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नकली दवाओं के हजारों करोड़ के कारोबार का कैसे हुआ खुलासा?

पुदुच्चेरी से चलकर आगरा और वहां से कई राज्यों में बेची जा रही नकली दवाओं के 2,000 करोड़ रु. के साम्राज्य से परदा उठा

Special report: Agra
आगरा में दवाओं के अवैध कारोबार पर सरकारी टीम की छापेमारी
अपडेटेड 9 अक्टूबर , 2025

ताज नगरी इन दिनों नकली दवाओं की वजह से सुर्खियों में है. यहां के एसएन मेडिकल कॉलेज से सटे फव्वारा दवा बाजार में नकली दवाओं का अवैध रैकेट चल रहा है, इसका पुख्ता सुराग उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को लखनऊ स्थित उसके मुख्यालय पर मिला था. एसटीएफ और औषधि विभाग की टीम ने नकली दवाओं के कारोबारी रैकेट का सुराग लगाने को दो महीने तक आगरा में डेरा जमाया.

उसी दौरान खबर मिली कि नकली दवाओं की एक खेप 22 अगस्त की रात ट्रेन के जरिए चेन्नै से आगरा पहुंच रही है. एसटीएफ के एडिशनल एसपी राकेश यादव ने इंस्पेक्टर यतींद्र शर्मा के नेतृत्व में फौरन एक टीम को इसकी जिम्मेदारी सौंपी. टीम ने औषधि विभाग के अधिकारियों को साथ लेकर आगरा कैंट रेलवे स्टेशन की घेराबंदी की. ट्रेन पहुंचने के बाद कुछ लोग एक बोगी से बड़े-बड़े कुल 12 गत्ते के कार्टन बॉक्स उतारकर टेंपो पर लादते दिखे.

इसकी जांच की गई तो गत्ते में चमड़े के सामान भरे थे. कुछ शक होने पर एक गत्ते का पूरा सामान निकाला गया तो नीचे नकली दवाएं भरी मिलीं. टेंपो चालक को हिरासत में लेकर सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला कि चमड़े के सामान के बीच छिपाई गई ये दवाएं फव्वारा दवा बाजार में 'बंसल मेडिकल स्टोर’ और 'हे मां मेडिको एजेंसी’ भेजी जा रही थीं. देर रात ही दोनों मेडिकल स्टोर सील कर दिए गए.

अगले दिन 23 अगस्त को इन दोनों दुकानों की सिलसिलेवार जांच शुरू हुई तो नकली दवाओं के बड़े अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश हो गया. जांच में पता चला कि पुदुच्चेरी के मीनाक्षी फार्मा के 10 लाख रुपए के बिल के साथ नकली एलेग्रा-120 एमजी समेत कई अन्य दवाएं आगरा कैंट स्टेशन पर भेजी गई थीं. दोनों दुकानों से जाइडस, ग्लेनमार्क, सन फार्मा, सनोफी समेत आधा दर्जन मल्टीनेशनल दवा कंपनियों की सवा तीन करोड़ रुपए की नकली दवाएं जब्त की गईं.

पर गुस्ताखी देखिए कि इसी बीच हे मां मेडिको एजेंसी के संचालक हिमांशु अग्रवाल ने कार्रवाई रोकने के लिए एसटीएफ को एक करोड़ रुपए रिश्वत देने की पेशकश कर दी. शाम को हिमांशु अग्रवाल 500-500 रुपए के नोटों की गड्डियां भरे तीन बैग लेकर बाइक से एसएन मेडिकल कॉलेज के पास तय जगह पर पहुंचा. यहां पर एसटीएफ इंस्पेक्टर यतींद्र शर्मा के साथ भेष बदलकर मौजूद सिपाहियों ने हिमांशु को पकड़कर रिश्वत की रकम बरामद कर ली.

