
साल 2025—अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष. यह भारत में साल 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना के ठीक तीन साल बाद मनाया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय सहकारी संघ ने जब इसे अंतरराष्ट्रीय सहकारी वर्ष मनाना तय किया तो संयुक्त राष्ट्र ने निर्णय लिया कि इसका उद्घाटन भारत में होगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों से ही अंतरराष्ट्रीय सहकारी वर्ष की शुरुआत हुई. इसी क्रम में भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) और इंडिया टुडे समूह ने 'सहकार से समृद्धि' के प्रधानमंत्री के ध्येय वाक्य को समझने और उस पर चर्चा के लिए राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की.
इस आयोजन में केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत सरकार, सहकारी संस्थाओं तथा सहकारिता क्षेत्र के कई बड़े नाम शामिल हुए. इस संगोष्ठी का लक्ष्य था हमारे देश की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि में न सिर्फ सहकारिता के बीते सौ साल के सफर को समझना, बल्कि आगे की राह देखना.
इसकी एक झलक अमित शाह के भाषण में मिली, जब उन्होंने कहा, ''पूरी दुनिया के लिए सहकारिता एक आर्थिक व्यवस्था हो सकती है लेकिन भारत के लिए सहकारिता हमारे पारंपरिक जीवन का दर्शन है. साथ में आना, साथ में सोचना, साथ में काम करना एक ही लक्ष्य के लिए और सुख-दुख दोनों में साथ निभाना यह भारत के जीवन दर्शन की आत्मा है. लगभग सवा सौ साल पुराना सहकारिता आंदोलन इस देश के कई उतार-चढ़ावों में गरीब, किसान, ग्रामीण नागरिक, विशेषकर महिलाओं के जीवन का एक प्रकार से सहारा बना है."

देश में सहकारिता को गति देने के नेफेड के प्रयासों का जिक्र तो केंद्रीय ग्रामीण विकास, कृषि और किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया ही, साथ ही सुधार की गुंजाइश को भी रेखांकित किया.
उन्होंने कहा, ''अगर कृषि के उत्पादन, खाद्यान्न और बाकी फल-सब्जियों के उत्पादन को देखें तो लगभग 44 फीसद वृद्धि हुई है. नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमने खेती के और किसानों के कल्याण का रोड मैप बनाया है. पहला—उत्पादन बढ़ाने पर जोर, दूसरा—उत्पादन की लागत घटाना, तीसरा—किसानों को उत्पादन का ठीक दाम सुनिश्चित करना. नेफेड इस बात का गवाह है कि पिछले 11 साल में एमएसपी पर रिकॉर्ड खरीद हुई है तो नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में."
कृषि मंत्री बताते हैं कि उनका ध्यान किसानों को फसल की सही कीमत दिलाने के लिए अलग-अलग तरह की योजनाएं बनाने और किसी तरह का नुक्सान हो जाने पर उसकी भरपाई करने पर है. एक अहम पहलू की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ''मोदी जी के नेतृत्व में हमने तय किया कि कृषि का विविधीकरण होना चाहिए. यानी फलों की खेती, फूलों की खेती, सब्जियों की खेती, औषधि खेती, कृषि वानिकी, पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन और भी ऐसी ही खेती."
चौहान के मुताबिक, धरती आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित बनी रहे, इसकी भी चिंता करनी है. केमिकल फर्टिलाइजर और कीटनाशकों के अनियंत्रित और बेजा उपयोग की वजह से संतुलन बिगड़ रहा है. मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो रहा है. भारत में दूसरे देशों के मुकाबले स्थिति अलग है. देश में किसान छोटी जोत का मालिक है, लैंड होल्डिंग कम है.
