
भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर सेना की कितनी चौकियां हैं? इनके किस हिस्से में तोपखाना है? भारत के फाइटर जेट्स की लोकेशन आम तौर पर कहां होती है? इंडियन एयर फोर्स के किस बेस पर कौन-सा एयर डिफेंस सिस्टम लगा है? इंडियन नेवी के सबसे खतरनाक जहाज किन नैवल बेस पर तैनात रहे? भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लॉन्च पैड कहां हैं और कितने हैं...?
ये सारे सवाल आपकी दिलचस्पी सशस्त्र भारतीय बलों के उन डीटेल्स के लिए बढ़ा रहे होंगे जिनके जवाब आपकी सोच की पहुंच के भी बाहर हैं. होने भी चाहिए. अगर आप इंडियन डिफेंस सिस्टम में 'फैसले लेने वाले’ किसी पद पर नहीं हैं या भारत सरकार में आप कोई 'हाइ वैल्यू’ या 'टॉप पे ग्रेड’ शख्स नहीं हैं. इन्हीं दो तरह के लोगों को इन सवालों के जवाब पता होते हैं.
बदकिस्मती से, तीसरा तरीका भी है. और यह तरीका दुनिया में कोई भी ऐसा शख्स जिसके पास इंटरनेट की सुविधा हो, उसके लिए आसानी से उपलब्ध है.
क्या है यह तरीका?
गूगल अर्थ. इक्कीसवीं सदी की ठीक शुरुआत में ही दुनिया को मिली वह तकनीक जिसने दुनिया को बतौर नक्शा देखने का पूरा ढंग ही बदल दिया. धरती पर इंसानी रिहाइश की कोई भी जगह जिसका नाम आप जानते हों, गूगल अर्थ के 'सर्च बार’ में टाइप करें, वह जगह आपकी स्क्रीन पर मौजूद है , सो भी बिलकुल मुफ्त.
अब एक बार वापस सबसे पहले पैराग्राफ को पढ़ें. ये सवाल अब तिलिस्मी नहीं रहे. गूगल अर्थ पर भारत-पाकिस्तान लाइन ऑफ कंट्रोल टाइप कीजिए, भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए सीजफायर के बाद शिमला समझौते से जन्मी सैकड़ों किलोमीटर की एलओसी आपके सामने है.

वह भी थ्री डाइमेंशनल, जिसे 50 मीटर तक जूम करके आप भारतीय सेना की कोई भी चौकी देख सकते हैं. पचास मीटर जूम करने तक वे तस्वीरें इतनी साफ होती हैं कि आप किसी चौकी में मौजूद ट्रक, उनके ट्रेंच, तोपखाना और निगरानी टावर बहुत आसानी से देख सकते हैं.
गूगल अर्थ हर साल, और कई बार साल के हर महीने इन सैटेलाइट तस्वीरों को अपडेट करता है. गूगल अर्थ की 'हिस्टोरिकल इमेजरी’ में 1985 से मई, 2025 तक लगातार अपडेट होती हुई तस्वीरें मिलेंगी.
इस लगातार अपडेशन से होता यह है कि उस जगह पर हर साल, और कई बार हर महीने कहां, क्या, कितना कंस्ट्रक्शन हुआ, इसका अंदाजा लगाना बेहद आसान हो जाता है.
क्या यह सब कुछ सबने अनदेखा किया?
नहीं. गूगल अर्थ के खतरे से देश को सबसे पहले आगाह करने वालों में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम शामिल थे. सितंबर, 2005 में गूगल ने जैसे ही भारत में ऑपरेट करना शुरू किया, उसके ठीक एक महीने बाद हैदराबाद की नेशनल पुलिस अकादमी में डॉ. कलाम अपना भाषण दे रहे थे.
उन्होंने गूगल अर्थ पर भारतीय सैन्य ठिकानों और एटमी संयंत्रों की डीटेल इमेजरी पर चिंता जताते हुए कहा, ''विकासशील देश जो पहले ही आतंकवाद से जूझ रहे हैं, केवल उन्हें ही चुना गया है.’’ डॉ. कलाम ने गूगल अर्थ से किसी सैन्य खतरे की बात नहीं की, बल्कि उन्होंने जोर देकर 'आतंकवाद’ का जिक्र किया.
