
राजस्थान के जोधपुर में बीते दिनों 5 से 7 सितंबर के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक इस संगठन का शताब्दी वर्ष पूरे होने के पहले का आखिरी बड़ा विचार-विमर्श था. 1925 में विजयादशमी के दिन केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में शुरू हुआ संघ परिवार इस साल सौ वर्ष पूरे कर रहा है.
संघ ने पहले ही ऐलान किया है कि इस विजयादशमी से लेकर अगली विजयादशमी तक के समय को वह अपने शताब्दी वर्ष के तौर पर मनाएगा. इस दौरान कई स्तर पर संगठनात्मक विस्तार से संबंधित गतिविधियां चलाई जानी हैं.
जोधपुर की बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय यह लिया गया कि शताब्दी वर्ष में शैक्षणिक परिसरों में संघ के विभिन्न आनुषंगिक संगठनों की गतिविधियों में विस्तार के लिए विशेष अभियान चलाया जाए.
गौरतलब है कि 2014 में केंद्र की सत्ता में संघ के आनुषंगिक संगठन भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद से इसका भी व्यापक स्तर पर विस्तार हुआ है. संघ की शाखाओं की संख्या करीब ढाई गुना बढ़ गई है. 2014 में जहां संघ की शाखाओं की संख्या करीब 40,000 थी, वह अब बढ़कर एक लाख के पार चली गई है. शताब्दी वर्ष में इसे सवा लाख तक ले जाने की योजना पर काम किया जा रहा है.
भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों की मानें तो बीते 11 वर्ष में विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से लेकर शिक्षकों की नियुक्ति में संघ के प्रति निष्ठा रखने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है. लेकिन संघ के लोग भी मानते हैं कि शैक्षणिक परिसरों के अंदर सांगठनिक और वैचारिक विस्तार में अपेक्षित प्रगति नहीं हुई है.
दिल्ली में काम कर रहे संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं, ''अब देखिए ना! अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद संघ का ही एक आनुषंगिक संगठन है. बीते 11 साल से केंद्र में हमारे विचार परिवार की सरकार है. इस बीच कुलपति से लेकर शिक्षकों की नियुक्ति तक में हमारे विचार परिवार का प्रतिनिधित्व बढ़ा है. फिर भी विद्यार्थी परिषद कोई बहुत प्रभावी स्थिति में नहीं दिखती. दिल्ली विश्वविद्यालय में बीते साल सिर्फ दो पदों पर ही परिषद के उम्मीदवार जीत पाए. इनमें भी अध्यक्ष पद शामिल नहीं था. जेएनयू में भी यही हाल है.
कुछ विश्वविद्यालयों को छोड़ दें तो अधिकांश जगह यही स्थिति है.'' इसकी वजह क्या है? उन्हीं के मुताबिक, ''जो छात्र यहां पढ़ने आ रहे हैं, उनमें हमारे संगठन वैचारिक स्तर पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पैदा कर पा रहे. दूसरी ओर, हमारे विरोधी अपने विचारों के प्रति प्रतिबद्ध छात्र तैयार कर पा रहे हैं. इसका लाभ उन्हें वैचारिक अभियानों में भी मिल रहा है और छात्र संघ चुनावों में भी.''
पर इस बीच हाल ही पंजाब विश्वविद्यालय में एबीवीपी के उम्मीदवार ने जीत हासिल करके न सिर्फ विरोधियों को बल्कि संघ परिवार को भी हैरान कर दिया. पंजाब यूनिवर्सिटी कैंपस स्टुडेंट्स काउंसिल के लिए 2 सितंबर, 2025 को चुनाव हुए थे. यहां 1977 से चुनाव हो रहे हैं. तब से अब तक के 48 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार है कि यहां एबीवीपी ने अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया है. 3 सितंबर को घोषित नतीजों में एबीवीपी के गौरव वीर सोहल ने करीब 500 वोटों के अंतर से चुनाव जीता. 2013 में यहां एबीवीपी ने उपाध्यक्ष और पिछले साल संयुक्त सचिव का पद जीता था. लेकिन इस बार अध्यक्ष पद पर जीत हासिल करने को संगठन अपनी बड़ी उपलब्धि मान रहा है.