कृषि मंत्री ने उदाहरण देते हुए बताया कि ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, अमेरिका की तरह हमारे पास ऐसे किसान नहीं हैं जिनके पास 15,000-20,000 हेक्टेयर खेती हो. अपने किसान के पास तो एक-डेढ़ या ढाई एकड़ जमीन है. इसलिए हमारी नीतियों का जो केंद्र है वह छोटा किसान है. इसके लिए सरकार ने चार लक्ष्य तय किए हैं—देश की खाद्य सुरक्षा, किसानों की आय बढ़ाना, जनता के लिए पोषक आहार सुनिश्चित करना और धरती को सुरक्षित भी रखना.
देश की खाद्य सुरक्षा पुख्ता करना
चौहान ने कहा, ''140 करोड़ लोगों का यह देश है, इसकी जनता को भरपेट भोजन मिले. एक जमाना था जब हम अमेरिका का पीएल480 लाल गेहूं खाने पर विवश थे. लेकिन आज भारत के पास खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है. गेहूं के भंडार भरे हुए हैं. चावल की कोई कमी नहीं है. 500 करोड़ रु. का बासमती हमने निर्यात किया है. हालांकि दाल और तिलहन में जरूर जरूरत है जहां सरकार की कोशिश जारी है."
इन उद्देश्यों की पूर्ति में और इससे जुड़ी सरकारी योजनाओं के क्रियान्वन में नेफेड का बड़ा योगदान रहा है. फिलहाल किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि अगर वह फसल पैदा कर लेता है, उत्पादन बंपर हो जाता है तो कई बार कीमतें घट जाती हैं. कृषि मंत्री कहते हैं कि इसे बेहतर करने के लिए सरकार प्रयासरत है.
लैंड और लैब का साथ
चौहान खेती में बीजों के क्षेत्र में भी एक गैप देखते हैं. किसानों तक अच्छी गुणवत्ता का बीज पहुंचना भी जरूरी है. उनका कहना है, ''कई बार यह होता था कि रिसर्च होती है लैब में और किसान बैठा है खेत में यानी लैंड पर. यह लैब और लैंड मिलते ही नहीं थे. किसान और वैज्ञानिक इनका संवाद कभी नहीं होता था और इसलिए प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से ही हमने तय किया कि लैब से लैंड को जोड़ा जाए. इसीलिए लैब टू लैंड का एक अभियान चला."
देश में पिछले दिनों एक अभियान चलाया गया 'विकसित कृषि संकल्प अभियान' जिसके तहत 2,170 टीमें बनीं. वैज्ञानिकों की इन टीमों में राज्य का कृषि विभाग, केंद्र का कृषि विभाग, अधिकारी, कर्मचारी और उन्नत किसान, कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और कृषि विश्वविद्यालय अलग-अलग दिशा में काम कर रहे थे. इनको जोड़कर टीम बनाई गई और तय किया कि वैज्ञानिक गांव में जाएं. एक गांव में 5-7 गांवों के किसान एक साथ जुटें, उनको जानकारी दी जाए कि खेती की दिशा में कौन-से नए शोध किए गए.
एग्रोक्लाइमेटिक कंडिशंस के हिसाब से वहां की मिट्टी में किस तरह के और कितने पोषक तत्व हैं, इसके हिसाब से कौन-सी फसल ठीक होगी और फसल की कौन-सी किस्म उपयोगी होगी, यह किसानों को बताया जाए. फसल पर कीड़े-मकोड़ों का हमला हो जाए तो किसान को क्या करना चाहिए. टीमें जमीन पर जाकर देखें कि किसानों को जरूरत किस चीज की है. जिस चीज की जरूरत है उसकी रिसर्च की जाए. बात साफ थी कि इस बार अनुसंधान की दिशा दिल्ली से तय नहीं होगी.
आसान होती किसानों की राह
संगोष्ठी में बोलते हुए केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सरकार के सहकारी लक्ष्यों को हासिल करने में नेफेड की भूमिका पर जोर डाला. उन्होंने बताया कि नेफेड के ऐप पर अगर किसान अपना रजिस्ट्रेशन करा ले और तब अगर बाजार मूल्य कम है तो उसकी 100 फीसद फसल नेफेड एमएसपी पर खरीद लेगा.
