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ऋचा वात्स्यायन को ऑर्गेनिक सैनिटरी पैड्स स्टार्टअप शुरू करने का आइडिया कहां से आया?

पीरियड्स के मुश्किल दिनों को आसान करने के लिए ऋचा वात्स्यायन ने केले के रेशे से सैनिटरी पैड तैयार किया और अब इसे बिहार के स्कूलों और सरकारी दफ्तरों में मुहैया कराया जा रहा है

ऋचा वात्स्यायन केले के तने की लुगदी से बनी सैनिटरी किट के साथ
अपडेटेड 25 सितंबर , 2025

उन्हें पीरियड के दौरान हमेशा से काफी क्रैम्प्स आते थे. वे कहती हैं, ''मेरे लिए पीरियड्स कभी आसान नहीं रहे और इसी वजह से मैं ढूंढ़-ढूंढ़कर पीरियड्स के बारे में लगतार पढ़ा करती थी.

एक नाकाम शादी के दबाव से मुक्त होने के बाद जब मैं अपने लिए कोई काम तलाशने लगी तो पहला विचार यही आया कि मैं पीरियड्स की परेशानियां झेल रही बच्चियों की मदद के लिए कुछ करूं.''

इन्हीं विचारों के बीच से गुजरते हुए पटना की ऋचा वात्स्यायन ने सैनिट्रस्ट नाम की एक कंपनी शुरू की. उन्होंने केले के तने की लुगदी से एक ऐसा सैनिटरी पैड बनाया, जो आसानी से नष्ट हो सकता है और अंगों को भी कोई नुक्सान नहीं पहुंचाता.

इस पहल ने उनका जीवन बदल दिया. भारत सरकार और बिहार सरकार दोनों ने उन्हें अपने इस उत्पाद को आगे बढ़ाने के लिए ग्रांट इन सपोर्ट दिया. केंद्र सरकार ने उन्हें वर्ल्ड एक्सपो 2020 में भारत से एग्री स्टार्टअप्स का प्रतिनिधित्व करने के लिए दुबई भेजा. अब वे बिहार सरकार के सरकारी स्कूलों में छात्राओं को केले के तने से बना सेनेटरी पैड उपलब्ध करा रही हैं. वे इस तरह अब तक 15,000 छात्राओं को सैनिटरी नैपकीन और उसके किट बांट चुकी हैं.

ऋचा की किट में केले के तने से बनाए गए नौ नैपकीन का एक पैकेट, एक सैनिटाइजर, एक साबुन, एक अंडरगारमेंट, एक बनाना फाइबर का बना पाउच—जिसमें एक पैड रखा जा सकता है—और एक यूजर मैनुअल था. यह किट 280 रुपए का है. उनके पास 50 रुपए से लेकर 400 रुपए तक के ऐसे किट हैं. पचास रुपए के किट में दो सैनिटरी पैड, एक अंडरगारमेंट, साबुन और लीफलेट होता है. वे बताती हैं, ''काम करते-करते मैंने समझा कि बिहार सरकार के अलग-अलग महकमों की अलग-अलग जरूरतें हैं, इसलिए मैंने अलग-अलग तरह के किट तैयार किए हैं.'' उनका काम सरकार को ऐसे किट की सप्लाइ करना है.

पांच लाख रुपए की बुनियादी पूंजी के साथ 2017 में शुरू किए गए इस काम में उन्हें अच्छी सफलता मिली है. पिछले साल उनका टर्नओवर 20 लाख रुपए का था, इस साल यह 50 लाख रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है.

मगर यह सब रातोरात और यूं ही नहीं हो गया. उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा भी नहीं किया था कि मां-बाप ने उनकी शादी करा दी. शादी के नौ साल बाद उन्हें लगा कि इस जीवन में सब ठीक नहीं है. 2016 में उन्होंने पति से अलग होने का फैसला किया. साल भर तक अपने एक मित्र के साथ कृषि विभाग को विभिन्न सामग्री की आपूर्ति की. और उसके बाद सैनिटरी पैड के इस उपक्रम पर आईं.

