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COP 30 में कैसे भारत की अडिग कूटनीति की जीत हुई?

COP 30 शिखर सम्मेलन में दुनिया भर में जलवायु संकट को दूर करने के लिए अगले दशक की कई कार्य-योजनाएं बनीं, जिसमें भारत के सुझाए गए लक्ष्य अहम हैं

ब्राजील में आयोजित कॉप 30 की तस्वीर (फाइल फोटो)
ब्राजील में आयोजित कॉप 30 की तस्वीर (फाइल फोटो)
अपडेटेड 9 दिसंबर , 2025

ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला द सिल्वा ने सीओपी30 को 'सच्चाई का सीओपी' बताया था. बीते हक्रते कॉन्फ्रेंस के बाद यह साफ था कि सम्मेलन जलवायु संकट के मामले में व्यावहारिक रुख अपनाने में सफल रहा और उपायों के अमल पर बातचीत का फोकस था.

वित्तीय मामलों, कुछ देशों के एकतरफा व्यापार उपायों और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे-धीरे खत्म करने पर मतभेद के बावजूद जलवायु पर बातचीत कामयाब रही. बहुपक्षीय सहयोग आगे बढ़ेगा.

इस बातचीत के नतीजे भारत के लंबे समय से रहे रुख को सही साबित करते हैं कि कुछ देशों को ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और सिर्फ मुनासिब जिम्मेदारियां ही ली जाएंगी. सीओपी में विकासशील देशों की कई प्राथमिकताएं जाहिर हुईं. 59 गैर-सिफारिश मामलों की सूची के साथ वैश्विक लक्ष्य अपनाना अच्छा कदम है. इससे उम्मीद है कि आगे आने वाली खामियों और चुनौतियों की पहचान की जा सकेगी.

जलवायु संकट दूर करने के लिए फंड भी जरूरी थे, क्योंकि जरूरतों और असलियत के बीच भारी अंतर है. बाकू-से-बेलेम रोडमैप 2035 तक हर साल 13 खरब डॉलर जुटाने की वैश्विक जरूरत की पहचान अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी है. इसने मौजूदा संसाधनों की कमी और बहुपक्षीय विकास बैंकों को आधुनिक बनाकर व्यवस्थागत सुधार, नए वित्तीय उपाय ढूंढकर और रुकावटों को कम करने की जरूरत को स्वीकार किया. 

मगर रोडमैप में अभी भी लक्ष्य, बोझ बांटने या इस बात पर सफाई की कमी है कि फंडिंग असल में कहां से आएगी. एडेप्टेशन फंड को तीन गुना करने का लक्ष्य 2030 से बढ़ाकर 2035 कर दिया गया है, जो जलवायु आपदा के मामले में कमजोर देशों के लिए बड़ा झटका है.

भारत की एक जरूरी प्राथमिकता आखिरकार आगे बढ़ी. सीओपी 30 में पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 पर दो साल की कार्य-योजना शुरू करने पर सहमति जताई. उसका फोकस विकासशील देशों के प्रति विकसित देशों की वित्तीय जिम्मेदारियों को स्पष्ट करना है. इससे कामगारों और समुदायों को बचाने में मदद मिलेगी, खासकर उन देशों में जो विकास में बहुत पिछड़े हैं.

जवाबदेही के मामले में और कदम उठाए गए. पहली बार सीओपी में कुछ देशों के एकतरफा व्यापार उपायों पर औपचारिक रूप से बात हुई. मसलन, यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) को कई विकासशील देश संरक्षणवादी मानते हैं. इस मुद्दे पर तीन औपचारिक बातचीत होंगी और नतीजे 2028 में एक उच्चस्तरीय आयोजन में जाहिर किए जाएंगे.

आखिरी दिनों में बिना किसी बातचीत के जीवाश्म ईंधन को धीरे-धीरे खत्म करने और जंगलों की कटाई रोकने सरीखे नए मुद्दे डालने की कोशिश की गई. आखिर में सीओपी प्रेसिडेंसी ने दो रोडमैप का ऐलान किया. एक जीवाश्म ईंधन से अलग वैकल्पिक ईंधन के इस्तेमाल पर जोर और दूसरे जंगलों की कटाई रोकने पर फोकस. अब इस पर व्यवस्थित चर्चा हो सकेगी.

सीओपी30 और सीओपी31 प्रेसिडेंसी मिलकर बेलेम मिशन 1.5 डिग्री सेल्सियस करने के लक्ष्य को आगे ले जा रहे हैं. इसका मकसद अगले साल अपने राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं पर रिपोर्ट पेश करना है. ग्लोबल इम्प्लीमेंटेशन एक्सेलेरेटर भी जलवायु के मामले में कदम उठाने के लिए सही है. इसी तरह जेंडर ऐक्शन प्लान भी है, जो जलवायु संकट के साथ लैंगिक मामलों को जोड़कर उन्हें मुख्यधारा में स्थापित करेगा.

ब्राजील ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फंड (टीएफएफएफ) के लिए प्रतिबद्धता हासिल करने में कामयाब रहा, जिसमें 53 देशों ने कुल मिलाकर 5.5 अरब डॉलर देने का वादा किया. खास बात यह है कि इस फंड का 20 फीसद हिस्सा मूल निवासियों और जंगल पर निर्भर समुदायों की मदद के लिए होगा, जो अमेजन के संरक्षण में उनकी अहम भूमिका को मान्यता देता है. समाज सेवी संस्थाओं ने बेलेम हेल्थ ऐक्शन प्लान भी लॉन्च किया, जिसमें जलवायु से जुड़े स्वास्थ्य खतरों के लिए 30 करोड़ डॉलर की रकम देने की प्रतिबद्धता जताई गई है.

कुल मिलाकर, सीओपी के नतीजों से विकासशील देशों की जरूरतों और उम्मीदों पर फोकस बढ़ा. भारत की चुपचाप अडिग कूटनीति से यह सुनिश्चित हुआ कि कई पुरानी मांगों को आखिरी फैसलों में सही जगह मिल गई.

रवि एस. प्रसाद (काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट ऐंड वॉटर में डिस्टिंग्विश्ड फेलो और भारत के पूर्व जलवायु परिवर्तन मुख्य वार्ताकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं)  

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