शाह का कहना था कि ''किसानों के लिए ऐसी एकतरफा योजना आज तक नहीं बनी. रेट कम है तो आप दलहन दे दीजिए नेफेड को. रेट ज्यादा है तो आप बाजार में बेच सकते हैं. मक्के का रेट कम है तो आप दे दीजिए एमएसपी पर, ज्यादा है तो ज्यादा मुनाफा कमाइए. धीरे-धीरे सारी चीजों में ऐप की सफलता को देखते हुए इस मॉडल के तहत आने वाले दिनों में नेफेड किसानों से सीधे खरीद की शुरुआत करने वाला है. मैं उत्तर प्रदेश गया था. वहां के लोगों ने बताया कि हम उत्तर प्रदेश में तीनों फसलों की खेती इतना पानी होने के बावजूद नहीं करते थे. मगर आप मक्का खरीद रहे हो तो मक्के के कारण उत्तर प्रदेश आज तीन फसल ले रहा है. जिससे उत्तर प्रदेश का किसान और युवा अब 365 दिन खेत में व्यस्त रहता है."
इसी कार्यक्रम में नेफेड के नए प्रोडक्ट का लॉन्च, एफपीओ को अनुदान और गोदाम बनाने के लिए पीएसीएस यानी पैक्स के साथ अनुबंध—इन तीनों को टोकन स्वरूप वितरित किया गया.
आज भारत के सहकारिता मंत्रालय और हर राज्य के कोऑपरेटिव रजिस्ट्रार के पास इसका डेटा है कि कितने गांव में कितनी सहकारी संस्थाएं हैं. कुल मिलाकर,सरकार को अब अंदाज है कि तंत्र में कितनी विशाल संभावनाएं हैं. यानी यह भी मालूम है कि काम किस दिशा में करना है.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बताया कि किस तरह सहकार भारत जैसे देश में मात्र एक आर्थिक व्यवस्था ही नहीं, बल्कि जीने का एक तरीका है क्योंकि यह सीधे हमारी संस्कृति से जुड़ा हुआ है. उन्होंने भारत में सहकारिता के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में की जा रही कोशिशों की भी जानकारी दी. शाह ने बताया कि नेफेड के ऐप पर अगर किसान रजिस्टर करा दें तो उसकी 100 फीसद दाल-दलहन और मक्का नेफेड एमएसपी पर खरीद लेगा और अगर बाजार में मूल्य ज्यादा है तो किसान उसे वहां बेच सकता है.
केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने आगे बताया कि सहकारी डेटाबेस से वैक्यूम एरिया को चिह्नित कर अब देश भर में 2 लाख नए पैक्स (प्राथमिक कृषि साख समिति) बनने जा रहे हैं. इन्हें 24 प्रकार के अलग-अलग काम करने की अनुमति होगी. अब तक करीब 52,000 पैक्स लाइव हो चुके हैं. इस संगोष्ठी में शाह ने बताया कि सहकारिता मंत्रालय ने त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी की भी स्थापना का निर्णय लिया है.
इसके बारे में भारत सरकार ने बिल पारित कर दिया है और अगस्त में इसका भूमि पूजन होगा. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि सहकारिता मॉडल पर राष्ट्रीय टैक्सी की भी शुरुआत होगी. इसमें हर ड्राइवर अपनी भारत कोऑपरेटिव टैक्सी का मालिक होगा. यह इसलिए खास है क्योंकि इसका मुनाफा सीधा ड्राइवर के बैंक अकाउंट में जाएगा.
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री ने आयकर जुर्मानों में छूट, आवासन ऋण सीमा बढ़ाकर, आयकर कानून के अंतर्गत अधिभार 12 फीसद से घटाकर 7 फीसद, मेट (न्यूनतम वैकल्पिक कर) को 18.5 फीसद से घटाकर 15 फीसद करने जैसे कदमों के बारे में बताया जो किसानों के लिए मददगार साबित होंगे.
