- अरुण पुरी
अहमदाबाद में उस अभागे ड्रीमलाइनर के छोटे-से सफर और उसके इर्द-गिर्द कहीं ज्यादा बड़े कॉर्पोरेट नैरेटिव के बीच बेचैन कर देने वाला असंतुलन है. ऊंचे सपनों के साथ सवार लोग, अचानक और अबूझ ढंग से जहाज का नीचे आना, और फिर तबाही की तस्वीरें. 12 जून को लंदन के गैटविक हवाई अड्डे जाने वाली एअर इंडिया की उड़ान एआइ 171 के मामले में जिस बदतरीन नतीजे की कल्पना की जा सकती थी, वह हकीकत बन गया है.
भारत के उड्डयन इतिहास के सबसे विनाशकारी विमान हादसों में से एक इस वाकए में एक को छोड़कर जहाज में सवार सभी 242 लोगों और जमीन पर उसके नीचे आए कम से कम 19 लोगों की जानें चली गईं. इसमें एअर इंडिया (एआइ) की मौजूदा हालत के लक्षण दिखाई देते हैं. टाटा के स्वामित्व वाली इस विमान सेवा की भारत की अगुआ एअरलाइन कंपनी होने का अपना रुतबा वापस पाने की कोशिश अब लड़खड़ाती दिख रही है.
उसका अंदरूनी संचालन जांच के दायरे में है. प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा है. टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने इसे ''टाटा ग्रुप के इतिहास के सबसे काले दिनों’’ में से एक बताया. तात्कालिक असर, उड़ानों का जुलाई तक भी देरी से उड़ना-पहुंचना और रद्द होना धीरे-धीरे नेपथ्य में चला जाएगा. लेकिन अब इसका पीछा कर रहे संदेहों को दूर करने के लिए कामचलाऊ उपायों से कहीं ज्यादा करने की जरूरत होगी.
जरूरत जिस चीज की है, वह है इसका एक दीर्घकालिक सांस्थानिक मरम्मत का इंतजाम. कई पहलू इस विमान सेवा को नीचे ले जाने पर आमादा हैं, मसलन विरासत में मिली सार्वजनिक क्षेत्र की देनदारियां, बुढ़ाता विमान बेड़ा, पायलटों की कमी, वक्त की पाबंदी, कामकाज के प्रदर्शन के कमजोर पैमाने और रखरखाव के ढांचे में गंभीर खामियां.
इसकी माली हालत से शुरू करते हैं. कुछ उत्साहवर्धक संकेत हैं. प्रबंधन का कहना है कि वित्त वर्ष 2021-22 जो घाटा 9,591 करोड़ रु. था उसमें 40 फीसद की असरदार कमी आई है. इस घाटे को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत शायद विमान सेवा के हर फैसले पर चुपचाप असर डाल रही है. कम मुनाफे और ज्यादा जोखिम वाले कारोबार में यह अप्रिय और अवांछनीय स्थिति है.
जनवरी 2022 में टाटा के हाथों अधिग्रहण के 42 महीने बाद भी कुछ लोग भारी घाटा देने वाली विमान सेवा के अधिग्रहण की अक्लमंदी पर सवाल उठा रहे हैं. एक विमानन विश्लेषक कहते हैं, ''आप पुरानी और बीमार कंपनी को ले रहे हैं. उड्डयन बहुत ज्यादा जोखिम वाला कारोबार है, जिसमें तीव्र प्रतिस्पर्धा की वजह से मुनाफे महज 1 से 3 फीसद हैं.’’ इसके भीतर छिपा मतलब साफ है: लागत में लगातार कमी लाने के सिवा कोई चारा नहीं, जिससे सुरक्षा और सेवा के मानदंडों की बुनियाद हिल उठती है.
बूढ़ा होता विमान बेड़ा विरासत में मिली एक और समस्या है. अपनी प्रतिद्वंद्वी इंडिगो समेत प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले एआइ काफी पुराने विमानों का संचालन करती है. उसके 199 विमानों में से करीब 35 फीसद एक दशक से ज्यादा पुराने हैं; 43 तो 15 साल से भी ज्यादा पुराने हैं. उसके कई ड्रीमलाइनर करीब 10 से 11 साल पुराने हैं; अहमदाबाद में हादसे का शिकार हुआ ड्रीमलाइनर करीब 12 साल पुराना था.
