दो क्वीन के बीच एक ही ताज हासिल करने की प्रतिस्पर्धा चल रही थी. इसे दो पीढ़ियों के बीच का मुकाबला भी कह सकते है, जिसमें एक ओर थीं 38 वर्षीया कोनेरू हंपी, जो एक तजुर्बेकार मिलेनियल हैं और दो दशक से भारत की शीर्ष महिला शतरंज खिलाड़ी बनी रहती आई हैं.
उनके सामने डटी थीं 19 वर्षीया उत्साही युवा खिलाड़ी दिव्या देशमुख, जो जेन ज़ी वाली हैं और उस समय तो पैदा भी नहीं हुई थीं जब हंपी ने 2002 में भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया था.
बहरहाल, 28 जुलाई का दिन दिव्या के नाम रहा. रैपिड गेम्स के एक रोमांचक टाइ-ब्रेकर में नागपुर की इस खिलाड़ी ने फिडे महिला विश्व कप 2025 के तीसरे संस्करण में जीत हासिल की. जॉर्जिया के बतूमी में आयोजित इस प्रतियोगिता में 107 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था. दिव्या की उपलब्धि के लिए खुद ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद भी फूले नहीं समाए. उन्होंने सराहना करते हुए इसे ''इतनी छोटी-सी उम्र में....एक ऐतिहासिक कदम'' करार दिया. दिव्या ने अपने करियर का यह सबसे बड़ा खिताब चार ग्रैंडमास्टर्स को हराकर जीता है और अब खुद भी यह सर्वोच्च सम्मान अपने नाम कर चुकी हैं.
दिव्या ने शतरंज को लेकर होने वाली चर्चाओं को एक नया आयाम दे दिया. लड़कों की बात करें तो डी. गुकेश, रमेश प्रज्ञानंद, अर्जुन एरिगैसी, अरविंद चिदंबरम, निहाल सरीन वगैरह के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है, जिन्होंने वैश्विक स्तर पर शतरंज में तहलका मचा रखा है. अब लड़कियों के बारे में बात करने का समय आ गया है. पुरुषों की तरह वे भी 2022 एशियाई खेलों की रजत पदक विजेता हैं और महिला वर्ग में 2024 ओलंपियाड पोडियम में शीर्ष पर रही थीं.
इसमें आंध्र प्रदेश की हंपी सबसे आगे हैं, जो महिला वर्ग में दुनिया में छठे स्थान पर हैं; उनके बाद आंध्र की ही 34 वर्षीया हरिका द्रोणवल्ली हैं, जो 12वें नंबर पर हैं. मौजूदा विश्व जूनियर गर्ल्स चैंपियन का भी खिताब रखने वाली महाराष्ट्र की दिव्या अभी 15वें स्थान पर हैं. तमिलनाडु की 24 वर्षीया वैशाली रमेशबाबू 18वें नंबर पर हैं. यह भारत की महिला ग्रैंडमास्टरों की इकलौती चौकड़ी है. दिल्ली की 38 वर्षीया तानिया सचदेव शीर्ष 50 में शामिल हैं. हालांकि, इन दिनों वे कमेंटेटर के तौर पर ज्यादा चर्चित हैं. उत्तर प्रदेश की 23 वर्षीया वंतिका अग्रवाल ने भारत की ओलंपियाड जीत में अहम भूमिका निभाई थी और वे फिडे महिला विश्व कप में हिस्सा लेने वाली भारत की आठ खिलाड़ियों में से एक थीं.
शतरंज को मिला अपना महिला चेहरा
आनंद कहते हैं कि फिडे महिला ग्रैंड स्विस चैंपियनशिप में वैशाली के साथ दिव्या की जीत ''कई लड़कियों को इस खेल में आने के लिए प्रेरित करेगी.'' बिलाशक इसने शतरंज में नई ऊर्जा का संचार किया है. इंटरनेशनल चेस फेडरेशन (फिडे) के सीईओ एमिल सुतोव्स्की ने हाल में चेसबेस इंडिया के साथ बातचीत में कहा, ''हंपी शतरंज की परंपरा की प्रतीक हैं—बेहद उम्दा खिलाड़ी, बहुत संयमी, पूरी तरह समर्पित—और एक अच्छी पुरानी परंपरा को साथ लेकर चलने वाली. हर वह खूबी जिसके साथ शतरंज का खेल आगे बढ़ता रहा है. दिव्या का नजरिया एकदम अलग है—वे एक आधुनिक सोशल मीडिया स्टार हैं.'' उन्हें न केवल अपने खेल में बल्कि खुद को पेश करने के लिहाज से भी तेज-तर्रार माना जाता है. दिव्या को उनके स्टाइलिश फॉर्मल परिधानों की वजह से 'सीईओ' कहा जाता है. वैसे तो वे एक आम किशोरी की तरह खासी चुलबुली हैं लेकिन खेल के दौरान उनका रवैया एकदम आक्रामक होता है. उनकी यह जीत उन्हें भारतीय शतरंज की स्वर्णिम पीढ़ी की पोस्टर गर्ल बना देगी.
