प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 से 15 सितंबर तक पूर्वी राज्यों मिजोरम, मणिपुर, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार का दौरा किया और क्षेत्रीय स्तर पर विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता जाहिर की. मगर विभिन्न परियोजनाओं के शिलान्यास के पीछे एक सियासी रणनीति भी चल रही थी.
मणिपुर में मई 2023 में जातीय संघर्ष भड़कने के बाद से प्रधानमंत्री की वहां की पहली यात्रा के दौरान मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच दूरियां घटाने के लिए कुछ ठोस प्रयास किए जाने की उम्मीद की जा रही थी.
उसके बजाए, यह यात्रा अवैध आप्रवासन के मुद्दे पर ध्रुवीकरण की कोशिश निकली. दरअसल, भाजपा साल के अंत में बिहार विधानसभा और फिर 2026 में पश्चिम बंगाल तथा असम के लिए चुनावी नैरेटिव निर्धारित करने में जुटी है.
इस यात्रा की भावना को स्वतंत्रता दिवस पर दिए प्रधानमंत्री मोदी के भाषण से जोड़ा जा सकता है जिसमें उन्होंने खासकर सीमावर्ती राज्यों में जनसांख्यिकीय बदलाव को संबोधित करने के लिए ''डेमोग्राफी मिशन'' का ऐलान किया था. मोदी की यात्रा ने पार्टी को स्थानीय शिकायतों के बहाने अपने संदेश को मजबूत करने का पूरा मौका दे दिया.
मणिपुर को क्या मिला?
मणिपुर को लेकर मोदी के नजरिए को देखें तो वहां उन्होंने बमुश्किल आधा दिन बिताया, जिसमें कुकी-बहुल चुराचांदपुर और मैतेई समुदाय के गढ़ इंफाल के बीच अदृश्य खाई साफ नजर आई. चुराचांदपुर में मोदी ने विकास परियोजनाओं के बारे में बात की और शांति की राह पर चलने की अपील की. वहीं, राजधानी इंफाल में उन्होंने सीमा पार से घुसपैठ का मुद्दा भी उठाया.
मैतेई समुदाय का आरोप है कि म्यांमार से चिन शरणार्थियों की अवैध घुसपैठ ने राज्य के जनसांख्यिकीय संतुलन को बदलकर रख दिया है. वे जातीय रूप से कुकी-जो समुदाय से जुड़े हैं. कुकी-जो खुद को यहां का मूल निवासी बताते हैं और आप्रवासन विरोधी अभियान को भूमि हड़पने की कोशिश मानते हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के 'म्यांमार के अवैध प्रवासियों' के खिलाफ आक्रामक अभियान को भी हिंसा के पीछे एक बड़ा कारण माना जाता है, जिसने 200 से ज्यादा जानें ले लीं और करीब 60,000 लोगों को विस्थापित कर दिया. इंफाल में घुसपैठियों का जिक्र करके मोदी ने मैतैई समुदाय की शिकायतों को जायज ठहराने की कोशिश ही की है.
मणिपुर में मोदी के दौरे को मिली प्रतिक्रिया से भी काफी कुछ पता चलता है. मैतेई सिविल सोसाइटी के नेताओं ने मुख्य मांगों पर उनकी चुप्पी की आलोचना की है, खासकर कुकी सशस्त्र समूहों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस एग्रीमेंट खत्म करने को लेकर, जिसे बढ़ा दिया गया है. कुकी समूह अपने इलाके के लिए अलग प्रशासन की मांग पर अड़े हैं, भले उसे केंद्र शासित क्षेत्र का दर्जा न दिया जाए. उस प्रस्ताव को दिल्ली ने पहले ही खारिज कर दिया था.
महिला संगठन इमागी मीरा की संयोजक थाकचोम सुजाता यात्रा को बेमानी बताती हैं, ''मोदी को मणिपुर की परवाह होती तो वे समुचित योजना के साथ दौरा करते.'' धनमंजुरी यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर अरामबम नोनी के सुर भी तीखे हैं, ''मेगा प्रोजेक्ट भरोसा बहाली, स्थायी शांति और राज्य में गहरे विभाजन की भावना को बदलने में काम नहीं आ सकते.''
वहीं, कुकी-जो एक्टिविस्ट हेजंग मिसोओ इंफाल और चुराचांदपुर में अलग-अलग कार्यक्रम को विभाजित राजनीति को मौन समर्थन के तौर पर देखते हैं और दलील देते हैं कि असल शांति इस विभाजन के संवैधानिक हल से आएगी. कुकी स्टुडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन के जैक्सन कुकी कहते हैं, ''हम अलग-अलग प्रशासन और केंद्र शासित क्षेत्र को मान्यता देने की मांग करते हैं क्योंकि यही एकमात्र समाधान है.''
व्यापक चुनावी परिदृश्य
प्रधानमंत्री ने 14 सितंबर को असम में दरांग जिले में अपने संबोधन में अवैध घुसपैठ और उसके कथित सियासी संरक्षकों पर सीधा हमला बोला. दरांग मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा की सरकार के सबसे विवादास्पद बेदखली अभियान का गवाह रहा है, जिसमें बांग्लाभाषी प्रवासी मूल के मुसलमानों को 'अवैध रूप से कब्जाई गई' भूमि से हटाया गया. यह आरोप लगाते हुए कि कांग्रेस 'राष्ट्र-विरोधियों और घुसपैठियों की सबसे बड़ी रक्षक' बन गई है, मोदी ने कहा, ''हम दिखा देंगे कि हमने घुसपैठियों को हटाने के लिए जी-जान लगा दी है.''