FPOs से रोजगार का सफर
कार्यक्रम में कुछ FPO (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन) के स्टॉल भी थे, जिनमें कुछ रेडी टू इट प्रोडक्ट्स, पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स और बांस से बने डेकोरेटिव पीसेज के स्टॉल थे.

ऐसे ही एक मावली कृपा FPO के योगेश गावित बताते हैं कि ये कंपनी नाफेड और पैलेडियम सीबीबीओ की मदद से बनी है. इससे उन्हें फंडिंग मिलती है. साथ में, अलग-अलग चीजों के लिए गाइडेंस सहित मार्केटिंग के लिए सपोर्ट मिलता है. सुरगाणा ब्लॉक में वहां के आदिवासी लोग बांस से डेकोरेटिव पीस बनाते हैं. उन लोगों को कुछ मशीनरी भी उपलब्ध करवाई गई है. मावली कृपा FPO उनसे ये प्रोडक्ट खरीद कर कंपनी की ओर से मार्केटिंग करता है. इससे 100 से भी ज्यादा आदिवासियों को रोजगार मिला.

वहीं, गोपदम् FPO के CEO रोहन लोखंडे कहते हैं कि भारत सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट और सभी सदस्य किसान सहकारी समितियों, साथ ही नाफेड और सीबीबीओ कृषि विकास की प्रेरणा से, कृषि उत्पादों को मूल्यवान बनाना और बाजार में विभिन्न ब्रांडों के साथ पहचान दिलाना संभव हो सका है.
सहकारिता के सौ वर्ष: विचारों के आदान प्रदान से सशक्त प्रयास

जेठाभाई अहीर, अध्यक्ष, नेफेड
अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के उपलक्ष्य में नेफेड और इंडिया टुडे की ओर से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी केवल विचारों के आदान-प्रदान का मंच नहीं बल्कि यह सहकारिता आंदोलन को तकनीकी और वित्त के माध्यम से नई दिशा देने का एक सशक्त प्रयास है.
केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह की दूरदृष्टि से देश में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना हुई. इसने लाखों सहकारी संस्थाओं को पहचान, संरचना और दिशा प्रदान की. दस हजार से ज्यादा बहुउद्देशीय पैक्स की स्थापना से देश की हर पंचायत तक सहकारी संरचना पहुंची है.
सहकारिता से समृद्धि का मूल-मंत्र गांव-गांव पहुंच चुका है. सहकारिता डेटाबेस, महिला सहकारिता मंच, डेयरी और मत्स्य सहकार को नई ऊर्जा मिली है. अब सहकारिता केवल नीति नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण का आधार है.
किसानों की राह आसान करता नेफेड
● गेहूं/चावल की 100 फीसद खरीद.
● नेफेड ऐप पर रजिस्ट्रेशन के बाद दाल-तुअर, मसूर, उड़द की 100 फीसद खरीद.
● पिछले साल सोयाबीन खरीद का रिकॉर्ड.
● प्याज, आलू, टमाटर की कीमत कम होने और बफर स्टॉक की जरूरत पड़ने पर नेफेड जैसी संस्थाओं की ओर से इनकी खरीद.
● प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में आपदा का प्रावधान कर यह पक्का किया गया कि अगर एक भी किसान की फसल का नुक्सान होगा तो भी योजना का लाभ उन्हें दिया जाएगा.
● भारत सरकार की योजना के तहत टमाटर, आलू, प्याज जैसी फसलों के लिए कहीं दूसरे बड़े शहर में दाम ठीक मिलने पर उसकी खरीद के लिए अगर किसान नेफेड जैसी संस्था के माध्यम से या राज्य सरकार की किसी अधिकृत संस्था के माध्यम से अपना माल लेकर जाएगा तो ट्रांसपोर्ट का खर्चा भारत सरकार चुकाएगी. सरकार भंडारण की व्यवस्था की भी कोशिश करेगी.
