कई शहर देवताओं, नायकों और विजेताओं द्वारा बसाए गए हैं, लेकिन कराची किस्से-कहानियों से निकला है. ऐसी कहानियां प्रचलित हैं कि राम और सीता ने यहां के हरे-भरे कोह में कुछ दिनों तक वास किया था, जो अब शहर का हिस्सा बन गया है. एक घुमक्कड़ सूफी के बारे में भी कहानियां हैं जो एक खाड़ी के पास रहने लगे और उन्होंने अपने सिर से जो जुएं निकालीं वे मगरमच्छों में तब्दील हो गईं.
किसी प्राकृतिक आपदा के बारे में भी कहानियां प्रचलित हैं, शायद एक जलजले ने आसपास की बस्तियों के निवासियों को अरब सागर के उस तट पर आकर रहने को मजबूर कर दिया जो अब आधिकारिक रूप से 1.82 करोड़ लोगों (गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2.1 करोड़) का शहर बन चुका है.
कराची विशाल और तमाम विविधताएं समेटे हुए है. हो सकता है कि जब ओरंगी में बारिश हो रही हो तो पिपरी में धूप खिली हो. ल्यारी में जब सड़कों पर टकराव हो रहा हो तो उसी समय समुद्र के बलुई तट सैंडस्पिट पर बहुत-से परिवार पिकनिक मना रहे हों. यहां रजाकाबाद जैसी बलूच बस्तियां भी हैं जहां की औरतें कंक्रीट के एक मंजिला, गंदे मकानों में पड़ी रहती हैं, तो मैकनील रोड जैसे इलाके भी हैं जहां की ईसाई औरतें स्कर्ट पहने सड़कों पर घूमती नजर आती हैं. शहर को नसीहतों से शुद्ध बनाने का कोई भी प्रयास हमेशा बेकार भले न हो, लेकिन इसको यहां पसंद नहीं किया जाता. हर कोई अपनी कहानी के साथ शुरू कर सकता है, अपनी खुद की कराची के साथ.
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मेरे दादा इस शहर में बहुत पहले नहीं बल्कि भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद आए. वे पपोश नगर के कुछ हद तक अलग-थलग मकान के ग्राउंड फ्लोर में एक बेडरूम वाले हिस्से में रहते थे. उसकी छत नीची थी, दरवाजे कमजोर थे और फर्श कंक्रीट की पट्टियों वाला था. उसके पीछे एक सहन होने के बावजूद यहां रहने पर किसी को घुटन महसूस हो सकती थी. उस खानदान में तब 15 सदस्य थे जिनमें से ज्यादतर लोग खुले आकाश के नीचे चारपाइयां बिछाकर सोते थे क्योंकि अंदर गर्मी होती थी.
मैं हाल में काफी अरसे बाद पपोश नगर गया था. जब मैं वहां पहुंचा तो घिसे-पिटे टेनिस बॉल उछालते पड़ोस के जिज्ञासु बच्चों ने मुझसे सवाल करने शुरू कर दिए. जब मैंने उन्हें बताया कि मेरे दादा यहां रह चुके हैं तो उन्होंने मकान मालिक की पत्नी को मेरे आने की खबर दी. कमर पर अपना हाथ रखे उन्होंने कहा, ''मेरे शौहर दुकान पर हैं.'' वही दुकान जिसे उनके वालिद पचास साल पहले चलाते थे.
हम मकान मालिक को मालिक जैसी ही और एक हस्ती की तरह देखते थेः वे हमारे ऊपर रहते थे, उनके पास प्रॉपर्टी थी और कारोबार चलता था. हालांकि कई बार ऐसे मौके भी आए जब मेरे दादा अपनी आठ संतानों का पेट भरने के नाकाबिल रहे और उन्हें अपने रिश्तेदारों के यहां भेज दिया. लेकिन दुबली-सी, अनपढ़, साड़ी पहनने वाली और पूरबिया बोलने वाली मेरी दादी ने यह सुनिश्चित किया कि उनके बच्चे पढ़-लिख लें, सख्त मेहनत करें और बेहतरीन प्रदर्शन करें.
