जब 3 सितंबर को दिनभर जीएसटी काउंसिल की लंबी बैठक के बाद देर रात वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण प्रेस वार्ता के लिए नई दिल्ली के राष्ट्रीय मीडिया केंद्र पहुंचीं तो वे भले ही थकी हुई थीं मगर मजबूत नजर आ रही थीं. कैमरों की चमक के बीच उन्होंने सरकार के 'जीएसटी 2.0'—भारत के माल एवं सेवा कर में व्यापक बदलाव—का खुलासा किया.
उन्होंने ऐलान किया कि 5, 12, 18 और 28 फीसदी के चार कर स्लैब को अब 5 और 18 प्रतिशत के दो-स्तरीय सरल ढांचे में बदल दिया गया है. इसमें 'नुकसानदेह और विलासिता की वस्तुओं' पर 40 फीसदी का विशेष कर लगाया गया है. उद्योग के लोग और टैक्स प्रोफेशनल्स अरसे से इसकी मांग कर रहे थे. इस बदलाव को उपभोग बढ़ाने के सोचे-समझे दांव के रूप में देखा जा रहा है.
यह कदम भारत के वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर्ज करने के कुछ ही दिनों बाद उठाया गया है जो पांच तिमाहियों में सबसे ज्यादा रही है. परिवारों के खर्च में पहले ही सुधार शुरू हो चुका है. नए कर ढांचे का मकसद उपभोक्ताओं के लिए लागत और कम करना है, साथ ही इस रफ्तार को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहन मुहैया कराना है. वैसे भी इस तरह का सरलीकरण जीएसटी की शुरुआत से ही अहम माना जा रहा था लेकिन चार स्लैब वाले ढांचे के कारण वर्गीकरण से जुड़े कई विवाद पैदा हुए. डेलॉयट इंडिया में पार्टनर एम.एस. मणि कहते हैं, ''सही मायनों में यह अब जाकर मिला है.''
सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दर में कटौती को 'व्यापक सुधार' बताया और जोर दिया कि टैक्स का बोझ घटने, खरीद क्षमता बढ़ने और अनुपालन सहज बनने का फायदा आम आदमी को होगा. अगली सुबह बाजार ने तेजी में प्रतिक्रिया की: घरेलू शेयरों में उछाल आया, निफ्टी वायदा लगभग एक प्रतिशत तक चढ़ा, आने वाले वर्ष में जीडीपी में 0.6-0.7 फीसदी अंक की अनुमानित वृद्धि और 90,000 करोड़ रुपए के जीएसटी राजस्व नुकसान को सहारा मिलने की उम्मीद में निवेशक झूम उठे.
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष हेमंत जैन कहते हैं, सभी उपभोक्ता सामानों की लगभग 30 फीसदी बिक्री त्योहारी सीजन के दौरान होती है और अमेरिकी टैरिफ से पैदा अनिश्चितता के बावजूद इस कदम से मांग बढ़ने, उद्योग की बिक्री को बढ़ावा मिलने और मैन्युफैक्चरिंग तथा नौकरियों में कई गुना प्रभाव पैदा होने की उम्मीद है.
उपभोग को बढ़ावा
तात्कालिक लाभ बहुत स्पष्ट हैं. ध्रुव एडवाइजर्स में पार्टनर रंजीत महतानी कहते हैं कि रोजमर्रा की चीजों—जैसे टॉयलेट के सामान, पैकेट वाले फूड और बरतनों—पर दरों को 18 और 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करने से घर के बजट में आसानी होगी और बचत को बढ़ावा मिलेगा, जिससे खपत को बढ़ावा मिलेगा. ऐसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें लगभग 10 फीसदी घटना मुमकिन है.
इसी तरह, छोटी गाड़ियों और इलेक्ट्रॉनिक सामान पर दर को 28 से घटाकर 18 फीसदी किया गया है जो बताता है कि यह बदलाव बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ बेहतर तालमेल के अनुरूप है. मणि कहते हैं, ''2017 में जब जीएसटी लागू हुआ था, तब जिन वस्तुओं को लक्जरी माना जाता था, वे अब जरूरत बन गई हैं.'' यहां तक कि ग्रामीण खर्च को भी इससे उछाल मिल सकता है जो पहले से दोपहिया वाहनों की बिक्री और पैकेट वाले फूड में दोहरे अंकों की वृद्धि दर्ज कर रहा है. कोटक म्यूचुअल फंड के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह ने इस सुधार को 'एक तीर से कई निशाने' बताया है और इसके कई उद्देश्यों की ओर इशारा किया है: महंगाई घटाना, वैश्विक टैरिफ दबावों का मुकाबला करना और विकास के साथ पारदर्शिता को बढ़ावा देना.
