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विकसित भारत के सपने को कैसे साकार कर रही सहकारिता?

बीते चार साल में सहकार मंत्रालय के गठन के बाद सहकारिता क्षेत्र कामयाबी की नई कहानी लिखी जा रही है, लेकिन इसमें मौजूद कुछ पुरानी समस्याओं का अब भी समाधान करना जरूरी है

सहकारिता सम्मेलन में महिला प्रतिनिधियों के साथ सहकारिता मंत्री अमित शाह
अपडेटेड 5 नवंबर , 2025

अधिकांश लोग अमित शाह को केंद्रीय गृह मंत्री के तौर पर जानते हैं. आजादी के तकरीबन 74 वर्ष बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया तो इसकी जिम्मेदारी भी अमित शाह को ही मिली. राजनैतिक विश्लेषकों ने शाह को इसकी जिम्मेदारी दिए जाने को नए-नवेले मंत्रालय के महत्व से जोड़कर देखा.

शाह ने 24 जुलाई को नई दिल्ली में राष्ट्रीय सहकारिता नीति, 2025 के लॉन्च के अवसर पर कहा, ''बीते चार साल में कोऑपरेटिव सेक्टर हर पैमाने पर कॉर्पोरेट क्षेत्र की तरह समानता के आधार पर खड़ा है...एक समय में लोग कहते थे कि 'सहकारिता का फ्यूचर नही है', आज मैं कहता हूं कि सहकारिता का ही फ्यूचर है.''

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई सहकारिता क्षेत्र ने बीते चार साल में अपनी वापसी की शानदार पटकथा लिखी है? हाल के दिनों में सहकारिता क्षेत्र में हुए बदलावों की वजह से केंद्र सरकार इसे सहकारिता 2.0 कह रही है. भारत में सहकारी समितियों का एक समृद्ध इतिहास रहा है. लेकिन अतीत के सहकारिता आंदोलन की कई समस्याएं भी रही हैं. इनमें क्षेत्रीय असमानता से लेकर राजनैतिक हस्तक्षेप और निजी लाभ के लिए सहकारी संस्थाओं का उपयोग शामिल है. सहकारी क्षेत्रों के विशेषज्ञ मानते हैं इन्हीं वजहों से भारत में सहकारिता की धारा कमजोर पड़ी थी.

तो फिर सहकारिता पर इतना जोर क्यों? इस बारे में केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, ''गुजरात में अपने राजनैतिक जीवन के शुरुआती दिनों से ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह सहकारी संस्थाओं की राजनीति में शामिल रहे हैं. वहां उन्होंने जो अपनी और पार्टी की राजनैतिक पूंजी तैयार की, उसमें सहकारिता की प्रमुख भूमिका रही. इसलिए जब यह जोड़ी केंद्र की सत्ता में आई तो देश भर के सहकारिता क्षेत्र में सुधारों का दौर शुरू हुआ.''

बीते कुछ समय से प्रधानमंत्री मोदी के कई भाषणों में सहकारिता में सुधार का यह स्वर लगातार दिख रहा है. उन्होंने 25 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली में वैश्विक सहकारी सम्मेलन, 2024 का उद्घाटन करते हुए कहा, ''दुनिया के लिए कोऑपरेटिव एक मॉडल है लेकिन भारत के लिए कोऑपरेटिव्ज संस्कृति का आधार हैं, जीवन शैली हैं. संघ और सह, ये भारतीय जीवन के मूल तत्व हैं. हमारे यहां फैमिली सिस्टम का भी यही आधार है और यही तो कोऑपरेटिव्ज का भी मूल है.''

मंत्रालय के गठन के बाद सहकारिता क्षेत्र की दशा-दिशा बदलने केलिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए. प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के स्तर पर डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया गया. केंद्र सरकार ने दुनिया के पहले सहकारिता विश्वविद्यालय के तौर पर त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय (टीएसयू) की शुरुआत की. टीएसयू का उद्देश्य सहकारी प्रबंधन, वित्त, कानून, ग्रामीण विकास आदि विषयों में डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट और पीएचडी कार्यक्रम संचालित करना है. हाल में राज्यों के सहकारिता मंत्रियों की बैठक की अध्यक्षता करते हुए शाह ने उनसे राज्य स्तर पर सहकारी शिक्षा संस्थान स्थापित करने और इसे टीएसयू से संबद्ध करने का आग्रह किया. 

मंत्रालय ने 24 जुलाई, 2025 को राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025 लॉन्च की, जो 2002 की पुरानी नीति की जगह लेगी. शाह ने इसे लॉन्च करते समय नई नीति के राजनैतिक महत्व को रेखांकित किया: ''जब पहली सहकारिता नीति 2002 में आई थी, उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी और अब जब नई सहकारिता नीति आई है, तब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है.'' नई नीति 'सहकार से समृद्धि' के विजन को मजबूत करने और सहकारी क्षेत्र को जीडीपी में तीन गुना योगदान देने का लक्ष्य हासिल करने की बात कहती है (देखें: सहकारिता नीति के मुख्य प्रावधान). यह नीति 2025 से 2045 तक प्रभावी रहेगी. इस नीति की ड्राफ्टिंग पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता वाली 40 सदस्यों वाली समिति ने की है.