इसका नतीजा यह निकला कि एक पीढ़ी के अंदर ही उनके लगभग सभी बच्चे शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में चले गए. वे डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटेंट, बैंकर बने और एक तो विदेश सेवा में भी गए. हालांकि मेरे दादा ने किराए के मकान में ही अंतिम सांस ली, लेकिन उनके बेटों ने समय रहते ही जमीन खरीदी, मकान बना लिए और अपने-अपने परिवार को पाला.
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कराची की कहानी प्रवास की कहानी है. आखिरकार मुंघो पीर के मगरमच्छों के अलावा 300 साल पहले कराची में कुछ नहीं था. लेकिन जब मछुआरों का बिखरा हुआ समुदाय कराची के आसपास जमा होना शुरू हुआ, तब सिंध के बलूच शासकों का ध्यान इस पर गया. 18वीं सदी तक बलूच शासकों ने इस उभरती व्यापार चौकी पर कब्जा जमाने की तीन बार कोशिश की. तब जाकर 1795 में कराचीवालों को कुछ तरस आया लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि बलूच लोग शहर में प्रवेश नहीं करेंगे. इसके नतीजतन हमलावर सैनिकों ने ल्यारी नदी के आसपास डेरा डाल दिया. यह शहर में प्रवासियों की दूसरी खेप थी. वर्ष 1800 में कराचीवालों ने शहरी सीमा के भीतर कारखाना लगाने वाली एक छोटी ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी को बाहर भगा दिया. कराची के निवासी हमेशा से ही बहादुर और काफी आजाद स्वभाव के रहे हैं.
प्रवासियों की तीसरी खेप 1831 के बाद आई जब मियानी की खूनी जंग में ब्रिटिश सैनिकों ने सिंध पर कब्जे के लिए 10,000 स्थानीय लोगों का कत्ल कर दिया. मारे गए लोगों में पारसी, गोआ मूल के, लोहाना और बोहरा शामिल थे. पिछले महीने मैं कराची के सबसे पुराने परिवारों में से एक बोहरा लेनवाला खानदान के लोगों से मिला. कभी वे विशाल रियल एस्टेट के मालिक थे जिनमें बेहतरीन सैफी अपार्टमेंट शामिल था जो शहर के बहुत से यहूदियों का निवास था. एक समय तो लेनवाला लोग शहर के सबसे धनी परिवारों में से थे. लेकिन इसके बाद स्थितियां बदल गईं. यहूदी यहां से चले गए और सैफी अपार्टमेंट जीर्ण-शीर्ण हो गया. प्रवास की गति बहुत सीधी होती हैः हर लहर पिछली लहर को उसकी जगह से हटा देती है और हर समुदाय दूसरे से टकराता है, फिर उसके साथ रहने लगता है.
ऐसे भी दौर आए जब अन्य प्रवासी समुदायों (मोहाजिर, पठान, बलूच, सिंधी) की जान चाकुओं की धार पर थी, लेकिन बाद में मेल-मिलाप का माहौल बन गया. पिछले दशक में कराची सबसे खुशहाल शहर रहा. कूड़ा इकट्ठा किया जाने लगा. पार्कों में रौनक लौट आई. सड़कों, पानी की लाइनों का जाल बिछाया गया. इन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून-व्यवस्था को कायम किया गया. मिसाल के तौर पर 2001 में शहर में प्रति व्यक्ति हत्या का औसत बोस्टन और सिएटल से भी कम हो गया.
लेकिन 2008 के आसपास चीजें बदल गईं. सीमा पर युद्ध से उठा गुबार अब भी अंदर-अंदर बह रहा है. अब इलाकों पर प्रभुत्व की लड़ाई आम बात हो चुकी है. इन गर्मियों में एक-दूसरे के दुश्मन माफिया के प्रभुत्व वाला (डोंगरी जैसा) अशांत ल्यारी इलाका जल उठा. जिस दिन मैंने इस लेख को लिखने की शुरुआत की, अखबारों के अनुसार, 12 लोगों की मौत हो चुकी है जिसे 'टारगेटेड किलिंग' यानी चुन-चुन कर की गई हत्याएं बताया जा रहा है.
