नरेंद्र मोदी झंझावातों से कतई नावाकिफ नहीं और देश की गद्दी पर बैठने के बाद से पिछले 11 साल में वे तकरीबन हर बार बेहतर होकर निकले हैं. प्रधानमंत्री अपने तीसरे कार्यकाल के दूसरे साल में सबसे मुश्किल चुनौती से मुकाबिल हैं, जिसे कोई चाहे तो तिहरी फांस कह सकता है. सामने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खड़े हैं, जो अपने दूसरे कार्यकाल के पहले छह महीनों में ही विश्व व्यवस्था के महा-विध्वंसक बनकर उभरे हैं. अजीब तरह से भारत उनके निशाने पर है. ट्रंप ने हमारे निर्यात पर 50 फीसद का भारी टैरिफ जड़ दिया है, जिससे आर्थिक वृद्धि डांवाडोल हो सकती है.
इसके पहले पहलगाम आतंकी हमले में 26 बेकसूर आम लोगों की जान ले ली गई तो भारत ने मई की शुरुआत में पाकिस्तान पर जवाबी हमला किया. उसे ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया गया था, ताकि पाकिस्तान भविष्य में आतंकवाद को बढ़ावा देने से बाज आए और खबरदार हो जाए. लेकिन ट्रंप बीच में कूद पड़े और संघर्ष-विराम कराने के अपने बड़बोले दावों से खेल बिगाड़ दिया और भारत की जीत के नैरेटिव को फीका कर दिया. इन सभी घटनाक्रमों से मोदी अब तक अमेरिका की ओर साफ-साफ झुकी भारतीय विदेश नीति में नए सिरे से संतुलन बनाने और अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए रफ्तार बढ़ाने पर मजबूर हुए. इसे वे खुद सुधारों की अगली पीढ़ी कहना पसंद करते हैं.
इस नाजुक मोड़ पर मोदी के लिए इंडिया टुडे के छमाही देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण उत्साहजनक खबर लेकर आया है. सर्वेक्षण के नतीजों से जाहिर होता है कि प्रधानमंत्री को अभी भी देश के मतदाताओं का समर्थन और भरोसा हासिल है. सर्वेक्षण में 58 फीसद से ज्यादा लोगों का मानना है कि बतौर प्रधानमंत्री मोदी का कामकाज 'अच्छा' या 'बेहतरीन' है. इसमें फरवरी 2025 के देश का मिज़ाज सर्वे के मुकाबले 3.8 फीसद अंकों की गिरावट जरूर है लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के फौरन बाद उनकी रेटिंग से मेल खाती है. उनकी रेटिंग की पुष्टि इस सवाल से भी हुई कि देश का अगला प्रधानमंत्री बनने के लिए सबसे उपयुक्त कौन है? इस पर मोदी के पक्ष में फरवरी में 51.2 फीसद के मुकाबले 51.5 फीसद की पैरोकारी मिली. उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी—लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी—की रेटिंग 24.7 फीसद के आसपास घूम रही है, जिसका मतलब है कि मोदी को उन पर 27 फीसद अंकों की ऊंची बढ़त है.
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को भी ताजा देश का मिज़ाज सर्वेक्षण से कुछ राहत मिल सकती है. अगर आज लोकसभा चुनाव होते हैं तो एनडीए को लोकसभा की कुल 543 में से 324 सीटें मिलने का अनुमान है, जो साधारण बहुमत की संख्या 272 से 52 ज्यादा है. अलबत्ता यह फरवरी के देश का मिज़ाज सर्वेक्षण के अनुमान 343 सीटों से 19 सीट कम है, लेकिन 2024 के आम चुनाव में एनडीए को मिलीं 293 सीटों से कहीं ज्यादा है. फिलहाल एनडीए की वोट हिस्सेदारी का अनुमान भी 46.7 फीसद है, जो पिछले लोकसभा चुनावों में हासिल 42.5 फीसद से चार फीसद अंक ज्यादा है. एनडीए सरकार के कामकाज से 52.4 फीसद लोग 'संतुष्ट' या 'बेहद संतुष्ट' मिले. इससे इन नतीजों को बल मिलता है. हालांकि ऐसा कहने वाले फरवरी में 62 फीसद लोगों से यह 10 फीसद अंक कम है. आगे आने वाली उथल-पुथल से निबटने के लिए एनडीए नेतृत्व को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.