मंत्रालय ने बहु-राज्य सहकारी समितियों के कामकाज में सुधार लाने के लिए नीतिगत सुधार किए हैं. इसके लिए 2023 में संबंधित कानून में संशोधन किया गया. इन सुधारों के माध्यम से तकरीबन 1,500 मल्टी-स्टेट सहकारी संस्थाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और डिजिटाइजेशन की पहल की गई है. ये समितियां मुख्य तौर पर डेयरी, बैंकिंग, चीनी उत्पादन और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं. इनका कारोबार हजारों करोड़ रुपए का है और लाखों सदस्य इनसे जुड़े हैं.

नए संशोधनों के तहत चुनाव की प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाने के लिए एक स्वतंत्र चुनाव प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान किया गया. सदस्यों की शिकायतों का निवारण करने के लिए 'ओम्बुड्समैन' तंत्र का गठन किया गया. संकटग्रस्त सहकारी समितियों को पुनर्जीवित करने के लिए एक विशेष फंड बनाया गया. ऐसी सहकारी समितियों के बोर्ड में पेशेवरों और विशेषज्ञों को शामिल करने का प्रावधान किया गया ताकि निर्णय-प्रक्रिया गुणवत्तापूर्ण हो. साथ ही बोर्ड में महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के उपाय भी किए गए. 

इसी तरह पैक्स को सहकारी अभियान के जमीनी स्तर पर नोडल केंद्र के तौर पर विकसित किया जा रहा है. पैक्स के लिए मॉडल बाइलॉज तैयार किए गए हैं ताकि राज्यों के बीच नीतिगत एकरूपता हो सके. पैक्स के कंप्यूटराइजेशन, डेटा बेस निर्माण, ऑनलाइन लेनदेन एवं रिपोर्टिंग प्रणाली को सशक्त बनाने की दिशा में भी काम हुआ है. अब स्थिति यह है कि पैक्स सिर्फ खेती के लिए कर्ज देने वाले केंद्र नहीं रहे बल्कि उन्हें विभिन्न ग्रामीण विकास की गतिविधियों में शामिल किया जा रहा है. 

बीते कुछ समय से सहकारिता का विस्तार नए क्षेत्रों में भी किया जा रहा है. सहकारी समूह अब सिर्फ कृषि, डेयरी, मछली पालन तक सीमित नहीं हैं बल्कि वे रसोई गैस एजेंसी चला रहे हैं और पेट्रोल पंप भी. वहीं सहकारी संस्थाएं जेनरिक दवाएं उपलब्ध कराने वाले प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र खोल रहे हैं. सरकार सहकार टैक्सी शुरू करने की योजना बना रही है. इनके अलावा पर्यटन, बीमा और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में भी सहकारिता का विस्तार हो रहा है.

इन बदलावों पर सहकारिता क्षेत्र के दिग्गज और दुनिया की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारी समिति इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) के चेयरमैन दिलीप संघानी इंडिया टुडे से बातचीत में कहते हैं, ''पिछले चार वर्ष में देश भर में सहकारिता क्षेत्र में एक पॉजिटिव मोमेंटम दिख रहा है. आज सहकारी समितियां उन क्षेत्रों में काम कर रही हैं, जहां पहले कभी नहीं पहुंच पाई थीं.'' वे राष्ट्रीय सहकारिता नीति, 2025 के निर्माण के लिए गठित समिति के भी सदस्य रहे हैं.

नेफेड के अध्यक्ष जेठाभाई अहीर के मुताबिक, ''सहकारिता से समृद्धि का मूल मंत्र गांव-गांव पहुंच चुका है. सहकारिता डेटाबेस, महिला सहकारिता मंच, डेयरी और मत्स्य सहकार को नई उर्जा मिली है. अब सहकारिता केवल नीति नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण का आधार है.'' आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में तकरीबन 30 लाख सहकारी समितियां हैं. इनमें से तकरीबन 8.4 लाख, यानी एक चौथाई से ज्यादा अकेले भारत में हैं. दुनिया की करीब 12 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में कोऑपरेटिव से जुड़ी है और भारत के 32 करोड़ से ज्यादा लोग सहकारी संस्थाओं के सदस्य हैं. यानी हर नौ में से दो व्यक्ति सहकारिता का हिस्सा है. ग्रामीण भारत के तकरीबन 90 फीसदी हिस्से को सहकारी संस्थाएं कवर करती हैं.

हालांकि, भारत का सहकारिता क्षेत्र अपनी जिन पुरानी समस्याओं से पीडि़त रहा है, उनके संपूर्ण समाधान की राह अब भी लंबी दिख रही है. इनमें क्षेत्रीय असमानता सबसे बड़ी समस्या है. गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सहकारी संरचनाएं मजबूत हैं लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों और पूर्वी भारत के राज्यों जैसे बिहार, झारखंड और ओडिशा में सहकारी समितियों की सक्रियता, सदस्यता, शासन और वित्तीय हालत अपेक्षाकृत कमजोर है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन असमानताओं को दूर नहीं किया गया तो सहकारिता 2.0 का विकास असंतुलित रहेगा.

