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स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की किन खामियों के कारण परेशान हो रहे हैं लाखों लोग?

देश की सरकारी और निजी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की खामियों के कारण लाखों लोगों को हर रोज परेशान हो पड़ रहा है

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 13 अक्टूबर , 2025

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित कर रहे थे. तकरीबन उसी वक्त राष्ट्रीय राजधानी से सटे गुरुग्राम के गांव गोपालपुर की 43 वर्षीया सुमन देवी एक निजी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचीं.

उनके सीने में तेज दर्द था. उनके परिजन सुमन को लेकर मिलेनियम सिटी की पहचान रखने वाले गुरुग्राम के उस अस्पताल के लिए चले तो आयुष्मान भारत कार्ड ध्यान से साथ में रखा. उन्हें उम्मीद थी कि कार्ड की मदद से निजी अस्पताल में भी अच्छे से इलाज हो जाएगा.

उनके कुछ परिजनों को इस योजना का लाभ पहले भी मिला था. मगर इस बार अस्पताल में उन्हें कहा गया कि आयुष्मान कार्ड से मुफ्त इलाज नहीं हो पाएगा. जैसे-तैसे परिवार ने पैसे जुटाए और सुमन की बाइपास सर्जरी करानी पड़ी. इस पर करीब 1.85 लाख रुपए खर्च हुए. सुमन की तरह कई सारे लोगों को इस दौरान हरियाणा में स्वास्थ्य बीमा को लेकर इसी संकट से दो-चार होना पड़ा है.

दरअसल, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के बारे में केंद्र सरकार का दावा है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है और इसके तहत देश के 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को हर साल पांच लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की सुविधा है. इसके लिए सरकार ने अस्पतालों का एक नेटवर्क बनाया है, जिसमें सरकारी के साथ-साथ निजी अस्पतालों को भी शामिल किया गया है. जो भी इलाज की प्रक्रिया इस योजना के तहत कवर होती है, उसके लिए केंद्र ने दरें तय की हैं और उसके आधार पर निजी अस्पतालों को पैसे दिए जाते हैं. समस्या की जड़ इसी में है.

दरअसल, निजी अस्पतालों की पुरानी शिकायत है कि सरकार की ओर से समय पर भुगतान नहीं हो पाता. हरियाणा में भी यही शिकायत थी, पर सरकार ने कोई पहल नहीं की. नतीजतन राज्य के करीब 650 निजी अस्पतालों ने 7 अगस्त, 2024 से आयुष्मान कार्ड के आधार पर मरीजों को एडमिट करना बंद कर दिया. बकाए की समस्या कई और राज्यों में भी है. हरियाणा में तो केंद्र की सत्ताधारी भाजपा की ही सरकार है. फिर भी वहां के निजी अस्पताल योजना से बाहर निकल गए थे. उनके इस कदम के बाद सरकार ने सक्रियता बढ़ाई और उनसे बातचीत शुरू की गई. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के हरियाणा चैप्टर, प्रदेश सरकार और निजी अस्पतालों के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठकें रंग लाईं. सरकार ने जल्द से जल्द तकरीबन 500 करोड़ रुपए के बकाए का भुगतान करने पर सहमति दी. इसके बाद 26 अगस्त से फिर से आयुष्मान कार्ड के आधार पर निजी अस्पतालों में इलाज शुरू हुआ.

आयुष्मान भारत की शुरुआत 23 सितंबर, 2018 को प्रधानमंत्री ने झारखंड की राजधानी रांची से किया था. मगर अब तक के सफर में इसमें क्रियान्वयन संबंधी कई समस्याएं आई हैं. हरियाणा में निजी अस्पतालों का इससे अलग होना योजना की विश्वसनीयता और इसके भविष्य पर गंभीर सवाल उठाने वाला पहलू था. साथ ही केंद्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.

