
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की परिकल्पना एक ऐसे उत्कृष्ट संस्थान के रूप में की गई थी जो नए भारत की आशाओं को साकार करता हो और संस्थान उस नजरिए पर खरा उतरा है. 1956 में राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में स्थापित इसकी परिकल्पना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर की अगुआई में इसने आकार लिया.
दशकों से दिल्ली स्थित एम्स भारत के प्रमुख चिकित्सा संस्थान के रूप में उभरा है जो अपने अत्याधुनिक अनुसंधान, रोगियों की भारी संख्या और इलाज की विशिष्ट सुविधाओं के लिए प्रसिद्ध है. यहां से अगर एमबीबीएस की डिग्री लेना बहुत प्रतिष्ठा की बात है तो पीजी डिग्री और भी प्रतिष्ठित है. एम्स दिल्ली में पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षा के भारत में चिकित्सा प्रशिक्षण में अद्वितीय माना जाता है जो शैक्षणिक उत्कृष्टता, क्लिनिकल अनुभव और अनुसंधान के अवसरों का बेजोड़ अनुभव होती है.
यह संस्थान एमडी/एमएस/डीएम/एमसीएच कोर्सेज में दाखिले के लिए देश के प्रतिभाशाली छात्रों को आकर्षित करता है और यह दाखिला बेहद प्रतिस्पर्धी आइएनआइ-सीईटी परीक्षा के माध्यम से मिलता है. परीक्षा में हर वर्ष 50,000 एमबीबीएस और 25,000 डेंटल स्नातक शामिल होते हैं. फिर भी एक प्रतिशत से भी कम छात्रों को सीट मिल पाती है.
दक्षिण दिल्ली के अंसारी नगर में विशाल और हरे-भरे परिसर में फैला यह संस्थान विश्वस्तरीय सुविधाएं प्रदान करता है जो पेशेवर और व्यक्तिगत विकास दोनों को बढ़ावा देती हैं.
विद्यार्थियों का कहना है कि यहां की पीजी शिक्षा का मुख्य आकर्षण फैकल्टी है. वे जटिल क्लिनिकल मामलों, शोध की पद्धति, जैव सांख्यिकी और गहन सोच के माध्यम से छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं. वे शिक्षण और नवाचार दोनों पर ध्यान केंद्रित करते हैं. एम्स के संकाय सदस्य केवल प्रशिक्षक ही नहीं हैं—वे ऐसे आदर्श हैं जो भारतीय और वैश्विक स्वास्थ्य सेवा का भविष्य गढ़ते हैं.

पिछले साल ही एम्स के संकाय ने कई उपलब्धियां हासिल कीं. स्त्री रोग आँकोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. नीरजा भटला को सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम में अग्रणी कार्य के लिए 2025 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. डॉ. दीपक अग्रवाल के नेतृत्व में एम्स ऐसा पहला संस्थान बना जिसने भारत में बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा (रेटिना में कैंसर) के इलाज के लिए गामा नाइफ रेडियोसर्जरी का उपयोग किया.
डॉ. अशोक कुमार महापात्र ने एम्स दिल्ली में क्रैनियोपैगस जुड़वां (सिर से जुड़े हुए) को अलग करने के लिए कई घंटों तक चले अभूतपूर्व ऑपरेशन का नेतृत्व किया जिसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिली. डॉ. प्रसून चटर्जी को एडिनबरा के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन का फेलो चुना गया (दिसंबर 2024) और वे स्वस्थ वृद्धावस्था (हेल्दी एजिंग) के विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी सलाहकार समूह में शामिल हैं.
दिल्ली के एम्स की एक और बड़ी सकारात्मक बात यह है कि यहां देशभर से बड़ी संख्या में और विभिन्न बीमारियों के रोगी आते हैं, जिससे पीजी छात्रों को दुर्लभ और जटिल मामलों का बेजोड़ अनुभव मिलता है. इससे उनकी क्लिनिकल कुशलता और डायग्नोस्टिक समझ बढ़ती है. एम्स एशिया के सबसे ज्यादा घायलों वाले ट्रॉमा सेंटरों में से एक है.
यहां एक केंद्रीय पुस्तकालय भी है जो एशिया की सर्वश्रेष्ठ लाइब्रेरियों में से एक है. यह लाइब्रेरी हजारों चिकित्सा जर्नलों, ई-सामग्री और रिसर्च डेटाबेस तक पहुंच उपलब्ध कराती है. पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों के लिए पढ़ाई का समर्पित क्षेत्र है और 24/7 डिजिटल पहुंच उपलब्ध है. सबसे अहम बात यह है कि स्नातकोत्तर छात्रों को मौलिक रिसर्च के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिसे एम्स के रिसर्च सेल, एथिक्स कमेटियां और संस्थागत फंडिंग तथा नवीनतम चिकित्सा उपकरणों के जरिए सहायता मुहैया कराई जाती है.
