scorecardresearch

अमेरिका की वीजा फीस में बढ़ोतरी भारतीय IT इंडस्ट्री को कैसे बदल रही?

अमेरिका की ओर से एच-1बी वीजा फीस में जबरदस्त बढ़ोतरी ने आइटी सेक्टर में हड़कंप मचा दिया, नौकरियों और वृद्धि पर संकट खड़ा कर दिया तथा कंपनियों को अपने बिजनेस मॉडल पर नए सिरे से विचार करने के लिए मजबूर कर दिया.

the big story: h-1b visas 
अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में अपने ऑफिस में IT प्रोफेशनल्स
अपडेटेड 29 अक्टूबर , 2025

सितंबर के तीसरे हफ्ते में अटलांटिक के पार से ऐसी बिजली गिरी कि उसने भारत के आइटी उद्योग की चूलें हिला दीं. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा बाजार है और उसके 224 अरब डॉलर (19.9 लाख करोड़ रुपए) के टेक्नोलॉजी निर्यात का आधे से ज्यादा यहीं आता है. उसने एच-1बी वीजा फीस में जबरदस्त निषेधात्मक बढ़ोतरी करके विदेशी सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के आने के दरवाजे बंद कर दिए.

19 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया कि 21 सितंबर से एच-1बी वीजा के लिए दाखिल हर आवेदन पर नया शुल्क 1,00,000 डॉलर (करीब 88.6 लाख रुपए) होगा. यह पिछले शुल्क से करीब 70 गुना ज्यादा है, जो 1,500-4,000 डॉलर (1.3-3.5 लाख रुपए) के बीच हुआ करता था.

एच-1बी वीजा लंबे वक्त से ट्रंप प्रशासन की आंख की किरकिरी था, जो वीजा के 'दुरुपयोग’ पर लगाम कसना चाहता है. उसका मानना है कि यह 'अमेरिकी कामगारों को बेदखल और राष्ट्रीय सुरक्षा को खोखला करता’ है. इस घोषणा ने उद्योग में हड़कंप मचा दिया क्योंकि एच-1बी वीजा का सबसे ज्यादा फायदा अब तक भारतीयों को ही हुआ है. वित्त वर्ष 2024 में कुल स्वीकृत एच-1बी वीजा में से 71 फीसद भारतीयों को मिले.

भारत की बड़ी आइटी कंपनियों में इन्फोसिस ने वित्त वर्ष 2024 में 8,137 एच-1बी वीजा प्रायोजित किए, उसके बाद टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (7,566), एचसीएल अमेरिका (2,952), एलटीआइमाइंडट्री (2,136) और विप्रो (1,636) थे. अमेरिकी शीर्ष फर्म भी एच-1बी वीजा पर बहुत ज्यादा निर्भर करती हैं. वित्त वर्ष 2024 में शीर्ष 10 प्रायोजकों में आठ अमेरिकी कंपनियां थीं, और जून 2025 तक यह संख्या बढ़कर नौ हो गई. अमेजन डॉट कॉम सर्विसेज एलएलसी ने 10,044 वीजा प्रायोजित किए, तो माइक्रोसॉफ्ट कॉर्प ने 5,189, मेटा ने 5,123 और एपल ने 4,202 वीजा. 

भारतीय शेयर बाजारों में 23 सितंबर को आइटी फर्मों के शेयरों में भारी गिरावट हुई. इन्फोसिस, टीसीएस और विप्रो के शेयरों में 2 से 3 फीसद की गिरावट आई, तो छोटी आइटी फर्मों के शेयरों में और बड़ी गिरावट देखी गई. नतीजों को समझने के लिए टेक कंपनियों ने अपने कानूनी और आव्रजन विशेषज्ञों के साथ ताबड़तोड़ बैठकें कीं.

उन्होंने अमेरिका में अपने कर्मचारियों को वहीं बने रहने की सलाह दी और जो विदेश यात्रा पर गए थे, उन्हें तत्काल लौटने को कहा, क्योंकि उन्हें डर था कि अमेरिका में फिर से दाखिल होने पर इसका असर पड़ सकता है. सैन फ्रांसिस्को से खबरें आईं कि दुबई जाने वाली एमिरेट्स की उड़ान तीन घंटे रनवे पर फंसी रही, क्योंकि दहशतजदा एच-1बी वीजा धारक विमान से उतरने की कोशिश कर रहे थे. भारत के विदेश मंत्रालय ने इस उथल-पुथल से परिवारों पर पड़ने वाले 'मानवीय नतीजों’ की ओर इशारा किया. उसने कहा, ''सरकार को उम्मीद है कि अमेरिकी अधिकारी इन व्यवधानों का समुचित समाधान कर सकते हैं.’’

