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देश का मिज़ाज सर्वे 2025 : योगी आदित्यनाथ अब कितने लोकप्रिय?

योगी आदित्यनाथ लगातार जीत की लहर पर सवार और देश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री के सिंहासन पर विराजमान.

Mood of The Nation: best cms
योगी आदित्यनाथ
अपडेटेड 10 अक्टूबर , 2025

बीते दशक के दौरान प्रशासनिक दक्षता के दावों के साथ हिंदू राष्ट्रवादी बहस-मुबाहिसों का ताकतवर मेल भारत के राजनैतिक परिदृश्य को परिभाषित करता रहा है, जो सबसे ज्यादा भाजपा-शासित राज्यों में दिखाई दिया. इस मेल की ही बदौलत विचाराधारा के लिहाज से पार्टी के सबसे मुखर मुख्यमंत्रियों ने जनमानस पर इस तरह दबदबा कायम कर लिया जिसकी बराबरी करने के लिए विरोधी छोर पर दूसरे मुख्यमंत्रियों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी.

इंडिया टुडे का ताजा देश का मिज़ाज सर्वेक्षण राज्यस्तरीय नेतृत्व के चश्मे से भारत की संघीय राजनीति की पड़ताल करके इस बदलती शक्ति-संतुलन पर रोशनी डालता है. इससे पता चलता है कि विभिन्न राज्यों के मतदाता राजकाज, प्रदर्शन और विचारधारा को किस तरह आंककर अपनी धारणाएं बनाते हैं.

इस कवायद में दो अलग-अलग सवाल पूछे गए. पहला, देश भर के उत्तरादाताओं से पूछा गया कि वे भारत में अपना पसंदीदा मुख्यमंत्री किसे मानते हैं. यह धारणागत रैंकिंग है, जिससे उनके खुद के राज्य की सीमाओं के बाहर उनकी मौजूदगी, राष्ट्रीय गूंज और छवि की झलक मिलती है. दूसरा, हर राज्य के लोगों से अपने मुख्यमंत्री के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कहा गया, जो रोजमर्रा के राजकाज के आधार पर ज्यादा जमीनी और स्थानीय आकलन है.

राष्ट्रीय लोकप्रियता के शिखर पर उत्तर प्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विराजमान हैं. उन्हें मिली 36 फीसद स्वीकृति बताती है कि कभी भारतीय राजनीति के हाशिए पर पड़ा बलशाली हिंदू राष्ट्रवाद मुख्यधारा में आ चुका है. लगातार 11 सर्वे के दौरान योगी की स्थिति में वस्तुत: कोई बदलाव नहीं आया और यह बताता है कि धार्मिक प्रतीकवाद, विकास और कानून-व्यवस्था के वादे भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य से बाहर भी लोगों के दिलों को छूते हैं.

इससे ज्यादा ध्यान देने योग्य बनाने वाली बात यह कि अपना राष्ट्रीय दबदबा बनाए रखते हुए उन्होंने उत्तर प्रदेश के भीतर भी सम्मानजनक 40.4 फीसद की रेटिंग हासिल की. यह ऐसी उपलब्धि है जो राष्ट्रीय पहचान रखने वाले ज्यादातर दूसरे मुख्यमंत्रियों को नहीं मिल पाई.

यही असम के हेमंत बिस्व सरमा के साथ हुआ, जो धार्मिक पहचान और जनसांख्यिकी बदलाव के मुद्दों पर कट्टरपंथी रुख के लिए चर्चित एक और भाजपा नेता हैं. उन्होंने बड़े राज्यों के मुख्यमंत्रियों में सबसे ज्यादा संतुष्टि रेटिंग हासिल की, बावजूद इसके कि अपने गृह राज्य में पिछले छह महीनों के दौरान उनकी स्वीकृति रेटिंग 55 फीसद से गिरकर 44.6 फीसद हो गई.

यह गिरावट अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले गौर करने लायक है, जो बेहद शोर-शराबे भरी राजनीति के बावजूद थकान या असंतोष की तरफ इशारा करती है. हालांकि राष्ट्रीय लोकप्रियता की फेहरिस्त में हेमंत, योगी के विपरीत, नीचे नौवें पायदान पर हैं और उन्हें महज 2 फीसद से कुछ ज्यादा उत्तरदाताओं का समर्थन मिला. दोनों मुख्यमंत्रियों की राष्ट्रीय मौजूदगी और स्थानीय स्वीकृति के बीच यह फर्क स्थानीय आधार और राष्ट्रीय तवज्जो के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखने की अहमियत बताता है.

राष्ट्रीय मान्यता और स्थानीय प्रदर्शन के बीच फासला उन विपक्षी और गैर भाजपाई दिग्गजों के साथ और भी साफ हो जाता है जिन्होंने दशकों से राजनैतिक विमर्श पर दबदबा कायम कर रखा है. पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के एन. चंद्रबाबू नायडू, बिहार के नीतीश कुमार और तमिलनाडु के एम.के. स्टालिन मीडिया में बहुत ज्यादा मौजूदगी और लंबे राजनैतिक करियर की बदौलत राष्ट्रीय लोकप्रियता की फेहरिस्त में प्रमुखता से शामिल हैं.

