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प्लास्टिक कचरे से 60 शहरों में बिजनेस एम्पायर खड़ा करने वाले सुहैल की कहानी

कोरोना महामारी के दौरान प्लास्टिक कचरे से परेशान दिल्ली के एक युवा ने रिसाइक्लिंग की तकनीक सीखी और अब प्लास्टिक कचरे से बने उत्पादों को 60 से अधिक शहरों में बेचता है

मोहम्मद सुहैल अपने कारखाने में विभिन्न उत्पादों के साथ
अपडेटेड 25 सितंबर , 2025

समस्या प्लास्टिक नहीं, बल्कि उसकी ड्यूरेबिलिटी है, यानी सैकड़ों साल तक नष्ट न होने का उसका चरित्र. तभी तो यह धरती और पर्यावरण के लिए भयानक चुनौती बन चुका है.

दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में रहने वाले 32 साल के मोहम्मद सुहैल ने इस चुनौती को अवसर में बदला है. वे ऐसे प्लास्टिक बैग बनाने पर काम कर रहे हैं जो बार-बार इस्तेमाल किए जा सकें और जो जल्द ही खुद नष्ट हो जाएं.

उनकी मेहनत से करीब 300 टन प्लास्टिक वेस्ट लैंडफिल में जाने से बचाया जा चुका है. सुहैल की कंपनी अथर पैकेजिंग आज 12 तरह के जिपर पाउच, स्टैंडअप पाउच और एनवेलप बना रही है. खास बात यह है कि इन पैकेजिंग बैग्स में इंडस्ट्रियल वेस्ट प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. ये पाउच सात बार तक रीयूज किए जा सकते हैं. पुरानी दिल्ली के एक पैकेजिंग मजदूर के बेटे सुहैल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से सोशल सर्विस में पोस्ट-ग्रेजुएशन के बाद एनजीओ में नौकरी की.

उनका असली सफर 2021 में कोविड लॉकडाउन के दौरान शुरू हुआ. तुर्कमान गेट की संकरी गली में उनके घर के पास चार फुट ऊंचा कूड़े का ढेर लग गया था. यह ढेर ज्यादातर प्लास्टिक और फूड वेस्ट का था. सुहैल को लगा कि जल्द ही यह गंदगी उनके घर तक पहुंच जाएगी. यहीं से उन्होंने वेस्ट और प्लास्टिक रीसाइक्लिंग की दिशा में रिसर्च शुरू की. सुहैल ने बवाना इलाके की फैक्ट्रियों का रुख किया जहां प्लास्टिक रिसाइकिल होता है. उन्होंने वीडियो देखे, किताबें पढ़ीं और घर पर वेस्ट पेपर से शगुन के लिफाफे बनाए. एक कंपनी को 4,000 लिफाफे बेचे तो प्रतिक्रिया मिली: कागज ठीक है, प्लास्टिक पर कुछ काम करो. यही चुनौती उन्हें उनके मिशन की तरफ ले गई.

उन्होंने फैक्ट्री वेस्ट पर ध्यान केंद्रित किया. सुहैल बताते हैं कि किसी चिप्स कंपनी के लिए 100 किलो पैकिंग मटीरियल बनता है तो उस बनने की प्रक्रिया में ही 15-20 किलो वेस्ट बच जाता है. यह वेस्ट थोक में एक ही जगह मिल जाता है. प्लास्टिक से प्रोडक्ट बनने के बाद उसे रिसाइकिल करना जटिल प्रक्रिया है लेकिन फैक्ट्री वेस्ट यानी बनते वक्त ही बचे वेस्ट को सीधा इस्तेमाल किया जा सकता है. सुहैल के मुताबिक, एक किलो प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकिल करने में चार किलो कार्बन एमिशन होता है, जबकि एक किलो फ्रेश प्लास्टिक बनाने में छह किलो उत्सर्जन. लेकिन जब इंडस्ट्रियल वेस्ट प्लास्टिक को हम सीधे खरीद लेते हैं तो ये दोनों प्रक्रियाएं बच जाती हैं. इस तरह उनका प्रोडक्ट 90 फीसद स्क्रैप और 10 फीसद फ्रेश प्लास्टिक से बनता है. उनकी पहल से अब तक 1,800 टन कार्बन उत्सर्जन रोका जा चुका है. इसके लिए उन्हें टेली एमएसएमई का चैंपियन ऑफ कॉज अवॉर्ड भी मिला.