पैथोलॉजी, मॉलिक्यूलर जीव विज्ञान, आनुवंशिकी और रेडियोलॉजी के लिए समर्पित प्रयोगशालाएं ऐसे कार्यों में मददगार होती हैं. इसके अलावा, एम्स का हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे वैश्विक संस्थानों के साथ सहयोग समझौता है जिससे एक्सचेंज प्रोग्राम और संयुक्त शोध पहल संभव होती है. शोध के परिणाम बहुत कुछ कहते हैं. पिछले साल स्नातकोत्तर शोधकर्ताओं की एक टीम—तृप्ति श्रीवास्तव, हर्षल चौधरी और वृजेंद्र सिंह—ने ऑटिज्म का जल्दी पता लगाने के लिए एक मशीन लर्निंग मॉडल विकसित किया.
हाल में एम्स ने आइआइटी दिल्ली के सहयोग से स्वास्थ्य सेवा में एआइ के लिए अत्याधुनिक उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की है जिससे यह साबित होता है कि संस्थान स्वास्थ्य अनुसंधान में उत्कृष्टता को लगातार बेहतर और इनोवेट करते हुए आगे बढ़ा रहा है.
एम्स दिल्ली में पीजी के बाद करियर की संभावनाएं असाधारण हैं. सीनियर रेजिडेंसी, शिक्षण पदों, विदेश में फेलोशिप और सरकारी तथा निजी स्वास्थ्य सेवा में नेतृत्व वाली भूमिकाओं के लिए ग्रेजुएटों की काफी मांग रहती है. एम्स दिल्ली का पीजी छात्र होना महज डिग्री लेने से कहीं ज्यादा है—यह एक ऐसा अनुभव है जो डॉक्टरों में स्वास्थ्य सेवा में नेतृत्व करने के लिए कौशल और आत्मविश्वास भरता है.
औरों से जुदा भारत में चिकित्सा के क्षेत्र में सबसे ज्यादा 35 पद्म पुरस्कार पाने वाली हस्तियां इसी संस्थान की हैं
टॉप रिक्रूटर देश भर के सरकारी अस्पताल, एम्स दिल्ली, बायोकॉन, भारत बायोटेक जैसी बायोटेक फर्में, डब्ल्यूएचओ, आइसीएमआर से रिचर्स फेलोशिप आदि
मरीजों की आस एम्स दिल्ली में सालाना 35 लाख मरीज ओपीडी में आते हैं; 10,000 से ज्यादा मरीज रोज ओपीडी में इलाज कराने आते हैं.
''एम्स दिल्ली आँकोलॉजी, मेेडिकल इमेजिंग, नेत्रविज्ञान और त्वचा विज्ञान जैसे क्षेत्रों में एआइ के इस्तेमाल में बहुत तेजी सेे काम कर रहा है.’’
मेहमान का पन्ना : वक्त के साथ कदमताल
डॉ. एम. श्रीनिवास, निदेशक, एम्स दिल्ली
एम्स नई दिल्ली की स्थापना के पीछे का मिशन था उन्नत चिकित्सा शिक्षा में आत्मनिर्भरता हासिल करना. यहां लगभग 100 विषयों में पढ़ाई होती है और अनुसंधान किए जाते हैं. अकेले 2024 में संस्थान ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से वित्तपोषित बाहर की 906 अनुसंधान परियोजनाओं का प्रबंधन किया और 269 आंतरिक अनुसंधान पहलकदमियों को सपोर्ट दिया.
इनमें कुल अनुदान 208 करोड़ रुपए से ज्यादा का था. एम्स दिल्ली के छात्रों को विभिन्न तरह के रोगों से जुड़े क्लिनिकल मामलों और अत्याधुनिक डायग्नोस्टिक और चिकित्सा तकनीकों का अनुभव मिलता है. स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए एम्स ने नए शैक्षणिक कार्यक्रम शुरू किए हैं जिनमें मनोचिकित्सा विभाग के तहत साइकोसोमैटिक मेडिसिन में डीएम शामिल है.
संस्थान छात्रों के कल्याण पर बहुत जोर देता है. मनोचिकित्सा विभाग छात्रों के लिए कैंपस के भीतर एक वेलनेस सेंटर चलाता है. हाल में पोस्टग्रेजुएट शोधकर्ताओं को सशक्त बनाने के लिए विशेष रूप से एक अंत:विषय अनुसंधान वित्तपोषण योजना शुरू की गई.
एम्स दिल्ली की कई प्रमुख पहलकदमियां हैं. इनमें के.एल. विग सेंटर फॉर मेडिकल एजुकेशन, टेक्नोलॉजी ऐंड इनोवेशन (सीएमईटीआइ) शामिल है. यहां पर फैकल्टी और छात्रों की क्षमता निर्माण के अनेक कार्यक्रम करवाए गए. इसके अलावा, रोबोटिक सर्जरी ट्रेनिंग फैसिलिटी (एमईएचएनएटी-मेहनत) एक आला दर्जे की तकनीक प्रशिक्षण पहल है.
