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रिजर्व बैंक डॉलर को किनारे कर रुपए को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कैसे दे रहा मजबूती?

भारतीय रिजर्व बैंक के हाल के उपायों का मकसद भारतीय रुपए को अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेनदेन में बड़ी भूमिका के लिए तैयार करना है. इस राह में वैसे कई बड़ी चुनौतियां

इलस्ट्रेशन: राज वर्मा
अपडेटेड 18 नवंबर , 2025

अब भारतीय रुपया दुनिया के बड़े मंच पर कदम रख रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का इरादा साफ है: 1 अक्तूबर को मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कुछ नए उपायों का ऐलान किया, जिनका मकसद है अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विदेशी निवेश और वित्तीय लेनदेन में रुपए के इस्तेमाल को बढ़ाना. ये उपाय रिजर्व बैंक की उस रणनीति का हिस्सा हैं जिसमें वह धीरे-धीरे रुपए को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाना चाहता है.

इसका बड़ा मकसद है कि भारत अमेरिकी डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर अपनी निर्भरता कम करे. रिजर्व बैंक के ये फैसले उस माहौल में आए हैं जब ब्रिक्स देश भी डॉलर पर अपनी पकड़ ढीली करने की कोशिश में हैं. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस कदम के खिलाफ हैं और उन्होंने चेतावनी दी है कि ऐसे कदम उठाने वाले देशों पर व्यापारिक पाबंदियां लगाई जा सकती हैं.

मल्होत्रा ने रुपए को ग्लोबल स्तर पर ले जाने के लिए तीन बड़े उपाय सुझाए हैं. पहला, अब अधिकृत डीलर बैंक भूटान, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों के गैर-निवासियों को रुपए में लोन दे सकेंगे ताकि व्यापार से जुड़े लेनदेन आसानी से हो सकें. इससे पड़ोसी देशों के साथ रुपए में व्यापार को बढ़ावा मिलेगा. दूसरा उपाय है भारत के बड़े व्यापारिक साझेदार देशों की मुद्राओं के लिए पारदर्शी रेफरेंस रेट तय करना, जिससे रुपए में लेनदेन आसान होगा. इससे कीमतें ज्यादा स्थिर रहेंगी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इनवॉइसिंग और पेमेंट के लिए रुपए का इस्तेमाल बढ़ेगा.

तीसरा उपाय है स्पेशल रुपी वोस्त्रो अकाउंट (एसआरवीए) के इस्तेमाल को बढ़ाना. अभी ये खाते स्थानीय मुद्रा में ट्रेड सेटलमेंट के लिए इस्तेमाल होते हैं लेकिन अब इन पैसों को कॉर्पोरेट बॉन्ड और कमर्शियल पेपर्स में निवेश के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा. वोस्त्रो अकाउंट दरअसल ऐसा बैंक खाता होता है जिससे विदेशी बैंक भारत के किसी स्थानीय बैंक के जरिए लेनदेन, भुगतान और व्यापार से जुड़े काम कर सकते हैं.

यूपीआइ की ताकत

आमतौर पर जो कंपनियां आयात-निर्यात करती हैं, वे अपने लेनदेन की रकम चार बड़ी अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं में चुकाती हैं: अमेरिकी डॉलर, जापानी येन, ब्रिटिश पाउंड और यूरो. विदेशी मुद्रा बाजार यानी फॉरेक्स में करेंसी जोड़े में ट्रेड होती हैं, जैसे अमेरिकी डॉलर/जापानी येन या यूरो/अमेरिकी डॉलर. इन जोड़ों के बीच जो एक्सचेंज रेट तय होता है, वही बताता है कि एक मुद्रा खरीदने के लिए दूसरी की कितनी जरूरत पड़ेगी और यही अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक बड़ा फैक्टर होता है. अमेरिकी डॉलर अब भी दुनिया की सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली करेंसी है. इसकी पकड़ इसलिए भी मजबूत है क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का आकार और उसकी वित्तीय साख बाकी देशों से ज्यादा है. 2024 की दूसरी तिमाही तक दुनिया के तमाम सेंट्रल बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेक्स रिजर्व) का आधे से ज्यादा हिस्सा डॉलर में रखा गया था.

इस बीच भारत ने अपने घरेलू डिजिटल पेमेंट सिस्टम यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) को सरहदों के पार ले जाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. रुपए में होने वाले डिजिटल लेनदेन के लिए बना यूपीआइ अब संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के 'आनी' (इंस्टैंट पेमेंट) प्लेटफॉर्म से जोड़ा जा रहा है, ताकि क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट्स आसान और तुरंत हो सकें. इस व्यवस्था के बाद यूएई में रहने वाले भारतीय अपने अंतरराष्ट्रीय मोबाइल नंबर और बैंक खातों से सीधे भारत में पैसे भेज या पा सकेंगे. वहीं यूएई के व्यापारी अब क्यूआर कोड के जरिए भारतीय ग्राहकों से सीधे यूपीआइ पेमेंट स्वीकार कर सकेंगे.