इस तरह भाजपा ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय निष्ठा की कसौटी बना दिया है. कथित घुसपैठियों से 'लाखों बीघा भूमि' मुक्त कराने में सरमा सरकार को मिली सफलता पर मोदी की सराहना इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का अनिवार्य मुद्दा बना देती है. वैसे, फरवरी 2014 में असम में अपने पहले चुनावी भाषण में मोदी ने अवैध घुसपैठियों को बाहर करने का संकल्प लिया था. वह वादा अभी अधूरा है क्योंकि राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण के तहत 19 लाख लोगों को बाहर करने की प्रक्रिया पर अमल नहीं हुआ है.
पश्चिम बंगाल एक और सियासी मोर्चा है. पहलगाम हमले के बाद हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे भाजपा शासित राज्यों ने बंगाली मुसलमानों—जिनमें अधिकांश पश्चिम बंगाल के मूल निवासी हैं—पर शिकंजा कसा और 'अवैध बांग्लादेशी' बताते हुए उन्हें अपने यहां से बाहर कर दिया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर भाषा को हथियार बनाने और बंगाली पहचान को बांग्लादेशी राष्ट्रीयता के साथ जोड़ने का आरोप लगाया.
ठोस सत्यापन के बिना लोगों को जबरन सीमा के बाहर 'धकेलना' एक पसंदीदा उपाय है. 2024 में सिर्फ 295 औपचारिक निर्वासन की तुलना में इस साल करीब 3,000 कथित बांग्लादेशियों को निकाला गया. असम में सरमा ने आप्रवासी नागरिक (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 को फिर से लागू कर दिया है. इसमें अधिकारियों को सार्वजनिक हित या अनसूचित जनजातियों के लिए खतरा बताकर किसी को भी बाहर निकालने का असीमित अधिकार मिल जाता है. 2025 में इस कानून के तहत लगभग 500 कथित बांग्लादेशियों को बाहर किया गया.
पूर्वी क्षेत्र के दौरे के अंतिम पड़ाव बिहार में मोदी ने सीमांचल क्षेत्र में पूर्णिया हवाई अड्डे का उद्घाटन किया, जहां मुद्दा कुछ अलग रूप में नजर आया. राज्य में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) की प्रक्रिया जारी है, जिसके तहत 2003 के बाद शामिल मतदाताओं के लिए अपनी नागरिकता साबित करना जरूरी है. पूर्णिया मोदी के दौरे के लिए सियासी तौर पर एक आदर्श स्थान था क्योंकि भाजपा बंगाल और नेपाल की सीमा से सटे सीमांचल को अवैध आप्रवासन के कारण जनसांख्यिकी में बदलाव के एक प्रतीक के तौर पर चिह्नित करती है. यहां कुछ जिलों में मुस्लिम आबादी 60 फीसद से ज्यादा है.
मोदी के भाषण ने भाजपा के नैरेटिव को और पुख्ता आधार दिया, जिसमें उन्होंने सीमांचल में अवैध घुसपैठ को 'जनसांख्यिकीय संकट' की मुख्य वजह बताया. भारत के चुनाव आयोग की तरफ से यह पुष्ट करने के साथ कि एसआइआर को चुनावी राज्यों पश्चिम बंगाल और असम के साथ देशभर में लागू किया जाएगा, इस मुद्दे के और जोर पकड़ने की उम्मीद है.
इस सियासी सक्रियता को विधायी समर्थन भी हासिल है. आप्रवासन और विदेशी अधिनियम, 2025, अप्रैल में अधिनियमित किया गया, जो अवैध प्रवासियों को चिह्नित करने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने की व्यापक शक्तियां प्रदान करता है. केंद्र की तरफ से सितंबर में जारी निर्देश के तहत राज्यों को डिटेंशन सेंटर स्थापित करने हैं.
इस तरह मोदी का पूर्वी क्षेत्र का दौरा चुनावी रणनीति को विस्तार देने की कोशिश थी. उसमें जनसांख्यिकीय परिवर्तन की चिंताओं को लेकर यह सियासी मुलम्मा चढ़ाया गया है: जो लोग भाजपा समर्थक हैं, वे राष्ट्र हित के बारे में सोचते हैं और जो इसका विरोध करते हैं, वे घुसपैठियों के कथित संरक्षक हैं.
राज्य कई, मुद्दा एक
जनसंख्या को लेकर बेचैनी वाले राज्यों में भाजपा अवैध घुसपैठ को केंद्रीय मुद्दा बना रही
> मणिपुर में मोदी ने सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलाव पर आगाह किया और कहा कि 'डेमोग्राफी मिशन' से घुसपैठियों से मुक्त हो जाएगा भारत
> असम में वे सीएम हेमंत बिस्व सरमा के बेदखली अभियान की सराहना करते दिखे और इसे घुसपैठियों से जमीन छीनने के एक मॉडल के तौर पर राष्ट्र रक्षा का काम करार दिया
> पश्चिम बंगाल में सीएम ममता बनर्जी बांग्ला भाषी मुसलमानों को धकेले जाने का विरोध करती हैं. भाजपा अवैध आप्रवासन पर कड़े रुख के प्रमाण के तौर पर इस नीति की सराहना कर रही
> बिहार में एसआइआर का कथित प्राथमिक उद्देश्य मतदाता सूचियों से अवैध प्रवासियों को बाहर करना है और अब इसे देशभर में लागू किया जाने वाला है
> नया आप्रवासन एवं विदेशी नागरिक कानून केंद्र के लिए संदिग्ध घुसपैठियों का पता लगाने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने का एक नया हथियार
लोगों को बिना किसी ठोस सत्यापन के जबरन सीमा के बाहर कर देना पसंदीदा उपाय बन गया है. 2025 में करीब 3,000 कथित बांग्लादेशियों को बाहर निकाल दिया गया.

