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प्रोटीन के नाम पर कंपनियां कहीं आपको उल्लू तो नहीं बना रहीं?

भारत का प्रोटीन-आधारित फूड मार्केट तेजी से बढ़ रहा है. सेहत को लेकर जागरूक होते ग्राहकों की मांग को देखते हुए बड़ी एफएमसीजी कंपनियां और कई स्टार्टअप बाजार में उतर चुके हैं.

प्रमुख प्रोटीन उत्पाद
प्रमुख प्रोटीन उत्पाद
अपडेटेड 19 नवंबर , 2025

जब मार्च 2024 में इन्फलुएंसर रेवंत हिमतसिंका, जिन्हें फूड फार्मर के नाम से जाना जाता है, ने इंस्टाग्राम पर एक पोल चलाया: ''आपकी डाइट में क्या कमी है?’’ 2,974 में से 70 फीसद लोगों का जवाब एक जैसा था: प्रोटीन. खान-पान की आदतों में खामोश बदलाव के साथ ही प्रोटीन सप्लीमेंट जिम जाकर डोले-शोले बनाने वालों तक की सीमित नहीं रह गया है. बैलेंस्ड डाइट चाहने वाले लाखों लोग अब जायके से किसी तरह का समझौता किए बगैर हेल्दी प्रोडक्ट की तलाश में हैं.

इस बदलाव के पीछे हेल्थ अवेयरनेस और बढ़ती आमदनी तो है ही, लेकिन असली ताकत सोशल मीडिया पर इप्फ्लुएंसर और सेलेब्रिटीज की है, जो प्रोटीन को अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बताकर लोगों को प्रेरित कर रहे हैं. योगा बार, ट्रूवी, द होल ट्रुथ, सुपरयू और प्रोटीन शेफ जैसे स्टार्टअप तो पहले से इस दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन अब बड़ी फूड कंपनियां भी इस रेस में हैं. बाजार में प्रोटीन वाले इडली, बिस्कुट, डेयरी प्रोडक्ट्स, ब्रेड, आइसक्रीम, कॉफी और यहां तक कि प्रोटीन वॉटर तक आ चुके हैं.

स्विगी पर अब दस लाख से ज्यादा प्रोटीन-रिच डिशेज लिस्टेड हैं, मैकडोनल्ड्स अपने बर्गर में प्लांट-बेस्ड प्रोटीन स्लाइस दे रहा है और नेस्ले ने बेसन मैगी लॉन्च की है. आज प्रोटीन जेन ज़ी, मिलेनियल और सीनियर्स के लिए मेनस्ट्रीम वेलनेस सॉल्यूशन बन चुका है. डेयरी, फल-सब्जियों और मुख्य भोजन की तरह, अब हाइ-प्रोटीन फूड एक पूरा एफएमसीजी कैटेगरी है और यह सबसे तेजी से बढ़ भी रहा है.

आंकड़े बहुत आकर्षक हैं. मार्केट रिसर्च फर्म आइएमएआरसी ग्रुप के मुताबिक, प्रोटीन आधारित उत्पादों का बाजार 2024 में 38,247 करोड़ रुपए का हो गया और 2033 तक इसके 1.36 लाख करोड़ रुपए का हो जाने की संभावना है, यानी यह 15.17 फीसद सीएजीआर (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) की दर से बढ़ेगा. लेकिन प्रोटीन फूड्स की जबरदस्त वृद्धि के पीछे न्यूट्रिशन से जुड़े तथ्य हैं—प्रोटीन की प्रकृति और भारतीयों का उसे लेना. 

प्रोटीन शरीर के लिए आवश्यक कई तरह के एमिनो एसिड से बने होते हैं. वे मांसपेशियों, हड्डियों, त्वचा और बाल समेत कोशिका और टिश्यू के महत्वपूर्ण घटक होते हैं. वे स्वस्थ शरीर के लिए नितांत आवश्यक होते हैं, और मांस, मछली, पोल्ट्री, डेरी उत्पाद, सूखे मेवे, बीन्स, दाल और कुछ हद तक अनाजों में पाए जाते हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (आइसीएमआर-एनआइएन) के मुताबिक, सेहतमंद व्यक्तियों को अपने वजन के प्रति किलोग्राम पर रोजाना 0.83 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए. इस तरह 60 किलोग्राम वजन के वयस्क को रोजाना करीब 50 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए.

