बंगलूरू में एक टेलीकॉम फर्म के एग्जीक्यूटिव जोरावर अली (बदला हुआ नाम) ने पिछले साल जुलाई में कॉम्पैक्ट एसयूवी इलेक्ट्रिक वाहन बीवाइडी एटो 3 खरीदा और अपने सबसे अच्छे दोस्त राहुल बाजपेयी (बदला हुआ नाम) के साथ रोड ट्रिप पर जाने को उतावले थे. राहुल दिल्ली से आए थे और उन्हें चेन्नै में अपने दफ्तर की एक मीटिंग में शामिल होना था, इसलिए दोनों वहीं के लिए निकल पड़े.
नेशनल हाइवे (एनएच) 44 और एनएच 48 पर कांचीपुरम होते हुए 340 किमी लंबे उनके सफर के पहले 250 किमी तो अच्छे-भले गुजरे. और फिर उसके बाद आन पड़ा बैटरी चार्ज करने का वक्त. चार्जिंग पॉइंट भी उन्हें जल्द ही मिल गया. मगर यह महज 20 किलोवाट की क्षमता का था और पूरी बैटरी चार्ज करने में घंटे भर से भी ज्यादा वक्त लगता. दोनों ने ऑनलाइन ऐप के जरिए पता करने की कोशिश की कि अगला चार्जर कहां मिल सकता है.
पता चला कि एक 20 किमी दूर था, लेकिन जब वहां पहुंचे तो पाया कि यह नया-नया लगा था और ग्रिड से अभी जुड़ा तक नहीं था. और 25 किमी दूर उन्हें तीसरा चार्जर मिला. मगर दिक्कत यह थी कि एक गैर-ईवी गाड़ी वहां गलत ढंग से पार्क कर दी गई थी और उसका मालिक भी आसपास कहीं नजर नहीं आ रहा था.
अब तक जोरावर और राहुल की रेंज एंग्जायटी यानी मंजिल या कारगर चार्जिंग पॉइंट तक पहुंचने से पहले बैटरी खत्म होने की दुश्चिंता चरम पर पहुंच गई थी. आखिरकार उन्हें चेन्नै से कोई 30 किलोमीटर पहले भारत पेट्रोलियम के पेट्रोल पंप पर चार्जिंग पॉइंट मिला. उन्होंने गाड़ी चार्जिंग में लगाई. चार्जिंग में लगने वाला आधे घंटे का वक्त छोटी-सी चाय की दुकान पर गुजारा. राहुल तो इस अनुभव से इतने परेशान हो गए कि वे बेंगलूरू फिर वापस जाने के बजाए फ्लाइट से सीधे दिल्ली चले गए.
ईलॉन मस्क ने जुलाई में जब मुंबई में टेस्ला का मॉडल वाइ लॉन्च किया और इस कंपनी की हरी नंबरप्लेट वाली ईवी भारतीय सड़कों पर अच्छी-खासी दिखाई देने लगीं, तब भी देश में चार्जिंग स्टेशनों और चार्जिंग पॉइंट्स का बुनियादी ढांचा उद्योग के तेजी से ईवी की तरफ बढ़ने और सरकार के स्वच्छ ऊर्जा पर जोर देने की महत्वाकांक्षा के साथ कदमताल करने में नाकाम रहा.
यह तब है जब केंद्रीय परिवहन मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक, भारत में ईवी की संख्या 57 लाख तक पहुंच गई है. इसमें 30 लाख दोपहिया वाहन हैं जो कुल ईवी के आधे से ज्यादा हैं. उसके बाद 22 लाख तिपहिया ईवी हैं. चौपहिया इलेक्ट्रिक वाहन अभी हालांकि 6,00,000-7,00,000 अदद के साथ अपेक्षाकृत छोटा हिस्सा हैं, पर ये भी तेजी से बढ़ रहे हैं. देश में बाकी बसें और अन्य व्यावसायिक वाहन हैं.
वाहनों की इस संख्या के मुकाबले भारत में महज 26,367 सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशन हैं, जिनमें से 10,019 पिछले ही वित्त वर्ष में जुड़े हैं. इसका मतलब हुआ 216 ईवी पर मोटे तौर पर एक सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन. दुनिया भर के देशों में ईवी के साथ चार्जर का अनुपात काफी बेहतर है. मसलन, नीदरलैंड में हर 2-7 ईवी पर एक सार्वजनिक चार्जर है. चीन के शीर्ष शहरों में हर 3-6 ईवी पर औसतन एक है. यहां तक कि कैलिफोर्निया में भी, जहां घरों और कार्यस्थलों पर चार्जिंग की व्यापक सुविधा मौजूद है, 25-30 ईवी पर एक सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन है.
