पहले से ही बेरोजगारी के मुद्दे पर बार-बार विपक्ष के हमलों से घिरने वाली केंद्र सरकार ने सोचा भी न होगा कि 21 जुलाई से शुरू मॉनसून सत्र के दौरान हजारों छात्र संसद से चंद कदम दूर जंतर मंतर पर विरोध-प्रदर्शन करने इकट्ठे हो जाएंगे.
सत्र शुरू होने के तीन दिन बाद यानी 24 जुलाई से कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की सेलेक्शन पोस्ट फेज 13 परीक्षा की शुरुआत होनी थी. यह परीक्षा 2 अगस्त तक चलनी थी.
मगर इस परीक्षा में तकनीकी खामियों, कुप्रबंधन और अचानक रद्द होने की शिकायतों ने छात्रों को जंतर मंतर पर आने को मजबूर कर दिया. विरोध प्रदर्शन राजधानी तक ही सीमित नहीं रहा. दिल्ली की सड़कों के साथ-साथ इसने देश के प्रमुख शहरों मुंबई, पटना, लखनऊ, जयपुर, कोलकाता और भोपाल को भी जद में ले लिया.
बीते कुछ वर्षों में यह कोई इकलौती परीक्षा नहीं थी जो विवादों की वजह बनी है. कई परीक्षाओं में गड़बड़ियों की वजह से छात्रों को अपनी किताबों को छोड़, झंडा-डंडा लेकर सड़कों पर उतरने को मजबूर होना पड़ा.
एसएससी परीक्षा विवाद इस नाते भी अहम है कि भारत सरकार की अधिकांश नौकरियों के लिए भर्ती का काम इसी एजेंसी के पास है. यह केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और संगठनों में ग्रुप बी और ग्रुप सी पदों के लिए भर्ती परीक्षाएं आयोजित करती है. इनमें कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल (सीजीएल), कंबाइंड हायर सेकंडरी लेवल (सीएचएसएल), मल्टी टास्किंग स्टाफ (एमटीएस), कांस्टेबल (जीडी) और सेलेक्शन पोस्ट जैसी परीक्षाएं शामिल हैं.
हर साल लाखों युवा 'सरकारी नौकरियों के इन प्रवेश द्वारों' को पार करने के लिए इन परीक्षाओं में भाग लेते हैं. एसएससी के जरिए कई ऐसे पदों पर भी भर्ती होती है, जिनका सरकारी नौकरी की तैयारी करने वालों में खास चार्म है. सीजीएल के जरिए आयकर निरीक्षक, कस्टम अधिकारी और अन्य प्रतिष्ठित पदों की भर्तियां इसकी मिसाल हैं.
ताजा विवाद सेलेक्शन पोस्ट फेज 13 परीक्षा का है. इसके जरिए कई तरह के 2,423 तकनीकी और गैर-तकनीकी पदों को भरा जाना था. इन पदों के लिए करीब 29.40 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था. यानी एक पद के लिए औसतन 1,200 से ज्यादा आवेदक. यह परीक्षा ऑनलाइन कंप्यूटर आधारित टेस्ट (सीबीटी) के रूप में आयोजित हुई मगर तकनीकी खामियों, गलत परीक्षा केंद्रों का आवंटन, परीक्षा केंद्रों पर कुप्रबंधन और परीक्षा वेंडर के स्तर पर हुई गड़बड़ियों ने इस परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों को आंदोलित कर दिया. कुछ कोचिंग संचालकों ने भी एसएससी के खिलाफ छात्रों के इस विरोध प्रदर्शन की अगुआई की.