हालांकि ल्यारी अपने फुटबॉल खिलाड़ियों, स्नूकर खिलाड़ियों, बॉक्सर और बियर हॉल के लिए प्रसिद्ध है. मैं बियर पीता हूं, इसलिए मैंने कई बार इन हॉल में जाने की कोशिश की लेकिन हर बार मुझसे यही कहा गया, ''अभी उतना अच्छा समय नहीं है.'' लेकिन फुटबॉल वर्ल्ड कप के दौरान पैक्स ल्यारियाना घोषित हो गया. उभरते बाहुबली डॉन उजैर बलूच की मेहरबानी से बड़े-बड़े स्क्रीन लगाए गए (खबरों के अनुसार 26 स्क्रीन एक साथ लगाए गए).
हजारों लोग सड़कों पर उतर आए, कुछ बियर गटक रहे थे, सभी स्पेन का समर्थन कर रहे थे. (जब मैंने एक बड़ा पीला झ्ंडा लिए एक मकरानी लड़के से पूछा कि स्पेन ही क्यों, जबकि इतिहास के मुताबिक वहां से मुसलमानों को निकाल दिया गया था, तो उसने सोच-विचार कर जवाब दिया, हां, लेकिन उनमें अब भी मुसलमानों का खून है!)
मैच के हाफ टाइम में उजैर ने मुझे बुलावा भेजा. मुझे लगता था कि वह एक बड़ा-सा डरावना व्यक्ति होगा. लेकिन मेरे सामने एक सुंदर, मृदुभाषी, मेरी ही उम्र का व्यक्ति था जो ब्राजील की जर्सी पहने हुए था. उसने कहा, ''आप बाहर से आए हो. उनसे कहो कि हमारे नौजवानों के लिए काम आने वाले स्टेडियम बनाने के लिए कुछ पैसा दें.''
ल्यारी से एक फर्लांग की दूरी पर ही ली मार्केट है जो कराची शहर का जीवंत कारोबारी सेंटर है. यहां चाय से लेकर टिन में पैक खजूर और सूखे मेवे तक सब कुछ मिलता है. छोटी कोठरियों जैसे दफ्तरों में बैठे मेमन, पंजाबी और पठान हर दिन लाखों रुपये का कारोबार करते हैं. वे आपको यह भी बताएंगे कि उजैर के आदमी बड़ा रंगदारी रैकेट चलाते हैं. पाउडर दूध के एक व्यापारी ने मुझे बताया, ''कभी एमक्यूएम के लोग भट्टा इकट्ठा करते थे. लेकिन उन्होंने इसे छोड़ दिया. हो सकता है कि वे इन दिनों कुछ और कर रहे हों.''
*** कई अन्य कहानियां भी हैं, अन्य पहलू जिनके बारे में कराची को पता तो है, लेकिन आम तौर पर तर्क-वितर्क से बचा जाता है. एक बार मैं कजाफी टाउन में गया था जो वजीरियों, पठानों (जो देश की अफगानिस्तान सीमा पर स्थित अशांत इलाके से आए हैं) की जनसंख्या वाला दूरदराज का इलाका है. क्या मुझे वजीरिस्तान के एक घर में जाना चाहिए (खासकर यह देखते हुए कि मैं एक शिया हूं), मुझे वाजिब-ए-कत्ल यानी 'कत्ल किए जाने योग्य' समझ जा सकता है.
लेकिन कजाफी टाउन में मुझे दो युवतियों द्वारा संचालित एक को-एड होम स्कू ल में आमंत्रित किया गया. सख्त मि.जाज वाली उनकी मां एक चारपाई पर बैठकर उनकी निगरानी कर रही थीं, जबकि उनका भाई (टखने तक सलवार पहने लंबी दाढ़ी वाला व्यक्ति) मस्जिद गया हुआ था. यह अफवाह थी कि इस मस्जिद को सांप्रदायिक आतंकी संगठन सिपह-ए-सहाबा का संरक्षण प्राप्त है. मुझे हैरत हुई कि आखिर वह कैसे इस स्कूल को चलाने की इजाजत दे रहा है?
