- अरुण पुरी
भारतीय अर्थव्यवस्था की बेमिसाल कामयाबियों में एक सूचना-प्रौद्योगिकी उद्योग रहा है. यह 2005-06 में 30 अरब डॉलर से फिलहाल 282.6 अरब डॉलर का हो गया है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7 फीसद की हिस्सेदारी करता है. हाल के दशकों में यह देश में तकरीबन 73 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराता रहा है और इस तरह रोजगार सृजन में अहम उद्योग बनकर उभरा है. सबसे बढ़कर, यह सब बिना किसी सरकारी मदद के हुआ है.
हाल में देश की सबसे आला आइटी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने अपने पूरे वैश्विक कर्मचारियों का करीब 2 फीसद यानी 12,000 कर्मचारियों की अब तक की सबसे बड़ी छंटनी का ऐलान किया, तो समूचा उद्योग हिल उठा. पहले विदेशी कंपनियों से निकाले गए कर्मचारी कहते कि उन्हें 'बैंग्लोर्ड’ कर दिया गया है. अब उलटा घट रहा है. मौजूदा हालात इसे ढलान का एक सिलसिला बना सकते हैं. दिग्गज आइटी कंपनियां अपने मुनाफे पर भारी दबाव का सामना कर रही हैं.
वित्त वर्ष 25 की अंतिम तिमाही में बड़ी आइटी सेवा कंपनियों की कमाई में ऐसी गिरावट आई, जो 2020 में कोविड-ग्रस्त गर्मियों के बाद पहली बार देखा गया. टीसीएस पिछले वित्त वर्ष में अपने बाजार मूल्य का 28 फीसद खो बैठी, जो 15.5 लाख करोड़ रुपए से गिरकर 11 लाख करोड़ रुपए पर आ गई. दूसरी नामी आइटी दिग्गज इन्फोसिस में 19 फीसद की गिरावट आई. उसने भी नौकरियां घटाई हैं, और यही एचसीएल और टेकमहिंद्रा ने भी किया है. यह घटनाक्रम संगीन है और देश की अर्थव्यवस्था पर इसके कारण और प्रभाव, जांच के योग्य हैं.
लगता है, इससे देश के आइटी क्षेत्र के वजूद पर संकट जैसी ही घबराहट पसरती जा रही है, जिसका सामना उसे अपनी तीन दशकों की दुनिया भर में प्रतिष्ठा के दौर में पहले कभी नहीं हुआ. दीर्घकालिक नजरिए से यह संरचना में बदलाव है, न कि सिर्फ कोई फौरी झटका. कोविड के बाद वित्त वर्ष 22 में जोरशोर से 'रिवेंज हायरिंग’ यानी पूरी भरपाई का दौर चला, तो पूरे क्षेत्र में दस लाख नई भर्तियां हुईं. लेकिन यह जल्द ही ठहर-सा गया.
अगले तीन वित्त वर्षों में सिर्फ 12.6 लाख कर्मचारी ही जुड़े. वित्त वर्ष 26 का अनुमान 5,20,000 भर्तियों का है, जो वित्त वर्ष 22 का आधा है. आइटी सेवा क्षेत्र ने वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में सिर्फ 3,847 लोगों को काम पर रखा, जो पिछली तिमाही में 13,935 से 72 फीसद कम है. कोविड से पहले के मुकाबले शुरुआती स्तर की भर्तियां आधी हो गई हैं. शुरुआती वेतन करीब 10 साल से 3.5 लाख रुपए प्रति वर्ष पर अटका हुआ है.
नौकरियों के ग्राफ में उतार-चढ़ाव गहरे बदलावों का सिर्फ सतही लक्षण है. अगर टेक्नोलॉजी का काम ही बदल रहा है तो यह वाजिब है कि पुरानी जरूरतों की नौकरियां भी उससे अछूती नहीं रहेंगी. टीसीएस ने छंटनी के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के बदले अपने बीच के और ऊपरी स्तर के कर्मचारियों के 'बेमेल हुनर’ और 'नई तैनाती के सीमित अवसरों’ को वजह बताया है. इसमें कुछ सच्चाई है.