जहां तक नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी का सवाल है, तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आगे चल रहे हैं. हालांकि देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में लोगों ने योगी को देश का बेहतरीन मुख्यमंत्री आंका है.
खतरे की घंटियां
अलबत्ता भाजपा के लिए चिंता की कुछ लकीरें उभरी हैं. पार्टी की अपनी वोट हिस्सेदारी का अनुमान 40.6 फीसद पर टिका हुआ है लेकिन उसकी सीटों की संख्या 21 कम हो गई है, जो फरवरी के सर्वेक्षण में 281 से घटकर अब 260 पर आ गई है. यह साधारण बहुमत से 12 सीटें कम है, हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में 32 सीटों के घाटे से बेहतर है. असल में, भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि पिछले साल हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में (हरियाणा में अपने दम पर और महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन में) बड़ी जीत के बाद लोगों का उत्साह ठंडा पड़ता दिख रहा है. चुनावी राज्य बिहार और पश्चिम बंगाल में भी भाजपा की सीटों की संख्या में गिरावट दिखती है. भाजपा के लिए मुश्किल यह भी है कि सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे पार्टी शासित राज्यों में भी उसकी सीटों की संख्या में कुछ गिरावट दिख रही है.
मोदी के लिए भी कई चेतावनियां हैं. अमूमन संकटों से साहसिक ढंग से निबटने के लिए उनकी वाहवाही की जाती रही है, जो देश का मिज़ाज सर्वेक्षणों में उनकी लोकप्रियता की रेटिंग में भारी उछाल लाता रहा है. मसलन, प्रधानमंत्री ने अपने पहले कार्यकाल में सितंबर, 2016 में उड़ी में सेना के शिविर पर पाकिस्तान से आतंकी हमले के जवाब में नियंत्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक की. इसी तरह उसी साल नवंबर में काले धन पर चोट के लिए उन्होंने नोटबंदी का ऐलान किया और प्रचलन में मौजूद 500 और 1,000 रुपए के नोटों को हटा लिया गया, जिससे आम लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. लेकिन दोनों कार्रवाइयों से मोदी की ताकतवर और निर्णायक नेता की छवि मजबूत हुई. जनवरी, 2017 के देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में उनकी रेटिंग अगस्त, 2016 के 53 फीसद से बढ़कर 69 फीसद हो गई, और भाजपा की सीटों की संख्या का अनुमान भी 259 से बढ़कर 305 हो गया.
फिर, 2019 में लोकसभा चुनाव से चार महीने पहले, जनवरी में देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में मोदी की रेटिंग में भारी गिरावट और भाजपा की सीटों की संख्या घटकर 202 रह जाने का संकेत मिला, जो अपने दम पर साधारण बहुमत से 70 कम थी. हालांकि, अगले महीने पुलवामा में फिदायिन आतंकी हमले में सीआरपीएफ की एक गाड़ी उड़ा दी गई, जिसमें 40 जवान मारे गए. मोदी ने वायु सेना को पाकिस्तान के काफी अंदर बालाकोट में जवाबी हवाई हमले करने का आदेश दिया, जो उस साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में गेम-चेंजर साबित हुआ. मोदी और भाजपा अपने दम पर 303 सीटों और एनडीए के लिए 353 सीटों के और भी बड़े बहुमत के साथ फिर से सत्ता में आए. यही सकारात्मक धारणा उस साल अगस्त के देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में भी बरकरार रही, जिसमें मोदी के कामकाज को 'अच्छा' से 'बेहतरीन' बताने वाले जनवरी में 54 फीसद से बढ़कर सात महीने बाद 71 फीसद हो गए.
लेकिन इस साल ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान पर और भी तगड़ा हमला किया गया, जिसमें वहां सियासी तौर पर अहम पंजाब प्रांत में स्थित प्रमुख आतंकी गुटों के मुख्यालयों के साथ-साथ उसके हवाई ठिकानों पर बमबारी भी की गई. फिर भी मोदी की रेटिंग या भाजपा की लोकसभा सीटों में कोई बढ़ोतरी का अनुमान नहीं है. ऐसा शायद इसलिए हुआ है क्योंकि लड़ाई जीतने के बावजूद मोदी सरकार अमेरिका के शेखी बघारने से वाहवाही का मौका खो बैठी. ट्रंप बार-बार यह दोहराते रहे कि उन्होंने एटमी जंग टालने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाया. इससे भारत का यह दावा फीका पड़ गया कि युद्धविराम के लिए इस्लामाबाद ने दिल्ली से गुहार लगाई थी, न कि अमेरिका के कहने पर ऐसा किया गया.
