
गुजरात के भावनगर हवाई अड्डे का टर्मिनल ताजा-ताजा पेंट किया हुआ दिखता है. मगर अंदर की हवा में वही पुरानी गंध पसरी है. एक कोने में प्लास्टिक की कुर्सियां एक के ऊपर एक कतारों में लगी हैं. धूल से सने बैगेज स्कैनर में प्लग नहीं है और वह किसी अलग जमाने का कोई अवशेष जैसा लगता है. महीनों से यहां न तो कोई विमान उड़ा है और न ही उतरा है.
देश के 93 हवाई अड्डों में से कई की तकरीबन ऐसी ही कहानी है. इनमें हेलिपोर्ट और वाटर एयरोड्रोम भी शामिल हैं. ये सब उस उड़ान यानी 'उड़े देश का आम नागरिक’ योजना का हिस्सा हैं जिसे मोदी सरकार ने 2016 में आम नागरिकों के लिए हवाई सफर को सुलभ बनाने के इरादे से शुरू किया था. इस योजना के तहत सस्ते हवाई मार्गों के जरिए छोटे शहरों को जोड़ने का इरादा जताया गया था. इसमें निवेश भी इरादे के अनुरूप ही आया: इन हवाई अड्डों को उड़ान लायक बनाने पर 4,638 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए गए.
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआइ) के पास 2014-15 में 70 हवाई अड्डे थे, जो अब 163 हो गए हैं और 649 उड़ान मार्गों पर जहाज उड़ान भर रहे हैं. मगर उम्मीदों के शुरुआती पंख बिखर गए हैं. इन 93 उड़ान हवाई अड्डों में से एएआइ आधिकारिक तौर पर 20 को 'निष्क्रिय’ (देखें नक्शा) के रूप में गिनता है, जबकि देश भर में कई अन्य ठप पड़े हुए हैं.
तमिलनाडु के वेल्लोर में टर्मिनल तैयार है. मगर रनवे अब भी नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के मानदंडों से कमतर है. बिहार के रक्सौल के लिए किसी भी एयरलाइन ने किसी भी दौर की बोली में रुचि नहीं दिखाई है. आंध्र प्रदेश में दोनाकोंडा का पुनरुद्धार जमीन के सीमांकन विवाद में फंसा हुआ है. तेलंगाना के वारंगल को अब भी नौवहन सहायता और रक्षा मंत्रालय से महत्वपूर्ण सुरक्षा मंजूरी का इंतजार है.

ऐसी स्थिति तब है जब भारत की विमानन कहानी इससे पहले इतनी बेहतर कभी नहीं रही है. यात्री यातायात नई ऊंचाइयां छू रहा है: 2024 में घरेलू मार्गों पर 16.13 करोड़ लोगों ने हवाई सफर किया जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.1 फीसद अधिक है. विमानन कंपनियां भी पंख फैला रही हैं: भारत का वाणिज्यिक बेड़ा पिछले एक दशक में दोगुना से भी ज्यादा हो गया है. अनुमान है कि साल 2030 तक यह वर्तमान 680 विमानों से बढ़कर 1,200 विमानों से अधिक हो जाएगा. फिर भी, कई छोटे हवाई अड्डों के शुरू न हो पाने से भारत की महत्वाकांक्षाएं धरातल पर ही अटक कर रह गई हैं.
एयरलाइनों पर हवाओं के थपेड़े
एयरलाइनों के विपरीत हवाओं से जूझने के कई कारण हैं. एलायंस एयर जैसी एयरलाइनें नए हवाई अड्डों पर रात में विमान उतारने की सुविधाओं की कमी, गड़बड़ मौसम और न्यूनतम ग्राउंड सपोर्ट का हवाला देती हैं. स्पाइसजेट और स्टार एयर विमानन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) की महंगी लागत और छोटे मार्गों पर घटती मांग की बात कहती हैं. एएआइ भी अब मानने लगा है कि कई टर्मिनल पूरे हो गए थे, मगर ''एयरलाइंस की रुचि न होने या रनवे तैयार न होने के कारण उड़ानों का संचालन शुरू नहीं हो सका.’’
