
अमेरिकी टैरिफ को लेकर चिंताओं के बीच भारत की अर्थव्यवस्था को समझने वाले लोगों के लिए सामान्य से बेहतर मॉनसून का अनुमान काफी राहत की बात थी. इस नाते खरीफ सीजन में रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद लगाई जा रही थी. जून से अगस्त अंत तक दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून की वजह से देश भर में सामान्य से छह फीसदी ज्यादा बारिश हुई है. सितंबर में भी सामान्य से ज्यादा बारिश होने का अनुमान है. ऐसे में किसानों के बीच बंपर खरीफ फसल की उम्मीद जागना स्वाभाविक है. लेकिन यूरिया की किल्लत इन उम्मीदों पर पानी फेरने का काम कर रही है.
खरीफ की मुख्य फसल धान है और धान में सामान्य तौर पर दो बार यूरिया का इस्तेमाल करना पड़ता है. लेकिन अधिकांश राज्यों में किसानों को उनकी जरूरत के हिसाब से यूरिया नहीं मिल पा रही. इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं. दिलचस्प है कि 2022 से ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार भारत के जल्द ही यूरिया के मामले में आत्मनिर्भर हो जाने का दावा करती आई है. अभी की स्थिति में यूरिया की कुल खपत का करीब एक-चौथाई आयात किया जाता है. इस साल यूरिया की खपत करीब सात फीसदी बढ़ने का अनुमान है लेकिन उसकी उपलब्धता चिंता का सबब बनी हुई है.
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सैदपुर ब्लॉक में बीते हफ्ते किसानों ने सहकारी समिति का घेराव कर दिया. घंटों नारेबाजी चली. वजह: यूरिया की सप्लाइ खत्म हो गई थी और धान की रोपाई का मौसम निकल रहा था. यूरिया की किल्लत के कारण प्रदेश के कई जिलों में ऐसी ही तस्वीरें देखने को मिलीं. देवरिया से लेकर हरदोई और जौनपुर से लेकर कानपुर देहात तक, किसानों का गुस्सा सरकार और प्रशासन दोनों पर खुलकर फूटा. कहीं किसानों ने वितरण केंद्रों का घेराव किया तो कहीं सड़कों पर उतरकर यातायात रोक दिया. किसानों का आरोप है कि देरी और कालाबाजारी के कारण संकट बदतर हो रहा है. हालांकि, राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार का दावा है कि उर्वरकों की दूर-दूर तक कोई कमी नहीं. वहीं सोशल मीडिया पर लगातार अपलोड हो रहे वीडियो में सहकारी केंद्रों पर दूर-दूर तक कतारें दिख रही हैं. किसान छूटते ही सवाल करते हैं, ''सरकार कहती है कि यूरिया पर्याप्त है तो हमको मिल काहे नहीं रही? बीच में कौन निगल गया आखिर?''
गोंडा जिले के घनश्यामपुर गांव के प्रधान अतीतानंद त्रिपाठी की सुनिए: ''कुछ जगहों पर तो भीड़ इतनी ज्यादा है कि टोकन बांटे जा रहे हैं. सप्लाइ से कहीं ज्यादा है डिमांड. खरीफ का मौसम शुरू होने के साथ, किसान अपनी फसलों की बुआई के लिए जरूरी उर्वरकों की तलाश में दुकान-दुकान भटक रहे हैं. उपलब्धता की अनिश्चितता ने किसानों को गहरी चिंता में डाल दिया है.''
उत्तर प्रदेश में सालाना 20 से 22 लाख टन यूरिया की खपत होती है. अकेले खरीफ सीजन यानी जुलाई से सितंबर के बीच यह खपत 10 से 12 लाख टन तक जाती है. इस बार अगस्त 2025 तक प्रदेश को कुल 301 यूरिया रैक मिले, जिनमें से खबर लिखे जाने तक 267 पहुंच गए थे और 34 रास्ते में थे. हर रैक में औसतन 2,600 टन यूरिया होता है, यानी अब तक करीब सात लाख टन यूरिया प्रदेश में पहुंचा. प्रदेश सरकार के अनुसार, 27 अगस्त तक यूरिया की कुल उपलब्धता 5.64 लाख टन थी. साफ है कि अभी भी 4 से 5 लाख टन यूरिया की कमी बनी हुई है.