दूसरी विमान सेवाओं के साथ-साथ एअर इंडिया भी ऐतिहासिक बेड़े को नया बनाने में लगी है. 2023 में उसने 470 नए विमानों का ऑर्डर दिया, जिनमें वाइड-बॉडी और नैरो-बॉडी दोनों श्रेणियों के विमान हैं. फिर भी इनकी पूरी तैनाती 2030 तक खिंचेगी. बोइंग और एअरबस को अतिरिक्त ऑर्डर से और 170 विमान मिल सकते हैं, पर वे भी 2035 तक.
फिर उन्हें उड़ाएगा कौन? एआइ को अपनी वृद्धि का लक्ष्य हासिल करने के लिए 5,970 नए पायलटों की जरूरत है. 2025 की शुरुआत में कंपनी के पास अनुभवी और नए रंगरूटों समेत करीब 3,280 सक्रिय पायलट थे. यह संख्या पहले ही कम है, जो विदेशी पायलटों पर उसकी निर्भरता से साफ है. पिछले साल टाइप-रेटेड यानी निश्चित किस्म के विमान उड़ाने के प्रमाणपत्र से लैस भारतीय पायलटों की कमी की वजह से पट्टे पर लिए गए बोइंग 777 हवाई जहाज उड़ाने के लिए 58 विदेशी पायलट लाने पड़े.
इसके विपरीत इंडिगो के पास 5,463 पायलटों का कहीं ज्यादा बड़ा आधार है, जिनमें से करीब सभी भारतीय हैं. विस्तारा के साथ विलय के मसले ने उथलपुथल बढ़ा दी, वेतन में कटौती से कर्मचारियों में असंतोष पैदा हुआ, सो अलग. नतीजा ऐसा कॉकपिट क्रू है जिसमें तालमेल की कमी है. सुरक्षा के नजरिए से स्टाफ की तंगी का सीधा असर मुस्तैदी और कार्यप्रदर्शन पर पड़ता है.
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय की तरफ से एआइ को 20 जून को दिए गए नोटिस में ''शेड्यूलिंग प्रोटोकॉल और देखरेख में व्यवस्थागत नाकामियों’’ की तरफ तो ध्यान दिलाया ही गया, यह पायलटों की थकान और मनोबल को लेकर बढ़ती चिंताओं के बारे में चेतावनी की घंटी भी था.
जनवरी और मई 2025 के बीच एअर इंडिया की उड़ानों की समीक्षा से पता चलता है कि करीब एक चौथाई समय पर नहीं चल पाईं. रखरखाव भी संक्रमण के दौर की अक्षमताओं में फंसा है, जो थोड़ा इन-हाउस, थोड़ा आउटसोर्स और थोड़ा सार्वजनिक क्षेत्र की एक बुढ़ाती सहायक कंपनी के हाथों किया जाता है.
इस हफ्ते हमारी आवरण कथा में मैनेजिंग एडिटर एम.जी. अरुण और एसोसिएट एडिटर अभिषेक घोष दस्तीदार बलपूर्वक मुसीबतों भरा कॉर्पोरेट ब्लैक बॉक्स खोल रहे हैं. विडंबना मर्मभेदी है: यह चीरफाड़ टाटा के नियंत्रण में लौटने के बाद एआइ के सबसे बड़े मीडिया कैंपेन के ऐन बाद हो रही है. 1932 में जे.आर.डी. टाटा के हाथों स्थापित एअर इंडिया का 1953 में राष्ट्रीयकरण किया गया. यह ऐसा कदम था जिसे लंबे वक्त से संस्थापक परिवार के प्रति अन्याय के तौर पर देखा जाता है.
टाटा के हाथों में इसके वापस आने का काव्यात्मक न्याय के तौर पर जश्न मनाया गया. लेकिन अगर इसका मतलब सर्वश्रेष्ठ कॉर्पोरेट प्रशासन के आने का संकेत भी था, तो उस वादे के उड़ान भरने से पहले विमान सेवा को अभी लंबा रास्ता तय करना है. अलबत्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्वमानित विमान सेवा बनने का मौका भरपूर है और टाटा घराने के पास इसे भारत का गौरव बनाने की क्षमता भी है.