फिर भी जब उनके अपने राज्यों के मतदाताओं से उनके कामकाज का मूल्यांकन करने के लिए कहा गया तो केवल नायडू ही 40 फीसद के करीब संतुष्टि रेटिंग हासिल कर पाए, जिससे वे शीर्ष पांच में आ सके, जबकि ममता मात्र 30.1 फीसद पर सिमट गईं, जो छह महीने पहले के 46 फीसद से काफी बड़ी गिरावट है. एक बार फिर यह अगले साल होने वाले उनके चुनावी इम्तिहान से पहले चिंताजनक संकेत हो सकता है.

भगवा वर्चस्व

कामकाज के पैमाने पर भाजपा का दबदबा उसके राजकाज के मॉडल और मतदाताओं के बीच उसकी स्वीकृति के बारे में दमदार नैरेटिव पेश करता है. सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले शीर्ष 10 में से छह मुख्यमंत्री भाजपा शासित राज्यों की अगुआई कर रहे हैं. यह गौरतलब उपलब्धि है जो अपनी चुनावी जीत को कम से कम धारणा के स्तर पर प्रशासनिक सामर्थ्य में बदलने की पार्टी की काबिलियत दिखाती है.

इस फेहरिस्त में न केवल विचाराधारात्मक कट्टरपंथी योगी और हेमंत, बल्कि छत्तीसगढ़ के विष्णु देव साय और मध्य प्रदेश के मोहन यादव सरीखे उनके कम जाने-माने समकक्ष भी शामिल हैं, जो बताता है कि भाजपा के राजकाज के सांचे का लोगों ने स्वागत किया है, फिर चाहे वह हिंदू राष्ट्रवाद पर केंद्रित हो या विकास या जनकल्याण की योजनाओं पर.

इसके विपरीत कांग्रेस का कोई भी मुख्यमंत्री इस शीर्ष जमात में जगह नहीं बना सका, जो राज्य स्तर पर पार्टी की सांगठनिक कमजोरी और सत्ता में अपने कार्यकाल को साख और विश्वसनीयता में न बदल पाने की उसकी अक्षमता को उजागर करता है. यह भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी के राजकाज के रिकॉर्ड पर गहरी टिप्पणी है.

विपक्षी चेहरों में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अप्रत्याशित कामयाबी की कहानी के तौर पर अलग दिखाई देते हैं. सत्ता से बाहर उथल-पुथल से भरे दौर के बाद वे हैरतअंगेज कायापलट के साथ लौट आए और छह महीने पहले 31 फीसद की संतुष्टि रेटिंग से छलांग लगाकर करीब 42 फीसद पर पहुंच गए, जो समग्र रेटिंग में उनके तीसरे पायदान पर आने के लिए काफी था.

इससे संकेत मिलता है कि उनकी दूसरी पारी उम्मीद से ज्यादा स्थिर साबित हो सकती है और विपक्ष के लिए उम्मीद का दुर्लभ दीया. उनके उभार से एक सचाई भी सामने आती है: जब नेता ठोस राजकाज देने में कामयाब होते हैं, तो मतदाता भी अतीत के विवादों को दरकिनार कर सकते हैं.

पूर्व में जूझ रहे नेताओं का ऊपर उठकर आना एक और दमदार नैरेटिव पेश करता है. पंजाब के भगवंत सिंह मान की स्वीकृति रेटिंग निराजाजनक 17 फीसद से छलांग लगाकर करीब 30 फीसद पर आ गई है, जिससे पता चलता है कि अगर मुख्यमंत्री अपने राजकाज के तौर-तरीकों में बदलाव करें, तो वे शुरुआती गलतियों से उबर सकते हैं.

छोटे लेकिन उभरते सितारे

इस सर्वे से भारत के उन छोटे राज्यों के आशाजनक रुझान भी सामने आए जहां नेता अक्सर राष्ट्रीय चकाचौंध से दूर रहकर सत्ता संभालते हैं. सिक्किम में मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग को बहुमत की स्वीकृति हासिल है, राज्य के करीब 53 फीसद उत्तरदाताओं ने उनके कामकाज के प्रति संतुष्टि जाहिर की. इससे वे लगातार दूसरे दौर में देश भर में बिल्कुल शीर्ष पर कायम हैं.

कुल मिलाकर सर्वे के ये निष्कर्ष भारतीय राजनीति के एक केंद्रीय विरोधाभास की ओर इशारा करते हैं. सबसे ज्यादा दिखाई देने वाले मुख्यमंत्री, यानी जो जुझारू, विचारधारा-उन्मुख होने के साथ लगातार काम में जुटे रहते हैं, हमेशा अपने गृहराज्य में संतोष हासिल करने वाले मुख्यमंत्री नहीं हैं.

योगी विरले अपवाद हैं, जो राज्य में अविचल रहते हुए राष्ट्रीय मंच पर दबदबा बनाए रखने में कामयाब हैं. वहीं हेमंत बिस्व सरमा और ममता खासकर चुनावों की तैयारी करते हुए बहुत ज्यादा प्रचार-प्रसार और उम्मीदों के भारी-भरकम बोझ के खतरे की मिसाल पेश करते हैं. शीर्ष प्रदर्शन करने वालों में कांग्रेस की गैरमौजूदगी से राज्य स्तर पर उसके गहराते संकट का पता चलता है.

मुख्यमंत्रियों के लिए व्यापक संदेश साफ है: विचारधारात्मक स्पष्टता और राजनैतिक आक्रामकता से आप दिख तो सकते हैं, पर टिकाऊ कामयाबी लगातार अच्छे राजकाज के ज्यादा मुश्किल इम्तिहान पर निर्भर करती है.

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