यह पहली बार नहीं है जब एसएससी पर सवाल उठे हैं. 2018 में सीजीएल पेपर लीक कांड के बाद भी प्रदर्शन हुए थे. 2023 और 2024 में सीएचएसएल और जीडी कांस्टेबल परीक्षाओं में भी ऐसी शिकायतें आई थीं. मगर इस बार का विवाद पर्चा लीक का नहीं बल्कि तकनीकी गड़बड़ियों और कुप्रबंधन पर केंद्रित है. दिल्ली में रहकर तैयारी करने वाले और दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करके इस परीक्षा में शामिल होने वाले मूलत: बिहार के सूरज कुमार बताते हैं, ''मैं अपने सेंटर पर पहुंचा तो वहां बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन ही नहीं हो पा रहा था. बाद में पता चला कि कई छात्रों के साथ यही समस्या आ रही है. मेरे अन्य दोस्तों ने अपने सेंटर के बारे में बताया कि उनके यहां कई बार सर्वर क्रैश हुआ और पूरा कंप्यूटर सिस्टम ठप पड़ गया.''
इन दिक्कतों की शिकायतें खासकर दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के केंद्रों से आईं. कुछ केंद्र संचालकों ने जब यह समझ लिया कि तकनीकी खामियों की वजह से वे परीक्षा नहीं ले पाएंगे तो उन्होंने अचानक उसे रद्द कर दिया. ऐसे में दूर-दूर से पहुंचे उम्मीदवारों को घंटों इंतजार करना पड़ा और उनमें नाराजगी दिखी. कोचिंग संचालकों का दावा है कि इस परीक्षा में तकनीकी खामियों की वजह से कुल अभ्यर्थियों में करीब 20 से 30 फीसद प्रभावित हुए.
कई उम्मीदवारों को उनके गृह शहर से सैकड़ों किलोमीटर दूर केंद्र आवंटित करने के मामले ने भी तूल पकड़ा. परीक्षा केंद्रों में कुप्रबंधन की कई बातें सामने आईं. कई केंद्रों पर बिजली, पानी और बैठने की उचित व्यवस्था सरीखी बुनियादी सुविधाओं की कमी की बात छात्रों ने उठाई. कुछ जगहों पर बाउंसरों की मौजूदगी और उम्मीदवारों के साथ दुर्व्यवहार का दावा भी छात्रों ने किया.
एक और अहम विवाद एडुक्विटी नाम के वेंडर को परीक्षा प्रबंधन का काम देने को लेकर भी हुआ. प्रदर्शनकारी छात्रों के हाथों में 'एडुक्विटी बैन' और 'वी वॉन्ट टीसीएस' के पोस्टर दिख रहे थे. आखिर एडुक्विटी से छात्र खफा क्यों हैं? बेंगलूरू के पते पर रजिस्टर्ड इस कंपनी की वेबसाइट यह दावा करती है कि उसके पास कंप्यूटर आधारित परीक्षाओं को आयोजित कराने से संबंधित विभिन्न पहलुओं की विशेषज्ञता है.
2022 में आयोजित मध्य प्रदेश टीईटी परीक्षा, 2023 में हुई मध्य प्रदेश पटवारी भर्ती परीक्षा और महाराष्ट्र एमबीए-सीईटी परीक्षाओं के आयोजन में अपनी भूमिका को लेकर पहले भी यह कंपनी विवादों में रही है. पहले एसएससी परीक्षा का काम टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) के पास था. मगर इस साल यह काम विवादों भरे अतीत के बावजूद एडुक्विटी को दिया गया. छात्रों का दावा है कि इस बार की तकनीकी गड़बड़ियों के लिए मुख्य तौर पर यह कंपनी जिम्मेदार है.
एडुक्विटी को परीक्षा प्रबंधन का काम देकर क्या एसएससी ने बेहतर परीक्षा कराने के बजाए पैसा बचाने का विकल्प चुना? यह सवाल इंडिया टुडे समूह के प्लेटफॉर्म 'लल्लनटॉप' ने एक खास बातचीत में एसएससी के चेयरमैन एस. गोपालकृष्णन से पूछा. इस पर उनका जवाब था, ''पहले टेंडर के लिए चार एजेंसियां थीं. उनका टेक्निकल इवैल्यूशन होता है, पारदर्शिता की जांच की जाती है. फिर उन्हें सेलेक्ट किया जाता है. ऐसे में जिसके पास पैसा ज्यादा है, मगर टेक्नीक नहीं है, वह सेलेक्ट नहीं हो सकता. और जिसके पास सिर्फ टेक्नीक है लेकिन रेट लगाने की क्षमता कम है, वह भी नहीं आ सकती. बैलेंस करके आगे लेने का प्रोसेस चला है. ये कोई नई चीज नहीं है.''
