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क्या RDI स्कीम से भारत बनेगा टेक्नोलॉजी महाशक्ति?

केंद्र सरकार ने 1 जुलाई को एक लाख करोड़ रुपए की रिसर्च डेवलपमेंट इनोवेशन (RDI) स्कीम मंजूर को मंजूरी दी है

IIT बॉम्बे में हाइब्रिड सोलर सेल लैब का नजारा
अपडेटेड 6 अगस्त , 2025

बेंगलूरू के इलेक्ट्रॉनिक सिटी में क्यून्यू अपनी क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन टेक्नोलॉजी को निखार रही है. यह साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला सकती है. दिल्ली में व्योम बायोसाइंसेज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से त्वचा रोगों के लिए नए इलाज खोज रही है.

आइडियाफोर्ज जैसे टैक्टिकल ड्रोन स्टार्टअप्स से लेकर स्काइरूट जैसी स्पेस-टेक कंपनियों तक, डीप टेक वेंचर्स सीमाओं को लांघने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन जो कमी है, वह है संस्थागत पूंजी और लंबे समय तक चलने वाले अनुसंधान के लिए भरोसा.

भारत ने ऐतिहासिक रूप से उस 'वैली ऑफ डेथ' का डर महसूस किया है, जिसे नई तकनीक को पार करना होता है. इससे सिर्फ सरकार ही पार करा सकती है. लेकिन अब तक के प्रयास आधे-अधूरे रहे हैं. 1990 के दशक में स्थापित टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट बोर्ड को जोखिम लेने से बचने के लिए आलोचना झेलनी पड़ी.

स्टार्टअप्स के लिए बनाया गया फंड ऑफ फंड्स कम तकनीक वाले बी2सी वेंचर्स पर केंद्रित रहा. 'मेक इन इंडिया' के तहत बना टेक्नोलॉजी एक्विजिशन ऐंड डेवलपमेंट फंड अपनी कुल राशि का केवल 10 फीसद ही वितरित कर पाया. लंबे समय से नीति-निर्माताओं को सलाह दे रहे एक उद्योग विशेषज्ञ कहते हैं कि यह नीयत की नहीं, बल्कि नवाचार वित्त के मूल स्वभाव को न समझ पाने की नाकामी थी. दिलचस्प प्रोटोटाइप अक्सर इसलिए नाकाम हो जाते हैं क्योंकि वे अकादमिक ग्रांट्स के लिहाज से बहुत व्यावसायिक होते हैं और निजी पूंजी के लिए खासे जोखिम भरे.

केंद्र सरकार अब पिछले अनुभवों से सबक लेते हुए नई पहल लेकर आई है. उसने 1 जुलाई को एक लाख करोड़ रुपए की रिसर्च डेवलपमेंट इनोवेशन (आरडीआइ) स्कीम मंजूर की. यह जुलाई 2024 के बजट में पहली बार घोषित हुआ था. इन्फो एज के संस्थापक और कार्यकारी उपाध्यक्ष संजीव भीखचंदानी मानते हैं कि यह एक ''गेम चेंजर'' हो सकता है. उनके मुताबिक, ''भारत को सिर्फ आर्थिक विकास के लिए नहीं, बल्कि रणनीतिक जरूरत के तौर पर डीप टेक में निवेश करना ही होगा.''

प्रोटोटाइप से निर्माण तक

दशकों से भारत का इनोवेशन मॉडल दो छोरों के बीच झूलता रहा है: कम फंड वाला सार्वजनिक विज्ञान और एक निजी क्षेत्र जो तात्कालिक सेवाओं या कम जोखिम वाले उत्पादों पर केंद्रित रहा है. इसका नतीजा यह हुआ कि भारत में मौलिक आविष्कार की संस्कृति नहीं बनी. कुल आरऐंडडी खर्च जीडीपी के 0.7 फीसद से नीचे ही अटका हुआ है, जबकि चीन में यह 2.4 फीसद से ज्यादा है.

भारत के कुल आरऐंडडी खर्च में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी मात्र 36 फीसद है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह 70-80 फीसद के बीच है. एचसीएल के सह-संस्थापक अजय चौधरी कहते हैं, ''दुनिया भर में सरकारें अपने वैज्ञानिकों का समर्थन करती हैं. वे निजी क्षेत्र को चुनौतियां देती हैं और आश्वासन देती हैं कि अगर आप इसे हल कर पाए, तो हम इसे खरीदेंगे. भारत में इनोवेटर को नहीं पता होता कि उसका उत्पाद खरीदेगा कौन.''

फंड को दो स्तरों पर संचालित किया जाएगा. पहले स्तर पर, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अनुसंधान नेशनल रिचर्स फाउंडेशन के तहत एक स्पेशल पर्पज फंड (एसपीएफ) बनाया जाएगा. वहां से फंड दूसरे स्तर के पेशेवर फंड मैनेजरों को आवंटित किया जाएगा. वे प्रस्तावों की समीक्षा करेंगे, ऊंची तैयारी वाले प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देंगे और पूंजी का वितरण दीर्घकालिक सस्ते ऋण, स्टार्टअप्स के लिए इक्विटी या तकनीकी अधिग्रहण सहायता के रूप में करेंगे, सिर्फ अनुदान भर नहीं देंगे. नेत्रा (नेट-जीरो एनर्जी ट्रांजिशन एसोसिएशन) के अध्यक्ष राहुल वालावलकर कहते हैं, ''तकनीक ऐसी होनी चाहिए जो मैदान में उतारी जा सके—सिर्फ लैब में नहीं पड़ी रहनी चाहिए.''