वर्ष 2021 से भारत की महिला टीम की अगुआई करने वाले ग्रैंडमास्टर अभिजीत कुंटे जेन ज़ी की खिलाड़ियों की प्रतिभा के साथ-साथ उनकी नई सोच की भी सराहना करते हैं: ''वंतिका और दिव्या में बहुत ऊर्जा है, वे नखरीली हैं और खुद आगे बढ़ना जानती हैं. उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं लगता. पिछली पीढ़ी हमेशा अंडरडॉग वाली पुरानी सोच के साथ आगे आई. लेकिन यह पीढ़ी आत्मविश्वास से लबरेज और प्रयोगधर्मी है. कोई भी जोखिम लेने से नहीं डरती.'' इस पीढ़ी के खिलाड़ियों को प्रतिद्वंद्वियों के कद या रेटिंग से कोई फर्क नहीं पड़ता. पिछले दो दशक से चीन और रूस ने महिला वर्ग में अपना दबदबा बना रखा है, जिसमें चीन फिडे रैंकिंग में शीर्ष पांच स्थानों पर है और होउ यिफान और जू वेनजुन जैसी विश्व चैंपियन चीन की ही खिलाड़ी हैं.
आनंद का मानना है कि यह अंतर अब घट रहा है क्योंकि दिव्या और हंपी दोनों ने दो-दो प्रबल दावेदार चीनी खिलाड़ियों को हराकर फिडे फाइनल में जगह बनाई. आनंद का कहना है, ''इससे भारत एक ऐसे देश के तौर पर स्थापित होता है जो चीन के सामने अपना दम दिखाने की क्षमता रखता है. चीनी टीम अभी खासी मजबूत है और महिला वर्ग में नंबर एक देश है पर अब हम भी एक पूरी प्रतिस्पर्धी टीम उतार सकते हैं. मुकाबला खासा दिलचस्प होगा.'' दिव्या और हंपी दोनों कैंडिडेट्स 2026 के लिए क्वालीफाइ कर चुकी हैं, इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि शायद ज्यादा इंतजार न करना पड़े. कठिन टूर्नामेंट है जो तय करेगा कि विश्व चैंपियन जू वेनजुन का प्रतिद्वंद्वी कौन हो सकता है.
फिलहाल असली जीत महिला शतरंज की हुई है. स्पोर्ट्स टुडे को दिए एक इंटरव्यू में दिव्या ने कहा, ''जब हंपी फाइनल में पहुंचीं तो मैं बहुत खुश थी क्योंकि भारतीय शतरंज के लिए यह बहुत बड़ी बात थी...मैं जीतूं या हंपी, इससे हर हाल में भारतीय लड़कियों को प्रेरणा ही मिलेगी.'' भारतीय महिला शतरंज की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और रैपिड चेस प्रारूप की मौजूदा विश्व चैंपियन हंपी के लिए फिडे कप का सुर्खियों में छाना उत्साहजनक है और यह खेल के उनके शुरुआती दौर से बिल्कुल अलग है.
वे कहती हैं, ''मैं इस चैंपियनशिप में चार बार सेमीफाइनल तक पहुंची और कांस्य पदक जीता लेकिन किसी को इस बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं चला, या शायद तवज्जो नहीं दी गई. मैं वर्षों तक दुनिया की नंबर-2 खिलाड़ी रही, तब भी इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था. आज सोशल मीडिया और लाइव-स्ट्रीमिंग की बदौलत आम लोगों के बीच भी इस खेल के प्रति जुनून बढ़ रहा है.''