इसके तहत एसईटी सुविधा (कौशल, ई-लर्निंग, टेलीमेडिसिन) के जरिए रेजिडेंट्स और संकाय को एडवांस्ड सर्जिकल कौशल की जानकारी के लिए मेडट्रॉनिक ह्यूगो रोबोटिक सिस्टम का उपयोग किया जाता है. एसईटी सुविधा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय मेडिकल कॉलेज नेटवर्क की रीढ़ है. इससे भारत भर के मेडिकल कॉलेज जुड़े हुए हैं और यह ई-शिक्षा और राष्ट्रीय टेलीहेल्थ प्रयासों का समर्थन करता है.
छात्रों के लिए कई तरह के डिजिटल शिक्षण टूल्स भी हैं जिन तक उनकी पहुंच होती है. और अंत में, एम्स दिल्ली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को आँकोलॉजी, मेडिकल इमेजिंग, नेत्र विज्ञान और त्वचा विज्ञान जैसे डोमेन में लागू करने में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है. केंद्रीय स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय ने इसे एआइ/एमएल के उत्कृष्टता केंद्र का दर्जा दिया है.
मेहमान का पन्ना : वार्ड और उससे परे की दुनिया
डॉ. आराधना शर्मा, जूनियर रेजिडेंट, बायोकेमिस्ट्री विभाग
नई दिल्ली में एम्स के हरे-भरे खुले क्षेत्र में कदम रखने से एक परिवर्तनकारी एहसास होता है. मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती हूं कि मैं भारत के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कैंपस में रहते हुए सीख रही हूं. सप्ताह के दौरान मैं खुद को साप्ताहिक जर्नल क्लब, गेस्ट लेक्चरर और इंटरऐक्टिव सेशन में व्यस्त पाती हूं.
इन सेशन में फैकल्टी और छात्र स्वतंत्र रूप से महत्वपूर्ण चर्चाओं में भाग लेते हैं. मेरे शैक्षणिक काम में एमबीबीएस छात्रों के लिए केस-आधारित चर्चाओं, समस्या-आधारित शिक्षण सत्रों और प्रैक्टिकल का नेतृत्व करना शामिल है. इन्हें रोगी या केस केंद्रित सेटिंग्स में बुनियादी जैव रासायनिक विचारों को शामिल करते हुए तैयार किया गया है जिससे भविष्य के डॉक्टर किताबों की पढ़ाई को वास्तविक जीवन की क्लिनिकल परिस्थतियों से जोड़ सकें.
शायद सबसे लुभाववना हिस्सा थीसिस का काम है. हमारे महत्वपूर्ण एमडी प्रोजेक्ट जटिल दृष्टिकोणों और लगातार ट्रायल ऐंड एरर से चलते हैं. एम्स इनमें भरपूर मदद करता है—प्रयोगशालाएं और उपकरण सातों दिन 24 घंटे सुलभ हैं जिससे काम में समय के अनुसार लचीलापन संभव होता है.
एम्स को छोटा-मोटा भारत माना जा सकता है. यहां रेजिडेंट्स अपने साथ जीवंत भाषाएं, व्यंजन, परंपराएं और दृष्टिकोण लेकर आते हैं. दीवाली, ओणम, बिहू, बैसाखी, गणेश चतुर्थी और लोहड़ी जैसे त्योहार सभी मनाते हैं और भाषायी विविधता दोस्ती के लिए स्वाभाविक सेतु का काम करती हैं.
बेशक, यहां के जीवन में पलभर की भी फुरसत नहीं होती है. एम्स में बड़ी संख्या में मरीज आते हैं जो उन्हें बेजोड़ चिकित्सीय अनुभव देते हैं. यहां के रेजिडेंट्स तनाव दूर करने के लिए कई तरीके अपनाते हैं. कुछ जिम जाते हैं तो कुछ स्विमिंग पूल जबकि अनेक जिनमें मैं भी शामिल हूं, देर रात तक टहलते हैं.
मेरे लिए एम्स में बिताया गया एक हफ्ता गहन शिक्षा, शोध के अवसरों, शिक्षण और सामुदायिक पलों का मिलाजुला समय होता है. यहां महत्वाकांक्षा को दिशा मिलती है और चिकित्सा शिक्षा एक कला बन जाती है.
''एम्स एक तरह से छोटा भारत है. रेजिडेंट्स अपने साथ यहां जीवंत परंपराएं, भाषा, व्यंजन और परंपराएं लेकर आते हैं. हम सभी ओणम, बिहू और दीवाली मिलकर मनाते हैं.’’
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