देश की आइटी कंपनियों का जोर हमेशा से गुणवत्ता से ज्यादा कर्मचारियों की तादाद पर रहा है. ऐसे पिरामिड के ढांचे में अमूमन सबसे नीचे कामगार टेक्नीशियनों की फौज होती है, और बीच और ऊपरी स्तरों पर 'पीपल मैनेजर’ जैसे टीमों के अगुआ होते हैं. जाहिर है, 30-40 साल के युवाओं का यह समूह अप्रासंगिक हो सकता है.
लेकिन मैनेजिंग एडिटर एम.जी. अरुण और एसोसिएट एडिटर अजय सुकुमारन ने इस हफ्ते की आवरण कथा में आइटी नौकरी बाजार में उतार-चढ़ाव के अपने विश्लेषण में पाया कि एआइ का लंबा होता साया वाकई एक बड़ी वजह है. देश का आइटी क्षेत्र एक जैसा नहीं है. उसमें कई तरह के व्यावसायिक प्रोफाइल और ज्ञान/हुनर के स्तर हैं. 26 लाख कर्मचारियों वाली आइटी सेवा कंपनियां नियमित सॉफ्टवेयर और सिस्टम प्रबंधन का काम संभालती हैं.
उनके नीचे बीपीओ के विशिष्ट बैक-ऑफिस ऑपरेशन हैं, जिनमें करीब 14 लाख लोग हैं जिन्हें 'टेक कुली’ का तमगा मिला हुआ है. इसके अलावा बड़ी विदेशी कंपनियों के वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) देश में 18 लाख लोगों को सीधे रोजगार देते हैं. ये जीसीसी सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, एआइ संचालित डेटा एनालिटिक्स और नवाचार आरऐंडडी में ऊंचे मूल्य की शृंखला बनाती हैं.
यह तेज और दुरुस्त हुनर की दरकार अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी विशाल टेक कंपनियों की पूर्व शर्त है, जो देश में 15 लाख लोगों को रोजगार देती हैं. इस फर्क को पाटने के लिए ज्ञान और हुनर के मामले में नयापन हासिल करना जरूरी है. उस ओर बढ़ने के लिए बेहिसाब बड़े प्रबंधन से सीधे, हल्के और अधिक चुस्त प्रबंधन की दरकार है. टीसीएस के सीईओ के. कीर्तिवासन का कहना है कि उनकी कंपनी पारंपरिक 'वाटरफॉल’ यानी क्रमवार प्रबंधन शैली से हटकर चुस्त, उत्पाद-केंद्रित मॉडल की ओर बढ़ रही है, जिससे पारंपरिक प्रोग्राम मैनेजरों की जरूरत कम हो रही है.
भारत में सबसे बुरे वक्त में डोनाल्ड ट्रंप नाम का झंझावात तबाही का दस्तक दे चुका है. भारतीय आइटी कारोबार का 70 फीसद हिस्से वाले अमेरिकी ग्राहक खर्च में कटौती कर रहे हैं. लेकिन इन घटनाओं के अलावा, एक नई व्यवस्था के जन्म की प्रसव पीड़ा भी दिखाई दे रही है. यानी ऐसी व्यवस्था, जब एआइ कोडिंग 20-40 फीसद, डेटा विश्लेषण 50-70 फीसद, और नियमित डेटा सेंटर का काम 70-90 फीसद तेजी से होने लगेगा.
'बिलेबिलिटी’ खासा प्रचलन में है, जो कर्मचारी के काम के लिए ग्राहक से मिला मूल्य है. आइटी क्षेत्र और उसे कार्यबल मुहैया कराने वाले विश्वविद्यालयों, दोनों को नए सिरे से सोच-विचार की जरूरत है.
इन्फोटेक का स्वरूप ही बदल रहा है. हम पांचवीं औद्योगिक क्रांति में हैं जिसमें एआइ, रोबोटिक्स और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी) के जरिए आदमी और मशीन के सहयोग पर जोर है. यह बदलावकारी वक्त है. एआइ अब सभी उद्योगों, कारोबार और निचले सॉफ्टवेयर सेवाओं में बुनियादी नियमों को बदल रही है.
वैश्विक आइटी क्षेत्र की कमाई का बड़ा हिस्सा 'व्यवसाय चलाने’ से 'व्यवसाय को बदलने’ की ओर जा रहा है. भारत के आइटी दिग्गजों को सिलिकॉन के सुल्तान बने रहना है, तो उन्हें तेजी से और व्यापक बदलाव लाने की जरूरत है.