इस योजना के लाभार्थियों की पहचान सामाजिक-आर्थिक जनगणना (एसईसीसी) 2011 के आधार पर की जाती है. इसके तहत करीब 12.37 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों (करीब 55 करोड़ लाभार्थियों) को प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपए तक के मुफ्त स्वास्थ्य बीमा की सुविधा मिली हुई है. यह योजना सेकंडरी और टर्शियरी देखभाल के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले खर्चों को कवर करती है. इसके तहत चिकित्सा जांच, दवाएं, सर्जरी और अस्पताल में भर्ती से पहले तथा बाद के 15 दिनों तक का खर्च भी कवर किया जाता है. 9 सितंबर, 2025 तक के भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि योजना के तहत करीब 42 करोड़ आयुष्मान कार्ड बनाए गए हैं. साथ ही अस्पताल में भर्ती के 9.46 करोड़ मामलों को मंजूरी दी गई है. सरकार का अनुमान है कि इन मरीजों के तकरीबन सवा लाख करोड़ रुपए बचाए गए.

लेकिन हरियाणा में इस योजना को लेकर आया गतिरोध चिंता पैदा करता है. गुरुग्राम के एक बड़े निजी अस्पताल के संचालक बताते हैं, ''बीते कई महीनों से निजी अस्पतालों को उनके बकाए का भुगतान नहीं किया जा रहा था. बार-बार सरकार को लिखे जाने के बावजूद कोई पहल नहीं हुई. मेरे जैसे कई अस्पतालों का बकाया करोड़ों रुपए में है. ऐसे में हमारा कामकाज प्रभावित होता है.'' वे कहते हैं कि सरकार के आश्वासन पर हमने आयुष्मान कार्ड के तहत इलाज फिर से शुरू तो किया है मगर भुगतान में प्रगति न हुई तो अस्पताल फिर वैसे ही कदम उठाने को बाध्य होंगे.

पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु जैसे राज्यों के निजी अस्पताल भी यह मुद्दा उठाते रहे हैं. पंजाब के कई निजी अस्पतालों ने दावा किया कि उनके 6-12 महीने पुराने बकाए का भुगतान अभी तक नहीं मिला है. यूपी में भी भाजपा की सरकार है. वहां के भी कुछ अस्पतालों ने योजना से बाहर निकलने की धमकी दी है. यह दिक्कत सिर्फ सरकारी बीमा तक सीमित नहीं. अपनी गाढ़ी कमाई खर्च करके निजी कंपनियों से स्वास्थ्य बीमा लेने वाले लोग भी आश्वस्त नहीं कि मुश्किल घड़ी में उनकी हेल्थ पॉलिसी काम आएगी या नहीं. इसमें भी मामला पैसे का ही है.

दरअसल, अगस्त के आखिरी हफ्ते में 15,000 से ज्यादा निजी अस्पतालों के संगठन एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इंडिया (एएचपीआइ) ने अपने सदस्यों को कहा कि वे बजाज अलायंज जनरल इंश्योरेंस और केयर हेल्थ इंश्योरेंस के ग्राहकों की 'कैशलेस' इलाज की सुविधा बंद कर दें. उसने कहा कि दोनों कंपनियां अस्पतालों को समय पर भुगतान नहीं कर रहीं और वे जो रेट दे रही हैं, उससे अस्पताल संतुष्ट नहीं. एएचपीआइ का दावा है कि भारत में मेडिकल क्षेत्र में महंगाई की वार्षिक दर औसतन 7 से 8 फीसद रहती है. मगर बीमा कंपनियां इस अनुपात में मेडिकल सेवाओं की दर नहीं बढ़ा रही हैं.

एएचपीआइ के इस निर्णय के बाद कुछ अस्पतालों ने दोनों कंपनियों के बीमा ग्राहकों को 'कैशलेस' सेवाएं देनी बंद कर दीं. 1 सितंबर से देशव्यापी स्तर पर इस निर्णय का क्रियान्वयन होना था. एएचपीआइ के सदस्यों में मेदांता, मैक्स और फोर्टिस जैसे बड़े अस्पताल शामिल हैं. वैसे, दोनों पक्षों में बातचीत हुई और तय हुआ कि अस्पतालों के मसलों का समाधान बीमा कंपनियां करेंगी. तब जाकर इन दोनों कंपनियों के कार्ड पर कैशलेस सेवाएं बहाल हो पाईं. यह संकट अभी भले टल गया हो मगर इसने दिखा दिया कि बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा. 