पड़ोसी राज्य बिहार के भी अधिकांश जिलों में यही हाल है. प्रदेश की नीतीश कुमार सरकार भी कह रही है कि यूरिया की कहीं कोई दिक्कत नहीं मगर इसके लिए जगह-जगह चल रहे किसानों के संघर्ष से यह बात गले नहीं उतरती. मुजफ्फरपुर, मधेपुरा, चंपारण समेत उत्तर बिहार के कई इलाके और बक्सर के इलाकों में यूरिया संकट की खबरें लगातार मीडिया में आ रही हैं. अगस्त महीने की 17 और 18 तारीख को तो पश्चिमी चंपारण जिले के दो इलाकों में किसानों ने यूरिया के लिए प्रदर्शन किया. 17 अगस्त को जहां मैनाटांड़ में किसानों ने सड़क पर प्रदर्शन किया और आगजनी की, वहीं 18 को बगहा 2 के बिस्कोमान के काउंटर पर किसानों ने विक्रय स्थल की खिड़कियां तोड़ डालीं. दोनों जगह किसान यूरिया की कालाबाजारी और उसे चोरी छिपे नेपाल भेजने की शिकायत कर रहे हैं. यूरिया की नेपाल को तस्करी की शिकायतें उत्तर बिहार के दूसरे जिलों से भी आ रही हैं.
औरंगाबाद जिले के इंद्रार गांव के किसान संजीव कुमार कहते हैं, ''प्रखंड मुख्यालय रफीगंज में खाद की तमाम दुकानों के चक्कर पिछले कई दिनों से काट रहा हूं. कहीं एक बोरी यूरिया मिल रही है तो कहीं दो बोरी. जितनी यूरिया की जरूरत है, उतनी मिल नहीं रही. पता नहीं क्यों, हर साल यूरिया की दिक्कत हो जाती है.'' हालांकि, बिहार के कृषि विभाग के प्रधान सचिव पंकज कुमार छूटते ही कहते हैं, ''इस वक्त राज्य के किसी भी जिले में उर्वरक की कहीं कोई कमी नहीं. भारत सरकार ने खरीफ सीजन में राज्य के लिए 10.32 लाख टन यूरिया देना तय किया है. 19 अगस्त तक 1.76 लाख टन यूरिया का स्टॉक उपलब्ध था.''
झारखंड इस साल अत्यधिक वर्षा वाला राज्य रहा है. राज्य में 16.60 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई का अनुमान है. फिर भी किसान परेशान हैं क्योंकि उन्हें समय पर यूरिया नहीं मिल रहा. कहीं मिल रहा है तो भारी कीमत चुका कर, यानी कि कालाबाजारी. 266 रुपए की एक बोरी कहीं 600 तो कहीं 800 रुपए में मिल रही है.
झारखंड सरकार ने इस बार कुल 1.63 लाख टन यूरिया की जरूरत बताई थी. केंद्र सरकार ने अब तक 1.15 लाख टन यूरिया की ही सप्लाइ की है. लेकिन जिस तरीके से इसका जिलेवार बंटवारा किया गया, उससे कई जिलों में इसकी भारी किल्लत हो गई. सबसे ज्यादा किल्लत गढ़वा और पलामू जैसे जिलों में हो रही है. पलामू में 2,670 टन यूरिया की जरूरत है लेकिन 28 अगस्त तक जिले को सिर्फ 585 टन यूरिया ही मिल पाई थी. पलामू में 51,000 हेक्टेयर जमीन पर धान रोपनी का लक्ष्य रखा गया था. पिछले 10 वर्षों में पहली बार पलामू में धान रोपनी लक्ष्य के अनुरूप हुई है तो किसानों को पर्याप्त खाद नहीं मिल पा रही. किसान इसके लिए सड़क पर आकर आंदोलन कर रहे हैं. पलामू के सांसद वी.डी. राम ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर पर्याप्त सप्लाइ की मांग की है.
राज्य की कृषि विभाग की मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की कहती हैं, ''बारिश अच्छी होने से धान की रोपाई में बढ़ोतरी हुई है. इससे यूरिया की खपत बढ़ गई है. जबकि मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हुई है. अभी भी 18,422 मीट्रिक टन की कमी है. केंद्र सरकार को चिट्ठी भेज कर यूरिया के चार अतिरिक्त रैक आवंटन की मांग की गई है. तीन रैक आ चुके हैं.''
ओडिशा में यूरिया की कमी की खबरों के बीच प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल प्रमुख नवीन पटनायक ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है. केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री जे.पी. नड्डा को लिखे पत्र में पटनायक ने कहा, ''खरीफ सीजन की शुरुआत में यूरिया की कमी, उसकी कालाबाजारी और मिलावट किसानों के लिए बड़ी चिंता का विषय है. कई जिलों, खासकर आदिवासी बहुल जिलों में यूरिया उपलब्ध न होने के कारण किसान आंदोलन की राह पर हैं.''