भारत में रोज प्रोटीन का सेवन पिछले कुछ साल से बढ़ रहा है. हाउसहोल्ड कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर सर्वे 2023-24 से पता चलता है कि प्रति व्यक्ति रोजाना प्रोटीन का सेवन वित्त वर्ष 2010 में 58.8 ग्राम से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 63.4 ग्राम हो गया. दूसरी ओर, इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (आइसीआरआइएसएटी), इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिचर्स इंस्टीट्यूट (आइएपीआरआइ) और सेंटर फॉर इकोनॉमिक ऐंड सोशल स्टडीज (सीईएसएस) की ओर से फरवरी 2025 में प्रकाशित रिपोर्ट जारी की गई. रिपोर्ट के मुताबिक, देश के छह राज्यों में 785 परिवारों का सर्वेक्षण किया गया और पाया गया कि 80 फीसद परिवार प्रोटीन की सुझाई गई मात्रा से कम सेवन करते हैं.

इसकी बड़ी वजह यह है कि भारतीयों का 60-75 फीसद प्रोटीन सेवन अनाजों से आता है—ज्यादातर चावल और गेहूं से. लेकिन अनाजों में वे जरूरी एमिनो एसिड नहीं होते जो शरीर को चाहिए होते हैं. आइसीएमआर-एनआइएन के पूर्व डायरेक्टर डॉ. बी. शशिकरण कहते हैं, ''अनाज से मिलने वाले प्रोटीन की डाइजेस्टिबिलिटी सिर्फ 60 फीसद होती है. इसलिए कई लोगों में प्रोटीन की मात्रा सही होने के बावजूद क्वालिटी की कमी बनी रहती है.’’ वे सलाह देते हैं कि दालें, दूध, दही, मेवे, बीज और अंडे ज्यादा खाएं क्योंकि इनमें सभी जरूरी एमिनो एसिड मिलते हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर डाइट बैलेंस्ड हो तो अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन बिना सप्लीमेंट या प्रोसेस्ड फूड के भी मिल सकता है. जैसे एक अंडे में करीब 6 ग्राम प्रोटीन होता है, 100 ग्राम दही में 3-5 ग्राम और 250 मिली दूध में 7-9 ग्राम प्रोटीन होता है. लेकिन तेज रफ्तार शहरी ‌जिंदगी जीने वाले लोगों के लिए रोज एक जैसा खाना ज्यादा मात्रा में खाना मुश्किल होता है. यही वह गैप है जिसे भरने के लिए एफएमसीजी कंपनियां अब एक साथ मैदान में उतर आई हैं.

प्रोटीन प्रोडक्ट में डेयरी ब्रांड्स में दिख रही सबसे तेज ग्रोथ

पारंपरिक भोजन वालों के लिए अब आइटीसी का हाइ-प्रोटीन आटा है, जिसकी तीन रोटियां रोज की प्रोटीन जरूरत का 25 फीसद पूरा करने का दावा करती हैं. इसी तरह, अमूल, पराग मिल्क फूड्स और मिल्की मिस्ट जैसी कंपनियां प्रोटीन से भरपूर पनीर, दही और चीज को बढ़ावा दे रही हैं. अमूल, जो भारत का सबसे बड़ा एफएमसीजी ब्रांड है, इस साल 12 नए हाइ-प्रोटीन प्रोडक्ट लॉन्च करने की तैयारी में है—जिनमें चीज क्यूब्स, पनीर पराठा, प्रोटीन वॉटर, हाइ-प्रोटीन आटा और कोला बार जैसे आइटम शामिल हैं. अमूल (गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन या जीसीएमएमएफ) के एमडी जयेन मेहता के मुताबिक, अगले साल तक यह ब्रांड का प्रोटीन पोर्टफोलियो 25 प्रोडक्ट तक पहुंच जाएगा.

तमिलनाडु की डेयरी कंपनी मिल्की मिस्ट ने 200 ग्राम पैक में 50 ग्राम प्रोटीन वाला पनीर लॉन्च किया है, साथ ही स्कायर योगर्ट—जो आइसलैंड का पारंपरिक दही है—भारत में अब हर 100 ग्राम सर्विग में 12 ग्राम प्रोटीन दे रहा है. इसके अलावा, कर्नाटक मिल्क फेडरेशन की नंदिनी और आइडी फ्रेश ने हाइ-प्रोटीन इडली-डोसा बैटर उतारा है.

