दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने 5 नवंबर, 2025 को राष्ट्रीय प्रेस के सामने एक धमाकेदार आरोप लगाया था. उन्होंने घोषणा की कि भारतीय लोकतंत्र को 'चुरा लिया' गया है.
मतदाताओं से जुड़े आंकड़ों के हजारों पन्नों का हवाला देते हुए राहुल ने आरोप लगाया था कि भाजपा ने फर्जी, नकली और हटाए गए मतदाताओं को शामिल करते हुए एक 'केंद्रीयकृत अभियान' के जरिए 2024 के हरियाणा विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की जीत को हार में बदल दिया.
उन्होंने दावे के साथ कहा था कि भारतीय चुनाव आयोग ने भाजपा के साथ मिलकर काम करते हुए 'लोकतंत्र की व्यवस्थित चोरी' को अंजाम दिया.
हरियाणा का चिट्ठा
मूल दावा: हरियाणा के 2 करोड़ मतदाताओं में से करीब 25 लाख (12.5 फीसद मतदाता) के साथ हेरफेर की गई. तमाम एग्जिट पोल में कांग्रेस के 54-62 सीटें जीतने का अनुमान व्यक्त किया गया था. इसके बावजूद पार्टी राज्य भर में महज 1,18,000 वोटों और आठ निर्वाचन क्षेत्रों में मात्र 22,779 वोटों के कुल अंतर से हार गई.
कांग्रेस नेता ने अपने इस दावे के समर्थन में प्रमाण के तौर पर विस्तृत आंकड़े पेश किए कि भाजपा की हार को जीत में बदलने के लिए फर्जी वोटों की कारस्तानी की गई. उन्होंने चुनाव आयोग की तरफ से प्रमाणित पन्ने दिखाए जिनमें राई निर्वाचन क्षेत्र में ब्राजील की एक मॉडल की तस्वीर अलग-अलग नामों से 22 बार नमूदार हुई थी, और इसे फर्जी मतदान का सबसे सटीक उदारहण बताया.
उन्होंने ऐसे दस्तावेज भी पेश किए जिनमें 5,21,000 नकली मतदाताओं, 93,174 अवैध पतों (जिनमें से कई 'मकान नंबर जीरो' के तौर पर सूचीबद्ध थे), और हर पते पर 20 से ज्यादा लोगों वाले पतों पर दर्ज 19 लाख थोक मतदाताओं के होने की तरफ इशारा किया गया था.
राहुल ने मतदाताओं के एक से ज्यादा राज्यों में दोहराव का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि मथुरा जिले के भाजपा से जुड़े सरपंचों समेत हजारों मतदाता उत्तर प्रदेश और हरियाणा दोनों की मतदाता सूचियों में दर्ज थे. बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने दावे के साथ कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच 3,50,000 यानी करीब दो फीसद मतदाता हटा दिए गए.
चुनाव आयोग का खंडन
ठीक उसी तरह जैसे अगस्त में जब राहुल ने 2024 के आम चुनाव में कर्नाटक के महादेवपुर हिस्से (बेंगलूरू सेंट्रल लोकसभा सीट) के आंकड़ों का हवाला देते हुए वोटों में हेराफेरी का आरोप लगाया था, इस बार भी चुनाव आयोग के सूत्रों ने कुछ ही घंटों के भीतर ताजातरीन आरोपों को खारिज करने की कोशिश की.
उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा की मतदाता सूचियों के खिलाफ कोई भी अपील या औपचारिक आपत्ति दाखिल नहीं की गई थी. चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि राज्य के 90 निर्वाचन क्षेत्रों में केवल 22 चुनाव याचिकाएं पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में लंबित हैं. नतीजे घोषित होने के 45 दिनों के भीतर हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की जा सकती है.
इसके जवाब में राहुल ने ईसीआइ को मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज साझा करने की मांग की. आयोग इस मांग को मतदाता की निजता का हवाला देकर अब तक ऐसा करने से इनकार करता रहा है. केंद्र ने आयोग की सिफारिश पर दिसंबर 2024 में चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93(2) (ए) में संशोधन कर दिया. इसके तहत सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग डेटा और वीडियो रिकॉर्डिंग समेत चुनाव संबंधी दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से रोक दिया गया. विपक्षी दलों, पारदर्शिता के हिमायती कार्यकर्ताओं और संवैधानिक विशेषज्ञों ने इसे चुनावी पारदर्शिता के लिए झटका बताया.