बढ़ते दबाव के बीच 4 अगस्त को एसएससी के चेयरमैन ने कहा कि पूरी परीक्षा रद्द नहीं होगी मगर प्रभावित केंद्रों पर दोबारा परीक्षा आयोजित कराई जाएगी. उन्होंने तकनीकी गड़बड़ियों की जांच का भरोसा दिया और दोषियों पर कार्रवाई का वादा किया.
वहीं, 5 अगस्त को केंद्रीय कार्मिक और लोक शिकायत राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने प्रदर्शनकारी शिक्षकों-छात्रों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की. उनका कहना था, ''हम छात्रों की शिकायतों को गंभीरता से ले रहे हैं. प्रभावित उम्मीदवारों को दोबारा मौका मिलेगा.''
इसके बाद एसएससी ने एक हेल्पलाइन शुरू की, जहां छात्रों को अपनी शिकायत दर्ज कराने की सुविधा दी गई. कुछ केंद्रों पर जांच कमेटी भेजी गई और बायोमेट्रिक सिस्टम को अपग्रेड करने का निर्णय हुआ. एसएससी सूत्रों की मानें तो आंतरिक स्तर पर यह बात भी चल रही है कि एडुक्विटी के अनुबंध की समीक्षा हो और भविष्य में परीक्षाओं के लिए वेंडर चुनते वक्त सिर्फ 'लागत' ही निर्णायक फैक्टर न हो.
आखिर, परीक्षाओं की प्रक्रिया पारदर्शी और समयबद्ध कैसे होगी? केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके और अभी केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में काम कर रहे एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ''आम धारणा यह बनी है कि पेन-पेपर मोड से कंप्यूटर पर परीक्षाओं को शिफ्ट कर देना रामबाण इलाज है. मैं संयोग से दोनों मंत्रालयों के उन्हीं विभागों में रहा जिनका परीक्षाओं के आयोजन से सीधा वास्ता रहता है. जो एजेंसियां हाल के वर्षों में परीक्षाओं के आयोजन के लिए बनी हैं, उनके पास पर्याप्त क्षमताएं नहीं हैं.
मसलन, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को लें. न तो इसके पास अपने पेपर बनाने वाले लोग हैं और न ही टेक्निकल नॉलेज रखने वाले. एसएससी जैसी संस्थाएं भी आउटसोर्सिंग पर आधारित हैं. समस्या की जड़ आउटसोर्सिंग ही है क्योंकि इसमें जवाबदेही तय करना बहुत मुश्किल है.'' उनका सुझाव है कि मजबूत लीगल फ्रेमवर्क के साथ अपना ढांचा बनाना होगा जिसमें आउटसोर्सिंग पर न्यूनतम निर्भरता रहे, तभी गड़बड़ियों पर काबू पाया जा सकता है. जाहिर है, इसके लिए ठोस उपायों और मजबूत ढांचे की जरूरत है, ताकि नौजवानों को किताबें छोड़कर सड़कों पर न उतरना पड़े.
विवादों में रहीं परीक्षाएं
> एनईईटी-यूजी 2024: पेपर लीक और अनियमितताओं के आरोप, लाखों छात्र प्रभावित.
> यूजीसी-नेट 2024: पेपर लीक के आरोप में आयोजन के पहले ही परीक्षा रद्द.
> जेईई मेन 2024: अनियमितताओं और तकनीकी गड़बड़ियों के आरोप.
> यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2024: पेपर लीक, परीक्षा रद्द.
> 70वीं बीपीएससी प्री 2024: पेपर लीक के आरोप, बड़े प्रदर्शन और अदालती लड़ाई.
> बिहार टीचर रिक्रूटमेंट एग्जाम (टीआरई) 2023: लीक के आरोप, कई गिरफ्तारियां.
> महाराष्ट्र टीईटी 2023: फर्जीवाड़ा और लीक के आरोप.
> रीट (राजस्थान) 2021: पेपर लीक, बड़े स्तर पर घोटाले के आरोप.