विशेषज्ञों का अनुमान है कि बजाज अलायंज के ग्राहकों की संख्या लाखों में है. देश के कुल स्वास्थ्य बीमा ग्राहकों में से करीब सात फीसद इसी कंपनी के पास हैं. कंपनी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी तपन सिंहल कहते हैं, ''हमें खुशी है कि पॉलिसीधारकों के हित में यह मामला सुलझ गया है. कैशलेस इलाज स्वास्थ्य बीमा की रीढ़ है और इससे समझौता नहीं किया जाना चाहिए. इस तरह की घटनाएं नागरिकों के हितों की रक्षा और स्वास्थ्य सेवा ईकोसिस्टम में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत स्वास्थ्य नियामक की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती हैं.''

भारत में बीमा क्षेत्र के विकास में स्वास्थ्य बीमा का धीमा विकास हमेशा चिंता की वजह रहा है. अब भी देश की करीब एक-तिहाई आबादी के पास ही स्वास्थ्य बीमा है. यह पूरी व्यवस्था ही 'कैशलेस' इलाज की सुविधा के बल पर चलती है. ऐसे में कैशलेस व्यवस्था के प्रभावित होने से गंभीर बीमारियों के इलाज में लोगों को संकट का सामना करना पड़ेगा.

इस मसले पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के एक अधिकारी बताते हैं, ''निजी कंपनियों के हेल्थ इंश्योरेंस में तो मंत्रालय की भूमिका बेहद सीमित है. नियमन का पूरा अधिकार आइआरडीएआइ के पास है. जहां तक आयुष्मान भारत की बात है, अगर अस्पताल हमारे लाभार्थियों का इलाज नहीं करते तो इससे सरकार और योजना की साख को नुक्सान होता है. अस्पतालों को भी समझना होगा कि यह सरकारी योजना है और इसमें लाभार्थियों से कोई प्रीमियम नहीं लिया जाता. हम निजी सेक्टर की दर मैच नहीं कर सकते. हां, भुगतान में देरी की शिकायत वाजिब है. पहले के मुकाबले स्थितियां सुधरी हैं. सॉफ्टवेयर के स्तर पर हाल में सुधार किया गया है. उम्मीद है कि भुगतान में देरी की समस्या का स्थायी समाधान अगले कुछ महीने में हो जाएगा.''

कैसे काम करती है कैशलेस स्वास्थ्य सेवा?

पहला चरण: भर्ती—स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेने वाला या सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना के कार्ड वाला मरीज किसी सूचीबद्ध अस्पताल में पहुंचता है.

दूसरा चरण: प्री-ऑथराइजेशन—अस्पताल इलाज से संबंधित जानकारियों के विवरण और अनुमानित लागत संबंधित बीमा कंपनी/टीपीए को मंजूरी के लिए भेजता है.

तीसरा चरण: मंजूरी/अस्वीकृति—मंजूरी मिल जाती है तो मरीज का बिना भुगतान किए इलाज किया जाता है. आवेदन खारिज होने पर मरीज को अपने पास से भुगतान करना होगा. बाद में मरीज रिइंबरसमेंट क्लेम कर सकता है.

चौथा चरण: क्लेम सेटलमेंट—अस्पताल को बीमा कंपनी/सरकारी एजेंसी की ओर से सामान्य तौर पर 15-30 दिनों के भीतर भुगतान की आदर्श व्यवस्था बनाई गई है.

समस्या की जड़: बीमा कंपनियों या सरकारी एजेंसियों की तरफ से भुगतान में देरी, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए रेट को लेकर मतभेद और जटिल प्रक्रिया इस व्यवस्था की सफलता पर ग्रहण लगा रहे.

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