कृषि उत्पादों की मार्केटिंग में सक्रिय देश के एक प्रमुख सहकारी संस्था के चेयरमैन सहकारिता क्षेत्र की चिंताओं के बारे में नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, ''राज्यों में सहकारी विभागों में काफी सुधार की जरूरत है. उनके पास वित्तीय और मानव संसाधन की कमी है. स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण और निगरानी का ढांचा कमजोर है. नीतिगत घोषणाएं तो हो रही हैं लेकिन उनका समयबद्ध क्रियान्वयन बहुत बड़ी चुनौती है. सहकारी समितियों में लंबे समय से चले आ रही समस्याओं जैसे समितियों के पदों पर एक ही परिवार के लोगों का काबिज रहना, अकाउंट्स और वित्तीय प्रबंधन में पारदर्शिता का अभाव और सदस्यों की सक्रिय भागीदारी कम होने जैसी समस्याओं का भी अभी पूरी तरह से समाधान नहीं हुआ. जिन पैक्स या ग्रामीण सहकारी समितियों में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया गया है, उनके सदस्यों को उचित प्रशिक्षण नहीं मिला.''

इन समस्याओं का समाधान कैसे होगा? संघानी कहते हैं, ''हमने जो नीति बनाई है, उसमें इन समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक प्रावधान किए गए हैं. आप जिन समस्याओं का जिक्र कर रहे हैं, वे सभी हर सहकारी संस्था पर लागू नहीं होते. कुछ समस्याएं क्षेत्र विशेष की हैं. अधिकांश मामलों में सुधार हो रहा है और आने वाले दिनों में आपको और व्यापक सुधार दिखेंगे.''

चुनौतियां बरकरार

क्षेत्रीय असमानता: सहकारिता आंदोलन पश्चिमी भारत में ज्यादा प्रभावी. पूर्वी और उत्तर-पूर्व भारत में अपेक्षाकृत कमजोर.

राजनैतिक हस्तक्षेप: कई सहकारी समितियां स्थानीय नेताओं की 'वोट बैंक राजनीति' का हिस्सा बन गई हैं.

चुनाव में गड़बड़ियां: नामांकन विवाद और पारदर्शिता की कमी आम है.

समय पर ऑडिट नहीं: भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के कारण आम सदस्यों का भरोसा घटा है.

पेशेवर प्रबंधन का अभाव: स्थानीय स्तर पर चुने गए प्रतिनिधि अधिकांश समितियों चला रहे हैं. ऐसे लोगों के पास प्रबंधन कौशल, वित्तीय योजना और टेक्नोलॉजी की समझ कम होती है.

सीमित दायरा: निर्णय लेने की प्रक्रिया अक्सर बड़े किसानों और प्रभावशाली वर्गों तक सीमित रहती है.

विविधता: राज्यों में सहकारिता से संबंधित अलग-अलग कानून हैं.

सहकारिता नीति के मुख्य प्रावधान

नई नीति 2025 से 2045 तक प्रभावी होगी. इस नीति ने 2002 की पुरानी नीति की जगह ली.

इसके मुताबिक, हर राज्य को 31 जनवरी, 2026 तक अपनी सहकारी नीति तैयार करनी है, जो राष्ट्रीय दृष्टि से मेल खाती हो.

फरवरी 2026 तक 2,00,000 नए पैक्स स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि ग्रामीण वित्तीय सेवाओं का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके.

हर गांव में एक सहकारी संस्था स्थापित करने का लक्ष्य.

हर तहसील में पांच मॉडल सहकारी गांव स्थापित करने का प्रस्ताव भी नई नीति में है.

नई नीति के क्रियान्वयन के लिए एक राष्ट्रीय स्टीयरिंग समिति गठन का प्रावधान. इसकी अध्यक्षता केंद्रीय सहकारिता मंत्री करेंगे.

समावेशिता और पहुंच बढ़ाने पर विशेष जोर. खास तौर पर ग्रामीण महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, आदिवासी, युवाओं आदि को शामिल करने से संबंधित प्रावधान किए गए हैं.

सदस्यता बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. 50 करोड़ लोगों को सहकारी समितियों के दायरे में लाने की बात कही गई है.

सहकारी समितियों को पेशेवर, पारदर्शी और टेक्नोलॉजी इनेब्लड संस्थाएं बनाने का प्रस्ताव भी किया गया है.

नीति में नए सेक्टर्स जैसे पर्यटन, इंश्योरेंस, हरित ऊर्जा, टैक्सी, परिवहन आदि पर केंद्रित सहकारिता समितियां विकसित करने की भी बात कही गई है.

नई नीति का एक उद्देश्य सहकारी क्षेत्र के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि करने का भी है. 2034 तक सहकारी क्षेत्र के जीडीपी में योगदान को तीन गुना बढ़ाने का लक्ष्य भी रखा गया है.

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