किसने हथिया लिया नैरेटिव?
भारत ने इस नैरेटिव को कैसे संभाला, इस पर देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में मिली-जुली राय उभरती है. करीब 55 फीसद लोगों ने ऑपरेशन सिंदूर को पहलगाम आतंकी हमले का कड़ा जवाब माना. लेकिन 54 फीसद का मानना है कि मोदी सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के बारे में सच्ची और पारदर्शी जानकारी दी, जबकि 33 फीसद, यानी एक-तिहाई ऐसा नहीं मानते. युद्धविराम का सूत्रधार कौन था, इस बारे में 29 फीसद की अच्छी-खासी संख्या का मानना है कि यह अमेरिकी राष्ट्रपति के दबाव का नतीजा था. सिर्फ 25 फीसद का मानना है कि भारतीय मिसाइल हमलों से बुरी तरह चोट खाने के बाद पाकिस्तान ने गुहार लगाई. लगभग एक-तिहाई का कहना है कि मोदी ने युद्ध खत्म करने का फैसला खुद किया. कई भाजपा समर्थकों का कहना है कि पाकिस्तान को निर्णायक रूप से हराने के भारी प्रचार के बाद मोदी सरकार की युद्धविराम की घोषणा से उन्हें निराशा हुई.
न ही ऑपरेशन सिंदूर एनडीए सरकार की शीर्ष उपलब्धियों की सूची से अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की जगह ले पाया. सूची में ऑपरेशन सिंदूर पर मंदिर को पांच फीसद अंकों की बढ़त है. उसके बाद नंबर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने, कल्याणकारी योजनाओं और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का है. एनडीए सरकार की नाकामियों में बेरोजगारी सबसे ऊपर है, 27 फीसद के उच्च स्तर के साथ उसे सबसे बड़ी चिंता बताया गया, उसके बाद कीमतों में बढ़ोतरी (21 फीसद) और आर्थिक विकास (7 फीसद) हैं. ये मिलकर एनडीए सरकार के आर्थिक कामकाज पर लोगों की बढ़ती बेचैनी का भी अंदाजा देते हैं 48 फीसद ने केंद्र सरकार के अर्थव्यवस्था को संभालने के तौर-तरीके को 'अच्छा' से 'बेहतरीन' बताया लेकिन लगभग उतने ही लोगों ने इस मामले में सरकार के कामकाज को 'औसत' या 'खराब' माना.
सिर पर मंडराता आर्थिक तूफान
कई दूसरे रुझान भी हैं जिनसे पता चलता है कि प्रधानमंत्री और भाजपा के प्रति समर्थन में अब कई चिंताएं, शर्त और चेतावनियां जुड़ी गई हैं. 72 फीसद लोग देश में बेरोजगारी की स्थिति 'बेहद गंभीर' (51 फीसद) या 'गंभीर' (21 फीसद) मानते हैं. सिर्फ एक-तिहाई का मानना है कि अगले छह महीनों में अर्थव्यवस्था में सुधार होगा जबकि 55 फीसद का कहना है कि यह जस की तस रहेगी या और बिगड़ेगी. रोजमर्रा के हालात के बारे में 61 फीसद का मानना है कि मौजूदा खर्च बरदाश्त से बाहर हो गए हैं. यही हताशा एक दूसरे आंकड़े में भी झलकती है. 55 फीसद का मानना है कि उनकी घरेलू आमदनी या तनख्वाह घट जाएगी या जस की तस रहेगी.
मोदी सरकार के लिए इससे बुरी यह आम धारणा है कि उसकी आर्थिक नीतियां अमीरों के पक्ष में झुकी हुई हैं. 56 फीसद लोगों का मानना है कि उसकी आर्थिक नीतियों का सबसे ज्यादा फायदा बड़े कारोबार को हुआ है, जबकि छोटे कारोबार, किसानों और वेतनभोगी वर्ग को नुक्सान हुआ है. हालांकि एनडीए सरकार दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम चला रही है, जिससे 80 करोड़ से ज्यादा लोग लाभान्वित होते हैं. फिर भी, 60 फीसद से ज्यादा लोग इस बात से नाराज हैं कि 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से उनकी आर्थिक स्थिति जस की तस बनी हुई है या खराब हुई है. शायद सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि मनमोहन सिंह के मुकाबले मोदी के आर्थिक प्रदर्शन के आकलन में भारी कमी आई है. उनके आर्थिक प्रदर्शन में सिर्फ 2 फीसद अंकों का अंतर है—45 फीसद मोदी के पक्ष में और 43 फीसद मनमोहन सिंह के पक्ष में. अलबत्ता ठीक साल भर पहले, अगस्त 2024 के देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में मोदी अपने पूर्ववर्ती से 22 फीसद अंकों की बढ़त के साथ बहुत आगे थे.