यह पहला मौका है जब रिश्वत की इतनी बड़ी रकम पकड़ी गई हो. इसके बाद छह दिन तक दवा बाजार की दुकानों की जांच करने के दौरान 72 करोड़ रुपए से ज्यादा की नकली दवाइयां और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जब्त किए गए. यह आगरा में अब तक नकली दवाओं की सबसे बड़ी बरामदगी है. अग्रवाल के साथ ही बंसल मेडिकल स्टोर्स के संचालक संजय बंसल समेत कुल पांच लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

इस तरह आगरा की दवा मंडी में अगस्त के अंत में जो कुछ हुआ, वह एक छापा भर नहीं था—यह उत्तर प्रदेश में नकली दवाओं के संगठित, बहु-जिला और बहु-फर्म सिंडिकेट के खिलाफ सबसे ठोस, समन्वित और सबूत-आधारित अभियान का आरंभ था. एसटीएफ और औषधि सुरक्षा तथा औषधि प्रशासन (एफएसडीए) की संयुक्त कार्रवाई ने दवा बाजार की धड़कन तेज कर दी.

गोदामों पर ताले, फर्में सील, करोड़ों की संदिग्ध दवाइयों की बरामदगी, रिकॉर्ड और बिलों की जब्ती—वह 'टर्निंग पॉइंट’ है, जिसने मामले को स्थानीय अपराध से उठाकर राज्यव्यापी—यहां तक कि अंतरराज्यीय—रैकेट की दिशा में मोड़ दिया.
पर कैसे पकड़ा गया आखिर नकली दवाओं के इस जबर-जालिम रैकेट को? यह आसान न था क्योंकि यहां पर ब्रांडेड कंपनियों की हू-ब-हू नकली दवाएं बरामद हुईं.

नकली दवाओं पर रोक के लिए दो साल पहले 300 दवाओं पर 'क्विक रेस्पॉन्स’ (क्यूआर कोड) अनिवार्य किया गया था. दवा के हर पत्ते (स्ट्रिप) पर यह कोड अलग होता है. इसे स्कैन करने पर दवा निर्माता कंपनी, उसका पता, साल्ट, निर्माण की तिथि से लेकर एक्सपायरी डेट का पता चल जाता है. यह कंपनी की वेबसाइट से जुड़ा होता है और इसकी नकल बना पाना खासा मुश्किल होता है. आगरा में औषधि विभाग और एसटीएफ की टीम ने सनोफी कंपनी की एलेग्रा टैबलेट की 29,000 स्ट्रिप जब्त की हैं.

इन स्ट्रिप की जांच की गई तो सभी पर एक जैसा क्यूआर कोड मिला. इसे स्कैन करने पर इसमें दर्ज ब्योरा भी एक जैसा ही आ रहा था. जांच दल में शामिल रहे बस्ती जिले के सहायक औषधि आयुक्त नरेश मोहन दीपक बताते हैं, ''इसी तरह बरामद दूसरी कंपनियों की दवाओं की पत्तियों पर लगे क्यूआर कोड स्कैन करने पर एक जैसा ही ब्योरा मिल रहा है. जांच में पता चला कि एआइ की मदद से क्यूआर कोड को कॉपी किया गया है.’’

यह सामने आया कि नकली दवाओं के कारोबारी ब्रांडेड कंपनियों की महंगी दवाओं के कुछ डिब्बे खरीदते हैं. फिर इसमें दवाओं के क्यूआर कोड और बैच नंबर के उपयोग कर हू-ब-हू असली रैपर बनाते हैं. मूल कंपनी की दवा में मिलने वाले साल्ट को भी हू-ब-हू कॉपी कर नकली दवा बनाई जाती है. इसे रैपर में भरकर बाजार में उतारा जाता है. नरेश मोहन बताते हैं, ''जब इस नकली दवा की जांच होती है तो साल्ट हू-ब-हू वही होने के चलते सैंपल पास हो जाता है, रैपर भी बिल्कुल असली जैसा होता है. इसलिए जांच में यह नकली दवा पकड़ में नहीं आती.’’

