागू नहीं होगी.

चीन को लेकर लोगों में सनक-सी दिखती है. क्या भारतीय कारोबार को चीन से डरना चाहिए?गोदरेज बिल्कुल नहीं. यह प्रोडक्ट कैटगरी पर निर्भर है. गोदरेज ब्रांड नाम से बिकने वाले सारे माइक्रोवेव अवन हम चीन से मंगवाते हैं, सारे बेबी डायपर, एयरकंडिशनर भी चीन से ही मंगवाते हैं. मतलब यह कि चीन कुछ प्रोडक्ट्स में प्रतिस्पर्धी है और भारत अन्य प्रोडक्ट्स में.

पिरोजशा आज से 10 साल बाद कुछ बुनियादी चीजें बदल जाएंगी. सस्ते श्रम और सस्ते उत्पादन के कारण चीन से जो डर बना है, वह इस दौरान खत्म हो जाएगा और लोगों के पास पैसा बढ़ जाएगा. भारत उनसे सीखकर उनका स्तर और क्षमता हासिल कर सकता है. दोनों देशों में सहयोग होना चाहिए. दोनों में टकराव वाले संबंध का कारण नहीं दिखता. चीन में ग्रोथ भारत समेत पूरी दुनिया के लिए अच्छी साबित होगी.

भविष्य में सरकार और उद्योग जगत में किस तरह के रिश्ते देखते हैं?
गोदरेज
मेरा खुले बाजार में यकीन है. इसे मैं पूंजीवाद नहीं कहता. मुक्त उद्यम को कारगर बनाने वाली दो स्थितियां हैं. एक प्रतिस्पर्धा और दूसरी एकाधिकार से बचाव. एक बार आपने यह हासिल कर लिया, तो लोगों की उद्यमिता इसे सर्वश्रेष्ठ आर्थिक तंत्र में बदल देती है. सरकार जितना कम दखल दे उतना अच्छा है. मैं सरकारी नहीं बल्कि स्वतंत्र रेगुलेटर में भरोसा रखता हूं जो न तो सरकार और न ही इंडस्ट्री के प्रति जवाबदेह हों. सरकार के पास फैसला लेने के ज्यादा अधिकार नहीं होने चाहिए. सरकार जैसे ही चीजों को नियंत्रित करना शुरू करती है, भ्रष्टाचार बढऩे लगता है. अगर हमारा आर्थिक तंत्र अच्छा हो, तो भारत 10 फीसदी की वृद्धि दर आसानी से हासिल कर लेगा.

पिरोजशा भारत में जिस तरह शासन चल रहा है, वह आदर्श से बहुत दूर की चीज है, लेकिन हमारी दिशा सही है. पिछले 20 बरस में जो बुनियादी बातें हुई हैं वे हौसले बढ़ाने वाली हैं-मध्यवर्ग का उदय और आर्थिक सुधार. हमारा देश विशाल है. हमारी आबादी मुक्त बाजार वाली अर्थव्यवस्था के लाभ पूरी तरह समझ्ती नहीं है. लेकिन हम जिस दिशा में जा रहे हैं, वह ठीक है.

आपको लगता है कि खराब बुनियादी ढांचे के कारण मुंबई में जो संभावनाएं हैं, वे सामने नहीं आ पा रही हैं?
गोदरेज
मुझे लगता है कि खासकर मुंबई और पूरे देश में बुनियादी ढांचा दुरुस्त होना चाहिए. मैं मुंबई में ही बड़ा हुआ हूं और तब से लेकर आज तक काफी सुधार देख रहा हूं. मुझे विकल्प मिले तो मैं कारोबार के लिए हमेशा मुंबई को ही चुनूंगा.

पिरोजशा हमारे पास साधन हैं. हमारे पास मानव संसाधन भी है. खूब पैसा कमाया जा रहा है. एक विश्वस्तरीय शहर बनने से हमें कोई नहीं रोक रहा, बस कुप्रबंधन का मामला है. मुझे लगता है कि जी-20 देशों के बीच हम इकलौते हैं जहां के शहरों में ताकतवर प्रबंधक या प्रमुख नहीं हुआ करते. हमें मुंबई के लिए एक मजबूत मुखिया दरकार है जो नागरिकों के प्रति जवाबदेह हो. मुझे नहीं लगता कि दो-तीन साल में बहुत फर्क आएगा, पर 20 साल में जरूर तस्वीर बदलेगी.

भारत के आर्थिक भविष्य को लेकर उम्मीद जगाने वाली और माथे पर शिकन लाने वाली एक-एक चीज बताएं.
गोदरेज
मैं यहां की डेमोग्राफी (आबादी) और डेमोक्रेसी को लेकर आशान्वित हूं. चिंता इस बात की है कि क्या हम अपनी डेमोग्राफी का फायदा उठा पाएंगे. ट्रेनिंग और शिक्षा में बहुत सावधानी बरतनी होगी. हमने यह सही तरीके से कर लिया, तो हमारा भविष्य उज्ज्वल होगा.

पिरोजशा युवाओं की भारी आबादी सबसे बड़ा बोनस है. आज भारत में भरपूर जोश है. शिक्षा के माध्यम से उसे सामने लाना और एक गतिशील अर्थव्यवस्था का निर्माण ही वह चीज है जिसे लेकर मैं बहुत आशावादी हूं. राजकाज के स्तर को देखकर मैं निराश हो जाता हूं. राजनीति में ऊंचे स्तर पर मेरी पीढ़ी के लोग पर्याप्त नहीं हैं. भारत में राजनैतिक नेतृत्व की औसत आयु और आबादी की औसत आयु में फर्क दुनिया में शायद सबसे ज्यादा है. मुझे लगता है कि हम अब भी ऐसे चरण में हैं जहां दो कदम आगे जाते हैं तो एक कदम पीछे हट जाते हैं.

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