वास्तव में, प्रोटीन प्रोडक्ट में सबसे तेज ग्रोथ डेयरी ब्रांड्स में दिख रही है. ये कंपनियां सस्ते दाम में दही, छाछ और शेक जैसे प्रोडक्ट के जरिए आम उपभोक्ताओं तक प्रोटीन को पहुंचा रही हैं, जिनकी कीमत मात्र  25 रुपए से शुरू होती है. अमूल ने बढ़ती मांग को देखते हुए पिछले महीने अपने हाइ-प्रोटीन प्रोडक्ट की प्रोडक्शन क्षमता दोगुनी कर दी है और अगले महीने इसे फिर दोगुना करने की योजना है. कंपनी के मुताबिक, इन प्रोडक्ट की मासिक बिक्री पिछले साल के मुकाबले चार गुना हो चुकी है, हालांकि मेहता ने रेवेन्यू का आंकड़ा साझा नहीं किया.

वेंचर कैपिटल फर्म फायरसाइड वेंचर्स के पार्टनर आदर्श मेनन के मुताबिक, बिजनेस के नजरिए से देखें तो प्रोटीन मार्केट में सबसे आगे स्नैकिंग सेगमेंट है. इसके बाद महिलाओं और बुजुर्गों के लिए बने खास प्रोटीन प्रोडक्ट आते हैं, और फिर बाजरे के लडड्ड, इडली और डोसा बैटर जैसे पारंपरिक भारतीय खाद्य पदार्थों के फोर्टिफाइड वर्जन.

नील्सन की रिपोर्ट 'स्नैकिंग हैबिट्स’ (जून 2025) के मुताबिक, 'आपके लिए बेहतर’ स्नैक्स पारंपरिक स्नैक्स से 1.2 गुना तेजी से बढ़ रहे हैं. हर पांच में से एक स्नैक अब किसी न किसी सेहत से जुड़े फायदे को गिनाकर बेचा जा रहा है. अमूल के मेहता कहते हैं, ''मकसद है कि लोग अपनी रोज की डाइट में प्रोटीन को सस्ते और स्वादिष्ट तरीके से शामिल कर सकें. हमने तो हाइ-प्रोटीन कुल्फी तक लॉन्च की है ताकि लोग मीठा खाते हुए भी प्रोटीन की जरूरत पूरी कर सकें.’’

योगा बार जैसे हेल्थ फूड ब्रांड ने भी इस ट्रेंड को पहचान लिया है. 2014 में प्रोटीन एनर्जी बार से शुरू हुआ यह ब्रांड अब प्रीमियम से मेनस्ट्रीम कैटेगरी में बदल चुका है और अब टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी बिक रहा है. कंपनी बच्चों के लिए प्लांट-बेस्ड प्रोटीन पाउडर जैसी नई प्रोडक्ट लाइन पर काम कर रही है. आइटीसी इस ब्रांड को 2026 तक लगभग 500 करोड़ रुपए की कीमत पर अधिग्रहीत करने वाली है.

इसी तरह सुपरयू ने नवंबर 2024 में सिर्फ एक प्रोडक्ट प्रोटीन वेफर बार के साथ शुरुआत की थी. इसके को-फाउंडर निकुंज बियानी, जिन्होंने यह ब्रांड ऐक्टर रणवीर सिंह के साथ शुरू किया, कहते हैं, ''हम स्नैकिंग को नए सिरे से परिभाषित करना चाहते हैं: हाइ-कार्ब, हाइ-फैट प्रोडक्ट से हटकर, ऐसे ऑप्शंस की तरफ जो प्रोटीन से भरपूर और न्यूट्रिशनली बैलेंस्ड हों.’’ बियानी के मुताबिक, ''हमारी सोच साफ है. हमारे चिप्स और वेफर बार में फैट और कार्ब तो हैं, लेकिन साथ में भरपूर प्रोटीन भी है.’’

प्रोटीन की लेगेसी कैटेगरी अब भी व्हे पाउडर ही है, जो लंबे समय से लोकप्रिय है. व्हे यानी चीज बनाने के दौरान बचने वाला तरल हिस्सा, प्रोटीन का अच्छा सोर्स होता है. लेकिन व्हे पाउडर में प्रोटीन बहुत ज्याादा कंसंट्रेटेड होता है, जिससे डाइजेस्ट करने में मुश्किल होता है, जिससे पेट फूलने की समस्या हो सकती है.