भारत में इस खेल की अग्रदूत मानी जाने वालीं मुंबई की खादिलकर बहनों—वसंती, जयश्री और रोहिणी—के समय से अब तक महिला शतरंज ने एक लंबा रास्ता तय किया है. 1974 में इसकी शुरुआत से 1984 तक इस तिकड़ी ने राष्ट्रीय महिला शतरंज चैंपियनशिप पर दबदबा बनाए रखा. भाग्यश्री साठे थिप्से, अनुपमा गोखले और सुब्बारामन विजयलक्ष्मी जैसी खिलाड़ियों ने एशियाई स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन हंपी ही थीं जो वैश्विक स्तर पर भारतीय महिला शतरंज का प्रमुख चेहरा बनीं. 2011 में विश्व चैंपियन को चुनौती देने वाली वे एकमात्र भारतीय खिलाड़ी रही हैं. उन्होंने विश्व जूनियर खिताब जीता और दिग्गज जूडिथ पोलगर के बाद 2600 एलो रेटिंग का आंकड़ा पार करने वाली दूसरी महिला खिलाड़ी बनीं.
नई इबारत लिखना बाकी
बहरहाल, उनकी उपलब्धि भारत को शतरंज महाशक्ति के लिए काफी नहीं रही. हालांकि, हंपी ने साथी खिलाड़ियों के लिए दरवाजे खुलते देखे, चाहे टूर्नामेंट की बढ़ती संख्या और पुरस्कार राशि हो या फिर कॉर्पोरेट प्रायोजक मिलने में आसानी. लेकिन शतरंज अब भी कई लोगों की पहुंच से बाहर है. दरअसल, प्रशिक्षण पर अच्छा-खासा खर्च आता है और टूर्नामेंट अक्सर विदेशों में ही आयोजित होते हैं.
महिलाओं के लिए खुद को पेशेवर खिलाड़ी के तौर पर स्थापित करना आसान नहीं होता. हंपी इंटरनेट के जरिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक पहुंच बढ़ने से खुश हैं लेकिन वरिष्ठ कोच और सहयोगी (जो खेल की तैयारी और विश्लेषण में सहयोग करते हैं) की सेवाएं लेना काफी खर्चीला होता है. दिसंबर 2024 में इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में दिव्या ने कहा था कि प्रगति हुई है पर ज्यादा जरूरी है कि ''जरूरतमंद युवा प्रतिभाओं को आगे लाने'' पर ध्यान दिया जाए. उनके जैसी प्रतिभाशाली खिलाड़ी के पास भी कोई प्रायोजक नहीं और वे खर्च के लिए नकद पुरस्कारों या डॉक्टर माता-पिता पर निर्भर हैं. उम्मीद है कि फिडे कप जीत दिव्या के लिए भी चीजों को उसी तरह बदल देगी, जैसे गुकेश के मामले में हुआ.
भारत में पुरुष और महिला खिलाड़ियों के अनुपात की बात करें तो पुरुषों का ही पलड़ा भारी है. 88 ग्रैंडमास्टर्स में से चार ही महिलाएं हैं. कोई भी भारतीय महिला विश्व चैंपियन नहीं रही है. कुंटे की राय है कि असमानता का एक बड़ा कारण अवसरों की कमी भी है. वे कहते हैं, ''पुरुष खिलाड़ियों का कैलेंडर देखिए, एकदम पैक. फिडे सर्किट, फ्रीस्टाइल चेस, ओपन टूर्नामेंट व लीग टूर्नामेंटों में व्यस्त होने के कारण उन्हें सांस लेने की फुर्सत नहीं.
महिलाओं के लिए होने वाले ऐसे टूर्नामेंट बहुत कम हैं जिनमें विजेताओं को अच्छी फीस मिलती हो.'' कुंटे आगे जोड़ते हैं, ''महिलाओं को प्रतिभा दिखाने के लिए इंतजार करना पड़ता है. उनके पास कोई विकल्प नहीं होता और उन्हें ओपन सेक्शन में पुरुषों से टक्कर लेनी पड़ती है, जो काफी मुश्किल होती है. कुछ लोग प्रदर्शन से हताश हो जाते हैं. क्योंकि बात सिर्फ अनुभव हासिल करने की नहीं होती. आप इस खेल में अपना करियर भी बनाना चाहते हैं.'' हालांकि, उम्मीद की कुछ किरणें जरूर नजर आ रही हैं. पुरुषों और महिलाओं के लिए समान पुरस्कार राशि के साथ टाटा स्टील इंडिया जैसे टूर्नामेंट इसमें धीरे-धीरे लैंगिक समानता ला रहे हैं.