गूगल अर्थ पर साफ दिख रहे भारत के हर सैन्य ठिकाने को किससे खतरा है?
इसके जवाब में मिलिट्री इंटेलिजेंस के एक अधिकारी बताते हैं, ''भारत को चीन या पाकिस्तान की ऑफिशियल आर्म्ड फोर्सेज से इस मामले में खतरा नहीं. इन दोनों के पास सैटेलाइट इमेज हासिल करने के अपने-अपने पर्याप्त तरीके हैं.

उसके लिए इन्हें गूगल अर्थ की जरूरत नहीं. लेकिन क्या कश्मीर के छुट्टा किस्म के किसी छोटे-से आतंकवादी समूह या गढ़चिरौली और सुकमा जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों के नक्सलियों के पास अपना सैटेलाइट सिस्टम है? उन्हें अगर सेना के किसी कैंप या सीआरपीएफ की किसी चेक पोस्ट के बारे में जानना है तो गूगल अर्थ उन्हें बेहिसाब मौका देता है.’’
इस बात को और विस्तार से जानने के लिए हमें चीन, रूस, अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी जैसे देशों को गूगल अर्थ पर देखना होगा. क्या वहां भी गूगल अर्थ ऐसा ही तसल्लीबख्श काम कर रहा है?
जवाब हैरान करने वाला
तमिलनाडु के कुडनकुलम में एक न्यूक्लियर पावर प्लांट है. देश में सैन्य महत्ता की बाकी जगहों की तरह इसे भी पचास मीटर की उंचाई से हाइ डेफिनेशन इमेज में देखा जा सकता है. इतना साफ और लगातार अपडेटेड कि कोई भी सामान्य समझ वाला शख्स इसके दोनों रिएक्टर्स से पानी का बहाव देखकर बता सकता है कि साल के किन महीनों में प्लांट का कौन-सा हिस्सा काम करता है. इसके उलट फ्रांस में लग्जमबर्ग से 22 किलोमीटर दूर फ्रांस का दूसरा सबसे ताकतवर न्यूक्लियर पावर प्लांट 'कैटेनम प्लांट’ गूगल अर्थ पर धुंधला किया गया है.
ऐसे ही, ओडिशा के पास बंगाल की खाड़ी में डीआरडीओ के इंटिग्रेटेड टेस्ट रेंज का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है 'अब्दुल कलाम आइलैंड’, जिसे 2015 से पहले 'व्हीलर आइलैंड’ कहा जाता था. आम नागरिक यहां नहीं जा सकते लेकिन गूगल अर्थ इसे इतने करीब से दिखाता है कि टेस्टिंग पैड समेत इस आइलैंड का हर एक कंस्ट्रक्शन देखा जा सकता है. जबकि, रूस की बेहद खुफिया टेस्टिंग साइट और मिलिट्री बेस 'जेनेट आइलैंड’ और ऑस्ट्रेलिया के सीक्रेट इंटेलिजेंस बेस 'सैंड आइलैंड’ को गूगल अर्थ पर ब्लैक स्पॉट कर दिया गया है.

आखिर वजह क्या है इसकी?
भारतीय सुरक्षा एजेंसी के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ''गूगल मैप पर हमारे सिक्योरिटी इन्फ्रा की डिटेल मौजूद है, यह मुझे उस वक्त पता चला जब मैं आगरा में तैनात था. सिक्योरिटी फोर्सेज से जुड़े लोग जानते थे कि आगरा में न्यूक्लियर एसेट ट्रांसफर किए जाने की खबर थी.