शैक्षणिक परिसरों में पकड़ मजबूत करने के मकसद से संघ ने जोधपुर की समन्वय बैठक में शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे अपने सभी संगठनों की गतिविधियों में तेजी लाने की योजना बनाई है. साथ ही यह पक्का किया है कि सभी संगठनों में प्रभावी आपसी समन्वय हो. संघ की तरफ से शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, विद्या भारती, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, भारतीय शिक्षण मंडल, प्रज्ञा प्रवाह और एबीवीपी जैसे संगठन शामिल हैं.
इनमें से एक संगठन से संबद्ध एक प्रमुख पदाधिकारी कहते हैं, ''अभी स्थिति यह है कि जिन संगठनों का नाम आप ले रहे हैं, वे सभी अपने-अपने ढंग से यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में काम करते हैं. इनमें कोई कहीं मजबूत है तो कोई कहीं और. अगर इन सभी संगठनों में आपसी समन्वय बढ़ता है तो अकादमिक संस्थानों में वैचारिक विस्तार में मदद मिलेगी.'' जाहिर है, ऐसा होने पर विद्यार्थी परिषद और भाजपा को भी इसका चुनावी लाभ मिलेगा.
संघ पदाधिकारियों से बातचीत में पता चलता है कि शिक्षा क्षेत्र में विस्तार की यह कवायद सिर्फ संख्यात्मक नहीं बल्कि गुणात्मक है. इन कोशिशों से सिर्फ सांगठनिक विस्तार नहीं बल्कि सांस्कृतिक और राजनैतिक एजेंडे की बुनियाद मजबूत करने की भी कोशिश की जानी है. संघ की मान्यता है कि शिक्षा संस्थान केवल ज्ञान के केंद्र नहीं बल्कि वैचारिक संघर्ष के प्रमुख मैदान भी हैं. संघ के लिए शिक्षा क्षेत्र में अपनी मौजूदगी मजबूत करने की कवायद 'भारतीय मूल्यों' पर आधारित शिक्षा व्यवस्था तैयार करने की दिशा में बढ़ाया गया कदम भी है. 2020 में आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से इसकी एक झलक मिलती है. पर संघ पदाधिकारियों की मानें तो यह नीति एक फ्रेमवर्क जरूर देती है लेकिन इसका लाभ तो तभी उठाया जा सकता है जब जमीनी स्तर पर सांगठनिक ढांचा हो.
संघ की इस पहल के बारे में संगठन के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर बताते हैं, ''तीन दिवसीय समन्वय बैठक में शिक्षा क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया. अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, विद्या भारती, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, भारतीय शिक्षण मंडल और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद समेत विभिन्न संगठनों ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के अनुभव साझा किए. शिक्षा में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाई को प्रोत्साहित करने की दिशा में सकारात्मक प्रयास हो रहे हैं. ज्ञान परंपरा और शिक्षा के भारतीयकरण के लिए पुस्तकों के पुनर्लेखन और शिक्षक प्रशिक्षण पर भी कार्य प्रगति पर है.
शिक्षा क्षेत्र के आनुषंगिक संगठन

शिक्षा के क्षेत्र में संघ और इसके सहयोगी संगठनों के दखल की पृष्ठभूमि नई नहीं है. विद्या भारती संघ के प्रमुख शिक्षा विंग के तौर पर 1977 से काम कर रहा है. आज विद्या भारती देश में सबसे बड़े निजी स्कूल नेटवर्कों में से एक है. इन स्कूलों की संख्या हजारों में है. इसी तरह से संघ से संबद्ध एक दूसरी संस्था शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास आजकल मुख्य तौर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के क्रियान्वयन पर काम करता है. भारतीय शिक्षण मंडल और अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ शिक्षकों और नीतियों पर फोकस करते हैं. वहीं संघ प्रेरित संगठन के तौर पर प्रज्ञा प्रवाह अकादमिक जगत में वैचारिक विषयों पर गंभीर आयोजन जैसी गतिविधियों को संचालित कर रहा है.