मसलन, उत्तर प्रदेश के कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को ही लें. इसका उद्घाटन अक्तूबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. शुरू में, स्पाइसजेट ने उड़ान 4.0 के तहत दिल्ली-कुशीनगर मार्ग पर प्रति सप्ताह चार उड़ानें चलाईं. कोलकाता और मुंबई मार्ग भी आवंटित किए गए थे. मगर जल्द ही यह सेवा छिटपुट होकर रह गई और विमानों की कमी और कम मांग का हवाला देते हुए नवंबर 2023 में पूरी तरह बंद कर दी गई.
उम्मीद है कि अब एयरलाइन जनवरी 2026 में सहारनपुर के लिए 78 सीटों वाली उड़ानें शुरू करेगी. कुछ मार्ग नई फर्म जेटविंग्स को दिए गए हैं. मगर उसने अभी तक कोई पक्का वादा नहीं किया है.
विमानन सलाहकार फर्म कापा इंडिया के सीईओ कपिल कौल कहते हैं, ''उड़ान की उम्मीद में हवाई अड्डे बनाए गए हैं, मगर इस योजना के तहत खोले जा रहे रूट चल नहीं पा रहे. वह भी तब जब वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) पर आधा अरब डॉलर खर्च हो चुका है.’’ वीजीएफ के तहत एयरलाइनों को भुगतान किया जाता था जब एक घंटे की उड़ान वाली आधी सीटों पर उनके लिए 2,500 रु. की किराए की सीमा तय थी, तो उनके घाटे की भरपाई के लिए वीजीएफ दिया जाता था.
सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि अब तक 4,300 करोड़ रुपए की रियायत दी जा चुकी है. इसे तीन साल तक देना था. उसके बाद एयरलाइनों को ही उसकी पूरी लागत उठानी थी. अधिकांश एयरलाइन ऐसा नहीं कर सकतीं. इसलिए वह वित्तीय मॉडल एक जाल बनकर रह गया.
2023 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि उड़ान के पहले तीन चरणों में आवंटित 774 रूटों में से आधे से ज्यादा कभी शुरू नहीं हुए. जो 371 मार्ग शुरू हुए भी, उनमें से सिर्फ 112 ने रियायत की अवधि पूरी की. मार्च 2023 तक केवल 54 यानी आवंटित मार्गों में से 7 फीसद ही परिचालन जारी रख सके.
एयरलाइनों का तर्क है कि छोटे विमानों के लिए सरकार के समर्थन के बिना रकम का इंतजाम करना, खासकर कम यात्रियों वाले मार्गों के लिए, लगभग असंभव है. नाम न छापने की शर्त पर नागरिक उड्डयन के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ''वे सॉवरिन गारंटी चाहते हैं. हम उन्हें बताते हैं कि किसी मार्ग पर उड़ान की खातिर आशय पत्र ही रकम पाने के लिए पर्याप्त है, मगर वे चाहते हैं कि केंद्र विमान ऋण दिलाने की गारंटी ले. यह संभव नहीं है.’’

