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पहले किसान, फिर बनीं मशरूम कारोबारी! अनु कानावत परंपराओं को तोड़ कैसे आगे बढ़ीं?

राजस्थान में प्रोफेसर से उद्यमी बनी एक जिद्दी महिला अन्नू कानावत ने परंपराओं को चुनौती देकर मशरूम की खेती को चुना. विरोध को साहस में बदलते हुए उसने बदलाव की नजीर पेश की है

अन्नू कानावत (बाएं) अपनी मां और ताईजी के साथ
अपडेटेड 25 सितंबर , 2025

राजस्थान के भीलवाड़ा की अन्नू कानावत आज हर उस महिला के लिए प्रेरणा हैं जो परंपराओं और सामाजिक बंधनों के बावजूद अपने सपनों को साकार करना चाहती है. सिसोदिया राजपूत परिवार में जन्मीं अन्नू ने जीवन का ऐसा रास्ता चुना जिसे समाज ने सहज स्वीकार नहीं किया. उन्होंने शुरुआती दौर में तानों और विरोध का सामना किया लेकिन हार नहीं मानी. यही विरोध उनकी ताकत बना और मशरूम की खेती उनके जीवन में बदलाव की वजह बनी.

अन्नू एक विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर थीं. उनके सामने स्थायी नौकरी और सुरक्षित भविष्य था लेकिन उन्होंने परंपरागत सोच को चुनौती देते हुए मशरूम की खेती करने का निर्णय लिया. उन्होंने 2018 में अपने मायके आमल्दा गांव के खाली पड़े दो कमरों में बटन मशरूम उगाना शुरू किया. महज पांच हजार रुपए की लागत से किए गए इस प्रयास ने 60 दिन में ही डेढ़ लाख रुपए का मुनाफा दिया.

यह सफलता उनके लिए प्रेरणा बनी, फिर उन्होंने ऑयस्टर और कोर्डिसेप्स जैसे महंगे मशरूम की ओर कदम बढ़ाया. जब कारोबार रफ्तार पकड़ रहा था तभी कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी. लाखों रुपए का मशरूम तैयार था लेकिन बाजार बंद हो गया. ऐसे हालात में ज्यादातर लोग हार मान लेते मगर अन्नू ने संकट को अवसर बना लिया. उन्होंने मशरूम से बनने वाले उत्पादों पर शोध किया और उन्हें सुखाकर पाउडर, कैप्सूल और तरल रूप में ढालने की तकनीक विकसित की.

लॉकडाउन के दौरान उन्होंने गांव की महिलाओं को मशरूम पाउडर मुफ्त बांटना शुरू किया.जल्द ही इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए. कुपोषण और विटामिन की कमी से जूझ रही महिलाओं के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ. यहीं से उनकी कंपनी आमल्दा ऑर्गेनिक फूड्स की मजबूत नींव पड़ी.

आज अन्नू को लोग 'मशरूम लेडी' कहकर पुकारते हैं. उनकी कंपनी राजस्थान की पहली ऐसी कंपनी है जिसे मशरूम से बने उत्पादों के लिए आयुर्वेद विभाग से मान्यता मिली. वे अब ऑयस्टर, कॉर्डिसेप्स, लॉयन्स, रेशी और सिटाके समेत करीब 10 किस्म के मशरूम का उत्पादन कर रही हैं. इनसे बिस्कुट, मुंगौड़ी, आचार, मॉर्निंग बूस्टर, लिक्विड एक्सट्रैक्ट और कैप्सूल जैसे 50 से ज्यादा उत्पाद बनाए जा रहे हैं. हर उत्पाद को अलग ट्रेडमार्क मिला है और उपभोक्ताओं के बीच इनकी मांग लगातार बढ़ रही है.

अन्नू ने खेती को सिर्फ अपनाया नहीं बल्कि इसमें कई नवाचार किए. आमतौर पर मशरूम की फसल तैयार होने में 60-70 दिन लगते हैं मगर उन्होंने इसे 45 दिन में तैयार करने का तरीका विकसित किया. कॉर्डिसेप्स जैसा महंगा मशरूम, जो देश में 3-4 लाख रुपए किलो बिकता है, उन्होंने राजस्थान की गर्म जलवायु में उगाया. इससे इसकी लागत घटकर डेढ़ लाख रुपए किलो रह गई. वे भविष्य में इसे और सस्ता बनाना चाहती हैं ताकि आम लोग भी इसे खरीद सकें.

अन्नू सिर्फ उद्यमी ही नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण का भी प्रतीक बन चुकी हैं. उन्होंने पिछले सात साल में देशभर की डेढ़ लाख से ज्यादा महिलाओं को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दिया है. राजस्थान और अन्य राज्यों के अलावा विदेशों से भी महिलाएं उनके गांव प्रशिक्षण लेने पहुंचती हैं. आज उनके साथ 30 से ज्यादा महिलाएं मशरूम की खेती कर रही हैं और हर महीने लाखों रुपए कमा रही हैं. उनकी कंपनी सात साल में ही एक करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर तक पहुंच गई है.

अन्नू मशरूम के फायदे बताते हुए कहती हैं, ''यह सिर्फ विटामिन और प्रोटीन की पूर्ति नहीं करता, बल्कि कैंसर जैसी बीमारियों की रोकथाम में भी मददगार है. इसके इस्तेमाल से शुगर और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से भी बचा जा सकता है.'' उनका मानना है कि मशरूम आम आदमी की थाली तक पहुंचे तो कुपोषण से लड़ाई आसान हो जाएगी.

रेगिस्तान की धरती पर जहां महिलाएं अक्सर परंपराओं की कैद में अपने सपनों की उड़ान रोक देती हैं, वहीं अन्नू कानावत ने मशरूम की खेती से आत्मनिर्भरता और सफलता की नई इबारत लिखी. उन्होंने साबित कर दिया कि साहस और मेहनत से न केवल परंपराओं को चुनौती दी जा सकती है, बल्कि बदलाव की फसल भी बोई जा सकती है.

अन्नू कानावत ने कहा, ''मैंने जब मशरूम की खेती शुरू की तो समाज ने कदम-कदम पर रोका पर मेरा हौसला नहीं डिगा. यह महज खेती का फैसला नहीं बल्कि अपनी पहचान को साबित करने की जिद थी जो अब साकार हुई.'' 

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