आदित्य गुप्ता उम्र के बीसवें दशक की शुरुआत में कंप्यूटर साइंस की डिग्री लेने के बाद भोपाल में अपने घर लौट आए लेकिन उन्होंने वह रास्ता नहीं चुना जो उनकी उम्र और योग्यता वाले ज्यादातर लोग अपनाते. उन्हें अच्छी तरह पता था कि कॉलेज से निकलते ही परिवार के मुर्गीपालन व्यवसाय में कदम रखना है.
वे नहीं चाहते थे कि वे खुद भी एक आम भारतीय इंजीनियर की तरह मिडलाइफ क्राइसिस में उलझें, जिसमें लोग काफी समय बाद महसूस करते हैं कि वे इस तरह की जिंदगी नहीं जीना चाहते थे. लेकिन आदित्य परिवार के बाकी सदस्यों की तरह मांस बेचने का काम भी नहीं करना चाहते थे.
उन्होंने लेयर्स यानी अंडे देने वाली मुर्गियों को पालने का काम चुना और फिर उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई. इस युवा इंजीनियर ने भोपाल के बाहरी इलाके में स्थित आरएस एग्रो नामक पोल्ट्री फार्म में छह महीने की इंटर्नशिप की, जिसके मालिक जल्द ही उनके लिए गुरु बन गए. उनसे आदित्य ने व्यवसाय की बारीकियां सीखीं और फिर खुद का उद्यम स्थापित किया. वर्षों उनकी दिनचर्या सुबह 4 बजे फार्म पहुंचने से शुरू होकर रात 9 बजे घर लौटने तक रही. उनका जीवन काफी समय तक एकदम नीरस-सा चलता रहा फिर अचानक 2018 में उन्हें एक त्रासदी से गुजरना पड़ा.
कैंसर के शिकार होने का पता चलते ही आदित्य को कुछ समय के लिए लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया. लेकिन बीमारी को लेकर उनकी चिंताओं ने ही उन्हें अपनी उन महत्वाकांक्षाओं को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए प्रेरित किया जो अब तक ठंडे बस्ते में पड़ी थीं. उन्होंने अपने व्यवसाय से जुड़े एक खास पहलू पर ध्यान देने का फैसला किया, और यह था मुर्गियों के लिए स्वस्थ आहार बनाना ताकि उनके अंडे सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक हों.
आदित्य बताते हैं, ''जब भी खेत में कोई पक्षी मरता था तो हम मौत का कारण जानने के लिए पोस्टमॉर्टम करते थे. हमने पाया कि व्यावसायिक आहार समस्या पैदा कर रहा था और दवाओं, खासकर ऐंटीबायोटिक की सीमाएं हैं. तभी मैंने आयुर्वेद के बारे में पढ़ना शुरू किया और यह भी कि कैसे स्वस्थ आहार बनाने के लिए जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जा सकता है.
तीन वर्ष तक कई तरह के शोध करने के बाद आखिरकार उन्होंने अपने पोल्ट्री फीड के पेटेंट के लिए आवेदन किया. तीन वर्ष और इंतजार करने के बाद उन्हें भारतीय पेटेंट कार्यालय से पेटेंट मिल गया. अब वे इसके विशेषज्ञ हैं, उन्होंने विशेष फीड के लिए भारत में पांच और अमेरिका में तीन और आवेदन किए हैं, जिसके इस्तेमाल से मुर्गियां ऐसे अंडे देती हैं जिनमें कोलेस्ट्रॉल और वसा कम होता है और जो ओमेगा 5 और ओमेगा 7 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं.
आम तौर पर लोग अंडे खाने से होने वाली एलर्जी की शिकायत करते हैं. लेकिन हाइपोएलर्जेनिक अंडों ने मानव परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है, जिसका मतलब है कि उन्हें खाने पर सामान्य अंडों जैसी एलर्जी नहीं होती. आदित्य कहते हैं, ''हर्बल आहार के इस्तेमाल से मुर्गी के अंडों में प्रोटीन, खनिज, विटामिन और फ्लेवोनोइड्स की मात्रा अधिक होती है और ये खाने वालों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.’’ आदित्य के मुताबिक, उनके बनाए चारे में 200 से 250 जड़ी-बूटियां हैं जिन्हें अलग से खाना संभव नहीं है, लेकिन इन अंडों के जरिए आसानी से उपभोग में लाया जा सकता है.
हालांकि, पूरे सफर में उन्हें पत्नी से काफी मदद मिली. जब उन्हें अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते थे तब उनकी पत्नी दिशा ही इस कारोबार को संभालने में जुटी रहतीं. उन्हें मुर्गी, मांस और अंडों के पारिवारिक व्यवसाय का तो कोई अनुभव नहीं था लेकिन पति के इनोवेशन की मार्केटिंग और डिस्ट्रिब्यूशन में उन्हें महारत हासिल थी.
जब कोविड का दौर आया तो आदित्य की मुर्गियों के अंडे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर होने के अस्पतालों में उनकी मांग बढ़ने लगी. चूंकि भोपाल में लॉकडाउन था और उनका कोई भी कर्मचारी घर पर नहीं था इसलिए यह दंपति खुद शहर भर में घूम-घूम कर अस्पतालों में अंडे पहुंचाने लगा.
विस्तार की योजना पर आदित्य बताते हैं, ''चारे में इस्तेमाल सभी जड़ी-बूटियों में औषधीय गुण होते हैं. मुझे पता है कि ये अंडे उन लोगों के लिए काफी उपयुक्त हैं जिन्हें अंडों से एलर्जी है. लेकिन मैं अन्य बीमारियों के इलाज पर भी काम कर रहा हूं. उदाहरण के तौर पर, ओमेगा-7 मोटापा घटाने में मददगार होता है.’’ उम्मीद है, आदित्य के फार्म के अंडे लोगों की सेहत के लिहाज से आगे चलकर और भी ज्यादा फायदेमंद साबित होंगे.