स्पष्टीकरण और उसके बाद 

इस घबराहट के बीच अमेरिकी अधिकारियों ने जल्दबाजी में स्पष्टीकरण जारी किया. 1,00,000 डॉलर की यह फीस 21 सितंबर की कट-ऑफ तारीख के बाद दिए आवेदनों पर एक बार चुकाई जाने वाली धनराशि है, न कि सालाना, जैसा कि पहले आशंका थी. एच-1बी वीजा का नवीनीकरण कराने के लिए जरूरी भुगतान या फीस में भी कोई बदलाव नहीं किया गया, न ही मौजूदा एच-1बी वीजा धारकों को अमेरिका से बाहर जाने-आने से रोका गया.

स्पष्टीकरणों से तुरंत राहत मिली, फिर भी भारतीय आइटी उद्योग देखो और इंतजार करो की मुद्रा में है. दुनिया में भूराजनैतिक अनिश्चितताएं तारी हैं और अमेरिकी टैरिफ में बदलाव भी उनमें शामिल हैं. उनकी वजह से ग्राहकों ने अपने आइटी बजट को पहले ही रोक दिया है, जिससे सॉफ्टवेयर फर्मों के मुनाफों पर दबाव आ गया है. टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के नए औजार भी फर्मों और आइटी कर्मचारियों को कामकाज के नए तरीकों के हिसाब से ढलने को मजबूर कर रहे हैं. 

अलबत्ता उद्योग के निकाय नैस्कॉम का अनुमान है कि शीर्ष 10 भारतीय और भारत-केंद्रित कंपनियों के समूचे कर्मचारी आधार में एच-1बी कर्मियों की संख्या 1 फीसद से भी कम है. उसने कहा, ''इस स्थिति को देखते हुए हमारा अनुमान है कि क्षेत्र पर बहुत थोड़ा असर पड़ेगा.’’ नई वीजा फीस 2026 से लागू होंगी, इसलिए नैसकॉम का मानना है कि कंपनियों के पास अमेरिका में हुनरमंद बनाने के कार्यक्रम और ज्यादा बढ़ाने तथा स्थानीय भर्तियों में इजाफा करने के लिए वक्त है.

एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड की चीफ इकोनॉमिस्ट माधवी अरोड़ा ने एक रिसर्च नोट में कहा, ''सेवा निर्यात को आखिरकार चल रहे वैश्विक व्यापार और टेक्नोलॉजी युद्ध में खींच लिया गया है.’’ उनका मानना है कि आइटी फर्मों के राजस्व और मुनाफों पर नजदीकी अवधि में सीमित असर पड़ सकता है. वे कहती हैं, ''वैसे, अगर यह कायम रहता है तो यह भारतीय आइटी निर्यातों और कंपनियों के पारंपरिक मॉडलों को उलट-पुलट सकता है, परियोजनाओं के मुनाफों पर दबाव डाल सकता है, और भारतीय आइटी कंपनियों की सप्लाइ चेन तथा ऑनसाइट परियोजनाओं में रुकावट डाल सकता है.’’
 
करियर की राह

एच-1बी वीजा भारतीय पेशेवरों के लिए चिर-परिचित राह रहा है. आइटी उद्योग से जुड़े एक जानकार का कहना है, ''लोग इस पेशे में आए, कुछ साल काम किया, एच-1बी असाइनमेंट और ग्रीन कार्ड हासिल करने की कोशिश की, और अमेरिका में लंबे वक्त तक काम करने में सफल हुए. अब, उनके लिए यह रास्ता आसान नहीं रहेगा.’’

एच-1बी वीजा विशिष्ट व्यवसायों- तकनीकी से लेकर चिकित्सा और शिक्षा तक- में कुशल विदेशी पेशेवरों को अमेरिका में तीन साल की शुरुआती अवधि के लिए अल्पकालिक अनुबंधों पर काम करने की अनुमति देता है, जिसे अगले तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. वित्त वर्ष 2024 में स्वीकृत 3,99,395 एच-1बी वीजा में से 71 फीसद भारतीय मूल के पेशेवरों के थे. आमतौर पर कंप्यूटर से जुड़ी नौकरियों में एच-1बी वीजाधारकों की भागीदारी सबसे ज्यादा होती है.

