scorecardresearch

दिल्ली: क्या शेल्टर होम में 10 लाख कुत्तों को रखना संभव है?

11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने 8 हफ्तों के भीतर दिल्ली के सभी आवारा कुत्तों को शहर के बाहरी इलाकों में एक आश्रय स्थलों को बनाकर उसमें रखने का निर्देश दिया.

 लावारिस आवारा कुत्तों का ग्राफिक: तन्मय चक्रवर्ती
लावारिस आवारा कुत्तों का ग्राफिक: तन्मय चक्रवर्ती
अपडेटेड 19 अगस्त , 2025

28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने 6 जुलाई की एक अखबार की रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लिया. यह खबर दिल्ली के पूठ कलां की छह वर्षीया छवि शर्मा की थी, जिसकी कुत्ते के काटने से रेबीज होने के बाद मौत हो गई थी.

इस मामले में 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने अधिकारियों को 8 हफ्तों के भीतर दिल्ली के सभी आवारा कुत्तों को शहर के बाहरी इलाकों में आश्रय स्थल बनाकर उसमें रखने का निर्देश दिया.

इस फैसले के बाद कुत्ता प्रेमियों के बीच व्यापक आक्रोश फैल गया, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की नई पीठ के पास भेज दिया गया. इस मामले पर सुनवाई के बाद पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, लेकिन जन सुरक्षा, आवारा पशुओं के प्रबंधन और पशु अधिकारों पर बहस मुख्यधारा में बनी हुई है.

कोर्ट के फैसले को एक स्थापित पशु कल्याण कानून के बिल्कुल विपरीत माना जा रहा है. 2001 से, पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियमों में आवारा कुत्तों को मानवीय तरीके से पकड़ना, उनकी नसबंदी करना, टीकाकरण करना और उन्हें उनके इलाकों में वापस छोड़ना अनिवार्य किया गया है. यह सामुदायिक सह-अस्तित्व पर आधारित एक वैज्ञानिक रूप से मान्य दृष्टिकोण है.

इन नियमों को 2023 में और भी मजबूत किया गया, जिसमें आवारा कुत्तों को "सामुदायिक पशु" के रूप में मान्यता देने और स्थानीय देखभाल व भोजन पर जोर देने वाले विस्तारित प्रावधान शामिल थे. यहां तक कि अदालतों ने भी ऐसे सहानुभूतिपूर्ण फैसलों को बरकरार रखा और इस बात पर जोर दिया कि सभी प्राणियों के प्रति करुणा एक संवैधानिक मूल्य है.

इस पृष्ठभूमि में, पशु कल्याण अधिवक्ताओं ने 11 अगस्त के फैसले की तीखी आलोचना की और इसे मनमाना बताया और आवारा कुत्तों की आबादी के मानवीय प्रबंधन पर वैज्ञानिक सहमति को कमजोर बताया है. कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि दिल्ली में 10 लाख से ज्यादा कुत्ते हैं. इतने कुत्तों को सेल्टर होम में रखना निश्चित ही मुश्किल काम है. 

पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने इस फैसले पर कहा, ''यह आदेश लागू करने योग्य नहीं...आपको 3,000 ऐसी जगहें ढूंढनी होंगी जहां कोई रहता न हो.'' वहीं, दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता ने कहा, ''लोग लावारिस आवारा कुत्तों से त्रस्त हो चुके हैं...सुप्रीम कोर्ट के निर्देश महत्वपूर्ण हैं. हम राहत पहुंचाना चाहते हैं.''

सुप्रीम कोर्ट का आदेश   

> नगर निकाय कुत्तों के शेल्टर तैयार करेंगे और 6-8 हफ्तों में दिल्ली-एनसीआर के 5,000 कुत्तों को सड़कों से हटाकर उनमें रखेंगे.

> हरेक शेल्टर में 5,000-6,000 कुत्ते रहेंगे, जहां सीसीटीवी कैमरे, नसबंदी की सुविधा और प्रशिक्षित कर्मचारी होंगे.

> कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों पर नहीं छोड़ा जाएगा, पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2001 के प्रावधान निरस्त होंगे, जिसके तहत नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके इलाके में ही छोड़ना अनिवार्य है.

> न्यायाधीशों ने एबीसी नियम को 'बेतुका और अनुचित' करार देते हुए कहा, ''किसी लावारिस कुत्ते को फिर से उस इलाके में क्यों छोड़ा जाना चाहिए... किसलिए छोड़ा जाना चाहिए?''