कमजोर विपक्ष
अर्थव्यवस्था को संभालने का मोदी सरकार का तरीका अगर इतना ही चिंताजनक और आलोचना के लायक है तो देश में शासन के लिए मतदाता मोदी, भाजपा और उनके एनडीए सहयोगियों पर इतना भरोसा क्यों जता रहे हैं? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि विपक्ष, खासकर इंडिया ब्लॉक, को अभी तक एनडीए के लिए संभावित चुनौती नहीं माना जा रहा. दोनों राजनैतिक गठबंधनों की वोट हिस्सेदारी में 5.8 फीसद का अंतर है. अगर आज आम चुनाव हो जाएं तो एनडीए को 324 लोकसभा सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि इंडिया ब्लॉक के खाते में महज 208 सीटें आएंगी जो 2024 के आम चुनाव में विपक्ष को हासिल 234 सीटों की तुलना में 26 सीटें कम हैं. हालाकि, विपक्ष के लिए अच्छी खबर यह है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडु में एम.के. स्टालिन और बिहार में तेजस्वी यादव जैसे क्षेत्रीय नेताओं ने इस देश का मिज़ाज सर्वे के अनुमान में लोकसभा सीटों के मामले में अपनी स्थिति में सुधार किया है. इससे तो यही साबित होता है कि इंडिया ब्लॉक के अन्य घटकों की बजाय कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन या कमियां भाजपा और एनडीए में उसके सहयोगियों को विपक्ष की तरफ से चुनौती देने में बाधक बन रही हैं.
पार्टी की वोट हिस्सेदारी 20.8 फीसद पर अटकी हुई है, जो भाजपा की वोट हिस्सेदारी 40.6 फीसद का करीब आधा है. भले ही उसने फरवरी 2025 के देश का मिज़ाज सर्वेक्षण की तुलना में अपनी सीट संख्या में 19 का सुधार किया है और यह आंकड़ा 2024 के लोकसभा चुनाव में जीती गई 99 सीटों से सिर्फ दो कम है. राहुल गांधी और मोदी के बीच लोकप्रियता में 26.8 फीसद का अंतर अभी भी काफी ऊंचा है. चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाने में जोशीले प्रदर्शन के बावजूद राहुल को खुद को मोदी का व्यावहारिक विकल्प साबित करने के लिए लंबा रास्ता तय करना होगा. खासकर, इसलिए कि संगठन की ताकत और पहुंच के मामले में भाजपा बहुत आगे है.
लोकतंत्र बचाओ
हालांकि, विपक्ष एकजुट हो जाए तो सामूहिक ताकत से भाजपा और एनडीए को कड़ी चुनौती देने में सक्षम हो सकता है. बिगड़ती अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता के अलावा लोकतांत्रिक मानदंडों में गिरावट को लेकर लोगों में बेचैनी बढ़ रही है. सर्वेक्षण में 64 फीसद लोगों के मुताबिक, देश में चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होते हैं, लेकिन करीब 34 फीसद या एक-तिहाई जितनी बड़ी संख्या इससे उलट राय रखती है. इसी तरह, जहां 58 फीसद लोग विपक्ष के इस आरोप से असहमत हैं कि भाजपा ने महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव जीतने के लिए मतदाता सूचियों में हेराफेरी की लेकिन 35 फीसद जैसी बड़ी संख्या और भी बदतर स्थिति की आशंका जताती है.
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनर्रीक्षण अभियान को लेकर भी लोगों की धारणा इसी तरह बंटी है. 58 फीसद का मानना है कि इसका उद्देश्य सिर्फ नागरिकों को ही मतदान करने देना है, तो 29 फीसद लोग इसके वक्त को लेकर संदेह जताते हैं और उनकी राय है कि यह कवायद सत्तारूढ़ दल की मदद करने का ही एक प्रयास है.