नए वीजा आवेदकों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. अमेरिका में रहने वाले एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर- जिनका एच-1बी वीजा आवेदन मई में लॉटरी में चुना गया था- का कहना है कि उनकी किस्मत अच्छी है कि उनका आवेदन 21 सितंबर की कट-ऑफ तिथि से पहले चुना गया. उनके कुछ सहकर्मियों के आवेदन इस साल नहीं चुने गए, अब उन्हें अगले चक्र में फिर आवेदन करने का इंतजार करना होगा. लेकिन तब तक शुल्क वृद्धि लागू हो जाएगी.

उक्त तकनीकी पेशेवर ने कहा, ''जब यह खबर आई तो सब हैरान रह गए. पहली बात तो यह कि नियोक्ता को उनके लिए इतनी बड़ी राशि प्रायोजित करनी होगी.’’ इन सबको दो वर्षीय मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद इसी साल आइटी कंपनियों में नौकरी मिली थी और मौजूदा समय में उनके पास वैकल्पिक व्यावहारिक प्रशिक्षण या ओपीटी कहलाने वाला वर्क ऑथराइजेशन परमिट है, जो एफ-1 छात्र वीजा से संबद्ध है. अब, उनकी उक्वमीदें इस पर टिकी हैं कि नया शुल्क नियम अदालत में खारिज हो जाए.

सख्त कदम के पीछे अमेरिका का तर्क है कि उसके कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग स्नातकों में बेरोजगारी दर क्रमश: 6.1 फीसद और 7.5 फीसद पहुंच गई है, जो जीव विज्ञान या कला इतिहास स्नातकों की तुलना में दोगुनी से ज्यादा है. वहीं, एच-1बी वीजाधारी आइटी पेशेवरों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2003 के 32 फीसद से बढ़कर 65 फीसद से ज्यादा हो गई है. अमेरिकी घोषणा में कहा गया, ''एच-1बी वीजा प्रणाली में खासकर सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों ने व्यापक स्तर पर हेरफेर की है, जिसका खामियाजा बड़ी संख्या में कंप्यूटर से जुड़े क्षेत्रों में काम करने वाले अमेरिकी कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है.

साथ ही, कुछ सबसे सक्रिय एच-1बी नियोक्ता लगातार आइटी आउटसोर्सिंग कंपनियों पर निर्भरता बढ़ा रहे हैं. इन एच-1बी आधारित आइटी आउटसोर्सिंग कंपनियों के इस्तेमाल से नियोक्ताओं को खासी बचत होती है. तकनीकी कर्मचारियों पर एक अध्ययन से पता चलता है कि पूर्णकालिक, पारंपरिक कर्मचारियों की तुलना में एच-1बी 'प्रवेश-स्तर’ के पदों के लिए 36 फीसद की छूट मिलती है. इस कार्यक्रम के तहत कृत्रिम रूप से कम श्रम लागत का फायदा उठाने के लिए कंपनियां अपने आइटी विभाग बंद कर देती हैं, अपने अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल देती हैं, और ये आइटी नौकरियां कम वेतन वाले विदेशी कर्मचारियों को आउटसोर्स कर देती हैं.’’

अमेरिकी नागरिकता एवं आव्रजन सेवा (यूएससीआइएस) के मुताबिक, एच-1बी वीजा कार्यक्रम में सुधार के अन्य कदमों में 'मौजूदा वेतन स्तरों को संशोधित करने और इन्हें बढ़ाने’ के नियम बनाना शामिल है. वहीं, भारतीय इंडस्ट्री अक्सर कहती रही है कि यह धारणा एकदम गलत है कि कम वेतन वाले विदेशी आइटी पेशेवर अमेरिकियों की नौकरियां खा रहे हैं.

मसलन, उद्योग के जानकार मौजूदा यूएससीआइएस नियमों का हवाला देते हैं, जिनके तहत नियोक्ताओं को एच-1बी वीजा धारकों को अमेरिकी कर्मचारियों के बराबर वेतन देना जरूरी है. अमेरिका में एक आइटी कर्मचारी का औसत वेतन 1,22,000 डॉलर है, मगर उनका तर्क है कि वीजा, विभिन्न अनुपालन और फाइलिंग शुल्क की अतिरिक्त लागत एच-1बी वीजा धारकों की कुल लागत को और बढ़ा देगी, जिससे वे स्थानीय कर्मचारियों जितने ही महंगे हो जाएंगे.