जिन छोटे ऑपरेटरों के पास पर्याप्त धन नहीं होता उन्हें अक्सर इन मार्गों पर टिकने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. मसलन, गुरुग्राम की एक छोटी एयरलाइन कंपनी फ्लाइबिग को स्पाइसजेट के प्रमोटर अजय सिंह से जुड़ी कंपनी स्काइहॉप को 19 उड़ान मार्ग हस्तांतरित करने पड़े हैं. इसके अलावा भी इस क्षेत्र को भारी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है. नए ऑपरेटर छोड़ गए तो मैसूरू, सेलम और शिमला जैसे शहरों के लिए महत्वाकांक्षी संपर्क टूट गया. बाद में सेवाएं जारी रखने के लिए इन मार्गों की फिर से नीलामी की गई, जिसमें जमी-जमाई कंपनियां शामिल हुईं, मगर उन्हें भी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
पहाड़ी और दूरदराज के इलाकों को जोड़ने की कोशिशों के तहत सरकार ने बाद के चरणों में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में उड़ान के दायरे में हेलिकॉप्टर मार्गों को भी शामिल किया. मगर यह योजना भी अधर में फंस गई. बाद में सीएजी ने पाया कि अधिकतर हेलिपोर्ट पर कम साधन थे और वे असुरक्षित थे. उनके लिए व्यवहार्यता अध्ययन जल्दबाजी में हुआ या हुआ ही नहीं. उत्तराखंड में हेलिकॉप्टर संचालन अब भी खतरनाक है. सिर्फ 2025 में, चार धाम मार्गों पर दो बड़ी दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 13 लोग मारे गए. उसका कारण सीधी-तीखी ढलान और मौसम में अचानक बदलाव बताया गया.
इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (आइएलएस) की कमी भी एक बड़ा कारण है जिसके चलते सिक्किम का पाक्योंग हवाई अड्डा जून 2024 से बंद पड़ा है. एएआइ के पूर्व अध्यक्ष वी.पी. अग्रवाल बताते हैं, ''छोटे उड़ान हवाई अड्डों पर आइएलएस की कमी है, जो उड़ान संचालन में उच्च दृश्यता के लिए जरूरी होता है. इस कारण उत्तर, पूर्व और पूर्वोत्तर के मार्गों पर अक्सर उड़ानें रद्द करनी पड़ती हैं.’’
किसकी जेब से?
समस्या यह है कि इन बंद हवाई अड्डों की असल लागत सरकारी खजाने से उठाई जाती है. ठप पड़े 20 'निष्क्रिय’ हवाई अड्डों के रखरखाव, बिजली और कर्मचारियों पर होने वाला नियमित खर्च सालाना 90 करोड़ रुपए से अधिक है. सीएजी ने अनुमान लगाया है कि उड़ान हवाई अड्डों और हेलिपोर्ट्स के विकास पर 1,089 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो कभी शुरू नहीं हुए या समय से पहले बंद हो गए. वह भी तब जब बीते एक दशक में एएआइ का परिचालन घाटा 10,853 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.
फिर भी, एएआइ के अध्यक्ष विपिन कुमार उत्साहित हैं. वे कहते हैं, ''हवाई अड्डा तैयार हो जाने के बाद वहां से उड़ानें संचालित होंगी ही, भले वे अभी चालू न हों. विमानन क्षेत्र में वृद्धि के साथ ये अड्डे भारत के घरेलू नेटवर्क के विस्तार में भी अहम भूमिका निभाएंगे.’’ कौल एक हद तक सहमत हैं, ''आखिरकार, इन हवाई अड्डों का संपर्क बनेगा और कुछ एयरलाइनें चलने में भी सफल हो जाएंगी. पर तब तक तो यह मुश्किल राह बनी रहेगी.’’
नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कहना है कि उड़ान योजना उद्देश्य के अनुरूप काम कर रही है. नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने मार्च में संसद में कहा, ''यह मांग-आधारित योजना है. एयरलाइंस ऐसे रूट चलाती हैं जो व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य हैं. सरकार बुनियादी ढांचा और प्रोत्साहन प्रदान करती है, मगर यह नियंत्रित नहीं करती कि किसी व्यवसाय को कैसे काम करना चाहिए.’’ अधिकारी यह भी बताते हैं कि बंद किए गए 114 रूटों में से 46 को फिर से बहाल किया गया. 26 को वीजीएफ रियायतों के साथ और 20 को बिना रियायत. जाहिर है कि यह मॉडल समय के साथ परिपक्व हो सकता है.