रुपए को वैश्विक बनाने की कोशिश कोई नई नहीं है. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने 2013 में कहा था कि जैसे-जैसे भारत का व्यापार बढ़ेगा, वैसे-वैसे रुपए में लेनदेन करने की जरूरत भी बढ़ेगी. 2021 की रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि रुपए का अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनना अब लगभग तय है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि अगर रुपए का अंतरराष्ट्रीय इस्तेमाल बढ़ा तो सीमापार व्यापार और निवेश के खर्च कम होंगे क्योंकि इससे करेंसी के उतार-चढ़ाव का जोखिम घटेगा. इसके बाद रिजर्व बैंक ने भारतीय बैंकों को स्पेशल वोस्त्रो अकाउंट खोलने की अनुमति दी, ताकि रुपए में व्यापारिक लेनदेन किए जा सकें. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कई रूसी बैंकों ने भारतीय बैंकों में ऐसे खाते खोले, जिससे भारतीय कंपनियां रूस से तेल खरीदने के लिए रुपए में भुगतान कर सकें, और भारतीय निर्यातकों को भी रुपए में ही पैसे मिलें.

दुनिया के मंच पर रुपया

बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस के मुताबिक, ''रिजर्व बैंक का ताजा कदम अब भारतीय मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को संभव बनाता है. जो लोग भारत से रुपए में भुगतान पाएंगे, वे उसी रुपए का इस्तेमाल भारत के साथ आगे के व्यापार में कर सकेंगे.'' अंतरराष्ट्रीय ट्रेड में रुपए के ज्यादा इस्तेमाल से भारतीय कंपनियों को फायदा होगा. इससे करेंसी के उतार-चढ़ाव का असर कम पड़ेगा, कारोबारी खर्च घटेगा और भारतीय निर्यात ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनेंगे. नई दिल्ली स्थित काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के प्रोफेसर बिस्वजीत धर के मुताबिक, अगर भारत के व्यापार का बड़ा हिस्सा रुपए में किया जाने लगे, तो देश को विदेशी मुद्रा भंडार ज्यादा रखने की जरूरत कम पड़ेगी.

लेकिन रुपए को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की राह आसान नहीं है. दो बड़ी चुनौतियां सामने हैं. पहली, रुपए में व्यापारिक समझौते को लागू करना आसान नहीं होता. इसकी सबसे बड़ी मिसाल है भारत और रूस के बीच कारोबार. प्रोफेसर धर के मुताबिक, ''भारत के बढ़ते व्यापार घाटे की वजह से रूस के पास रुपए की बड़ी रकम फंसी हुई है, और यही एक बड़ी रुकावट बन गई है.'' दूसरी दिक्कत यह है कि अगर कोई देश अपनी मुद्रा को वैश्विक बनाना चाहता है, तो जब तक कि देश का वित्तीय बाजार मजबूत न हो तब तक उसके लिए करेंसी रेट को स्थिर रखना मुश्किल हो सकता है.

इन चुनौतियों के बावजूद, रिजर्व बैंक के ताजा कदम एक अहम शुरुआत हैं, जो धीरे-धीरे रुपए को दुनिया की प्रमुख मुद्राओं के बीच भरोसेमंद पहचान दिलाने की दिशा में बढ़ रहे हैं.

रुपए की वकत बढ़ाने के कदम

अब अधिकृत बैंक भूटान, नेपाल और श्रीलंका के गैर-निवासियों को रुपए में लोन दे सकेंगे, ताकि व्यापार से जुड़े लेनदेन आसान हों.

भारत के बड़े व्यापारिक साझीदार देशों की मुद्राओं के लिए पारदर्शी रेट तय किए जाएंगे, ताकि रुपए की कीमत स्थिर रहे और वैश्विक व्यापार में उसका प्रयोग बढ़े.

एसआरवीए अकाउंट में रखे पैसों के प्रयोग का दायरा बढ़ाया जाएगा. इन्हें कॉर्पोरेट बॉन्ड और कमर्शियल पेपर्स में निवेश के लिए प्रयोग किया जा सकेगा. इन खातों का इस्तेमाल अभी सिर्फ स्थानीय मुद्रा में व्यापार के लिए होता है.

भारत ने अपने घरेलू डिजिटल पेमेंट सिस्टम यूपीआइ को सरहद पार ले जाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. इसे अब यूएई के 'आनी' (इंस्टैंट पेमेंट) प्लेटफॉर्म से जोड़ा जा रहा है, ताकि सीमापार लेनदेन तेज और आसान हो.

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