एक दवा कंपनी के रिसर्च ऑफिसर के मुताबिक, नकली दवा में साल्ट की नकल तो की जा सकती है लेकिन शरीर में दवाओं की घुलनशीलता और 'रिसेप्टर’ पर साल्ट के प्रभाव की कॉपी नहीं की जा सकती. यह फॉर्मूला कंपनी को लंबी रिसर्च के बाद मिलता है. इसीलिए साल्ट एक-सा होने पर भी नकली दवाएं शरीर पर असर नहीं करतीं क्योंकि ये शरीर में सही ढंग से घुल नहीं पातीं.

औषधि विभाग और स्पेशल टास्क फोर्स की जांच में पता चला कि पुदुच्चेरी में ब्रांडेड कंपनियों की नकली दवाएं बनाने की फैक्ट्रियां काम कर रही हैं. आगरा की हे मां मेडिको एजेंसी, श्री राधे मेडिकल, बंसल मेडिकल ने वहीं की मीनाक्षी फार्मा और श्री अमान फार्मा से पिछले तीन वर्ष में जाइडस, सन फार्मा समेत मल्टीनेशनल कंपनियों की करोड़ों की नकली दवाएं खरीदीं. पुदुच्चेरी के दवा कारोबारियों ने खुद को कंपनी का सुपर स्टॉकिस्ट बताकर एमआरपी से 40 प्रतिशत कम दर पर फर्जी कंपनियों के बिल से दवाएं सप्लाइ करना शुरू कर दिया.

फव्वारा दवा बाजार की मंडी से सस्ती दवा खरीदने के लिए बिहार, पश्चिम बंगाल, दिल्ली समेत अन्य राज्यों के दवा कर्मचारियों ने आना शुरू कर दिया. ये वे दवाएं थीं जो बाजार में महंगी मिलती हैं और इनकी कमी भी बनी रहती है. फर्जी फर्म के बिल पर दवाओं की बिक्री की गई. आगरा के सहायक औषधि आयुक्त अतुल उपाध्याय बताते हैं, ''आगरा में बीते तीन वर्ष से पुदुच्चेरी की मीनाक्षी फार्मा और श्री अमान फार्मा से दवाएं खरीदी जा रही हैं. इसका रिकॉर्ड खंगाला जा रहा है. जिन दुकानों और गोदामों की जांच की गई है उनमें करोड़ों रुपए की कीमत की दवाओं का स्टॉक मिला है.’’ 

आगरा में नकली दवाओं के गिरोह पर यह इकलौती कार्रवाई नहीं है. पिछले कई वर्षों से यहां नकली और घटिया दवाओं का कारोबार लगातार सामने आ रहा है. यह सिलसिला बताता है कि शहर अब इस अवैध धंधे की एक अहम कड़ी बन चुका है. फूड सेक्रटी ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफएसडीए) विभाग के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में पिछले एक वर्ष में 30.77 करोड़ रुपए से ज्यादा की नकली और नशीली दवाएं जब्त हुई हैं जिनमें करीब आधा हिस्सा आगरा का है.

एफएसडीए के एक अधिकारी बताते हैं, ''आगरा में प्रसिद्ध मानसिक रोग अस्पताल होने की वजह से यहां पर नींद, ऐंटी डिप्रेशन और दर्द की दवाओं की बहुत ज्यादा खपत है. इसी की आड़ में आगरा में इन दवाओं की छद्म मांग पैदा करके ड्रग माफिया दवाओं का अवैध करोबार कर रहे हैं.’’

आगरा में अवैध दवाओं के कारोबार से जुड़ी औषधि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां दवा बाजार से दिमागी मरीजों, दर्द और नींद की दवाओं की असल बिक्री 25 लाख रुपए रोज की होती है जबकि इसकी करीब तीन गुना नशे के काम में आ रही है.दीपक इसमें एक और तथ्य जोड़ते हैं, ''दर्द निवारक इंजेक्शन ट्रोमाडॉल, नींद की टैबलेट एल्प्राजोलाम का इस्तेमाल नशे के लिए किया जाता है. इन दोनों दवाओं का कोई भी कॉम्बिनेशन नहीं आता है.’’