● बिना किसी बिचौलिए के सीधे किसान को भरपूर दाम.
● किसानों को उपज की ठीक कीमत सुनिश्चित करने और खरीदी ठीक होने के लिए नेफेड की ओर से अत्याधुनिक पोर्टल लॉन्च.
● दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना के अंतर्गत 333 पैक्स (प्राथमिक कृषि साख समिति) की पहचान, 214 को 10 राज्यों में हायरिंग इंश्योरेंस.
● किसान की सबसे बड़ी तकलीफ है घटिया कीटनाशक और बीज. अमानक स्तर का बीज, कीटनाशक बनाने या बेचने को लेकर कानूनी प्रावधान कड़ा करने का प्रयास.
पोषण योजनाओं में नेफेड की भूमिका
● वर्ष 2017 से भारतीय सेना/केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को दालें पहुंचाने का काम.
● पीएम पोषण योजना.
● पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली).
● आईसीडीएस (समेकित बाल विकास योजना) जैसी योजनाएं.
● रेडी टू ईट/रेडी टू कुक उत्पादों का लॉन्च.
● दाल, चावल, आटा उपभोक्ताओं के लिए ठीक दाम मिलने की दिशा में प्रयास.
● एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) का सशक्तिकरण; 2,787 सहकारी संस्थाओं और एफपीओ को समर्थन, 4 लाख से ज्यादा किसानों को जोड़ने का काम.
देवेंद्र फडणवीस, मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र

हम सब मिलकर अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष मना रहे हैं. ऐसा वर्ष मनाने के लिए महाराष्ट्र से बेहतर कोई भूमि नहीं हो सकती क्योंकि महाराष्ट्र को सहकारिता के लगभग 120 वर्षों का गौरवशाली इतिहास प्राप्त है.
केंद्र सरकार का ध्यान अब सहकारिता क्षेत्र पर बढ़ा है, निवेश बढ़ा है, और कर छूट तथा एफपीओ जैसी योजनाओं के माध्यम से सहकारिता को गांव-गांव तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है. सहकारिता के माध्यम से आम किसानों को फायदा मिल रहा है, रोजगार का निर्माण हो रहा है, और उन्हें बेहतर बाजार से जोड़ा जा रहा है.
महाराष्ट्र हमेशा सहकारिता में अग्रणी रहा है. हम एफपीओ और पैक्स के इस आंदोलन को किसी भी हाल में कमजोर नहीं होने देंगे. इसे और अधिक सशक्त और समृद्ध बनाने का प्रयास महाराष्ट्र सरकार पूरी प्रतिबद्धता से करेगी.
सहकारिता के सोपान
● सहकारी डेटाबेस से वैक्यूम एरिया को चिह्नित कर अब देश भर में 2 लाख नए पैक्स बनाने जा रहे हैं.
● देश में एक भी पंचायत ऐसी नहीं होगी जहां पर पैक्स, डेयरी या मात्स्यिकी की सोसाइटी नहीं होगी. कोई न कोई प्राथमिक सोसाइटी, कोऑपरेटिव सोसाइटी हर गांव में होगी और ये मल्टी-डायमेंशनल होंगी.
● पैक्स डेयरी का भी काम करेंगे, डेयरी पैक्स का भी काम करेंगी और मात्स्यिकी कोऑपरेटिव सोसाइटी का भी
काम करेंगे.
● सभी पैक्स का कंप्यूटराइजेशन किया गया है.
● लगभग 65,000-70,000 में से 52,000 पैक्स लाइव हो चुके हैं.
● 24 प्रकार के अलग-अलग काम पैक्स को करने के लिए अनुमति दी गई.
● अब शॉर्ट टर्म एग्रीकल्चर फाइनेंस के अलावा पैक्स सीएससी (सामान्य सेवा केंद्र), जन औषधि केंद्र, पेट्रोल पंप, गैस वितरण, हर घर नल से जल का मेंटेनेंस, गोदाम, सहकार टैक्सी, एयर बुकिंग, रेलवे बुकिंग जैसे काम शुरू कर सकते हैं.