हमारी लिस्ट में कुछ लोग सर्विलांस पर थे जिनकी बातचीत हम इंटरसेप्ट कर रहे थे. उसमें पाकिस्तान से इस तरफ के लड़के को किसी कैंप की रेकी का ऑर्डर आया. तब उसने मैसेज किया कि इतने-से काम के लिए वहां जाकर टाइम क्यों बर्बाद करना है, आप गूगल मैप पर कैंप देख लें.’’
आतंकवाद वाले सवाल पर जम्मू कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक डॉ. एस.पी. वैद साफ कहते हैं, ''आतंकवादियों की एडवांस होती तकनीक और हथियारों ने भारतीय सुरक्षा बलों के लिए मुश्किल खड़ी की है. गूगल अर्थ जैसे ओपन सैटेलाइट इमेजरी प्लेटफॉर्म का आतंकवादियों को जाहिर तौर पर फायदा होता होगा.’’
भारत के बाहर से ऑपरेट करने वाली सैटेलाइट इमेजरी कंपनियों पर भारत सरकार का कितना दखल है? बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) के रिटायर्ड एडिशनल डायरेक्टर जनरल एस.के. सूद बताते हैं, ''भारत के सैन्य ठिकानों और सुरक्षा के लिहाज से जरूरी जगहों की डीटेल इमेज पब्लिक में नहीं होनी चाहिए. जरूरत पड़े तो इन ऐप्लिकेशन को पूरी तरह बैन किया जाना चाहिए.’’

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के 'स्पेशल सेंटर फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज’ में एसोसिएट प्रोफेसर अमित सिंह सवाल उठाते हैं कि कई देशों के सैन्य ठिकाने गूगल पर मास्क किए गए हैं, ऐसा भारत के साथ क्यों नहीं है? वे इस पर भी जोर देते हैं कि हमें चीन और रूस की तरह ही अपना मैपिंग और नेविगेशन सिस्टम डेवलप करना चाहिए ताकि इस मामले में गूगल पर हमारी निर्भरता खत्म हो.
जिस साल डॉ. कलाम ने गूगल मैप के खतरों पर देश को चेतावनी दी थी उसी साल 2005 में बाकायदा 'नेशनल मैप पॉलिसी’ बनाई गई थी. भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली 258 साल पुरानी सर्वे ऑफ इंडिया डिफेंस मैपिंग को सिविल यूज के लिए की जा रही मैपिंग से अलग करती है. इंडिया टुडे ने सर्वे ऑफ इंडिया से सवाल पूछे तो जवाब आया कि ''ओपन प्लेटफॉक्वर्स से आने वाली सैटेलाइट इमेजरी को नियंत्रित करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं.’’
भारत दुनिया के कुछ और देशों की तरह अपने सैन्यठिकानों को गूगल पर मास्क यानी धुंधला क्यों नहीं करवाता? इसके जवाब में सर्वे ऑफ इंडिया का कहना है, ''किसी क्षेत्र को धुंधला या मास्क करने के लिए उस स्थान के सटीक को-ऑर्डिनेट्स सैटेलाइट इमेजरी प्रोवाइडर्स (जिनमें कई विदेशी कंपनियां शामिल हैं) के साथ साझा करने होंगे. यह राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में नहीं है और देश के कानूनी प्रावधानों के तहत इसकी अनुमति भी नहीं.’’
पठानकोट आतंकी हमले के बाद 2016 में दिल्ली हाइकोर्ट में याचिकाकर्ता लोकेश कुमार शर्मा ने गूगल मैप के खिलाफ याचिका लगाई. हालांकि तब हाइकोर्ट ने गूगल मैप को बैन करने से तो मना कर दिया, लेकिन भारत सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन को आदेश दिया कि जांच की जाए और कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी जाए. लेकिन गूगल अर्थ पर इसका कोई असर नहीं दिखता.
जिस भी देश ने मानने पर मजबूर किया, गूगल मैप ने बात मानी है. लेकिन भारत के मामले में जाने किस वजह ने गूगल मैप की हाइ रेजोल्यूशन नजर धुंधली कर रखी है. इंडिया टुडे ने गूगल को अपने सवाल ईमेल किए जिनका जवाब नहीं आया.