विद्या भारती को जहां स्कूल नेटवर्क के विस्तार पर काम करते हुए नए शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना पर काम करना है वहीं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और भारतीय शिक्षण मंडल पाठ्यक्रम में 'भारतीय मूल्यों' को शामिल कराने के लिए काम करेंगे. शिक्षा क्षेत्र में संघ की तरफ से ज्यादा फोकस की एक वजह आंतरिक स्तर पर यह भी बताई जा रही है कि एनईपी, 2020 के निर्माण में संघ की प्रमुख भूमिका थी. लेकिन क्रियान्वयन में अपेक्षित प्रगति न होने की वजह से संघ की बैठकों में पूरी नीति की सफलता को लेकर शंकाएं व्यक्त की जा रही हैं.
जोधपुर की बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत सभी दिग्गज शामिल हुए. इसमें संघ के 32 सहयोगी संगठनों ने शिक्षा, समाज, जनजातीय कल्याण और महिलाओं की भागीदारी के आयामों पर चर्चा की. विरोधी संघ और भाजपा की सरकारों पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लगाते हैं. ऐसे में शताब्दी वर्ष में शिक्षा क्षेत्र में संघ की नई पहलकदमियों पर भी संघ के वैचारिक विरोधियों और विपक्ष की नजर रहेगी.
विद्या भारती
> देश का सबसे बड़ा गैर-सरकारी शैक्षिक नेटवर्क
> 13,000 से ज्यादा स्कूलों और लाखों छात्रों के बीच सक्रिय
> भारतीय संस्कारों पर आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने का उद्देश्य
भारतीय शिक्षण मंडल
> उच्च शिक्षा और शोध संस्थानों में सक्रिय
> भारतीय ज्ञान परंपरा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को बढ़ावा देने पर जोर
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ
> शिक्षकों का संगठन
> विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की फैकल्टी में वैचारिक आधार तैयार करना और वैचारिक कार्यों में उनकी शक्ति का इस्तेमाल करना
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास
> पाठ्यपुस्तकों और पाठ्यक्रमों की समीक्षा और पुनर्लेखन पर केंद्रित
> भारतीय इतिहास, संस्कृति और परंपरा को शिक्षा में समाहित करने का उद्देश्य
प्रज्ञा प्रवाह
> अकादमिक संस्थानों में भारतीय सांस्कृतिक और वैचारिक विरासत के प्रचार-प्रसार का काम
> 1980 के दशक में शुरू हुए इस संगठन के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा के विभिन्न आयामों में गंभीर वैचारिक गोष्ठियों, कार्यशाला, सेमिनार और कॉन्फ्रेंस के आयोजन समेत संबंधित प्रकाशन में भी भूमिका
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
> संघ का छात्र संगठन
> छात्र राजनीति, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सक्रिय
> इससे निकले लोग संघ और भाजपा में शीर्ष पदों पर
संस्कार भारती
> शिक्षा और संस्कृति को जोडऩे वाला संगठन
> कला और साहित्य को 'भारतीय दृष्टि' से प्रस्तुत करने पर बल
अन्य सहयोगी प्रयास
> आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के लिए वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए 'एकल विद्यालय' अभियान चलाया जा रहा
> शिक्षा से जुड़े ऐसे कई थिंक टैंक और रिसर्च संस्थाएं हैं जो पाठ्यक्रम और नीति निर्माण को प्रभावित करती हैं और खुद को संघ प्रेरित संस्था कहती हैं
मंथन संघ प्रमुख मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जोधपुर में संघ पदाधिकारियों की बैठक में