टेक्नोलॉजी को लागू किया जाना ही सब कुछ है. देश में स्वतंत्र तकनीकी मूल्यांकनकर्ताओं, सत्यापन प्रयोगशालाओं और सार्वजनिक परीक्षण केंद्रों की कमी है. पेटेंट प्रक्रिया में 3-5 साल लग सकते हैं. प्रयोगशाला उपकरणों पर भारी आयात शुल्क की वजह से उनकी लागत ज्यादा होती है. नौकरशाही की संस्कृति भी एक बड़ी चुनौती है.

डीएसटी के एक वरिष्ठ अफसर कहते हैं, ''यह योजना तभी काम करेगी जब फंड मैनेजरों को साहसिक निर्णय लेने का अधिकार मिलेगा और वे एल1(सबसे सस्ता टेंडर) तर्क या ऑडिट के डर से ऊपर उठ सकेंगे.'' जेन टेक्नोलॉजीज के मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक अटलुरी उनसे सहमत हैं: ''आपको गहराई से समझना होगा, इनोवेटर की पीड़ा को जानना होगा और उसके जुनून पर भरोसा करना होगा.''

किसे मिलेगा फंड

विदेशी मॉडल इसमें मजेदार संकेत देते हैं. अमेरिका की डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी अपने ऊंचे जोखिम वाले प्रोजेक्ट्स को समयसीमा और जवाबदेही के साथ चलाने के लिए अकादमिक या उद्योग क्षेत्र से आए उत्कृष्ट प्रोग्राम मैनेजरों को पूरी स्वायत्तता देती है. इसके नतीजे जीपीएस, इंटरनेट और स्टेल्थ एयरक्राफ्ट के रूप में मिले हैं. डलबर्ग एडवाइजर्स के जगजीत सरीन क्लीन टेक का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भारत के आरऐंडडी को सिर्फ पूंजी नहीं, बल्कि इकोसिस्टम सोच, साझा इन्फ्रास्ट्रक्चर और व्यावसायीकरण पर फोकस करने की जरूरत है ताकि ''स्थानीय इनोवेशन से जलवायु लक्ष्य हासिल किए जा सकें.''

सरकार का कहना है कि यह फंड रणनीतिक तकनीकी क्षेत्रों पर केंद्रित होगा, जहां भारत के पास या तो छिपी हुई क्षमता है या तत्काल जरूरत है: जैसे क्वांटम तकनीक, सेमीकंडक्टर, स्वच्छ ऊर्जा, एआइ, बायोटेक, अंतरिक्ष तकनीक और उन्नत सामग्री. इसमें से लगभग 50-60 फीसद हिस्सा उच्च जोखिम वाले अंतिम चरण के आरऐंडडी में लगी निजी कंपनियों को कम या बिना ब्याज वाले ऋण के रूप में दिया जाएगा. एक हिस्सा उन साझा प्रयासों को जाएगा, जहां स्टार्टअप्स, विश्वविद्यालय और बड़ी कंपनियां मिलकर सॉवरेन आइपी बनाने का लक्ष्य रखेंगी. एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा वैश्विक तकनीक अधिग्रहण के लिए रखा गया है.

इंडिया टुडे से बातचीत में कई उद्योगपतियों ने इस पर जोर दिया कि इस फंड को 'स्प्रे ऐंड प्रे' (यानी इधर-उधर बांट देने) से बचना चाहिए. इसके बजाए, इस फंड को केंद्रित क्लस्टरों को बढ़ावा देना चाहिए और निजी क्षेत्र में पोस्टडॉक्टरल और आरऐंडी फेलोशिप को वित्त पोषित कर प्रतिभा की पाइपलाइन को मजबूत करना चाहिए. अगर यह योजना कामयाब हुई तो यह देश में जुगाड़ युग का अंत कर सकती है और मूल आविष्कारकों की एक नई पीढ़ी को जन्म दे सकती है.

क्यों निर्णायक है आरडीआइ स्कीम

> भारत का अनुसंधान और विकास व्यय सकल घरेलू उत्पाद के 0.7 फीसद से कम; निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 36% है—वैश्विक मानकों से काफी कम

> यह फंड ऊंचे जोखिम वाली, आखिरी दौर की तकनीकों को लक्ष्य पर लेती है जहां अधिकांश भारतीय प्रोटोटाइप ठप हो जाते हैं

> यह सेमीकंडक्टर, स्वच्छ ऊर्जा और क्वांटम तकनीक जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में सॉवरेन आइपी को प्राथमिकता देती है

> कंपनियां इसका उपयोग अत्याधुनिक वैश्विक तकनीकों को प्राप्त करने और लाइसेंस देने के लिए कर सकती हैं

> पिछली नाकामियों से बचने के लिए बनाई गई. पेशेवर फंड मैनेजरों की मदद लेगी, व्यावसायिक तैनाती पर नजर रखेगी

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