ताजा देश का मिज़ाज सर्वेक्षण अन्य लोकतांत्रिक संस्थाओं की शुचिता भंग होने या उनका दुरुपयोग करने को लेकर लोगों में बढ़ती बेचैनी को भी दर्शाता है. यह पूछे जाने पर कि क्या विपक्ष शासित राज्यों में भाजपा की तरफ से नियुक्त राज्यपाल पक्षपातपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, 61 फीसद ने इससे सहमति जताई. एक धारणा यह भी बन रही कि भाजपा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) और आयकर विभाग जैसी प्रवर्तन एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. 46 फीसद लोग ऐसा ही मानते हैं. यह धारणा न्यायपालिका के बारे में जनता की राय को भी प्रभावित करने लगी है. सिर्फ 37 फीसद लोग ही इस पर पूरी तरह भरोसा करते हैं, 47 फीसद इसमें आंशिक भरोसा जताते हैं और अन्य 12 फीसद इस पर पूरी तरह अविश्वास करते हैं.
इसी तरह, सिर्फ 52 फीसद लोगों को लगता है कि वे देश में राजनीति और धर्म के बारे में खुलकर बोल सकते हैं. कुल मिलाकर 48 फीसद लोगों का मानना है कि देश में लोकतंत्र खतरे में है, जबकि 39 फीसद लोग इसके विपरीत राय रखते हैं.
इस सबके बावजूद संभावनाएं मोदी सरकार के पक्ष में बनी हुई हैं क्योंकि इस उथल-पुथल भरे दौर में उन्हें देश को आगे ले जाने वाला बेहतरीन नेता माना जा रहा है. 60 फीसद से ज्यादा लोग निर्यात पर ट्रंप के टैरिफ के प्रभाव को लेकर चिंतित हैं. मोदी के लिए अहम बात यह है कि धारणाओं की इस लड़ाई में 54 फीसद लोग भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में दरार के लिए अमेरिका को जिम्मेदार मानते हैं और 22 फीसद का ही मानना है कि गलती भारत की है. मतदाता ट्रंप की धौंस से निबटने में मोदी की सराहना भी करते हैं. 61 फीसद लोगों ने जोर दिया कि भारत को अपने हितों से समझौता नहीं करना चाहिए लेकिन अमेरिका के साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए.
प्रधानमंत्री के लिए तात्कालिक प्राथमिकता निर्यातकों पर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करना और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अगली पीढ़ी के सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना है. दीवाली तक वस्तु तथा सेवा कर (जीएसटी) की विभिन्न दरों को तर्कसंगत बनाकर बड़ी राहत का वादा भी किया जा चुका है. ज्यादातर लोगों का कहना है कि उनके लिए देश में व्यवसाय शुरू करना और चलाना मुश्किल हो गया है, इसलिए मोदी सरकार को यह तय करना चाहिए कि 'कारोबार में सहूलियत' सिर्फ नारा ही बनकर न रह जाए. सर्वेक्षण में एक बड़े वर्ग की राय है कि सरकार ने छोटे कारोबार को समर्थन देने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं और लालफीताशाही आर्थिक विकास में एक बड़ी बाधा बनी हुई है. करीब आधे लोगों का मानना है कि भारत के दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की सारी बातें सिर्फ एक प्रतीकात्मक उपलब्धि हैं, जिससे आम आदमी को कोई भला नहीं होने वाला. एक-तिहाई की राय है कि भारत की बहुप्रचारित वैश्विक आर्थिक छवि देश के बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता से मेल नहीं खाती. कुल मिलाकर, ये तमाम परिस्थितियां एक ऐसे प्रतिकूल माहौल की ओर इशारा करती हैं जिसे मोदी अवसर में बदल सकते हैं, और इस काम में तो वे पहले से ही माहिर हैं.
सर्वे में पूछे गए कुछ सवाल और उनके जवाब :
प्र: क्या आपको लगता है कि देश में चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से होते हैं?
तकरीबन दो-तिहाई का मानना था कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होते हैं लेकिन एक-तिहाई की राय इसके उलट
प्र: बिहार में जारी एसआइआर अभियान और उसे बाकी राज्यों में करने की चुनाव आयोग की योजना के बारे में आपकी क्या राय है?
70 फीसद लोगों का मानना है कि बिहार वोटर पुनर्रीक्षण से तय होगा कि सिर्फ नागरिक ही वोट दे सकते हें
प्र: क्या आपको विपक्ष के इस आरोप में यकीन है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में जीत के लिए भाजपा ने वोटर लिस्ट में धांधली की?