● कंप्यूटराइजेशन करने के बाद यह सारा सिस्टम उनके कंप्यूटर में राज्य की स्थानीय भाषा में उपलब्ध करा दिया गया है.
● आज पैक्स मृत्यु प्रमाणपत्र, बर्थ सर्टिफिकेट समेत केंद्र और राज्य सरकार की करीब 300 अलग-अलग योजनाओं को लागू करने का एक सेंटर बन चुके हैं.
● सहकारिता मंत्रालय ने त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी की भी स्थापना का निर्णय लिया है. भारत सरकार ने बिल पारित कर दिया है. अगस्त माह में इसका भूमि पूजन होगा.
● सहकारिता मॉडल पर राष्ट्रीय टैक्सी की भी शुरुआत होगी. इसमें हर टैक्सी ड्राइवर अपनी भारत कोऑपरेटिव टैक्सी का मालिक होगा. मुनाफा सीधा ड्राइवर के बैंक अकाउंट में जाएगा.
● आयकर कानून के अंतर्गत अधिभार 12 फीसद से घटाकर 7 फीसद, मेट (न्यूनतम वैकल्पिक कर) को 18.5 फीसद से घटाकर 15 फीसद कर दिया गया.
● 269 एसटी ऐक्ट के तहत 2 लाख से कम नकद के लेनदेन पर आयकर जुर्माने से भी पैक्स को छूट दी गई.
● उत्पादन में जो लोग हैं उनके लिए टैक्स की दर को 30 फीसद से कम कर 15 फीसद कर दिया गया. इससे महाराष्ट्र में विशेष रूप से फायदा हुआ है. 15,000 करोड़ रुपए का गन्ना मिलों के टैक्स का विवाद था जो सालों से चला आ रहा था. मोदी सरकार ने 15,000 करोड़ रु. माफ किया और कोऑपरेटिव गन्ना मिलों के पक्ष में इसका परमानेंट सॉल्यूशन लाने का काम किया.
● बैंकिंग के क्षेत्र में भी आवासन ऋण की सीमा को बढ़ाया गया. ग्रामीण सहकारी बैंकों के आवासन ऋण की सीमा को 75 लाख कर दिया गया, गोल्ड लोन की सीमा को भी बढ़ाया गया, नई ब्रांच खोली गईं.
● पिछले तीन साल में एक्सपोर्ट कोऑपरेटिव, ऑर्गेनिक कोऑपरेटिव और बीज के लिए कोऑपरेटिव बनाया गया है. जो अब किसानों की उपज को विश्व बाजार में बेचेगी. इसका मुनाफा सीधा किसानों के खाते में जाएगा.
● एनसीडीसी (राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम) के माध्यम से लगभग 1,38,000 करोड़ रु. की वित्तीय सहायता प्रदान की गई.
● मछली पालन में 44 गहरे समुद्री ट्रॉलर कोऑपरेटिव के माध्यम से दिए गए.
● श्वेत क्रांति 2.0 के माध्यम से डेयरी सेक्टर को भी मजबूत किया जा रहा है.
● डेयरी क्षेत्र में सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए गोबर, पशुओं की चमड़ी और हड्डियां की पूरी व्यवस्था कोऑपरेटिव क्षेत्र के अंदर लाने के लिए प्रयास शुरू किए गए हैं. तीन बड़ी कोऑपरेटिव भी बन चुकी हैं.
● नेफेड की ओर से खरीदी गई मक्का को एथेनॉल में ब्लेंड किया गया. इससे किसानों को मक्के का उचित दाम मिला.
● मक्के से बने एथेनॉल का दाम भी बढ़ाया और यह गाड़ियों में 20 फीसद तक मिश्रित है. इससे देश का इंपोर्ट बिल भी कम हुआ है.