मुझे पता चला कि अपने वालिद की मौत के बाद उस पर तीन औरतों की जिम्मेदारी आ गई. इसके बाद जब एक स्थानीय नए एनजीओ ने उससे संपर्क किया तो उसने धार्मिक नहीं बल्कि आर्थिक फैसला लिया. आखिर होम स्कूल के खुलने से उसकी बहनों को तनख्वाह, मुफ्त इलाज की सुविधा (हर माह आने वाले मोबाइल हेल्थ क्लीनिक के माध्यम से) और स्कूल (उसके मकान को) को टाट तथा एक वाटर कूलर जो मिल जाता है. अगले कुछ वर्षों में उसने अपने जीने के ढंग और विचारों में बदलाव किया, उन तौर-तरीके में जैसे उसके आसपास के लोग सदियों से रहते आए और सोचते आए हैं.
होम स्कूल (और देश में ऐसे सैकड़ों स्कूलों) को धन मुहैया कराने वाला संगठन फ्लेम इस शहर के जीवन को परिभाषित करने वाले निजी सामाजिक प्रयासों की मिसाल है. छात्र नेता अदीब रिजवी ने बिलकुल शून्य से शुरुआत करते हुए मुफ्त इलाज वाला विश्वस्तरीय एसआइयूटी किडनी अस्पताल खड़ा कर लिया है. जमील यूसुफ जैसे कारोबारियों के एक समूह ने सिटीजंस पुलिस लायजन कमेटी की स्थापना की है. इस संस्थान को संयुक्त राष्ट्र ने अपराध की रोकथाम के मामले में आदर्श माना है.
माइक्रो फाइनेंस और निचले तबके में सामुदायिक विकास के अगुआ अख्तर हामिद खान और अनाथालय, क्लीनिक, महिलाओं के लिए आश्रय के साथ ही दुनिया की सबसे बड़ी एंबुलेंस सेवा का संचालन करने वाले एक समाज कल्याण कार्यक्रम के संस्थापक अब्दुल सत्तार एधी जैसे मानवतावादी नोबेल पुरस्कार के दावेदार हैं. जहां सरकार विफल होती है वहां कराचीवाले बीड़ा उठा लेते हैं.
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लाहौर और इस्लामाबाद के विपरीत कराची सुंदर नहीं है. यह साओ पॉलो, मुंबई जैसा रूखा और अस्त-व्यस्त महानगर है जिसमें मेहनती, जीवंत लोग बसते हैं. कराचीवाले ही कराची को कराची बनाते हैं. इस शहर में ठगों से लेकर समाज सेवी, कारोबारी और उपन्यासकार तक रहते हैं. पाकिस्तान के किसी भी और शहर (या फिर इस मामले में ऑस्ट्रिया) में कराची लिटरेचर फव्स्टिवल जैसा आयोजन नहीं हो सकता. किसी अन्य शहर में हर हफ्ते कव्वाली, मुशायरा, कला प्रदर्शनी के साथ ही नाटकों का मंचन नहीं हो सकता.
पिछली तीन शताब्दियों में कराची में काफी नाटकीय बदलाव आया है और यह आगे भी इसी गति से बदलता रहेगा. अब यह बदलाव बेहतरी की दिशा में होगा या बदतरी की ओर, यह अनुमान लगाने का काम बाजी लगाने वालों या राजनैतिक पंडितों का है. मुझे तो कव्वाली, एक प्लेट निहारी और एक महानगर की ऊर्जा की जरूरत है.
अपने दादा की तरह ही मेरे पास इस शहर में कोई प्रॉपर्टी (या रिकॉर्ड के हिसाब से किसी भी शहर में नहीं) नहीं है, लेकिन मैंने यहां अपने लिए एक जीवन गढ़ लिया है. एक कहानीकार के नाते मुझे कराची मोह लेता है क्योंकि इसके हर पत्थर के नीचे एक कहानी छिपी है.