योगा बार की को-फाउंडर सुहासिनी संपत बताती हैं कि इसी वजह से अब प्लांट-बेस्ड प्रोटीन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि इसे पचाना आसान होता है. आमतौर पर ये चना, सोया, मटर और मूंग से बने प्रोटीन आइसोलेट होते हैं, जिनसे फाइबर और मिनरल्स निकाल दिए जाते हैं ताकि सिर्फ 80-90 फीसद प्रोटीन वाला पाउडर बचे.

प्रोटीन प्रोडक्ट अभी भी कुछ हद तक महंगे हैं क्योंकि, जैसा कि थिंकिंग फोर्क्स (एक एफऐंडबी कंसल्टिंग फर्म) की रिंका बनर्जी बताती हैं, प्रोटीन आइसोलेट की कीमत 700 से 1,500  रुपए प्रति किलो तक होती है. अगर किसी बार में 10 ग्राम प्रोटीन देना है तो सिर्फ उसी प्रोटीन का खर्च कम से कम 5 रुपए बैठता है. हालांकि, बनर्जी का कहना है कि उनकी रिसर्च से पता चलता है कि ग्राहक हेल्दी ऑप्शंस के लिए 15-20 फीसद ज्यादा कीमत देने को तैयार हैं.

हमें ये बात ध्यान रखनी चाहिए

जब दूध, दही या पनीर जैसे रोजमर्रा के खाने में प्रोटीन जोड़ा जाता है, तो यह उनके पोषण स्तर को बढ़ाने का अच्छा तरीका हो सकता है. लेकिन चिंता तब बढ़ती है जब प्रोटीन को कुकीज, चॉकलेट, केक या कुल्फी जैसे जंक फूड में मिलाया जाता है, जो पहले से ही हाइ फैट, शुगर और सॉल्ट एचएफएसएस) वाले होते हैं. आइसीएमआर-एनआइएन की डायरेक्टर भारती कुलकर्णी कहती हैं, ''पब्लिक हेल्थ के नजरिए से देखें तो इन फूड में प्रोटीन मिलाने से उनका अस्वस्थ न्यूट्रिशनल प्रोफाइल नहीं बदलता.

इनका असली खतरा ज्यादा चीनी, सोडियम और सैचुरेटेड फैट में है, जिसे सिर्फ प्रोटीन जोड़कर खत्म नहीं किया जा सकता.’’
मसलन, प्रोटीन कुकी या प्रोटीन केक अब भी एचएफएसएस फूड ही रहते हैं, कैलोरी से भरपूर और ज्यादा खाने से मोटापा, टाइप-2 डायबिटीज और हार्ट डिजीज जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है. कुलकर्णी सलाह देती हैं कि ऐसे प्रोटीन-एन्हैंस्ड प्रोडक्ट लेते वक्त सिर्फ ''प्रोटीन कंटेंट’’ ही नहीं, बल्कि पूरे न्यूट्रिशन लेबल को ध्यान से पढ़ना चाहिए.

प्रोटीन पाउडर की बढ़ती लोकप्रियता पर कुलकर्णी कहती हैं कि इसकी जरूरत आमतौर पर नहीं होती, सिवाय कुछ खास मामलों में—जैसे हाइ-ट्रेनिंग वाले एथलीट या जिन लोगों को असल में प्रोटीन की कमी है. वे चेतावनी देती हैं कि प्रोटीन पाउडर का ज्यादा इस्तेमाल पाचन में दिक्कत, किडनी पर दबाव और न्यूट्रिएंट से भरपूर नेचुरल फूड की कमी जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है.

वे कहती हैं, ''यह बात खास तौर पर स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए सही है, क्योंकि उनकी रोज की प्रोटीन जरूरत सिर्फ 20-40 ग्राम होती है. अनाज, दाल, दूध, अंडे और मांस जैसे फूड से यह आसानी से पूरी हो सकती है. हेल्दी बच्चों के लिए प्रोटीन पाउडर की कोई जरूरत नहीं है और इसका नियमित इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.’’

जैसे-जैसे ग्राहक हाइ-प्रोटीन प्रोडक्ट की तरफ बढ़ रहे हैं, ब्रांडों ने भी उत्साह से इसका जवाब दिया है. लेकिन सिर्फ एक इनग्रीडिएंट के हाइप से आगे बढ़कर अब असली जरूरत सही खानपान की समझ की है. बात सिर्फ ज्यादा प्रोटीन लेने की नहीं, बल्कि सही तरह का खाना, सही तरीके से खाने की है. 

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