सरकार का जोर
भारत में केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से दिए गए प्रोत्साहनों की बदौलत ईवी की बिक्री में तेजी आई. इनमें सबसे गौरतलब एफएएमई या फेम-II (फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड ऐंड इलेक्ट्रिक वहिकल) योजना है, जिसमें ईवी के लिए सब्सिडी और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए सहायता दी जाती है.
ईवी और चाॄजग स्टेशन पर माल और सेवा कर (जीएसी) भी घटाकर 5 फीसद कर दिया गया. बैटरी से चलने वाले वाहनों पर हरे रंग की लाइसेंस प्लेट लगाई जाती हैं, जिससे उन्हें परमिट की कुछ निश्चित जरूरतों से छूट मिल जाती है. राज्यों ने रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन फीस से छूट जैसे प्रोत्साहन भी दिए हैं.
इसके साथ ही पीएम-ई-ड्राइव (प्रधानमंत्री इलेक्ट्रिक ड्राइव रिवॉल्यूशन इन इनोवेटिव वहिकल एनहांसमेंट) पहल का मकसद इसी रफ्तार से चार्जिंग सुविधाओं का विस्तार करना है. 10,900 करोड़ रुपए के फंड में 2,000 करोड़ रुपए शहरी इलाकों के अलावा अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन बढ़ाने के लिए रखे गए हैं.
बुनियादी ढांचा स्थापित करने और सार्वजनिक जमीन पट्टे पर देने के दिशा-निर्देश भी तय किए जा रहे हैं. पिछले साल केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने नियम जारी करके यह अनिवार्य कर दिया कि नए चार्जिंग स्टेशनों पर नए और पुराने दोनों ईवी चार्ज करवाए जा सकेंगे. ऐसा चौतरफा शिकायतों के जवाब में किया गया कि पुराने स्टेशन ईवी के ताजातरीन मॉडलों के साथ बेमेल थे. वितरण कंपनियों के लिए 150 किलोवॉट तक के पावर कनेक्शन के लिए आपूर्ति करना जरूरी होगा. सरकारी जमीन 1 रुपए प्रति किलोवॉट घंटे के न्यूनतम मूल्य पर दस साल के लिए राजस्व में साझेदारी मॉडल पर दी जा रही है.
इन उपायों से भारतीय उपभोक्ता की चिंताएं दूर करने में कम ही मदद मिली. डेलॉइट 2025 ग्लोबल ऑटोमेटिव कंज्यूमर स्टडी के मुताबिक, ईवी खरीदने वाले भारतीयों का खासा बड़ा 70 फीसद हिस्सा मुख्य रूप से घर पर ही चार्ज करना चाहता है, लेकिन महज 44 फीसद के पास ही चार्जर है. अन्य 41 फीसद के पास चार्जर नहीं है और 14 फीसद चार्जर साझा करके काम चलाते हैं. यह असमानता अत्यंत कष्टदायक है, खासकर शहरों में जहां विशाल अपार्टमेंट परिसरों की वजह से आप अपना चार्जर नहीं लगा सकते.
क्षेत्रीय विसंगति तो और भी बदतर है, यह कहना है बी2बी ईवी कैब प्लेटफॉर्म एआरसी इलेक्ट्रिक के सीईओ अभिनव कालिया का. ईवी का बुनियादी ढांचा ग्रामीण, सुदूर और पहाड़ी इलाकों में तकरीबन पूरी तरह नदारद है, जबकि वहां यातायात के स्वच्छ साधन शायद सबसे ज्यादा असर डाल सकते हैं. चाहे टियर 3 के शहरों में डिलिवरी ईवी हो या सीमावर्ती जिलों में सार्वजनिक परिवहन ईवी, चार्जिंग के तेज और भरोसेमंद बुनियादी ढांचे की कमी इन समाधानों के विस्तार में रुकावट पैदा कर रही है. कालिया का कहना है कि ये न सिर्फ भौगोलिक सीमाएं हैं बल्कि ईवी को समान रूप से अपनाने के रास्ते की अड़चनें भी हैं.