 दिल्ली में कुत्तों के काटने के मामले

54 मौतें 2024 में पूरे भारत में रेबीज के कारण हुईं; कुत्ते के काटने की हर 68,836 घटनाओं में एक मौत

37,15,713 मामले 2024 में भारत में कुत्तों के काटने के दर्ज किए गए जो 2023 की तुलना में 22 फीसद ज्यादा हैं

दुनिया ने क्या तरीका अपनाया?

अमेरिका
पशु नियंत्रण एजेंसियां और शेल्टर/रेस्क्यू ग्रुप प्राण न लेने के प्रोटोकॉल का पालन करते हैं और नसबंदी अभियान चलाते हैं. राष्ट्रव्यापी टीकाकरण कानूनों के चलते कुत्तों में रेबीज लगभग पूरी तरह खत्म

यूरोप
पश्चिमी और उत्तरी यूरोप में पंजीकरण, नसबंदी, सड़कों पर छोड़ देने विरोधी कानून, मुफ्त या अत्यधिक सब्सिडी वाली नसबंदी प्रक्रिया की वजह से लावारिस कुत्तों का लगभग सफाया

पशु कल्याण समूह क्यों कर रहे विरोध?

उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश दशकों से जारी नसबंदी पद्धति के बजाए एक ऐसी व्यवस्था पर जोर देता है, जिसे दुनिया में छोड़ा जा चुका है. यह वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित और सहानुभूतिपूर्ण एबीसी समाधान को खारिज करता है

रेबीज से मौतें 
हालांकि, रेबीज जानलेवा है लेकिन कुत्ते के काटने के तुरंत बाद टीका लगवा लिया जाए तो इसे रोका जा सकता है. कुत्तों को रेबीज-मुक्त रखने के लिए कई टीके उपलब्ध हैं. काटने के ज्यादातर मामलों में रेबीज नहीं होता. छवि शर्मा से पहले दिल्ली में 2022 से रेबीज के कारण मौत की कोई घटना सामने नहीं आई. पिछले दो वर्षों में 14 राज्यों में रेबीज का कोई मामला नहीं आया है.

समाधान 
भारत नसबंदी के माध्यम से लावारिस कुत्तों की आबादी नियंत्रित करने के लिए विश्व स्तर पर स्वीकार्य पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) पद्धति पर अमल करता है.

एमसीडी की नाकामी 
जयपुर, विशाखापत्तनम और बेंगलूरू के उलट एमसीडी की करीब 10,000 कुत्तों की नसबंदी/टीकाकरण दर यहां लगभग दस लाख कुत्तों की आबादी (आखिरी आधिकारिक सर्वे 2009 में) को संतुलित करने के लिए जरूरी 70-80 फीसद दर से बहुत कम.

केंद्र का रुख 
''स्थानीय निकायों की निगरानी में एबीसी कार्यक्रम पर व्यापक स्तर पर अमल किया जाना ही एकमात्र तर्कसंगत और वैज्ञानिक समाधान है...'' अप्रैल 2025 में संसद में दिया गया वक्तव्य

डब्ल्यूएचओ भी एबीसी का पक्षधर 
''इसका कोई सबूत नहीं कि कुत्तों को सड़कों से हटाने से उनकी आबादी पर...या रेबीज के प्रसार पर कोई खास असर पड़ता है.''

चुनौतियां 
> पैसा: दिल्ली का पूरा स्वास्थ्य बजट 12,893 करोड़ रुपए है; और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल किया जाए तो पूरी कवायद पर करीब 10,000 करोड़ रुपए खर्च होंगे.

> सीमित भूमि, लेबर; अत्यधिक आबादी

> कुत्तों को सड़कों पर वापस न छोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए एबीसी नियमों में बदलाव की जरूरत पड़ेगी.

दिल्ली की स्थिति
> दिल्ली में कोई स्थायी सरकारी/ एमसीडी डॉग शेल्टर नहीं

> एमसीडी और गैर-सरकारी संगठनों की तरफ से चलाए जा रहे 20 एबीसी केंद्रों में नसबंदी के बाद 2,500-4,000 कुत्तों को रखने का इंतजाम. लेकिन ये स्थायी शेल्टर नहीं

Advertisement
Advertisement