राहुल ने आरोप लगाया कि आयोग का डेटा शेयर करने का सिस्टम मौका रहते उसकी जांच में बाधा डालता है. पार्टियों को मतदाता सूची ''आखिरी घड़ी में'' मिलती है, वह भी अलग-अलग हिस्सों में मतदान केंद्र के स्तर पर, जो मशीन के पढ़ने योग्य डेटा नहीं होते. हालांकि पार्टियों को जिला एजेंटों के जरिए पीडीएफ या डेटा सीडी दी जाती है और वे ईआरओ-नेट पोर्टल पर मतदान केंद्र स्तर पर बदलाव देख सकते हैं, लेकिन कई पूर्व चुनाव आयुक्तों का मानना है कि मशीन के पढ़ने योग्य डेटा से पारदर्शिता बढ़ सकती है.
ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि चुनाव आयोग को इन आरोपों को महज इसलिए नजरअंदाज नहीं कर देना चाहिए क्योंकि ये चुनाव से पहले नहीं लगाए गए. पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा कहते हैं, ''जिन उदाहरणों का जिक्र है, वे बिंदुवार जवाब देने के योग्य हैं. किसी भी दूसरी सफाई से आयोग की साख को ही चोट पहुंचेगी.''
एसआइआर का असमंजस
विडंबना यह है कि चुनाव आयोग मतदाता सूचियों का जो विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) करवा रहा है, और जिसका दूसरा दौर राहुल की प्रेस कॉन्फ्रेंस के एक दिन पहले शुरू हुआ, उसके पीछे मंसूबा ठीक इन्हीं मसलों को हल करना है. एसआइआर 2025 पहले बिहार में करवाया गया. यह वह अभियान है जिसमें दोहराव वाले, मृत, प्रवासी या अवैध मतदाताओं के नाम हटाए जाते और नए मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं.
बिहार में इस प्रक्रिया की बदौलत मतदाता सूचियों में 7.89 लाख से घटकर 7.42 लाख नाम रह गए. अब इसे 12 दूसरे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में करवाया जा रहा है, जिनमें तमिलनाडु, केरल, पुदुच्चेरी और पश्चिम बंगाल शामिल हैं जहां चुनाव होने हैं.
मगर जिसे चुनाव आयोग ऑडिट के तौर पर देखता है, कांग्रेस उसे हेराफेरी का औजार कहती है. राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बिहार के चार ऐसे लोगों को भी पेश किया जिनके नाम वैध दस्तावेज दिखाए जाने के बाद भी मतदाता सूचियों से हटा दिए गए. 2 नवबंर को 44 विपक्षी पार्टियों ने एसआइआर को 'लोकतंत्र-विरोधी' करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया.
राहुल हरियाणा में 'वोट चोरी' के मामले को अदालत में ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं. कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि कानूनी कार्रवाई समय खपाने की चाल है. लंबी कानूनी लड़ाई की जगह लोगों को जागरूक बनाने को प्राथमिकता दी जा रही है. पार्टी के एक महासचिव कहते हैं, ''हमने बिहार में एसआइआर को चुनौती लेकिन खास हासिल नहीं हुआ.'' राहुल ने हरियाणा और महाराष्ट्र की सरकारों को ''अवैध'' करार देते हुए जेन ज़ी से कार्रवाई करने की अपील की, जिससे बांग्लादेश और नेपाल के युवाओं के आंदोलन की याद ताजा हो गई.
फिलहाल कांग्रेस नेता के आरोपों ने चुनावी विश्वसनीयता के मर्म पर चोट की है, जबकि चुनाव आयोग की तरफ से दिए गए तर्क प्रक्रियागत औचित्य की दुहाई देते हैं. इन प्रतिस्पर्धी नैरेटिव के बीच एक ज्यादा बड़ा सवाल सिर उठा रहा है: जब रेफरी पर ही भरोसा विवाद के घेरे में हो, तो क्या लोकतांत्रिक आस्था कायम रह सकती है?
हरियाणा का अंधड़
> राहुल का आरोप है कि हरियाणा के 25 लाख मतदाता फर्जी हैं जिन्होंने भाजपा को 2024 का विधानसभा चुनाव जीतने में मदद की
> चुनाव आयोग ने कहा, कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली; कांग्रेस की दलील पूर्ण समीक्षा के लिए समय सीमा बहुत कम
> आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त बोले जांच पर खुद संज्ञान ले आयोग
> कांग्रेस बोली, विधिक उपाय कानूनी जंजाल, जनता की अदालत में जाएंगे
> राहुल के आरोप एसआइआर को वैधता देते हैं क्योंकि इसका मकसद भी मतदाता सूची साफ करना

