महाराष्ट्र
सर्वाधिक सुधार वाला बड़ा राज्य
तार काफी मजबूत हैं
इस साल जुलाई में जब समूचे उत्तरी और पूर्वी भारत में अचानक बिजली कटने से अंधेरा छा गया था, उस समय महाराष्ट्र में लगातार बिजली आ रही थी. यह निजी बिजली कंपनियों से बिजली खरीदने के राज्य सरकार के फैसले का नतीजा था. राज्य में साल 2000 में बिजली की मांग 10,000 मेगावाट थी जबकि दैनिक कमी 3,000 मेगावाट की थी. 2011-12 में बिजली की कमी 3,000 से 3,500 मेगावाट के बीच रही जबकि मांग 16,000 मेगावाट थी. इस दौरान सरकार ने निजी उत्पादकों से 6,000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली खरीदकर राज्य में आपूर्ति को सुचारू बनाए रखा.
नवंबर 2010 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही पृथ्वीराज चव्हाण ने बिजली, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया है. बिजली की हालत सुधरने से मुंबई, नागपुर, पुणे, नासिक और औरंगाबाद जैसे औद्योगिक शहरों में लोड शेडिंग नहीं हो रही है. इसी का नतीजा है कि राज्य में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया (एफडीआइ) है. पिछले साल सरकार ने विदेशी कंपनियों के साथ 40 सहमति पत्रों (एमओयू) पर दस्तखत किए जिनकी कुल कीमत है एक लाख करोड़ रु. है.
राज्य का तकरीबन हर गांव साल भर चलने वाली पक्की सड़कों से जुड़ गया है. महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम ने मुंबई के सियोन, चेंबूर और कांदीवली में तीन फ्लाइओवर बनाए हैं. मुख्यमंत्री कहते हैं, ‘‘महाराष्ट्र विदेशी निवेशकों की पहली पसंद है क्योंकि हम जरूरी बुनियादी ढांचा मुहैया कराते हैं.’’ आज महाराष्ट्र इकलौता राज्य है जहां 15 एयरपोर्ट हैं जो देश में किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा हैं. इनमें एक मशहूर धर्मिक नगरी शिरडी के पास भी है.
नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर ऐंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) ने 2011-12 के दौरान महाराष्ट्र में कृषि और ग्रामीण विकास के लिए 6,024 करोड़ रु. का रिकॉर्ड अनुदान दिया है जो 2010-11 के 3,533 करोड़ रु. के मुकाबले 71 फीसदी ज्यादा है. नाबार्ड ने सड़क, पुल, पेयजल, गोदाम, गंदे पानी के प्रबंधन, जन स्वास्थ्य और आंगनवाड़ी केंद्र जैसे ग्रामीण बुनियादी ढांचे के लिए राज्य को 1,777 करोड़ रु. दिए हैं. ग्रामीण बैंकों के जरिये लोन देने के मामले में 460 करोड़ रु. के आंकड़े के साथ महाराष्ट्र देश में सबसे आगे है.
यहां 75,000 प्राथमिक स्कूल, 22,000 माध्यमिक स्कूल, 4,000 उच्च शिक्षा संस्थान और 19 विश्वविद्यालय हैं. महाराष्ट्र के पास शिक्षा के सबसे अच्छे बुनियादी ढांचों में से एक है. अर्नस्ट ऐंड यंग की 2010 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल राज्य भर में 15 लाख छात्रों ने कॉलेजों और संस्थानों में दाखिला लिया था जो देश में सबसे ज्यादा था.
राज्य में संचार क्षेत्र ने पिछले साल काफी तेजी से तरक्की की है. महाराष्ट्र के पास देश में सबसे ज्यादा टेलीफोन कनेक्शन हैं जिसमें फिक्स लाइन और वायरलेस दोनों शामिल हैं. यहां 20 लाख फिक्स लाइन और 7 करोड़ वायरलेस टेलीफोन कनेक्शन हैं. मार्च 2011 के अंत तक यहां इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 14.9 लाख थी और ब्रॉडबैंड ग्राहकों की संख्या 22.88 लाख थी. यह संख्या देश में सबसे ज्यादा थी.
दिल्ली सर्वाधिक सुधार वाला छोटा राज्य
तरक्की की मिसाल
आसान होती राहें
राजधानी दिल्ली 2003 से बड़े पैमाने पर विकास की गवाह रही है. इसी साल उसे 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स (सीडब्ल्यूजी) की मेजबानी मिली थी. इसने देश भर से प्रवासियों को दिल्ली की ओर आकर्षित किया. इस बारे में कुछ लोगों का मानना है कि इससे शहर पर काफी असर पड़ा है. लेकिन जैसा दिल्ली के मुख्य सचिव पी.के. त्रिपाठी का कहना है, ‘‘हम मानते हैं कि प्रवासी इस शहर की रीढ़ हैं और उन्हें सर्वश्रेष्ठ बुनियादी ढांचा मिलना चाहिए.’’
लोक निर्माण विभाग (पीडबल्यूडी) 1,200 किमी लंबी सड़कों की देख-रेख का काम करता है. दिल्ली में सड़कों का नेटवर्क काफी विस्तृत है और यहां के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 21 फीसदी हिस्से पर पक्की सड़कें बनी हुई हैं. आज शहर में 75 फ्लाइओवर हैं जबकि 1982 में सिर्फ पांच हुआ करते थे. इससे यातायात काफी सुगम हुआ है. भीड़-भाड़ वाले इलाकों जैसे मुकरबा चौक, अप्सरा बॉर्डर और गाजीपुर से लाल बत्तियां हटा ली गई हैं ताकि यातायात में सुविधा हो. सरकार शहर में 8 नए बीआरटी गलियारे बनाने की योजना पर काम कर रही है.
दिल्ली मेट्रो 200 किमी के इलाके को कवर करती है. फिलहाल दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) 150 किमी की लाइनों का विस्तार कर रही है और आखिरी चरण में अतिरिक्त 50 किमी लाइन और भी जोड़ी जाएगी.
राज्य में विकास करने के लिए सरकार को कुछ कड़े फैसले भी लेने पड़े हैं. ऐसा ही एक फैसला बिजली के निजीकरण का था जो 2002 में किया गया. आज दस साल बाद इसके सकारात्मक नतीजे साफ दिख रहे हैं. बिजली के क्षेत्र पर एसबीआइ कैप सिक्योरिटीज की 21 अक्तूबर को आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली ने पिछले दस साल में करीब 30,000 करोड़ रु. बचाए हैं. दिल्ली में करीब 99 फीसदी घरों में बिजली है जबकि राष्ट्रीय औसत 67 फीसदी का है.
अगला मुश्किल भरा फैसला जलापूर्ति का निजीकरण है. दिल्ली में छह वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हैं. दिल्ली जल बोर्ड ने 26 अक्तूबर को नांगलोई में 46 एमजीडी क्षमता वाला वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के लिए निजी-सार्वजनिक भागीदारी वाले मॉडल को मंजूरी दी है. यह प्रोजेक्ट 650 करोड़ रु की लागत से बनेगा और इसका काम फ्रांस की कंपनी विओलिया वाटर और को मिला है.
अगर 2011 की जनगणना पर नजर डालें तो पता चलता है कि दिल्ली के 81 फीसदी घरों में नल से पानी की आपूर्ति की व्यवस्था है जबकि 2001 में यह 75 फीसदी घरों तक ही सीमित थी.