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पश्चिम एशिया में जारी जंग के बीच भारत के लिए क्यों मुश्किल है डगर?

नेतन्याहू के दशकों पुराने जुनून और ट्रंप की जीत हासिल करने की बेताबी ने ईरान को तबाह करने को उकसाया.

अमेरिका का बमवर्षक बी2 लड़ाकू विमान
अपडेटेड 23 जुलाई , 2025

डोनाल्ड ट्रंप ने 24 जून की सुबह अपने चिर-परिचित अंदाज में इज्राएल और ईरान के बीच युद्धविराम का ऐलान किया. लेकिन कुछ ही घंटों बाद दोनों पक्ष कतर की मदद से हुए नाजुक समझौते का उल्लंघन करते नजर आए, जिसने ट्रंप की निराशा और बढ़ा दी.

हालांकि यह लिखने के समय तक संघर्ष विराम की स्थिति को लेकर अनिश्चितता कायम है, लेकिन इसके कारणों की तस्वीर साफ होने लगी है. इस युद्ध को प्रतिष्ठा बचाने की बेंजामिन नेतन्याहू की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

वे चाहते हैं कि उन्हें 7 अक्तूबर की घटना के आगे बेबस एक चौकीदार नहीं, बल्कि 'पश्चिम एशिया का चेहरा' बदलने वाले नेता के तौर पर याद किया जाए. वे दशकों से ईरान की एटमी ताकत के कारण इज्राएल के अस्तित्व को खतरा होने का अंदेशा जताते रहे हैं. और अमेरिकी राष्ट्रपतियों को उसके खिलाफ युद्ध का हिस्सा बनाने की जुगत भी भिड़ाते रहे हैं; यह इज्राएल और अमेरिका का आधिपत्य कायम करने और पूरे क्षेत्र में खुली छूट हासिल करने का उनका अपना तरीका है.

समय पहले कभी उनके लिए इतना अनुकूल नहीं रहा. ईरान समर्थक, हमास और हिज्बुल्ला कमजोर हो चुके हैं, सीरिया में असद को सत्ता से उखाड़ा जा चुका है, ईरान की अर्थव्यवस्था अव्यवस्थित है और उसकी सरकार अलोकप्रिय हो चली है. और पूर्व में ईरान के साथ एटमी समझौते को तोड़ने वाले ट्रंप व्हाइट हाउस में लौट चुके हैं. नेतन्याहू ने ईरान पर जोरदार ढंग से हमला बोला, जीत का श्रेय लेने की कमजोरी का फायदा उठाते हुए ट्रंप को इस जंग में कूदने के लिए तो मनाया ही, उन्हें अपने बंकर बस्टर की मदद से ईरान के परमाणु ठिकाने तबाह करने को भी राजी किया. और आखिरकार उन्हें सफलता मिल गई.

डोनाल्ड ट्रंप भी जोश में आकर कमांडर-इन-चीफ की भूमिका निभाने का लोभ संवरण नहीं कर पाए. जान-बूझकर ऐसे अस्पष्ट बयान देने के बाद कि ''मैं ऐसा कर सकता हूं, और मैं ऐसा नहीं भी कर सकता हूं''—और फिर गोल्फ में हाथ आजमाने के दौरे का स्वांग रचने के बाद उन्होंने फोर्दो, नतंज और इस्फहान स्थित एटमी ठिकानों पर खतरनाक अमेरिकी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया. इसके साथ ही वे उन अमेरिकी राष्ट्रपतियों की कतार में आ गए जिनके बारे में पिछले महीने सऊदी अरब में खुद ट्रंप ने कहा था, ''ऐसी धारणा से ग्रस्त रहे हैं कि विदेशी नेताओं के कृत्यों पर नजर रखने और उन्हें उनके पापों की सजा देने के लिए अमेरिकी नीति का इस्तेमाल करना धर्म है.''