बैट्री का खत्म होना
रेंज एंग्जायटी आशंकाओं में और इजाफा कर रही है, जिसकी वजह से मन में इस तरह के सवाल उठते हैं: क्या मेरा ईवी सफर की पूरी लंबाई तक चलेगा, और क्या मुझे चार्ज कम होने पर नजदीक ही कोई चार्जिंग पॉइंट मिल जाएगा? एक एमएनसी में एग्जीक्यूटिव और 350 किमी की रेंज का दावा करने वाली एक मिनी-एसयूवी के मालिक रमनजीत कहते हैं, ''मैं बिना कोई परेशानी उठाए दिल्ली से चंडीगढ़ जा सकता हूं.
लेकिन पहाड़ों पर जाने के लिए मैं उतना आश्वस्त नहीं. राजमार्गों पर अब भी चार्जिंग के भरोसेमंद विकल्प आम तौर पर नहीं हैं. यहां तक कि होटल भी ईवी के मालिकों की जरूरतों के अनुरूप नहीं हैं.’’
भारत के लोग अपने सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के साथ आम तौर पर जैसा सुलूक करते हैं, उससे चार्जिंग स्टेशन भी अछूते नहीं हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ एनर्जी इकोनॉमिक्स ऐंड फाइनेंशियल एनालिसिस के अगस्त 2024 के एक अध्ययन में दिल्ली के 37 चार्जरों में से 31 (83.7 फीसद) बेकार हालत में पाए गए—डिस्प्ले स्क्रीन खराब, कनेक्टर गायब, बिजली नहीं.
उन्होंने यह भी पाया कि निरीक्षण किए गए चार्जरों में से करीब तीन-चौथाई में पहली पीढ़ी के भारत डीसी-001 कनेक्टर लगे थे, जो अब आधुनिक सीसीएस2-सक्षम कारों के साथ काफी हद तक असंगत थे. यह भी कि कम इस्तेमाल से अनदेखी और तोड़फोड़ का दुष्चक्र पुख्ता होता जाता है.
अध्ययन से पता चला कि चार्जिंग की रफ्तार भी एक मसला है. जहां 'फास्ट चार्जिंग’ ज्यादातर लोगों का पसंदीदा विकल्प बना हुआ है, दूसरे देशों के मुकाबले भारतीय उपभोक्ता कहीं ज्यादा धैर्यवान निकले. 69 फीसद लोग सार्वजनिक स्टेशनों पर 80 फीसद चार्ज के लिए 40 मिनट या उससे ज्यादा बिताने के लिए तैयार थे. इकतालीस फीसद का कहना है कि 21 से 40 मिनट उचित हैं, 23 फीसद के लिए 11 से 20 मिनट ठीक हैं, और कहीं ज्यादा की मांग करने वाले 5 फीसद महज 10 मिनट या उससे भी कम बर्दाश्त करेंगे. शुक्र है कि पीएम-ड्राइव के तहत 22,100 फास्ट चार्जर जल्द आने वाले हैं.
इसके मुकाबले चीन में बीवाइडी, एक्सपेंग और जीक्र के मेगावॉट चार्जर 10 मिनट के भीतर 200 से 400 किमी की रेंज देते हैं, यहां तक कि दुपहिया और तिपहिया ईवी के लिए बैटरी-स्वैप स्टेशन भी घने शहरी बाजारों में तेजी से फैल रहे हैं. यूरोप और अमेरिका विश्वसनीयता और भौगोलिक समानता को बेहतर बनाने के लिए एकीकृत नेटवर्कों को बढ़ावा दे रहे हैं, जिनसे तेज, गंतव्य और घरेलू चार्जिंग सुविधाएं जुड़ी हैं.
सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स के वाइस प्रेसिडेंट शेनू अग्रवाल कहते हैं, ''टेक्नोलॉजी को लंबे वक्त के समधान देने होंगे. हमारे यहां कम से कम 300 किमी की रेंज होनी ही चाहिए; चार्जिंग में लगने वाले समय और लागत में कमी लानी होगी. जब तक प्रोडक्ट सॉल्यूशन नहीं मिल जाते, हमें ईकोसिस्टम सॉल्यूशन खोजने होंगे.’’ अभी तक ये उपाय भारत के लिए सपना ही बने हुए हैं, भले ही मंजिल सामने दिखाई दे रही हो. लेकिन धीरे-धीरे चलने से काम नहीं चलेगा, इस सफर को पूरी रफ्तार की जरूरत है.
सोसायटी ऑफ इंडियन आटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (एसआइएएम) के वाइस प्रेसिडेंट शेनू अग्रवाल ने कहा, ‘‘टेक्नोलॉजी को एक लंबे वक्त के लिए समाधान मुहैया करने होंगे. हमें कम से कम 300 किलोमीटर की रेंज तो चाहिए ही. चार्जिंग में लगने वाले समय को कम करना होगा.’’