फिर, खेल में महारत हासिल करने की जिम्मेदारी महिलाओं पर भी है. किसी भी शीर्ष महिला खिलाड़ी से बात कीजिए, उन सभी का जोर इस पर रहेगा कि गणनात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए पुरुषों के खिलाफ खेलना चाहिए. हंपी कहती हैं, ''पेशेवर खिलाड़ियों के लिए करियर बनाए रखने के लिहाज से सिर्फ महिला टूर्नामेंट में खेलना अच्छा है लेकिन बेहतर प्रदर्शन के लिए पुरुषों के साथ प्रतिस्पर्धा करना ही ठीक रहेगा. सिर्फ महिला टूर्नामेंट में हिस्सा लेने से खेल में ठहराव आ सकता है क्योंकि खिलाड़ियों की संख्या सीमित होती है. आपको बार-बार उन्हीं खिलाड़ियों से भिड़ना होगा.'' दिव्या ने खुद इस साल के शुरू में चेक गणराज्य और नीदरलैंड में दो ओपन इवेंट्स में हिस्सा लिया. नतीजे खराब ही रहे, जिसमें एक क्लासिकल गेम में वे 11 वर्षीया खिलाड़ी से हारीं. आनंद भी सहमति जताते हैं, ''संभवत: दिव्या के इन मुश्किल टूर्नामेंट्स में खेलने की वजह से ही विश्व कप जीत हासिल हुई.''
महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के मकसद से ही भारतीय शतरंज महासंघ (एआइसीएफ) द स्मार्ट गर्ल प्रोजेक्ट चलाता है. ताकि जमीनी स्तर पर लड़कियों को इस खेल से जोड़कर उनकी बुनियाद मजबूत की जा सके. पहली तिमाही में इसने अंडर-7 और अंडर-19 श्रेणी की 21 शीर्ष महिला खिलाड़ियों को 60,000-1,50,000 रुपए तक त्रैमासिक वजीफा भी दिया.
ताकि खिलाड़ियों की कोचिंग और यात्रा संबंधी जरूरतें पूरी करके उन्हें वैश्विक स्पर्धाओं के लिए तैयार किया जा सके. एआइसीएफ अध्यक्ष नितिन नारंग कहते हैं, ''हमारा लक्ष्य एक मजबूत और समावेशी ईको सिस्टम तैयार करना है, जिसमें शतरंज के प्रति जुनून रखने वाली हर लड़की को अवसर, समर्थन और पहचान मिल सके.'' महासंघ ने हाल के वर्षों में फिडे महिला ग्रैंड प्रिक्स के दो संस्करणों की मेजबानी की है, जिससे भारतीय खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक्सपोजर का मौका भी मिला.
समान अहमियत के अलावा समान स्तर का सम्मान हासिल होना भी एक ऐसी चीज है जिसकी महिला शतरंज खिलाड़ियों को अपेक्षा रहती है. उन्हें ऐसे प्रयास करने होंगे कि क्रिकेट और फुटबॉल में अपनी हमवतन खिलाड़ियों की तरह उनकी भी एक साख बने और लोग उन्हें भी गंभीरता से लें. जनवरी 2024 में साझा एक वायरल पोस्ट में दिव्या ने खेल के दौरान महिलाओं के हाव-भाव और उनके रंग-रूप को लेकर की जाने वाली तमाम तरह की टिप्पणियों पर गहरी निराशा जाहिर की थी. उन्होंने लिखा, ''मुझे लोगों ने बताया कि दर्शकों की खेल में कोई रुचि नहीं थी. वे तो मेरे कपड़े, बाल, लहजे और ऐसी ही दुनिया की तमाम फालतू चीजों पर ध्यान दे रहे थे...यह दुखद है लेकिन सचाई यही है कि जब महिलाएं शतरंज खेलती हैं तो लोग अक्सर इसे नजरअंदाज कर देते हैं कि वे असल में कितनी प्रतिभाशाली हैं...महिलाओं की कद्र नहीं की जाती...उन्हें भी बराबर सम्मान मिलना चाहिए.'' अपनी ताजा जीत के साथ दिव्या शायद अपने साथियों के लिए यही सम्मान कमाने में सफल रही हैं.