देश में संपत्ति की रजिस्ट्री को लेकर एक ऐतिहासिक बदलाव की नींव रखी जा रही है. केंद्र सरकार ने एक ऐसे कानून की तैयारी की है जो अचल संपत्ति के लेनदेन के पुराने ढर्रे को पूरी तरह बदल सकता है.
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग ने 117 साल पुराने रजिस्ट्रेशन ऐक्ट 1908 को बदलने के लिए ड्रॉफ्ट रजिस्ट्रेशन बिल 2025 को अप्रैल में जनता की राय के लिए पेश किया.
अगर यह विधेयक कानून बनता है तो आने वाले समय में संपत्ति की रजिस्ट्री डिजिटल हो सकेगी, यानी लोगों को न तो रजिस्ट्री दफ्तर में चक्कर लगाने और न ही दलालों के पीछे दौड़ने की जरूरत रहेगी.
यह डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है. इसके तहत संपत्ति की खरीद-बिक्री से जुड़ी रजिस्ट्री की प्रक्रिया को पूरी तरह ऑनलाइन किया जाएगा. इसमें इलेक्ट्रॉनिक डॉक्युमेंट सबमिशन, डिजिटल हस्ताक्षर, आधार आधारित पहचान सत्यापन, इलेक्ट्रॉनिक सर्टिफिकेट जारी करना और डिजिटल रिकॉर्ड्स का रखरखाव शामिल होगा. यह कानून खरीदार और विक्रेता को रजिस्ट्रार दफ्तर जाने की बाध्यता से मुक्त कर देगा. वैसे, ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा बनी रहेगी. इसका मकसद पारदर्शिता, सटीकता और संपत्ति लेन-देन को विवाद रहित बनाना है.
दरअसल, संपत्ति को लेकर झगड़े देश की न्याय व्यवस्था पर सबसे बड़ा बोझ बने हुए हैं. नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के मुताबिक, देश की निचली अदालतों में 1.1 करोड़ सिविल केस लंबित हैं और इनमें से दो-तिहाई संपत्ति से जुड़े होने का अनुमान है. इनसे प्रभावित लोगों की संख्या करोड़ों में है. फर्जी दस्तावेजों, एक ही संपत्ति की दोहरी बिक्री, नामांतरण में देरी जैसी समस्याओं की जड़ मौजूदा व्यवस्था की खामियों में है.
ऐसे में सरकार का मानना है कि रजिस्ट्रेशन ऐक्ट 1908 तकनीकी और सामाजिक विकास के लिहाज से पुराना पड़ चुका है. नए दौर की चुनौतियों से निबटने को एक आधुनिक, डिजिटल और सुरक्षित कानून की जरूरत है. कुछ राज्य पहले ही डिजिटल पहचान और ई-डॉक्युमेंट सबमिशन की सुविधा शुरू कर चुके हैं, लेकिन पूरे देश में एकरूपता नहीं है क्योंकि भूमि पर राज्य और केंद्र दोनों कानून बना सकते हैं. कुछ राज्य भूमि संबंधी कानून में डिजिटल प्रक्रिया से जुड़े प्रावधान लागू कर चुके हैं.
इस विधेयक के कुछ प्रमुख प्रावधान हैं: डिजिटल रजिस्ट्री के लिए दस्तावेजों को ऑनलाइन जमा करना, डिजिटल हस्ताक्षर करना और इलेक्ट्रॉनिक सर्टिफिकेट पाना; संपत्ति की डिजिटल पहचान के लिए जमीन का नक्शा, मालिकाना हक और नामांतरण से जुड़े सभी विभागों के रिकॉर्ड को एकीकृत करना; पहचान के लिए आधार आधारित सत्यापन होगा लेकिन जिनके पास आधार नहीं है, उनके लिए दूसरे विकल्प होंगे. सरकार टेम्पलेट आधारित दस्तावेज जारी कर सकती है, जिससे पारदर्शिता आएगी. इसके अलावा, अगर विदेश में कोई संपत्ति सौदा होता है और समय पर रजिस्ट्री नहीं हो पाती, तो दस्तावेज दाखिल करने और भारत आकर चार महीने में रजिस्ट्री कराने का विकल्प रहेगा.
डिजिटलीकरण से संपत्ति के फर्जी दस्तावेज बनाना मुश्किल होगा. सभी रिकॉर्ड जब ऑनलाइन और एकीकृत होंगे तो खरीदार को संपत्ति के इतिहास की पूरी जानकारी पहले से मिल सकेगी. इससे विवादों की संभावना घटेगी. रजिस्ट्रेशन वैसे केवल एक कदम है. मकानों में नामांतरण और जमीन के मामले में सीमांकन भी जरूरी है.