स्पष्ट तौर पर बहुमत इस पक्ष में है कि वोटर लिस्ट में छेड़छाड़ नहीं हुई
प्र: क्या आप आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की इस राय से सहमत हैं कि नेताओं को 75 वर्ष की उम्र में सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेना चाहिए?
लगभग तीन-चौथाई लोग नेताओं के 75 साल की उम्र में सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेने की राय से सहमत
सर्वेक्षण का तरीका
इंडिया टुडे देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षणों के क्षेत्र में दुनिया भर में प्रतिष्ठित नाम सीवोटर ने किया. इसके तहत 1 जुलाई 2025 से 14 अगस्त, 2025 के बीच सभी राज्यों के सभी लोकसभा क्षेत्रों में 54,788 लोगों से बातचीत की गई. बातचीत के लिए चुने गए इन लोगों के अलावा पिछले 24 हफ्तों के दौरान सीवोटर के नियमित ट्रैकर डेटा के 1,52,038 लोगों से बातचीत का भी विश्लेषण किया गया, ताकि वोटों और सीटों के अनुमानों की गणना के लिए लंबे वक्त के वोटिंग के रुझान निकाले जा सकें.
इस तरह ताजा देश का मिज़ाज जनमत सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने के लिए कुल 2,06,826 लोगों की राय पर विचार किया गया. रिपोर्टिंग में वृहद स्तर पर त्रुटि की गुंजाइश +/- 3 फीसद और छोटे स्तर पर +/-5 फीसद है, जबकि विश्वास का स्तर 95 फीसद है.
सीवोटर ट्रैकर मई 2009 से हर हक्रते, एक कैलेंडर वर्ष में 52 बार, देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 11 राष्ट्रीय भाषाओं में हर तिमाही 60,000 नमूनों के लक्षित नमूना आकार के साथ चलाया जा रहा है. औसत उत्तर दर 55 फीसद है. ट्रैकर विश्लेषण के लिए सीवोटर 1 जनवरी, 2019 से आरंभ करके सात दिनों के रोलओवर नमूनों का उपयोग करते हुए यह ट्रैकर दैनिक आधार पर चला रहा है.
ये सभी सर्वे रैंडम प्रॉबेबिलिटी या कि बेतरतीब नमूना चयन पर आधारित हैं, ठीक उसी तरह जैसे वैश्विक स्तर पर मानकीकृत पद्धति में इस्तेमाल किए जाते हैं. इसे सभी भौगोलिक और आबादी के विभिन्न हिस्सों में प्रशिक्षित शोधकर्ताओं ने किया है. यह सर्वेक्षण सभी हिस्सों में वयस्क लोगों के कंप्यूटर असिस्टेड टेलीफोन इंटरव्यू (सीएटीआइ) पर आधारित हैं. देश के सभी टेलीकॉम सर्कल में सभी ऑपरेटरों को आवंटित फ्रीक्वेंसी सीरीज को समाहित करते हुए बेतरतीब आंकड़े निकालने के लिए स्टैंडर्ड रैंडम डिजिट डायलिंग (आरडीडी) का इस्तेमाल किया गया है.
सीवोटर दरअसल डेटा का सांख्यिकीय मूल्यांकन करके समुचित प्रातिनिधिक विश्लेषण की कोशिश करता है ताकि उसे जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक स्थानीय आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला बनाया जा सके. डेटा का मूल्यांकन स्त्री-पुरुष, आयु, शिक्षा, आय, धर्म, जाति, शहरी/ग्रामीण और पिछले लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में दिए गए वोट की याददाश्त समेत ज्ञात जनगणना प्रोफाइल के अनुसार किया जाता है. विश्लेषण के लिए सीवोटर अपने प्रोप्राइटरी एल्गोरिद्म का इस्तेमाल करता है ताकि स्प्लिट वोटर फेनॉमेनन के आधार पर प्रांतीय और क्षेत्रीय वोट हिस्सेदारी की गणना सही-सही की जा सके.
गौरतलब यह भी है कि सीवोटर संस्था वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ पब्लिक ओपिनियन रिसर्च की तरफ से तैयार पेशेवर आचार संहिता और प्रथाओं का और भारतीय प्रेस परिषद की तरफ से निर्देशित जनमत सर्वेक्षण के आधिकारिक दिशानिर्देशों का पालन करती है.