अथर पैकेजिंग के पाउच भारी होते हैं और इन्हें रिसाइकिल करना आसान होता है. लेकिन चुनौती देखिए: लोग कहते हैं कि ''प्लास्टिक से प्लास्टिक ही बना रहे हो.'' इस पर सुहैल मानते हैं कि अगला कदम सौ फीसद डिकम्पोजेबल पैकेजिंग बनाना है.

वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने फूड वेस्ट से ऐसा चिपकने वाला पदार्थ तैयार किया है जिसे पाउच पर कोट करने पर यह 25 फीसद तक खुद नष्ट हो जाता है. लक्ष्य है कि इसे 100 फीसद तक लाया जाए. साथ ही उन्होंने टेक बैक प्रोग्राम शुरू किया है यानी ग्राहक इस्तेमाल के बाद पाउच लौटाएंगे और बदले में क्रेडिट पाएंगे. नोएडा के एक मार्ट से इसकी शुरुआत की गई है और 30 किलो पाउच वापस भी आ चुका है.

सुहैल मानते हैं कि प्लास्टिक का अर्थशास्त्र उसके पर्यावरणीय पहलुओं की अनदेखी करता है. अथर पैकेजिंग के पाउच की कीमत 130 रुपए किलो है जबकि पतली किराना पन्नी 100 रुपए किलो आती है. पतली पन्नी से 600 पीस बनते हैं, जबकि उनके पाउच से 100 पीस. लोग सस्टेनेबिलिटी की बजाए कीमत देखते हैं. यही वजह है कि वे इसे और अफोर्डेबल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. फिर भी उनके पाउच सात बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं और एनएबीएल टेस्टिंग में साबित हुआ है कि इनकी लाइफ 100 साल है, जबकि पतली पन्नी 400 साल में डीकम्पोज होती है.

आज अथर पैकेजिंग के पास 60 शहरों की 800 से ज्यादा कंपनियां क्लाइंट हैं. औसतन एक ऑर्डर 78,000 रुपए का होता है. इन पाउचों का इस्तेमाल कॉस्मेटिक, केमिकल, उपकरण और सीरिंज पैकिंग में हो रहा है. कच्चे माल के रूप में वे 12 कंपनियों से वेस्ट प्लास्टिक लेते हैं. कुछ मुफ्त, कुछ खरीदा हुआ. सुहैल बताते हैं कि उनके प्रोडक्ट इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के हैं. चीन की तुलना में भी उनकी कीमत कम है. हाल ही उन्होंने 1,000 पीस पाउच दुबई भेजे और यह चीन की घरेलू कीमत से भी सस्ते पड़े.

सुहैल मानते हैं कि कुछ उद्योगों, खासकर केमिकल के लिए प्लास्टिक का विकल्प संभव नहीं. उसे रीसाइकिल करना जरूरी है. वे अब वापस आए पाउच से धागा बनाकर कपड़े तैयार करने वालों से बात कर रहे हैं. वे ऐसे पाउच बनाना चाहते हैं जो पानी या जमीन में दबने पर खुद नष्ट हो जाएं.

सुहैल की कोशिश साबित करती है कि प्लास्टिक दुश्मन नहीं बल्कि हमारी समझ और इस्तेमाल का तरीका असली समस्या है. प्लास्टिक को सही तरीके से रीयूज और रीसाइकिल किया जाए तो यह बोझ नहीं, समाधान बन सकता है.

मोहम्मद सुहैल ने कहा, ''एक किलो प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकिल करने में चार किलो कार्बन एमिशन होता है, जबकि एक किलो फ्रेश प्लास्टिक बनाने में छह किलो उत्सर्जन. लेकिन जब इंडस्ट्रियल वेस्ट प्लास्टिक को हम सीधे खरीदते हैं तो ये दोनों प्रक्रियाएं बच जाती हैं.''

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