अक्सर राजस्थान में रबी की फसल के दौरान खाद की ज्यादा मारामारी रहती है मगर इस बार मॉनसून की मेहरबानी के चलते खरीफ में ही खाद का संकट गहरा गया. राजस्थान के किसानों पर इस बार दोहरी मार पड़ी है. एक तो सामान्य से 61.41 फीसद ज्यादा बरसात और उस पर यूरिया और डीएपी जैसी खाद का संकट. सूबे के कोटा, बूंदी, टोंक, झालावाड़, बारां, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, कोटपूतली, खैरथल, अलवर, भरतपुर जिलों में खाद को लेकर इतनी मारामारी रही कि पुलिस बल की मौजूदगी में खाद का वितरण करना पड़ा. मादक पदार्थों की तरह खाद की कालाबाजारी रोकने के लिए राज्य में अलग-अलग जगहों पर 20 से ज्यादा पुलिस चेकपोस्ट बनानी पड़ी हैं. राजस्थान के सीमावर्ती जिलों से मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात को खाद की कालाबाजारी होती है.
प्रदेश में कई जगहों पर नैनो यूरिया लिक्विड को लेकर भी किसानों और प्रशासन के बीच हाथापाई की नौबत आ गई. टोंक में यूरिया के तीन बैग के साथ 600 रुपए की नैनो यूरिया लिक्विड की बोतल अनिवार्य रूप से दी जाने लगी तो किसान इसके विरोध में आ गए और देवली रोड स्थित इफको ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया. बाद में जिला कलेक्टर ने आदेश दिया कि लिक्विड नैनो यूरिया लेना-न लेना किसान की इच्छा पर निर्भर है. उसे जबरन इसकी बोतल नहीं थमाई जा सकती. इसी तरह की घटनाएं भरतपुर, गंगानगर, बूंदी, बारां और झालावाड़ जिलों में भी सामने आईं. दरअसल, लिक्विड नैनो यूरिया को किसान उस तरह से नहीं अपना रहे जिस तरह की उम्मीद की जा रही थी.
हालांकि, केंद्र सरकार ने यूरिया, डीएपी, एनपीके और एमओपी जैसी खादों के राजस्थान के कोटे का पूरा आवंटन और वितरण कर दिया मगर इस बार प्रदेश में धान, ज्वार और मूंगफली जैसी फसलों की बुआई का रकबा बढ़ने के कारण कई जगहों पर खाद का संकट गहरा गया. राजस्थान में इस बार धान की बुआई 152 फीसद ज्यादा हुई है, वहीं ज्वार 106 और मूंगफली 103 फीसद ज्यादा बोई गई है.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट तो सीधे-सीधे आरोप लगाते हैं कि ''यूरिया का यह संकट केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने खुद खड़ा किया है. लिक्विड नैनो यूरिया बेचने के चक्कर में किसानों को किसानों को यूरिया की कम बोरियां उपलब्ध कराई जा रही हैं. पांच बैग खरीदने पर दो बोतल लिक्विड नैनो यूरिया जबरन दी जाती है.'' हालांकि, राजस्थान सरकार ने केंद्र को खाद के अतिरिक्त आवंटन के लिए पत्र लिखे मगर अप्रैल से अगस्त तक राजस्थान को तय कोटे से 59,000 टन कम यूरिया की आपूर्ति की गई. केंद्र की ओर से मौजूदा खरीफ सीजन में राजस्थान को अप्रैल से अगस्त तक के लिए 8.82 लाख मीट्रिक टन यूरिया आवंटित की गई जिसमें से 8.23 लाख मीट्रिक टन की सप्लाइ की जा चुकी है. बाकी 59,000 मीट्रिक टन के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और मुख्य सचिव ने केंद्र को पत्र लिखे हैं.
कोटपूतली के प्रागपुरा और बहरोड़, सीकर के श्रीमाधोपुर में किसानों को करीब 20,000 बोरी यूरिया की जरूरत थी मगर उन्हें सिर्फ 2,200 बैग ही उपलब्ध हो पाए. सुबह चार बजे से ही लाइन लगाकर खड़े किसानों को जब खाद नहीं मिली तो उन्होंने क्रय-विक्रय सहकारी समिति के सामने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. भरतपुर और डीग में भी खाद न मिलने से नाराज किसान धरने पर बैठ गए. प्रतापगढ़ जिले के धरियावद में यूरिया लेकर आए ट्रक पर किसान चढ़ गए. यहां पुलिस पहरे में खाद का वितरण किया गया. किसान नेता मोहनलाल कहते हैं, ''क्रय-विक्रय सहकारी समिति पर खाद न मिलने के कारण हम निजी बीज भंडार से 84 कट्टे खाद लेकर आए मगर वह नकली निकली.''

