इस साल जुलाई तक पर्याप्त मॉनसूनी बारिश हो चुकी थी. इससे उत्साहित किसान खरीफ फसलों की बुवाई के लिए तैयारी कर रहे थे. इसी बीच मध्य प्रदेश के कुछ किसान केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने जा पहुंचे.
इन किसानों ने चौहान से यूरिया किल्लत की शिकायत तो की, इसके साथ एक और अजब दिक्कत साझा की. उनका कहना था कि खाद बेचने वाले यूरिया की कमी के बहाने उन्हें बायोस्टिमुलेंट खरीदने को मजबूर कर रहे हैं.
किसानों के मुताबिक उनसे कहा जा रहा था कि यूरिया तभी मिलेगी जब इसके साथ बायोस्टिमुलेंट खरीदेंगे. बायोस्टिमुलेंट बनाने वाली कंपनियां दावा करती हैं कि ये खेती के लिए एक तरह के 'जादुई बूस्टर' हैं (देखें बॉक्स: बायोस्टिमुलेंट क्या हैं).
उर्वरकों की आपूर्ति में कृषि मंत्रालय की भूमिका सिर्फ वार्षिक जरूरतों का प्लान देने भर की है. बाकी का काम केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय का है. इसके बावजूद चौहान ने दखल दिया. 13 जुलाई को उन्होंने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहा, ''किसानों को जबरदस्ती बायोस्टिमुलेंट और नैनो यूरिया थोपना बर्दाश्त नहीं होगा! यह अवैध है और तुरंत रुकना चाहिए.
सब्सिडी वाले उर्वरकों के साथ बंडल्ड सेलिंग (खाद के साथ बायोस्टिमुलेंट की बिक्री) बंद हो, वरना सख्त कार्रवाई होगी. यह किसानों का शोषण है, जो खेती को बर्बाद कर देगा.'' चौहान ने सार्वजनिक तौर पर खुलकर कहा कि खुदरा दुकानदार किसानों को लूट रहे हैं और सस्ता यूरिया लेने के बहाने महंगे बायोस्टिमुलेंट खरीदने पर मजबूर कर रहे हैं. चौहान का यह आक्रामक रुख सिर्फ पत्र तक सीमित न रहा. अगले ही दिन यानी 14 जुलाई को उन्होंने राज्यों को तुरंत 'फोर्स्ड टैगिंग (जबर्दस्ती बिक्री)' बंद करने का आदेश दिया.
जबरन बायोस्टिमुलेंट बेचने का खेल सिर्फ मध्य प्रदेश में ही नहीं चल रहा. बल्कि कई राज्यों में पिछले दो-तीन साल में यह समस्या बढ़ी है. इस दौरान देश भर के किसानों ने कभी यूरिया की तो कभी डीएपी की किल्लत का सामना किया है. इसका ही फायदा खाद बेचने वाले उठाते रहे हैं.
हरियाणा के भिवानी के एक किसान शिवकुमार बताते हैं, ''हमारे यहां के किसान अपेक्षाकृत जागरूक हैं. लेकिन यहां भी खाद बेचने वालों ने खाद की किल्लत का फायदा उठाया. इस बात का स्थानीय स्तर पर विरोध हुआ लेकिन हुआ कुछ नहीं. स्थिति ऐसी बन गई कि अगर खाद चाहिए तो बायोस्टिमुलेंट लेना ही पड़ेगा.'' पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के अलग-अलग किसानों से बात करने पर भी यही कहानी पता चलती है.
इन शिकायतों पर मध्य प्रदेश के सीहोर के एक बड़े खाद विक्रेता अपना पक्ष कुछ इस तरह रखते हैं, ''हमारी समस्या कोई नहीं समझ रहा. नैनो उर्वरक हमें बंडल्ड इसलिए बेचना पड़ता है क्योंकि बड़ी खाद कंपनियां ही इन्हें बना रही हैं और वे हमें बंडल्ड ही बेच रही हैं. कुछ बायोस्टिमुलेंट खाद कंपनियां ही बना रही हैं तो कुछ का वितरण खाद वितरण करने वाले लोगों के पास है. ये हमें भी मजबूर करके बंडल्ड आपूर्ति कर रहे हैं. ऐसे में हम जैसे खाद विक्रेताओं का पास खाद के साथ इन्हें बेचने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता.''
बायोस्टिमुलेंट को लेकर विवाद सिर्फ इस बात पर नहीं था कि इन्हें खाद के साथ बंडल्ड बेचा जा रहा है. बल्कि इन्हें बनाने में कच्चे माल के तौर पर किन चीजों का इस्तेमाल हो रहा है, इसे लेकर भी कुछ समूहों की धार्मिक और आस्था संबंधित आपत्तियां थीं. इन शिकायतों को लेकर कुछ समूह कृषि मंत्रालय पहुंचे. हिंदू एवं जैन समाज के कुछ समूहों ने यह आपत्ति जताई कि इन बायोस्टिमुलेंट को बनाने में पशु स्रोत वाले चीजों का बतौर रॉ मटेरियल इस्तेमाल किया जाता है.
इनका तर्क था कि ये उत्पाद धार्मिक आस्था, खान-पान से जुड़े परहेज और सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ हैं. उदाहरण के लिए जैन धर्म में अहिंसा का सिद्धांत है और ऐसे लोग पशु-उत्पादों के उपयोग को लेकर आपत्ति जता रहे थे. इसके बाद बीते 30 सितंबर को कृषि मंत्रालय ने 11 पशु-आधारित बायोस्टिमुलेंट की मंजूरी रद्द कर दी. ये उत्पाद मुर्गे के पंख, गाय की खाल, सुअर के टिश्यू और मछली की त्वचा जैसे पशु स्रोतों से बने थे.