कुछ वर्ष पहले नकली दवाओं के तस्करों के ठिकानों से 'हाइ डोज ट्रोमाडॉल’ नाम के कैप्सूल जब्त किए गए थे. उनके रैपर पर ट्रोमाडॉल, एल्प्राजोलाम और दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक का कॉम्बि नेशन दर्ज था. इस तरह अवैध ढंग से दवाओं के साल्ट का उपयोग नशीली दवा के रूप में तस्कर कर रहे हैं. जानकार बताते हैं कि आगरा देश का बड़ा पर्यटन केंद्र होने की वजह से यहां बड़ी तादाद में विदेशी पर्यटक आते हैं, जिनमें से कई नशे के आदी होते हैं.

इन्हीं पर्यटकों की डिमांड पर ड्रग तस्कर नशीली दवाएं मुहैया कराते हैं. इसके अलावा आगरा के सड़क मार्ग से यूपी के सीमावर्ती राज्यों से अच्छी तरह जुड़े होने के कारण भी दवाओं की तस्करी के लिए अनुकूल माहौल बनता है. एक अनुमान के मुताबिक, आगरा में नकली और नशीली दवाओं का अवैध कारोबार 2,000 करोड़ रुपए सालाना से ज्यादा का है.

इन दवाओं को परखने का तंत्र भी अवैध कारोबार को पनपने का मौका दे रहा है. जांच की प्रयोगशालाएं हिमाचल प्रदेश के बद्दी, दिल्ली और लखनऊ में हैं. आगरा से ज्यादातर दवाइयों के नमूने वहीं भेजे जाते हैं. वहां से जांच के नतीजे आने में महीनों लग जाते हैं. आगरा में दवाओं की जांच का कोई अधिकृत लैब न होने के कारण भी दवा माफियाओं के हौसले बुलंद हैं.

आगरा का यह भंडाफोड़ सिर्फ एक छापा नहीं, बल्कि तरह-तरह के रोगों से निजात के लिए दवा खा रहे देश के करोड़ों मरीजों की सुरक्षा पर एक सवालिया निशान की तरह है. असली चुनौती अब इस संगठित माफिया को जड़ से खत्म करने की है.

बेलगाम दवा माफिया

  • 20 जून, 2025: सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स ने थाना एत्मादउद्दौला के तहत आने वाले इलाके में संचालित टेनिस फार्मास्युटिकल्स पर छापा मार कर नशीली दवाओं के साथ हॉकर को पकड़ा था.
  • 9 मई, 2025: थाना ताजगंज के मेवाती नगला इलाके में ऐंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स और ड्रग्स विभाग की संयुक्त छापेमारी में 44 कार्टन भरी नशीली दवाएं जब्त की गईं.
  • 14 नवंबर, 2024: सिकंदरा इलाके के शास्त्रीपुरम में संचालित दो अवैध फैक्ट्रियों में 4.5 करोड़ रुपए की पशुओं की नकली दवाएं पकड़ी गईं. दोषियों पर मुकदमा दर्ज कर फैक्ट्री सील कर दी गई. 
  • 12 नवंबर, 2024: हरियाणा एंटी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने छलेसर के एक गोदाम पर छापा मारकर 36 पेटी एविल इंजेक्शन और 1,500 प्रतिबंधित इंजेक्शन बरामद किए थे.
  • 22 अक्तूबर, 2024: सिकंदरा में विजय गोयल की फैक्ट्री पर छापा मारकर 100 से ज्यादा गत्तों में नींद में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं समेत 14 तरह की नकली दवाएं जब्त कीं.
  • 8 जुलाई, 2023: ऐंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स ने बिचपुरी और सिकंदरा में नकली दवाओं की फैक्ट्री पकड़ी. आरोपी दवा माफिया विजय गोयल ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया.
  • 4 जून, 2023: जयपुर क्राइम ब्रांच ने फव्वारा मार्केट में आर.एस. ट्रेडर्स पर छापा मारकर कोडीन युक्त कफ सीरप की अवैध तस्करी का भंडाफोड़ कर संचालक अमित गुप्ता को गिरफ्तार किया.
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