यूरिया का उत्पादन केंद्र सरकार के नियंत्रण में है. उर्वरक कंपनियां उत्पादन और आयात दोनों करती हैं. हर सीजन के पहले केंद्र राज्यों से उनकी मांग का अनुमान मंगाती है. इसके आधार पर केंद्र सरकार राज्यों को खाद का आवंटन और आपूर्ति करती है.
देशव्यापी यूरिया संकट के बारे में केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ''सितंबर चल रहा है और अब भी तेलंगाना और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में किसान यूरिया के लिए दुकानों के बाहर लाइन में खड़े हैं. ऐसा कभी नहीं होता था. अच्छे मॉनसून से धान और मक्के का रकबा काफी बढ़ गया है. इसका अनुमान सरकार को भी न था. जैसे-जैसे किल्लत की खबर चली, किसानों ने 'पैनिक बाइंग' शुरू कर दी. इससे संकट और गहराया. चीन समेत दूसरे देशों से यूरिया से आयात प्रभावित हुआ. अब प्रधानमंत्री की चीन यात्रा के बाद फर्टिलाइजर इंडस्ट्री को उम्मीद है कि चीन से खाद सप्लाइ फिर से शुरू होगी. पिछले दो साल से खरीफ सीजन के दौरान चीन से आयात न के बराबर है. घरेलू उत्पादन भी पिछले साल के मुकाबले कम हो गया. हमारी यूरिया उत्पादन इकाइयां अपनी क्षमता से औसतन दस प्रतिशत कम उत्पादन कर रही हैं. इसके लिए इन इकाइयों का बार-बार बंद पड़ना और तकनीकी चुनौतियां जिम्मेदार हैं.'' केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 1 अगस्त, 2025 को भारत में यूरिया का कुल भंडार 37.2 लाख टन था, जबकि पिछले साल 1 अगस्त को यह 86.4 लाख टन था.
वे अफसर आगे कहते हैं, ''संकट खरीफ का ही नहीं, यह रबी सीजन में भी हो सकता है. केंद्र सरकार और खाद कंपनियों के हाथ-पांव इसलिए फूले हुए हैं क्योंकि इस साल 'ऑफ सीजन' की स्थिति नहीं दिख रही. आम तौर पर सितंबर में मांग घटती थी और फिर अक्तूबर मध्य के बाद बढ़ती थी. इस साल यह डेढ़ महीने का अपेक्षाकृत कम मांग वाला पैच न दिखने की उम्मीद है. यानी संकट और गहरा सकता है. मांग और आपूर्ति का यह अंतर सिर्फ यूरिया में ही नहीं, डीएपी और एनपीके में भी है.''
भारत राष्ट्र समिति के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामराव ने कहा है कि उप-राष्ट्रपति के चुनाव में उनकी पार्टी एनडीए और इंडिया गठजोड़ में से उसी के प्रत्याशी को वोट देगी जो तेलंगाना के किसानों को यूरिया की सप्लाइ का इंतजाम कराएगा. काश! ऐसी कोई सीधी सियासी ताकत किसानों के हाथ में होती, जिससे वे नेताओं से झुनझुने न पाकर फौरन अपने पक्ष में कोई ठोस फैसला करवा पाते.
यूरिया संकट की 5 वजहें
> उम्मीद से बेहतर मॉनसूनी बरसात की वजह से खरीफ फसलों का रकबा बढ़ा और अप्रत्याशित ढंग से यूरिया की मांग बढ़ी.
> यूरिया का घरेलू उत्पादन क्षमता से तकरीबन दस प्रतिशत कम हुआ.
> पिछले साल अप्रैल-जुलाई के मुकाबले इस साल समान अवधि में यूरिया आयात में आई 35 फीसदी से ज्यादा की कमी. आयात के सबसे बड़े स्रोत चीन से न के बराबर आयात.
> सरकार के यूरिया वितरण प्लान और ज्यादा मॉनसूनी बारिश वाले राज्यों में तालमेल का अपेक्षाकृत अभाव.
> यूरिया किल्लत की खबरों से किसानों में बढ़ी 'पैनिक बाइंग' ने संकट और बढ़ाया.
— आशीष मिश्र, पुष्यमित्र, आनंद चौधरी और आनंद दत्