वकील ज्ञानंत सिंह के मुताबिक, रजिस्ट्री के बाद अगर दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) नहीं हुआ तो मालिकाना हक अधूरा रह जाता है. रजिस्ट्री इसकी सरकारी स्वीकृति है कि लेन-देन हुआ लेकिन नामांतरण ही वास्तविक स्वामित्व पक्का करता है. मध्य प्रदेश के संपत्ति मामलों के जानकारों का कहना है कि सीमांकन बहुत जरूरी होता है. अक्सर देखा गया है कि संपत्ति की रजिस्ट्री हो जाती है, लेकिन मौके पर कब्जा किसी और का मिलता है. इसका समाधान फिजिकल और लीगल कब्जे दोनों सुनिश्चित करने से ही संभव है.
एक तरफ जहां इस विधेयक से काफी उम्मीदें हैं, वहीं संपत्ति मामलों के वकील विनोद कुमार शुक्ल ऑनलाइन रजिस्ट्री की प्रक्रिया को लेकर आशंकित हैं. उनका कहना है कि तयशुदा प्रोफार्मा में अन्य जरूरी जानकारियों को शामिल करने की जगह नहीं होती, जबकि हर संपत्ति की प्रकृति अलग होती है. इससे भविष्य में विवाद उत्पन्न हो सकते हैं. उनका यह भी कहना है कि खरीदार को संपत्ति का इतिहास, रेवेन्यू रिकॉर्ड और संभावित मुकदमे की पूरी जांच करके ही रजिस्ट्री करनी चाहिए, वरना बाद में धोखा होने पर कोर्ट ही एकमात्र रास्ता बचेगा.
रजिस्ट्री के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 23 मई 2025 को विनोद इन्फ्राडेवलपर्स लिमिटेड बनाम महावीर लूनिया केस में अहम फैसला दिया. जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि बिना रजिस्टर्ड सेल डीड को संपत्ति पर स्वामित्व नहीं माना जा सकता. केवल 'एग्रीमेंट टू सेल' या 'जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी' से मालिकाना हक नहीं मिलता जब तक कि वह रजिस्टर्ड न हो. इससे यह साफ हो गया कि संपत्ति के लेनदेन से जुड़े दस्तावेज की तय समय के भीतर रजिस्ट्री कराना अनिवार्य है.
भारत में स्वामित्व योजना, डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम और ड्रोन सर्वे जैसे कार्यक्रमों के तहत जमीन के नक्शे, घरों का डिजिटल डेटा और रिकॉर्ड पहले ही बड़ी संख्या में ऑनलाइन हो चुका है. बेंगलूरू की बीबीएमपी ने तो 22 लाख संपत्तियों के ई-रिकॉर्ड को आधार आधारित ऑटोमेटिक नामांतरण से जोड़ दिया है. वहां ड्रोन से हर इंच की माप हो चुकी है और सब-रजिस्ट्रार दफ्तर पूरी तरह डिजिटल हो चुके हैं. ऐसे में अब पूरे देश में यह सिस्टम लागू करना व्यावहारिक लगने लगा है.
वैसे, पारदर्शिता के लिए पहले भी कोशिश हो चुकी है. 2013 में रजिस्ट्रेशन संशोधन बिल संसद में लाया गया था लेकिन वह संसद की स्टैंडिंग कमेटी से आगे नहीं बढ़ सका. अब 2025 का यह बिल ज्यादा व्यापक, तकनीकी रूप से उन्नत और व्यावहारिक नजर आता है. जनता की राय के बाद इसे संसद के अगले किसी सत्र में पेश किया जा सकता है. देखना है कि सरकार इसमें क्या संशोधन करती है.
वैसे, अभी देश में संपत्ति से जुड़े कानूनों में रजिस्ट्रेशन ऐक्ट 1908 के साथ ट्रांसफर ऑफ प्रापर्टी ऐक्ट 1882, भारतीय उत्तराधिकार कानून 1925, स्पेसिफिक रिलीफ ऐक्ट 1963, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 और इंडियन ईजमेंट ऐक्ट 1882 प्रमुख हैं. रजिस्ट्रेशन बिल 2025 केवल कानूनी बदलाव नहीं है, यह नागरिकों की संपत्ति से जुड़ी सुरक्षा और विश्वास को पुन: स्थापित करने की कोशिश है.