40 प्रतिशत का 'अहितकर और विलासिता' ब्रैकेट मिड और आलीशान कारों, एयरेटेड ड्रिंक और तंबाकू जैसी चुनिंदा वस्तुओं पर लागू होगा जबकि निजी जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी खत्म किया गया है. सीतारमण ने क्षतिपूर्ति उपकर (सेस) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का भी ऐलान किया, जिसे जीएसटी के पहले पांच वर्षों में राज्यों के राजस्व घाटे की भरपाई के लिए शुरू किया गया और 5 से 22 फीसद की दर से लगाया गया. उपभोक्ताओं के लिहाज से मौजूदा व्यवस्था की तुलना में यह कम प्रभावी कर होगा. मसलन एक मिड साइज कार पर अभी 28 फीसदी जीएसटी के साथ 15 फीसदी उपकर लगता है, जिससे प्रभावी दर 43 फीसदी और कुछ श्रेणियों में 48 फीसदी तक हो जाती है. नई व्यवस्था में यह दर घट जाएगी.
यह सुधार महज कर घटाने और सरल बनाने तक सीमित नहीं है. प्राइस वाटरहाउस के पार्टनर प्रतीक जैन कहते हैं कि संरचनात्मक बदलावों से कारोबारों को लाभ होना तय है और संकेत ये हैं कि और भी सुधार होने वाले हैं. अहम बात यह कि दो-स्तरीय ढांचा होने से उत्पादों के वर्गीकरण से जुड़े विवाद और मुकदमे घटेंगे. अनुपालन संबंधी दिक्कतें—जैसे इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) रिफंड में देरी—को भी दूर किया गया है.
फिर भी दरार
खुश करने वाली सुर्खियों के पीछे कुछ झमेले भी छिपे हैं. कर दरों को तर्कसंगत बनाने का काम अभी अधूरा है. कपड़ा, जूते-चप्पल और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में विसंगतियां हैं जो वर्गीकरण विवादों को बढ़ावा दे रही हैं—इसका अक्सर दिया जाने वाला उदाहरण 999 रुपए और 1,001 रुपए की कीमत वाली कमीजें हैं जो अलग-अलग कर श्रेणियों में आती हैं. रियल एस्टेट सलाहकार फर्म एनारॉक के अध्यक्ष अनुज पुरी कहते हैं कि वाणिज्यिक रियल एस्टेट पर आइटीसी लाभों के साथ 12 फीसदी जीएसटी लगता है लेकिन हाल के बदलावों ने इस पर पानी फेर दिया है. कमर्शियल लीजिंग पर आइटीसी हटाने का मतलब है कि डेवलपर अब परियोजना लागत की भरपाई नहीं कर सकते, जिससे परिचालन खर्च और अंतत: किराया बढ़ेगा.
इस बीच, राज्य भी राजस्व में उछाल को लेकर असहज बने हुए हैं, जिससे केंद्र से समय पर धन हस्तांतरण एक राजनीतिक मुद्दा बन सकता है. तेलंगाना ने राज्य के राजस्व को सालाना 6,000 करोड़ रु. के संभावित नुकसान की चेतावनी दी है जबकि झारखंड ने 3,000 करोड़ रुपए की कमी का अनुमान लगाया है. फिर भी राजनीतिक गणित साफ है. जीएसटी 2.0 से मोदी सरकार मध्य वर्ग समर्थक और उपभोक्ता समर्थक अभियान को और मजबूत कर रही है. इसे ऐसे 'दीवाली तोहफे' के रूप में पेश किया गया है जो महंगाई के दौर में भी बोझ घटाता है. यह सुधार ऐसे समय आया है जब बिहार में चुनाव होने हैं और 2026 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम में और भी कड़े मुकाबले सज रहे हैं. आर्थिक नतीजे राजनीतिक मंशा के अनुरूप होंगे या नहीं, यह अमल पर निर्भर करेगा.