ऋचा के मुताबिक, ''इस तरह के पैड बनाना आसान न था. केले के तने से ऐसा पल्प बनता ही न था, जिसे पैड में इस्तेमाल किया जा सके और वह खून भी ठीक-ठाक सोखे. अफ्रीका में ऐसे पैड खूब बनते हैं, मैंने वहां से देख-देखकर घर में कोशिश की. पल्प बन गया तो फिर मैंने मशीन मंगवाई और पैड बनाना शुरू किया. 2019 में मेरा प्रोटोटाइप तैयार हो गया था. फिर उसे कुछ महिलाओं को इस्तेमाल करने के लिए दिया. उन्हें यह थोड़ा भारी लगा. फिर मैंने कोशिश करके इसे हल्का किया. तब जाकर ऐसा पैड बना.''

शुरू में उन्होंने इसे बाजार में बेचना चाहा लेकिन वहां उन्हें सफलता नहीं मिली. उन्हीं के शब्दों में, ''लोगों को पहली नजर में यह बात अच्छी लगती कि यह बायोडिग्रेडेबल है. इससे पर्यावरण को भी और शरीर को भी नुक्सान नहीं है. मगर एक तो यह थोड़ा महंगा है, दूसरा लोगों को पेपर थिन पैड इस्तेमाल करने की आदत है, उन्हें पल्प का पैड थोड़ा भारी लगा. इसलिए यह बाजार में चल नहीं पाया. फिर मैंने सोचा कि इसे छोटी बच्चियों को इस्तेमाल करना सिखाऊंगी. वे शुरू से इसे इस्तेमाल करेंगी तो उन्हें अच्छा लगेगा.''

ऋचा को फीडबैक मिला कि एक बार जो इस पैड को इस्तेमाल करने लगता है, उसे फिर सिंथेटिक पैड का इस्तेमाल अटपटा लगता है. यह भी कि वह कितना नुक्सानदेह है. वे बताती हैं, ''मुझे तो इचिंग शुरू हो जाती है.''

ऋचा ने डेढ़ साल बिहार सरकार के आजीविका मिशन के लिए ऐसे पैड तैयार करने की यूनिट शुरू करने के काम में कंसल्टेंट की भी भूमिका निभाई. उसके बाद उन्हें 2022 में झारखंड के दो स्कूलों में और फिर बिहार के पांच स्कूलों में ऐसे ही पैड सप्लाइ करने का काम मिला. आज वे 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान के तहत सैनिटरी किट सप्लाइ कर रही हैं.

शुरुआती अनुभवों की वजह से ऋचा अब अपने इस उत्पाद को बाजार में उतारने से हिचकती हैं. वे ऐसे ही काम में अपना समय देना चाहती हैं. वे कहती हैं, ''मैं मार्केटिंग नहीं जानती, मैं उत्पादक हूं. मैं केले के तने से पैड बनाना जानती हूं. इसलिए यही काम करूंगी. हां, आगे मेरा इरादा ओईएम (ओरिजनल इक्युपमेंट मैन्युफैक्चरर) बनने का है. यानी प्रोडक्ट बनाऊंगी, ब्रांड नहीं. जिस ब्रांड को इच्छा होगी वह मेरे प्रोडक्ट खरीदकर अपने ब्रांडनेम से इसे बेच सकता है.''

ऋचा वात्स्यायन ने कहा, ''यह पैड बनाना आसान न था. केले के तने से ऐसा पल्प बनता ही नहीं था जिसे पैड में इस्तेमाल किया जा सके. शुरू में लोगों ने कहा कि थोड़ा भारी है. फिर मैंने इसे हल्का किया. अब जाकर इसने सही आकार लिया.''
 

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