सरकार अब उड़ान 5.5 को आगे बढ़ा रही है जिसका लक्ष्य अगले दशक में 120 और जगहों को जोड़ना है. मगर विश्लेषक चेतावनी देते हैं कि इसमें पुरानी गलतियां दोहराने का जोखिम है. कापा के एक परामर्श में कहा गया है, ''जब तक क्षेत्रीय हवाई अड्डे पर्याप्त यातायात आकर्षित नहीं करते, वैमानिकी और गैर-वैमानिकी दोनों स्रोतों से राजस्व जुटाने की चुनौती बनी रहेगी.’’ परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी संसद की स्थायी समिति ने भी कहा है कि विशेष परिसंपत्ति के उपयोग के लिए एक विशिष्ट समाधान मॉडल तैयार किया जाए जिसमें खराब प्रदर्शन वाले हवाई अड्डों की कमियों का पता लगाया जाए और उनके वैकल्पिक विमानन उपयोग की संभावनाएं खोजी जाएं.
फिर से उड़ान
दरअसल, नीति निर्माता लगातार बेकार पड़ी संपत्तियों के इस्तेमाल या उन्हें फिर से उपयोगी बनाने पर ध्यान दे रहे हैं. उड़ान के तहत जहां छोटे क्षेत्रीय टर्मिनलों का जीर्णोद्धार किया जा रहा, वहीं बड़ी संपत्तियों को नेशनल मॉनेटाइजेशन पाइपलाइन के तहत निजी संस्थाओं को पट्टे पर दिया जा रहा है. दिल्ली के पास हिंडन में सिविल एनक्लेव को क्षेत्रीय संपर्क के लिए चालू कर दिया गया है.
यहां से अब नियमित वाणिज्यिक उड़ानें नांदेड़ और आदमपुर जैसे शहरों को जोड़ रही हैं. इसी तरह, तमिलनाडु का सलेम हवाई अड्डा उड़ान प्रशिक्षण संगठनों (एफटीओ) के लिए एक नई जगह बनकर उभरा है और यहां से चेन्नै के लिए सफलतापूर्वक परिचालन फिर शुरू हो गया है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी कहते हैं, ''आप उन्हें व्यावसायिक रूप से संचालित नहीं कर पा रहे तो कम से कम जरूरत पड़ने पर उपयोग लायक तो रखें.’’
यह पूरी तरह असफल भी नहीं, क्योंकि कुछ मार्गों पर अच्छी शुरुआत दिखी. जैसे बिहार का दरभंगा, जहां दिवाली और छठ के आसपास रिकॉर्ड तोड़ हवाई यातायात दिखा तथा सिर्फ एक माह में 522 उड़ानों में 76,000 यात्रियों ने सफर किया. जलगांव-मुंबई और झारसुगुड़ा-कोलकाता जैसे मार्ग सब्सिडी खत्म होने के बावजूद ऑपरेटरों को लाभ पहुंचा रहे हैं. विपिन कुमार कहते हैं, ''उड़ान ने आम आदमी के लिए हवाई यात्रा को सुलभ बना दिया है. आज हर कोई इसके बारे में सोच सकता है. यह आगे भी जारी रहेगा.’’ वैसे, असली परीक्षा यह होगी कि क्या ये हवाई अड्डे सब्सिडी के बजाए कभी बढ़ती मांग के कारण उड़ान संचालन की स्थिति में आ पाएंगे.
कमी की भरपाई-
- हवाई अड्डों/मार्गों को उनकी व्यवहार्यता का ठोस अध्ययन किए बगैर लॉन्च कर दिया गया, नतीजतन यातायात बेहद कम रहा, बुनियादी ढांचा पूरा नहीं हो सका और वे सरकारी रियायत पर निर्भर
- डेटा आधारित रूट वायबिलिटी मैट्रिक्स से यह तय किया जा सकता है कि यात्री संभावनाओं, सड़क/रेल विकल्प और स्थानीय आर्थिक गतिविधियों के हिसाब से कौन से हवाई अड्डे वाकई हवाई सेवा लायक हैं
- प्रस्तावित रूटों का समग्र रूप से मूल्यांकन होना चाहिए, बोलियां लगाने से पहले एयरलाइंस से कारोबार योजना मांगी जानी चाहिए

