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नेजू जॉर्ज ने कैसे बांस से बुना आत्मनिर्भरता का ताना-बाना?

कर्नाटक में ग्रीनकाफ्ट कंपनी बांस की पत्तियों के प्राकृतिक रेशों से प्रोडक्ट बना रही है, जिससे हजारों परिवारों को आजीविका मिल रही है.

78 Years of  independence the micromoguls
नेजू जॉर्ज अब्राहम ग्रीनक्राफ्ट की महिला उत्पादकों के साथ
अपडेटेड 1 अक्टूबर , 2025

ग्रीनकाफ्ट की कहानी किसी एक व्यक्ति से शुरू नहीं होती. यह कई महिलाओं के एक साथ आने और अपनी कारीगरी—प्राकृतिक रेशों से बने लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स और होम एक्सेसरीज—को दुनिया के सामने रखने का उपक्रम है.

मकसद था महिला कारीगरों के बनाए सामान को औपचारिक अर्थव्यवस्था तक पहुंचाना और उन्हें गरीबी से बाहर निकालना. आज वे चमत्कारिक रूप से एक वैश्विक ब्रांड हैं. इसकी शुरुआत 2012 में इंडस्त्री क्राफ्ट‍्स फाउंडेशन के सहयोग से हुई.

कारीगरों को म्यूचुअल बेनिफिट ट्रस्ट (एमबीटी) सेंटर्स पर प्रशिक्षित किया गया. ग्रीनक्राफ्ट प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड आज 22 एमबीटी और हाशिए पर रहने वाली 3,500 महिलाओं की हिस्सेदारी से बनी है. इनके हाथों से बने प्रोडक्ट—जिनमें बांस की वॉल हैंगिंग, तोरण, स्ट्रिंग लाइट्स, लैंप और लालटेन शामिल—दीवाली और क्रिसमस जैसे त्योहारों पर बिक्री के लिए तैयार किए जाते हैं. ऑनलाइन स्टोर्स पर ऐसे खूबसूरत बांस से बने इनके उत्पाद भरे पड़े हैं. इस काम से तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा के गांवों की महिलाओं का जीवन बदल गया है.

धनभाग्यम रोज सुबह 9 बजे काम पर पहुंचती हैं. 65 साल की इस महिला को घर से मर्टल्ली गांव तक पहुंचने के ‌लिए करीब एक घंटे पैदल चलना पड़ता है. यह गांव कर्नाटक-तमिलनाडु बॉर्डर पर स्थित माले महादेश्वर (एमएम) हिल्स के जंगलों में है, जो कभी वीरप्पन का अड्डा हुआ करता था. धनभाग्यम चार साल पहले पास के एमबीटी सेंटर से जुड़ीं, जहां महिलाओं को बांस से टोकरी और घर सजाने के सामान बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है.

प्रोडक्शन यूनिट की दीवार के पास धनभाग्यम और उनकी साथिनों के हाथों बनाए गए बांस के उत्पादों के नमूने रखे हैं. इन्हीं नमूनों की मदद से नौ यूनिट्स में 300 और महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाएगी. इस तरह ग्रामीण भारत के दिल से बनाए गए ये सामान चमकते-दमकते महानगरों के ड्रॉइंग रूम तक पहुंचते हैं. ग्रीनक्राफ्ट के वैश्विक ग्राहकों में जापानी ब्रांड मुजी, फ्रांसीसी रिटेलर कैरेफोर और होम डेकोर ब्रांड कैरावेन शामिल हैं.

बेंगलूरू स्थित इंडस्त्री फाउंडेशन के सीईओ नेजू जॉर्ज अब्राहम कहते हैं, ''दिखते हम भले ही ग्रामीण हों लेकिन क्वालिटी एश्योरेंस के मामले में हमारी प्रोसेस वर्ल्ड क्लास है.’’ ग्रीनक्राफ्ट की शुरुआत महिलाओं के समूहों ने की थी, जो तमिलनाडु में केले के रेशे से बने प्रोडक्ट और ओडिशा में साल के पत्तों से बनी प्लेटें तैयार करती थीं.

बाद में 2021 में उनका ध्यान बांस की तरफ शिफ्ट किया गया. नेजू बताते हैं कि बांस एक बहुउपयोगी प्राकृतिक फाइबर है, जो पूरी वैल्यू चेन को कवर कर सकता है. पर्याप्त आरऐंडडी के साथ बांस पेपर, विस्कोस रेयॉन, प्लाइवुड और बोर्ड्स में इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की जगह ले सकता है.

विडंबना यह है कि भारत कच्चे बांस के सबसे बड़े आयातक देशों में से एक है. इसी वजह से इंडस्त्री ने मिशन बनाया है दस लाख लखपति दीदी तैयार करना. इसके लिए बांस की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है—इस वैल्यू चेन में 30,200 महिलाएं जुड़ी हुई हैं—और महिला कारीगरों को उनके घरों के पास ही रोजगार दिया जा रहा है.

धनभाग्यम हर महीने 10,000-13,000 रुपए कमाती हैं और अपने बीमार पति का सहारा बनी हुई हैं. ऐसे हौसले से भरी ‌जिंदगी की कहानियां ग्रीनक्राफ्ट की महिला कारीगरों में आम हैं—चाहे मर्टाहल्ली की महिलाएं हों या पहाड़ियों पर बसे पोनाची जैसे आदिवासी गांवों की. पोनाची में औरतें कच्चे बांस को पतली-पतली फांकों में काटकर बुनाई के लिए तैयार करती हैं.

ग्रीनक्राफ्ट का लेबल उन्हें एक पहचान और जुड़ाव देता है, लेकिन एक और चीज है जो उन्हें और मजबूती से बांधती है: अपने काम पर गर्व. वे अपने हर धागे, हर फाइबर में अपनी मेहनत और आत्मसम्मान डालती हैं. यही गर्व उनकी असली ताकत है.

नेजू जॉर्ज अब्राहम के मुताबिक, दिखते हम भले ही ग्रामीण हों लेकिन क्वालिटी एश्योरेंस के मामले में हमारी प्रोसेस एकदम विश्वस्तरीय है, वरना वैश्विक खरीदार हमसे कभी सामान नहीं खरीदते.
 

अजय सुकुमारन

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