ट्रंप ने पूर्व में 'अंतहीन संघर्षों' के खिलाफ आवाज उठाई और खुद को शांति के मसीहा के तौर पर पेश करने की कोशिश की. लेकिन गजा और यूक्रेन में जल्द कोई समाधान निकलने में सफलता न मिलने के बाद उन्हें ऐसी ही किसी जीत की दरकार थी. उन्होंने मागा समर्थकों के विरोध को दरकिनार कर दिया, कांग्रेस की परवाह नहीं की और अपने राष्ट्रीय खुफिया निदेशक की तरफ से कांग्रेस को दी गई खुफिया जानकारी तक को नकार दिया, जिसमें कहा गया था कि ईरान ने एटमी हथियार बनाने की दिशा में कदम नहीं उठाया है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि नेतन्याहू और इज्राएली लॉबी ने ट्रंप का खूब इस्तेमाल किया है.

इस पूरी विनाशलीला ने क्षेत्र को कहां पहुंचा दिया? ईरान के एटमी केंद्रों को पहुंचे नुक्सान के बारे में अभी कुछ पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. ट्रंप ने दावा किया कि वे ''पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं.'' आइएईए ने 'काफी नुक्सान' की बात कही है लेकिन एटमी केंद्रों के आसपास विकिरण बढ़ने जैसी कोई जानकारी नहीं मिली है. माना जा रहा है कि ईरान के 400 किलोग्राम 60 फीसद संवर्धित यूरेनियम को अज्ञात जगहों पर पहुंचा दिया गया है. अब यह आगे ही पता लगेगा कि क्या यह ईरान से एनपीटी शर्तों का पालन कराने का वार्ता से बेहतर तरीका था, या क्या यह ईरान को एनपीटी से बाहर होने के लिए बाध्य करेगा या गोपनीय ढंग से बम बनाने के लिए प्रेरित करेगा.

हमलों में ईरान के एटमी वैज्ञानिकों और सैन्य कमांडरों की शीर्ष पंक्ति का सफाया हो चुका है और इसकी हवाई सुरक्षा प्रणाली भी नष्ट की जा चुकी है. नेतन्याहू ने ईरानी आसमान में खुली छूट का पूरा फायदा उठाया, और न केवल सैन्य ठिकानों पर बल्कि रिवोल्यूशनरी गार्ड और पुलिस प्रतिष्ठानों पर भी बमबारी की, जो सत्ता परिवर्तन की उनकी मंशा का परिचायक है. उन्होंने अब ऐलान किया है कि इज्राएल के लिए एटमी और बैलिस्टिक मिसाइल दोनों खतरे को खत्म किया जा चुका है.

हालांकि, इज्राएल की मिसाइल सुरक्षा भी कमजोर पड़ती दिखी. तेल अवीव और अन्य शहरों तथा प्रतिष्ठित संस्थानों पर ईरानी मिसाइलों से हमला किया गया. बड़ी संख्या में इज्राएली ईरान पर नेतन्याहू के हमले का पुरजोर समर्थन करते हैं लेकिन उन्हें शुक्र मनाना चाहिए कि जंग की यह आग ज्यादा नहीं फैली.

अच्छी बात यह है कि अनिश्चतता ही सही, यह जंग रुक गई; सैन्य कार्रवाई जटिल अंतर्निहित समस्याओं का समाधान नहीं है. ऐसे संघर्ष के सबक भारत की पश्चिम एशिया नीति में शामिल किए जाने चाहिए. (इराक, सऊदी और यूएई से) हमारे तेल आयात के करीब 40 फीसद हिस्से और कतर से एलएनजी की आपूर्ति होर्मुज जलडमरूमध्य के जरिए होती है. ईरान हताशा की स्थिति में इसे बंद कर सकता है.

पश्चिम एशिया और लाल सागर के माध्यम से हमारे निर्यात के लिए शिपिंग और बीमा लागत बढ़ने से व्यापार और परिवहन प्रभावित होगा. इस क्षेत्र में 90 लाख प्रवासी भारतीयों और उनके जरिए देश में आने वाले पैसे पर संकट गहरा जाएगा. सियासी स्थिरता के बिना ईरान के चाबहार बंदरगाह में हमारा निवेश और आइ2यू2 और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारे (आइएमईसी) जैसी अवधारणाएं भी खतरे में पड़ जाएंगी. अमेरिका, इज्राएल और ईरान तीनों के साथ रणनीतिक संबंध हैं, सो हमें सबको बातचीत और कूटनीति के लिए तैयार करने पर जोर देना होगा.

नवतेज सरना (लेखक अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत हैं.)

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