इस पाबंदी के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या धार्मिक चिंताएं, वैज्ञानिक आधार और किसान हितों पर भारी पड़ गए? दरअसल वैज्ञानिकता और किसानों को इससे होने वाले लाभों को आधार बनाकर ही इन बायोस्टिमुलेंट को पहले उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) की अनुसूची-6 में शामिल किया गया था. केंद्र सरकार जब किसी उत्पाद को इस सूची में शामिल करती है, तभी उसे देश में बेचा जा सकता है. अब केंद्र सरकार ने अपना ही निर्णय पलट दिया है.
उर्वरक कंपनियों के लोग ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में यह दावा कर रहे हैं कि इस कदम से भारत में उर्वरक क्षेत्र में इनोवेटिव उत्पाद बनाने की कोशिशों को झटका लगेगा. गुजरात स्थित एक निजी कंपनी के कर्ताधर्ता कहते हैं, ''एक तरफ तो सरकार हमें कहती है कि भारत की स्थानीय जरूरतों के हिसाब से स्वदेशी उत्पाद विकसित करो. लेकिन बायोस्टिमुलेंट पर जिस तरह का कदम उठाया गया, उससे उद्योग जगत में यह संदेश गया कि अगर वे इनोवेशन में ज्यादा निवेश करते हैं तो उनका यह निवेश हमेशा जोखिम में रहेगा.
अगर इन बायोस्टिमुलेंट्स के कच्चे माल के स्रोत को लेकर सरकार को कोई आपत्ति थी तो यह बात एफसीओ में शामिल किए जाने से पहले ही सामने आनी चाहिए थी. मंजूरी रद्द होने से कंपनियों का स्टॉक अटक गया. अब इनकी भरपाई कौन करेगा?''
बीते कुछ वर्षों में भारत में बायोस्टिमुलेंट का कारोबार काफी तेजी से बढ़ा है. अनुमान है कि 2024 में इसका आकार 35.55 करोड़ डॉलर का था. उम्मीद लगाई जा रही थी कि 2025 में इसमें 20 फीसदी की बढ़ोतरी होगी. लेकिन सरकार के हालिया निर्णय से बायोस्टिमुलेंट उद्योग सकते में है. कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगाने के लिए धार्मिक भावनाओं के साथ ही वैज्ञानिक तथ्यों को भी आधार बनाया है. वे कहते हैं, ''भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों के कुछ अध्ययनों में भी बायोस्टिमुलेंट के प्रभावों को लेकर चिंता जताई गई है.
केंद्रीय कृषि मंत्री ने इन वैज्ञानिकों से विचार-विमर्श करके ही यह निर्णय लिया है.'' उद्योग जगत की चिंताओं पर वे कहते हैं कि हम बायोस्टिमुलेंट के स्रोत को लेकर सवाल उठा रहे हैं, उद्योग जगत के लिए ऐसी कोई बाध्यता तो है नहीं कि उन्हें सिर्फ एनीमल बेस्ड बायोस्टिमुलेंट ही बनाने हैं, प्लांट बेस्ट बायोस्टिमुलेंट भी बेहद प्रभावी हैं, उन्हें इन पर ज्यादा जोर देना चाहिए.
खरीफ का सीजन तो बीत गया, अब रबी की फसलों की बुवाई के समय ही यह साफ हो पाएगा कि कंपनियों की जोर-जबर्दस्ती और बायोस्टिमुलेंट की जरूरत के बीच किसान कहां संतुलन बिठा पाते हैं.
क्या हैं बायोस्टिमुलेंट?
> बायोस्टिमुलेंट बनाने वाली कंपनियों का दावा है कि ये खेती के लिए एक तरह के 'जादुई बूस्टर' हैं. ये पौधों को मजबूत बनाकर तेजी से बढऩे में मदद करते हैं. ये पौधों को सीधे पोषण नहीं देते, जैसे उर्वरक देते हैं. ये पौधे को खुद ही मिट्टी से पोषण सोखने की ताकत देते हैं.
> बायोस्टिमुलेंट पौधों को तनाव झेलने की क्षमता देते हैं. विशेषज्ञों का दावा है कि इनके इस्तेमाल से फसल ज्यादा अच्छी आती है. धान और टमाटर के बारे में माना जाता है कि इनके इस्तेमाल से फसल की उत्पादकता 10 से 15 फीसद तक बढ़ जाती है. दावा तो यह भी है कि ये मिट्टी को भी स्वस्थ रखते हैं ताकि बार-बार उर्वरक न डालना पड़े.
> आम तौर पर ये प्राकृतिक चीजों से बनते हैं. बैक्टीरिया वाले बायोस्टिमुलेंट जड़ों को ताकत देते हैं. समुद्री शैवाल के अर्क से बनने वाले बायोस्टिमुलेंट पौधे के हार्मोन को संतुलित बनाते हैं. पशुओं या पौधे के बचे अवशेषों से बनने वाले बायोस्टिमुलेंट फसलों के विकास की गति तेज करते हैं. इन्हीं को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है. अमीनो एसिड वाले बायोस्टिमुलेंट मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं.

