कम बच्चे पैदा करना जनसंख्या विस्फोट से छुटकारा पाने में मददगार हो सकता है, लेकिन वह दंपती की स्वेच्छा और स्वतंत्रता से होना चाहिए, न कि उस पर थोपा जाना चाहिए.
यही संदेश एकदम नए संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड, 2025 की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट 'द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस' से निकला है. रिपोर्ट कहती है कि भारत अलबत्ता दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बना रहेगा, लेकिन उसकी कुल प्रजनन दर बदलाव स्तर से नीचे चली गई है.
रिपोर्ट यह भी कहती है कि करोड़ों लोग अपने इच्छित प्रजनन लक्ष्य को हासिल करने में असमर्थ हैं इसलिए घबराहट में उठाए कदमों के बदले अधूरी प्रजनन जरूरतों पर ध्यान दिया जाए. उसके मुताबिक, समाधान ज्यादा स्वतंत्रता देने में है, ताकि लोग सेक्स, निरोध और परिवार बसाने के बारे में स्वतंत्र होकर सोचा-समझा विकल्प अपना सकें और अपने इच्छित लक्ष्य हासिल कर सकें.
भारतीय दंपती क्यों नहीं करते बच्चे?
- आर्थिक तंगी 38%
- रिहाइशी तंगी 22%
- बेरोजगारी/रोजगार असुरक्षा 21% जीवन साथी या परिवार का दबाव 10%
- पर्याप्त/अच्छे चाइल्डकेयर का अभाव 18%
- खराब सेहत या गंभीर बीमारियां 15%
- प्रसूती सुविधाओं का अभाव 14%
- बांझपन या गर्भधारण में परेशानी 13%
- कई लोग जलवायु परिवर्तन (16%) और राजनैतिक-सामाजिक अस्थिरता (14%) वगैरह को लेकर भविष्य की बढ़ती चिंताओं की वजह गिनाते हैं
प्रजनन संबंधी सुविधाओं का अभाव
- अपनी पसंद का निरोध इस्तेमाल नहीं कर सकते, दुनिया में इसके आंकड़े सबसे अधिक
- बच्चे की चाहत के बावजूद निरोध के इस्तेमाल पर मजबूर, सर्वेक्षण के देशों में सबसे ज्यादा मामले
- अपने प्रजनन अधिकार और सुविधाओं में कुछ सीमाएं या दूसरी समस्याएं
- अनचाहे बच्चे को रखने पर मजबूर, सर्वेक्षण के देशों में यह मामला सबसे अधिक
- निरोध के संबंध में मेडिकल सेवा या दूसरी सुविधाओं से वंचित
'उच्च प्रजनन और निम्र प्रजनन का द्वंद्व'
- UNFA रिपोर्ट के मुताबिक, 31 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में प्रजनन दर बदलाव स्तर 2.1 से नीचे है, लेकिन 5 राज्यों में ऊंची बनी हुई है.
- अंतर की वजहें आर्थिक अवसरों, स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता, शिक्षा के स्तर में फर्क और स्त्री-पुरुष संबंधी तथा सामाजिक मान्यताएं हैं.
समाधान
> मर्दों के लिए नसबंदी और कंडोम के अलावा अधिक निरोधात्मक विकल्प
> सेक्स और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य सेवा सबके लिए उपलब्ध हो
> सरकारी रियायती दरों पर अच्छे, सुलभ और किफायती चाइडकेयर सुविधा उपलब्ध हो
> बराबरी का पारिवारिक अवकाश मिले-मातृत्व अवकाश की तरह पितृत्व अवकाश की व्यवस्था हो
> स्त्री-पुरुष हिंसा को खत्म करने की कोशिश हो
> स्त्री-पुरुष बराबरी की क्षेत्रीय, उपराष्ट्रीय और नियोक्ता स्तर की नीतियां बनें
> प्रजनन दर पर फोकस स्थानीयता के आधार पर न हों, जहां राज्य का लक्ष्य कुछ खास जन्म दरों को बढ़ाना नहीं, बल्कि खास समूहों में लागू किया जाना चाहिए