नैस्कॉम ने एक बयान में कहा, ''वेतन स्थानीय कर्मचारियों के बराबर है. इसके अलावा, एच-1बी वीजाधारक कर्मचारी कुल अमेरिकी कार्यबल की तुलना में एक दशमलव बिंदु से भी कम हैं. कुछ वर्षों में अमेरिका स्थित भारतीय और भारत-केंद्रित कंपनियों ने एच-1बी वीजा पर निर्भरता खासी घटा दी है. प्रमुख भारतीय और भारत-केंद्रित कंपनियों को जारी एच-1बी वीजा की संख्या 2015 में 14,792 से घटकर 2024 में 10,162 रह गई है.’’

अमेरिका के इस कदम के तात्कालिक प्रभावों के बारे में स्टाफिंग फर्म सीआइईएल एचआर सर्विसेज के एमडी और सीईओ आदित्य नारायण मिश्र कहते हैं, ''अल्पकालिक स्तर पर भारतीय आइटी कंपनियां लागत प्रबंधन के लिए अपने व्यावसायिक मॉडल में बदलाव करेंगी.’’ उन्हें लगता है कि बदली परिस्थिति में वैकल्पिक प्रतिभा मॉडल तलाशने के अलावा, दूरस्थ अनुबंध, ऑफशोर वितरण और गिग-आधारित कार्यों में वृद्धि हो सकती है.

न्यू नॉर्मल?

यह तर्क अधिकांश विशेषज्ञों को पसंद है. कोविड-19 महामारी ने एक बड़ी बाधा साबित होने के बावजूद यह भी साबित कर दिया है कि काम कहीं से भी पूरा किया जा सकता है. इसके साथ, वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) या बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरफ से भारत में रणनीतिक, तकनीकी और परिचालन संबंधी कार्यों के लिए स्थापित ऑफशोर इकाइयों की संख्या भी बढ़ी है.

इन केंद्रों ने काफी समय से भारतीय आइटी परिदृश्य में बेहद अहम स्थान बनाए रखा है, जबकि पारंपरिक आइटी सेवा कंपनियां व्यापार शुल्कों को लेकर वैश्विक अनिश्चितता से जूझ रही हैं. एक उद्योग विशेषज्ञ के मुताबिक, ''जीसीसी ने दर्शाया है कि विभिन्न अनुसंधान एवं विकास और खासा उच्च मूल्य वाले कार्य भी वैश्विक स्तर पर कहीं से भी किए जा सकते हैं. इसने भारतीय सेवा श्रेणी में वैश्विक सोर्सिंग का स्वरूप बदल दिया है.’’

देश में जीसीसी की संख्या वित्त वर्ष 2019 में 1,285 की तुलना में बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 1,750 हो गई है. हालिया वृद्धि में मुख्यत: मध्यम स्तरीय जीसीसी का योगदान सबसे ज्यादा रहा है. इन्फोसिस के पूर्व बोर्ड सदस्य वी. बालाकृष्णन कहते हैं, ''अगर असर पड़ेगा तो यही कि वीजा बंदिशों के कारण ऑफशोरिंग बढ़ेगी. इसलिए, कुल मिलाकर इसे सकारात्मक ही माना जाएगा. एकमात्र चुनौती यही है कि अमेरिका में बेरोजगारी दर ऊंची है.

इसलिए हमें देखना होगा कि क्या यह (एच-1बी प्रतिबंध) केवल एक कदम है या फिर आगे कई और कदम उठाए जाएंगे.’’ यह अनिश्चितता तकनीकी नौकरियों के ऑफशोरिंग तक फैली हुई है, खासकर यह देखते हुए कि ट्रंप प्रशासन मैन्युुफैक्चरिंग की नौकरियों को कहीं और ले जाने के खिलाफ है. मसलन, ट्रंप को एपल के अपने फोन भारत में बनाने पर आपत्ति है.

वैसे, प्रतिबंधात्मक नीतियां आज आइटी क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती नहीं हैं. ऊपर उद्धृत एक विशेषज्ञ का कहना है, ''अब यह उद्योग काफी परिपक्व हो चुका है. इसने पहले भी कई संरचनात्मक बदलाव देखे हैं और अब भी नई बाधाओं के बीच फलने-फूलने के रास्ते खोज ही लेगा.’’ मगर कई लोगों के मन में यह आशंका जरूर है कि क्या एच-1बी वीजा पर लगाम अमेरिका का पहला हमला तो नहीं है. ठ्ठ

- अजय सुकुमारन

Advertisement
Advertisement